भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 -
जो कोई किसी कार्य को ऐसे आशय या ज्ञान से और ऐसी परिस्थितियों में करेगा कि यदि वह उस कार्य द्वारा मॄत्यु कारित कर देता तो वह हत्या का दोषी होता, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, और यदि ऐसे कार्य द्वारा किसी व्यक्ति को उपहति कारित हो जाए, तो वह अपराधी या तो 2[आजीवन कारावास] से या ऐसे दण्ड से दण्डनीय होगा, जैसा एतस्मिनपूर्व वर्णित है । आजीवन सिद्धदोष द्वार प्रयत्न--3[जबकि इस धारा में वर्णित अपराध करने वाला कोई व्यक्ति 1[आजीवन कारावास] के दण्डादेश के अधीन हो, तब यदि उपहति कारित हुई हो, तो वह मॄत्यु से दण्डित किया जा सकेगा।]
दृष्टांत
(क) य का वध करने के आशय से क उस पर ऐसी परिस्थितियों में गोली चलाता है कि यदि मॄत्यु हो जाती, तो क हत्या का दोषी होता । क इस धारा के अधीन दण्डनीय है ।
(ख) क कोमल वयस के शिशु की मॄत्यु करने के आशय से उसे एक निर्जन स्थान में अरक्षित छोड़ देता है । क ने उस धारा द्वारा परिभाषित अपराध किया है, यद्यपि परिणामस्वरूप उस शिशु की मॄत्यु नहीं होती ।
(ग) य की हत्या का आशय रखते हुए क एक बन्दूक खरीदता है और उसको भरता है । क ने अभी तक अपराध नहीं किया है । य पर क बन्दूक चलाता है । उसने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है, और यदि इस प्रकार गोली मार कर वह य को घायल कर देता है, तो वह इस धारा 4[के प्रथम पैरे] के पिछले भाग द्वारा उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय है ।
(घ) विष द्वारा य की हत्या करने का आशय रखते हुए क विष खरीदता है, और उसे उस भोजन में मिला देता है, जो क के अपने पास रहता है; क ने इस धारा में परिभाषित अपराध अभी तक नहीं किया है । क उस भेजन को य की मेंजा पर रखता है, या उसको य की मेंज पर रखने के लिए य के सेवकों को परिदत्त् करता है । क ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है ।
हत्या करने का प्रयत्न- अब परिवादी भोजन कर अपनी झुग्गी में लेटा था, तभी अभियुक्त ने उसे किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से बाहर बुलवाया और जैसे ही परिवादी बाहर आया अभियुक्त ने उसे मारने के आशय से उसके सिर पर चाकू से दो बार हमला किया, और तदद्वारा उसके सिर पर क्षतियां कारित की, जब अभियुक्त परिवादी के पास योजनाबद्ध रीति से आया तथा उसके सिरोवल्क जैसे महत्वपूर्ण अंग पर चाकू से वार किया और उसके सिर पर काफी गंभीर लम्बी क्षति कारित की, जिससे उसका जीवन खतरे में पड गया, तब यह स्वमेव स्पष्ट और प्रकट है कि, अपीलार्थी ने परिवादी के शिरोवल्क पर चाकू से वार उसको मारने के आशय से किया था, अभियुक्त को धारा 307 भारतीय दण्ड संहिता के आधीन दोषसिद्ध किया गया (प्रेमनारायण विरूद्ध म०प्र० राज्य 2006(3) JLJ103)
धारा 307 की व्याख्या -
भारतीय दण्ड संहिता’ की धारा-307 के अंतर्गत हत्या के
प्रयास का अपराध गठित करने के लिये यह देखना आवश्यक है कि चोट की प्रकृति
क्या थी, चोट कारित करने के लिये किस स्वरूप के हथियार का प्रयोग, कितने बल
के साथ किया गया। घटना के समय प्रहारकर्ता ने अपना मनोउद्देश्य किस रूप
से तथा किन शब्दों को प्रकट किया ? उसका वास्तविक उद्देश्य क्या था ? आघात
के लिये आहत व्यक्ति के शरीर के किन अंगों को चुना गया ? आघात कितना
प्रभावशाली था ? उक्त परिस्थितियों के आधार पर ही यह अभिनिर्धारित किया जा
सकता है कि वास्तव में अभियुक्त का उद्देश्य हत्या कारित करना था अथवा
नहीं, किसी व्यक्ति पर हत्या
के इरादे से चोट पहुंचाने पर केस दर्ज किया जाता है। इसकी सेशन कोर्ट या
इससे ऊपर की अदालत में सुनवाई होती है। यह गैर जमानती अपराध है क्या है भारतीय दंड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता यानी Indian Penal
Code, IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों
की परिभाषा और दण्ड का प्रावधान करती है. लेकिन यह जम्मू एवं कश्मीर और
भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. जम्मू एवं कश्मीर में इसके स्थान पर
रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती है.
अंग्रेजों की देन है आईपीसी
भारतीय
दण्ड संहिता यानी आईपीसी सन् 1862 में ब्रिटिश काल के दौरान लागू हुई थी.
इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र
होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी
भारतीय दण्ड संहिता को ही अपनाया. लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन
ब्रिटिश सत्ता के अधीन आने वाले बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर,
ब्रुनेई आदि में भी लागू कर दिया गया था.
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