Saturday, 6 June 2020

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 451 to 484


दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 451 |  Section 451 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 451 in Hindi ] –

कुछ मामलों में विचारण लंबित रहने तक सम्पत्ति की अभिरक्षा और व्ययन के लिए आदेश

जब कोई सम्पत्ति, किसी दंड न्यायालय के समक्ष किसी जांच या विचारण के दौरान पेश की जाती है तब वह न्यायालय उस जांच या विचारण के समाप्त होने तक ऐसी सम्पत्ति की उचित अभिरक्षा के लिए ऐसा आदेश, जैसा वह ठीक समझे, कर सकता है और यदि वह सम्पत्ति शीघ्रतया या प्रकृत्या क्षयशील है या यदि ऐसा करना अन्यथा समीचीन है तो वह न्यायालय, ऐसा साक्ष्य अभिलिखित करने के पश्चात् जैसा वह आवश्यक समझे, उसके विक्रय या उसका अन्यथा व्ययन किए जाने के लिए आदेश कर सकता है।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजन के लिए सम्पत्ति के अन्तर्गत निम्नलिखित है,
(क) किसी भी किस्म की सम्पत्ति या दस्तावेज जो न्यायालय के समक्ष पेश की जाती है या जो उसकी अभिरक्षा में है,
(ख) कोई भी सम्पत्ति जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो किसी अपराध के करने में प्रयुक्त की गई प्रतीत होती है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 452 |  Section 452 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 452 in Hindi ] –

विचारण की समाप्ति पर सम्पत्ति के व्ययन के लिए आदेश

(1) जब किसी दंड न्यायालय में जांच या विचारण समाप्त हो जाता है तब न्यायालय उस सम्पत्ति या दस्तावेज को, जो उसके समक्ष पेश की गई है, या उसकी अभिरक्षा में है अथवा जिसके बारे में कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है या जो किसी अपराध के करने में प्रयुक्त की गई है, नष्ट करके, अधिहृत करके या किसी ऐसे व्यक्ति को परिदान करके, जो उस पर कब्जा करने का हकदार होने का दावा करता है, या किसी अन्य प्रकार से उसका व्ययन करने के लिए आदेश दे सकेगा जैसा वह ठीक समझे।
(2) किसी सम्पत्ति के कब्जे का हकदार होने का दावा करने वाले किसी व्यक्ति को उस संपत्ति के परिदान के लिए उपधारा (1) के अधीन आदेश किसी शर्त के बिना या इस शर्त पर दिया जा सकता है कि वह न्यायालय को समाधानप्रद रूप में यह वचनबंध करते हुए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे कि यदि उपधारा (1) के अधीन किया गया आदेश अपील या पुनरीक्षण में उपांतरित या अपास्त कर दिया गया तो वह उस सम्पत्ति को ऐसे न्यायालय को वापस कर देगा।
(3) उपधारा (1) के अधीन स्वयं आदेश देने के बदले सेशन न्यायालय सम्पत्ति को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को परिदत्त किए जाने का निदेश दे सकता है, जो तब उस सम्पत्ति के विषय में धारा 457,458 और 459 में उपबंधित रीति से कार्रवाई करेगा।
(4) उस दशा के सिवाय, जब सम्पत्ति पशुधन है या शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है या जब उपधारा (2) के अनुसरण में बंधपत्र निष्पादित किया गया है, उपधारा (1) के अधीन दिया गया आदेश दो मास तक अथवा जहां अपील उपस्थित की गई है वहां जब तक उस अपील का निपटारा न हो जाए, कार्यान्वित न किया जाएगा।
(5) उस सम्पत्ति की दशा में, जिसके बारे में अपराध किया गया प्रतीत होता है, इस धारा में सम्पत्ति पद के अन्तर्गत न केवल ऐसी सम्पत्ति है जो मूलतः किसी पक्षकार के कब्जे या नियंत्रण में रह चुकी है वरन् ऐसी कोई सम्पत्ति जिसमें या जिसके लिए उस सम्पत्ति का संपरिवर्तन या विनिमय किया गया है और ऐसे संपरिवर्तन या विनिमय से, चाहे अव्यवहित रूप से चाहे अन्यथा, अर्जित कोई चीज भी है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 453 |  Section 453 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 453 in Hindi ] –

अभियुक्त के पास मिले धन का निर्दोष क्रेता को संदाय-

जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए. जिसके अन्तर्गत चोरी या चुराई हुई सम्पत्ति को प्राप्त करना है अथवा जो चोरी या चुराई हुई सम्पत्ति प्राप्त करने की कोटि में आता है. दोषसिद्ध किया जाता है और यह साबित कर दिया जाता है किसी अन्य व्यक्ति ने चुराई हुई सम्पत्ति को, यह जाने बिना या अपने पास यह विश्वास करने का कारण हुए बिना कि वह चुराई हुई है, उससे क्रय किया है और सिद्धदोष व्यक्ति की गिरफ्तारी पर उसके कब्जे में से कोई धन निकाला गया था तब न्यायालय ऐसे क्रेता के आवेदन पर और चुराई हुई सम्पत्ति पर कब्जे के हकदार व्यक्ति को उस सम्पत्ति के वापस कर दिए जाने पर आदेश दे सकता है कि ऐसे क्रेता द्वारा दिए गए मूल्य से अनधिक राशि ऐसे धन में उसे परिदत्त की जाए

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 454 |  Section 454 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 454 in Hindi ] –

धारा 452 या 453 के अधीन आदेशों के विरुद्ध अपील-

(1) धारा 452 या धारा 453 के अधीन किसी न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति उसके विरुद्ध अपील उस न्यायालय में कर सकता है जिसमें मामूली तौर पर पूर्वकथित न्यायालय द्वारा की गई दोषसिद्धि के विरुद्ध अपीलें होती हैं।
(2) ऐसी अपील पर, अपील न्यायालय यह निदेश दे सकता है कि अपील का निपटारा होने तक आदेश रोक दिया जाए या बह ऐसे आदेश को उपांतरित, परिवर्तित या रद्द कर सकता है और कोई अतिरिक्त आदेश, जो न्यायसंगत हो, कर सकता है।
(3) किसी ऐसे मामले को, जिसमें उपधारा (1) में निर्दिष्ट आदेश दिया गया है, निपटाते समय अपील, पुष्टीकरण या पुनरीक्षण न्यायालय भी उपधारा (2) में निर्दिष्ट शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 455 |  Section 455 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 455 in Hindi ] –

अपमानलेखीय और अन्य सामग्री का नष्ट किया जाना

(1) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 292, धारा 293, धारा 501 या धारा 502 के अधीन दोषसिद्धि पर न्यायालय उस चीज की सब प्रतियों के, जिसके बारे में दोषसिद्धि हुई है और जो न्यायालय की अभिरक्षा में है, या सिद्भदोष व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में है, नष्ट किए जाने के लिए आदेश दे सकता है।
(2) न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 272, धारा 273, धारा 274 या धारा 275 के अधीन दोषसिद्धि पर उस खाद्य, पेय, ओषधि या भेषजीय निर्मित के, जिसके बारे में दोषसिद्धि हुई है, नष्ट किए जाने का उसी प्रकार से आदेश दे सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 456 |  Section 456 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 456 in Hindi ] –

स्थावर सम्पत्ति का कब्जा लौटाने की शक्ति

(1) जब आपराधिक बल या बल-प्रदर्शन या आपराधिक अभित्रास से युक्त किसी अपराध के लिए कोई व्यक्ति दोषसिद्ध किया जाता है और न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि ऐसे बल या बल-प्रदर्शन या अभिनास से कोई व्यक्ति किसी स्थावर संपत्ति से बेकब्जा किया गया है तब, यदि न्यायालय ठीक समझे तो, आदेश दे सकता है कि किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसका उस सम्पत्ति पर कब्जा है यदि आवश्यक हो तो, बल द्वारा बेदखल करने के पश्चात्, उस व्यक्ति को उसका कब्जा लौटा दिया जाए:
परन्तु न्यायालय द्वारा ऐसा कोई आदेश दोषसिद्धि की तारीख से एक मास के पश्चात् नहीं दिया जाएगा।
(2) जहां अपराध का विचारण करने वाले न्यायालय ने उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश नहीं दिया है, वहां अपील, पुष्टीकरण या पुनरीक्षण न्यायालय, यदि ठीक समझे तो, यथास्थिति, अपील, निर्देश या पुनरीक्षण को निपटाते समय ऐसा आदेश दे सकता है।
(3) जहाँ उपधारा (1) के अधीन आदेश दिया गया है, वहां धारा 454 के उपबंध उसके संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे धारा 453 के अधीन दिए गए किसी आदेश के संबंध में लागू होते हैं।
(4) इस धारा के अधीन दिया गया कोई आदेश ऐसी स्थावर सम्पत्ति पर किसी ऐसे अधिकार या उसमें किसी ऐसे हित पर प्रतिकूल प्रभाव न डालेगा जिसे कोई व्यक्ति सिविल वाद में सिद्ध करने में सफल हो जाता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 457 |  Section 457 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 457 in Hindi ] –

सम्पत्ति के अभिग्रहण पर पुलिस द्वारा प्रक्रिया

(1) जब कभी किसी पुलिस अधिकारी द्वारा किसी सम्पत्ति के अभिग्रहण की रिपोर्ट इस संहिता के उपबंधों के अधीन मजिस्ट्रेट को की जाती है और जांच या विचारण के दौरान ऐसी सम्पत्ति दंड न्यायालय के समक्ष पेश नहीं की जाती है तो मजिस्ट्रेट ऐसी सम्पत्ति के व्ययन के, या उस पर कब्जा करने के हकदार व्यक्ति को ऐसी सम्पत्ति का परिदान किए जाने के बारे में या यदि ऐसा व्यक्ति अभिनिश्चित नहीं किया जा सकता है तो ऐसी सम्पत्ति की अभिरक्षा और पेश किए जाने के बारे में ऐसा आदेश कर सकता है जो वह ठीक समझे।
(2) यदि ऐसा हकदार व्यक्ति ज्ञात है, तो मजिस्ट्रेट वह सम्पत्ति उसे उन शर्तों पर (यदि कोई हो), जो मजिस्ट्रेट ठीक समझे परिदत्त किए जाने का आदेश दे सकता है और यदि ऐसा व्यक्ति अज्ञात है तो मजिस्ट्रेट उस सम्पत्ति को निरुद्ध कर सकता है और ऐसी दशा में एक उद्घोषणा जारी करेगा, जिसमें उस सम्पत्ति की अंगभूत वस्तुओं का विनिर्देश हो, और जिसमें किसी व्यक्ति से, जिसका उसके ऊपर दावा है, यह अपेक्षा की गई हो कि वह उसके समक्ष हाजिर हो और ऐसी उद्घोषणा की तारीख से छह मास के अन्दर अपने दावे को सिद्ध करे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 458 |  Section 458 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 458 in Hindi ] –

जहां छह मास के अन्दर कोई दावेदार हाजिर न हो वहां प्रक्रिया

(1) यदि ऐसी अवधि के अन्दर कोई व्यक्ति सम्पत्ति पर अपना दावा सिद्ध न करे और वह व्यक्ति जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति पाई गई थी, यह दर्शित करने में असमर्थ है कि वह उसके द्वारा वैध रूप से अर्जित की गई थी तो मजिस्ट्रेट आदेश द्वारा निदेश दे सकता है कि ऐसी सम्पत्ति राज्य सरकार के व्ययनाधीन होगी तथा उस सरकार द्वारा विक्रय की जा सकेगी और ऐसे विक्रय के आगमों के संबंध में ऐसी रीति से कार्यवाही की जा सकेगी जो विहित की जाए।
(2) किसी ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील उस न्यायालय में होगी जिसमें मामूली तौर पर मजिस्ट्रेट द्वारा की गई दोषसिद्धि के विरुद्ध अपीलें होती हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 459 |  Section 459 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 459 in Hindi ] –

विनश्वर सम्पत्ति को बेचने की शक्ति-

यदि ऐसी सम्पत्ति पर कब्जे का हकदार व्यक्ति अज्ञात या अनुपस्थित है और सम्पत्ति शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है अथवा यदि उस मजिस्ट्रेट की, जिसे उसके अभिग्रहण की रिपोर्ट की गई है यह राय है कि उसका विक्रय स्वामी के फायदे के लिए होगा अथवा ऐसी सम्पत्ति का [मूल्य पांच सौ रुपए से कम है। तो मजिस्ट्रेट किसी समय भी उसके विक्रय का निदेश दे सकता है और ऐसे विक्रय के शुद्ध आगमों को धारा 457 और 458 के उपबंध यथासाध्य निकटतम रूप से लागू होंगे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 460 |  Section 460 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 460 in Hindi ] –

वे अनियमितताएं जो कार्यवाही को दूषित नहीं करतीं

यदि कोई मजिस्ट्रेट, जो निम्नलिखित बातों में से किसी को करने के लिए विधि द्वारा सशक्त नहीं है, गलती से सद्भावपूर्वक उस बात को करता है तो उसकी कार्यवाही को केवल इस आधार पर कि वह ऐसे सशक्त नहीं था अपास्त नहीं किया जाएगा, अर्थात् :
(क) धारा 94 के अधीन तलाशी-वारण्ट जारी करना;
(ख) किसी अपराध का अन्वेषण करने के लिए पुलिस को धारा 155 के अधीन आदेश देना;
(ग) धारा 176 के अधीन मृत्यु-समीक्षा करना;
(घ) अपनी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर के उस व्यक्ति को, जिसने ऐसी अधिकारिता की सीमाओं के बाहर अपराध किया है, पकड़ने के लिए धारा 187 के अधीन आदेशिका जारी करना;
(ङ) किसी अपराध का धारा 190 की उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (ख) के अधीन संज्ञान करना;
(च) किसी मामले को धारा 192 की उपधारा (2) के अधीन हवाले करना;
(छ) धारा 306 के अधीन क्षमादान करना;
(ज) धारा 410 के अधीन मामले को वापस मंगाना और उसका स्वयं विचारण करना : अथवा
(झ) धारा 458 या धारा 459 के अधीन सम्पत्ति का विक्रय 

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 461 |  Section 461 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 461 in Hindi ] –

वे अनियमितताएं जो कार्यवाही को दूषित करती हैं-

यदि कोई मजिस्ट्रेट, जो निम्नलिखित बातों में से कोई बात विधि द्वारा इस निमित्त सशक्त न होते हुए, करता है तो उसकी कार्यवाही शून्य होगी, अर्थात् :
(क) सम्पत्ति को धारा 83 के अधीन कुर्क करना और उसका विक्रय ;
(ख) किसी डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में की किसी दस्तावेज. पार्सल या अन्य चीज के लिए तलाशी-वारण्ट जारी करना
(ग) परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति की मांग करना;
(घ) सदाचार के लिए प्रतिभूति की मांग करना;
(ङ) सदाचारी बने रहने के लिए विधिपूर्वक आबद्ध व्यक्ति को उन्मोचित करना;
(च) परिशान्ति कायम रखने के बंधपत्र को रद्द करना;
(छ) भरण-पोषण के लिए आदेश देना;
(ज) स्थानीय न्यूसेन्स के बारे में धारा 133 के अधीन आदेश देना:
(झ) लोक न्यूसेन्स की पुनरावृत्ति या उसे चालू रखने की धारा 143 के अधीन प्रतिषेध करना;
(ञ) अध्याय 10 के भाग ग या भाग घ के अधीन आदेश देना;
(ट) किसी अपराध का धारा 190 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन संज्ञान करना;
(ठ) किसी अपराधी का विचारण करना;
(ड) किसी अपराधी का संक्षेपतः विचारण करना;
(ढ) किसी अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित कार्यवाही पर धारा 325 के अधीन दंडादेश पारित करना;
(ण) अपील का विनिश्चय करना;
(त) कार्यवाही को धारा 397 के अधीन मंगाना ; अथवा
(थ) धारा 446 के अधीन पारित आदेश का पुनरीक्षण करना।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 462 |  Section 462 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 462 in Hindi ] –

गलत स्थान में कार्यवाही-

किसी दंड न्यायालय का कोई निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश केवल इस आधार पर कि वह जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही जिसके अनुक्रम में उस निष्कर्ष पर पहुंचा गया था या वह दंडादेश या आदेश पारित किया गया था, गलत सेशन खंड, जिला, उपखंड या अन्य स्थानीय क्षेत्र में हुई थी उस दशा में ही अपास्त किया जाएगा जब यह प्रतीत होता है कि ऐसी गलती के कारण वस्तुतः न्याय नहीं हो पाया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 463 |  Section 463 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 463 in Hindi ] –

धारा 164 या धारा 281 के उपबंधों का अननुपालन

(1) यदि कोई न्यायालय, जिसके समक्ष अभियुक्त व्यक्ति की संस्वीकृति या अन्य कथन, जो धारा 164 या धारा 281 के अधीन अभिलिखित है या अभिलिखित होना तात्पर्यित है, साक्ष्य में दिया जाता है या लिया जाता है, इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि कथन अभिलिखित करने वाले मजिस्ट्रेट द्वारा इन धाराओं में से किसी धारा के किसी उपबंध का अनुपालन नहीं किया गया है तो वह, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 91 में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे अननुपालन के बारे में साक्ष्य ले सकता है और यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसे अननुपालन से अभियुक्त की, गुणागुण विषयक बातों पर अपनी प्रतिरक्षा करने में कोई हानि नहीं हुई है और उसने अभिलिखित कथन सम्यक रूप से किया था, तो ऐसे कथन को ग्रहण कर सकता है।
(2) इस धारा के उपबंध अपील, निर्देश और पुनरीक्षण न्यायालयों को लागू होते हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 464 |  Section 464 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 464 in Hindi ] –

आरोप विरचित न करने या उसके अभाव या उसमें गलती का प्रभाव-

(1) किसी सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय का कोई निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश केवल इस आधार पर कि कोई आरोप विरचित नहीं किया गया अथवा इस आधार पर कि आरोप में कोई गलती, लोप या अनियमितता थी, जिसके अन्तर्गत आरोपों का कुसंयोजन भी है, उस दशा में ही अविधिमान्य समझा जाएगा जब अपील, पुष्टीकरण या पुनरीक्षण न्यायालय की राय में उसके कारण वस्तुतः न्याय नहीं हो पाया है।
(2) यदि अपील, पुष्टीकरण या पुनरीक्षण न्यायालय की यह राय है कि वस्तुतः न्याय नहीं हो पाया है तो वह
(क) आरोप विरचित न किए जाने वाली दशा में यह आदेश कर सकता है कि आरोप विरचित किया जाए और आरोप की विरचना के ठीक पश्चात् से विचारण पुनः प्रारंभ किया जाए :
(ख) आरोप में किसी गलती, लोप या अनियमितता वाली दशा में यह निदेश दे सकता है कि किसी ऐसी रीति से, जिसे वह ठीक समझे, विरचित आरोप पर नया विचारण किया जाए:
परन्तु यदि न्यायालय की यह राय है कि मामले के तथ्य ऐसे हैं कि साबित तथ्यों की बाबत अभियुक्त के विरुद्ध कोई विधिमान्य आरोप नहीं लगाया जा सकता तो वह दोषसिद्धि को अभिखंडित कर देगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 465 |  Section 465 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 465 in Hindi ] –

निष्कर्ष या दंडादेश कब गलती, लोप या अनियमितता के कारण उलटने योग्य होगा-

(1) इसमें इसके पूर्व अन्तर्विष्ट उपबंधों के अधीन यह है कि सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा पारित कोई निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश विचारण के पूर्व या दौरान परिवाद, समन, वारण्ट, उद्घोषणा, आदेश, निर्णय या अन्य कार्यवाही में हुई या इस संहिता के अधीन किसी जांच या अन्य कार्यवाही में हुई किसी गलती, लोप या अनियमितता या अभियोजन के लिए मंजूरी में हुई किसी गलती या अनियमितता के कारण अपील, पुष्टीकरण का पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तब तक न तो उलटा जाएगा और न परिवर्तित किया जाएगा जब तक न्यायालय की यह राय नहीं है कि उसके कारण वस्तुतः न्याय नहीं हो पाया है।
(2) यह अवधारित करने में कि क्या इस संहिता के अधीन किसी कार्यवाही में किसी गलती. लोप या अनियमितता या अभियोजन के लिए मंजूरी में हुई किसी गलती या अनियमितता के कारण न्याय नहीं हो पाया है न्यायालय इस बात को ध्यान में रखेगा कि क्या वह आपत्ति कार्यवाही के किसी पूर्वतर प्रक्रम में उठायी जा सकती थी और उठायी जानी चाहिए थी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 466 |  Section 466 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 466 in Hindi ] –

त्रुटि या गलती के कारण कुर्की का अवैध न होना-

इस संहिता के अधीन की गई कोई कुर्की ऐसी किसी त्रुटि के कारण या प्ररूप के अभाव के कारण विधिविरुद्ध न समझी जाएगी जो समन, दोषसिद्धि, कुर्की की रिट या तत्संबंधी अन्य कार्यवाही में हुई है और न उसे करने वाला कोई व्यक्ति अतिचारी समझा जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 467 |  Section 467 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 467 in Hindi ] –

परिभाषा

इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, जब तक संदर्भ में अन्यथा अपेक्षित न हो, परिसीमा-काल से किसी अपराध का संज्ञान करने के लिए धारा 468 में विनिर्दिष्ट अवधि अभिप्रेत है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 468 |  Section 468 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 468 in Hindi ] –

परिसीमा-काल की समाप्ति के पश्चात् संज्ञान का वर्जन

(1) इस संहिता में अन्यत्र जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, कोई न्यायालय उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट प्रवर्ग के किसी अपराध का संज्ञान परिसीमा-काल की समाप्ति के पश्चात् नहीं करेगा।
(2) परिसीमा-काल,-
(क) छह मास होगा, यदि अपराध केबल जुर्माने से दंडनीय है ;
(ख) एक वर्ष होगा, यदि अपराध एक वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय है ;
(ग) तीन वर्ष होगा, यदि अपराध एक वर्ष से अधिक किन्तु तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय है।
(3) इस धारा के प्रयोजनों के लिए उन अपराधों के संबंध में, जिनका एक साथ विचारण किया जा सकता है, परिसीमा-काल उस अपराध के प्रतिनिर्देश से अवधारित किया जाएगा जो, यथास्थिति, कठोरतर या कठोरतम दंड से दंडनीय है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 469 |  Section 469 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 469 in Hindi ] –

परिसीमा-काल का प्रारंभ

(1) किसी अपराधी के संबंध में परिसीमा-काल,
(क) अपराध की तारीख को प्रारंभ होगा; या
(ख) जहां अपराध के किए जाने की जानकारी अपराध द्वारा व्यथित व्यक्ति को या किसी पुलिस अधिकारी को नहीं है वहां उस दिन प्रारंभ होगा जिस दिन प्रथम बार ऐसे अपराध की जानकारी ऐसे व्यक्ति या ऐसे पुलिस अधिकारी को होती है, इनमें से जो भी पहले हो ; या
(ग) जहां यह ज्ञात नहीं है कि अपराध किसने किया है, वहां उस दिन प्रारंभ होगा जिस दिन प्रथम बार अपराधी का पता अपराध द्वारा व्यथित व्यक्ति को या अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी को चलता है, इनमें से जो भी पहले हो।
(2) उक्त अवधि की संगणना करने में, उस दिन को छोड़ दिया जाएगा जिस दिन ऐसी अवधि की संगणना की जानी है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 470 |  Section 470 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 470 in Hindi ] –

कुछ दशाओं में समय का अपवर्जन-

(1) परिसीमा-काल की संगणना करने में, उस समय का अपवर्जन किया जाएगा, जिसके दौरान कोई व्यक्ति चाहे प्रथम बार के न्यायालय में या अपील या पुनरीक्षण न्यायालय में अपराधी के विरुद्ध अन्य अभियोजन सम्बक् तत्परता से चला रहा है :
 परन्तु ऐसा अपवर्जन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक अभियोजन उन्हीं तथ्यों से संबंधित न हो और ऐसे न्यायालय में सद्भावपूर्वक न किया गया हो जो अधिकारिता में दोष या इसी प्रकार के अन्य कारण से उसे ग्रहण करने में असमर्थ हो।
(2) जहां किसी अपराध की बाबत अभियोजन का संस्थित किया जाना किसी व्यादेश या आदेश द्वारा रोक दिया गया है वहां परिसीमा-काल की संगणना करने में व्यादेश या आदेश के बने रहने की अवधि को, उस दिन को, जिसको वह जारी किया गया था या दिया गया था और उस दिन को, जिस दिन उसे वापस लिया गया था, अपवर्जित किया जाएगा।
(3) जहां किसी अपराध के अभियोजन के लिए सूचना दी गई है. या जहां तत्समय प्रवत्त किसी विधि के अधीन सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी की पूर्व अनुमति या मंजूरी किसी अपराध की बाबत अभियोजन संस्थित करने के लिए अपेक्षित है वहां परिसीमा-काल की संगणना करने में, ऐसी सूचना की अवधि, या, यथास्थिति, ऐसी अनुमति या मंजूरी प्राप्त करने के लिए आवश्यक समय अपवर्जित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण-सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी की अनुमति या मंजूरी प्राप्त करने के लिए आवश्यक समय की संगणना करने में उस तारीख का जिसको अनुमति या मंजूरी प्राप्त करने के लिए आवेदन दिया गया था और उस तारीख का जिसको सरकार या अन्य प्राधिकारी का आदेश प्राप्त हुआ, दोनों का, अपवर्जन किया जाएगा। (4) परिसीमा-काल की संगणना करने में, वह समय अपवर्जित किया जाएगा जिसके दौरान अपराधी,
(क) भारत से या भारत से बाहर किसी राज्यक्षेत्र से, जो केन्द्रीय सरकार के प्रशासन के अधीन है. अनुपस्थित रहा है, या
(ख) फरार होकर या अपने को छिपाकर गिरफ्तारी से बचता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 471 |  Section 471 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 471 in Hindi ] –

जिस तारीख को न्यायालय बंद हो उस तारीख का अपवर्जन

यदि परिसीमा-काल उस दिन समाप्त होता है जब न्यायालय बंद है तो न्यायालय उस दिन संज्ञान कर सकता है जिस दिन न्यायालय पुनः खुलता है।
स्पष्टीकरण-न्यायालय उस दिन इस धारा के अर्थान्तर्गत बंद समझा जाएगा जिस दिन अपने सामान्य काम के घंटों में वह बंद रहता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 472 |  Section 472 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 472 in Hindi ] –

चालू रहने वाला अपराध

किसी चालू रहने वाले अपराध की दशा में नया परिसीमा-काल उस समय के प्रत्येक क्षण से प्रारंभ होगा जिसके दौरान अपराध चालू रहता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 473 |  Section 473 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 473 in Hindi ] –

कुछ दशाओं में परिसीमा-काल का विस्तारण-

इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबंधों में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई भी न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान परिसीमा-काल के अवसान के पश्चात् कर सकता है यदि मामले के तथ्यों या परिस्थितियों से उसका समाधान हो जाता है कि विलंब का उचित रूप से स्पष्टीकरण कर दिया गया है या न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 474 |  Section 474 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 474 in Hindi ] –

उच्च न्यायालयों के समक्ष विचारण

जब किसी अपराध का विचारण उच्च न्यायालय द्वारा धारा 407 के अधीन न करके अन्यथा किया जाता है तब वह अपराध के विचारण में वैसी ही प्रक्रिया का अनुपालन करेगा, जिसका सेशन न्यायालय अनुपालन करता यदि उसके द्वारा उस मामले का विचारण किया जाता।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 475 |  Section 475 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 475 in Hindi ] –

सेना न्यायालय द्वारा विचारणीय व्यक्तियों का कमान आफिसरों को सौंपा जाना

(1) केन्द्रीय सरकार इस संहिता से और सेना अधिनियम, 1950 (1950 का 46), नौसेना अधिनियम, 1957 (1957 का 62) और वायुसेना अधिनियम, 1950 (1950 का 45) और संघ के सशस्त्र बल से संबंधित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि से संगत नियम ऐसे मामलों के लिए बना सकेगी जिनमें सेना, नौसेना या वायुसेना संबंधी विधि या अन्य ऐसी विधि के अधीन होने वाले व्यक्तियों का विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा, जिसको यह संहिता लागू होती है, या सेना न्यायालय द्वारा किया जाएगा; तथा जब कोई व्यक्ति किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष लाया जाता है और ऐसे अपराध के लिए आरोपित किया जाता है, जिसके लिए उसका विचारण या तो उस न्यायालय द्वारा जिसको यह संहिता लागू होती है, या सेना न्यायालय द्वारा किया जा सकता है तब ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे नियमों को ध्यान में रखेगा और उचित मामलों में उसे उस अपराध के कथन सहित, जिसका उस पर अभियोग है, उस यूनिट के जिसका वह हो, कमान आफिसर को या, यथास्थिति, निकटतम सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक स्टेशन के कमान आफिसर को सेना न्यायालय द्वारा उसका विचारण किए जाने के प्रयोजन से सौंप देगा। स्पष्टीकरण-इस धारा में,
(क) यूनिटके अन्तर्गत रेजिमेंट, कोर, पोत, टुकड़ी, ग्रुप, बटालियन या कम्पनी भी है।
(ख) सेना न्यायालयके अन्तर्गत ऐसा कोई अधिकरण भी है जिसकी वैसी ही शक्तियां हैं जैसी संघ के सशस्त्र बल को लागू सुसंगत विधि के अधीन गठित किसी सेना न्यायालय की होती हैं।
(2) प्रत्येक मजिस्ट्रेट ऐसे अपराध के लिए अभियुक्त व्यक्ति को पकड़ने और सुरक्षित रखने के लिए अपनी ओर से अधिकतम प्रयास करेगा जब उसे किसी ऐसे स्थान में आस्थित या नियोजित सैनिकों, नाविकों या वायु सैनिकों के किसी यूनिट या निकाय के कमान आफिसर से उस प्रयोजन के लिए लिखित आवेदन प्राप्त होता है।
(3) उच्च न्यायालय, यदि ठीक समझे तो, यह निदेश दे सकता है कि राज्य के अंदर स्थित किसी जेल में निरुद्ध किसी बंदी को सेना न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले के बारे में विचारण के लिए या परीक्षा किए जाने के लिए सेना न्यायालय के समक्ष लाया जाए।

ड प्रक्रिया संहिता की धारा 476 |  Section 476 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 476 in Hindi ] –

प्ररूप-

संविधान के अनुच्छेद 237 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अधीन रहते हुए, द्वितीय अनुसूची में दिए गए प्ररूप ऐसे परिवर्तनों सहित, जैसे प्रत्येक मामले की परिस्थितियों से अपेक्षित हों, उसमें वर्णित संबद्ध प्रयोजनों के लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं और यदि उपयोग में लाए जाते हैं तो पर्याप्त होंगे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 477 |  Section 477 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 477 in Hindi ] –

उच्च न्यायालय की नियम बनाने की शक्ति

(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से निम्नलिखित के बारे में नियम बना सकेगा:
(क) वे व्यक्ति जो उसके अधीनस्थ दंड न्यायालयों में अर्जी लेखकों के रूप में काम करने के लिए अनुज्ञात किए जा सकेंगे:
(ख) ऐसे व्यक्तियों को अनुज्ञप्ति दिए जाने, उनके द्वारा काम काज करने और उनके द्वारा ली जाने वाली फीसों के मापमान का विनियमन :
(ग) इस प्रकार बनाए गए नियमों में से किसी के उल्लंघन के लिए शास्ति उपबंधित करना और वह प्राधिकारी, जिसके द्वारा ऐसे उल्लंघन का अन्वेषण किया जा सकेगा और शास्तियां अधिरोपित की जा सकेंगी, अवधारित करना;
(घ) कोई अन्य विषय जिसका विहित किया जाना अपेक्षित है या जो विहित किया जाए।
(2) इस धारा के अधीन बनाए गए सब नियम राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 478 |  Section 478 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 478 in Hindi ] –

कुछ दशाओं में कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को सौंपे गए कृत्यों को परिवर्तित करने की शक्ति-

यदि किसी राज्य का विधानमंडल संकल्प द्वारा ऐसी अनुज्ञा देता है तो राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात्, अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकेगी कि धारा 108, 109, 110, 145 और 147 में किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का अर्थ यह लगाया जाएगा कि वह किसी प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 479 |  Section 479 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 479 in Hindi ] –

वह मामला जिसमें न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट वैयक्तिक रूप से हितबद्ध है

कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट किसी ऐसे मामले का, जिसमें वह पक्षकार है, या वैयक्तिक रूप से हितबद्ध है, उस न्यायालय की अनुज्ञा के बिना, जिसमें उसके न्यायालय से अपील होती है, न तो विचारण करेगा और न उसे विचारणार्थ सुपुर्द करेगा और न कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट अपने द्वारा पारित या किए गए किसी निर्णय या आदेश की अपील ही सुनेगा।
स्पष्टीकरण-कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट किसी मामले में केवल इस कारण से कि वह उससे सार्वजनिक हैसियत में संबद्ध है या केवल इस कारण से कि उसने उस स्थान का, जिसमें अपराध का होना अभिकथित है, या किसी अन्य स्थान का, जिसमें मामले के लिए महत्वपूर्ण किसी अन्य संव्यवहार का होना अभिकथित है, अवलोकन किया है और उस मामले के संबंध में जांच की है इस धारा के अर्थ में पक्षकार या वैयक्तिक रूप से हितबद्ध न समझा जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 480 |  Section 480 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 480 in Hindi ] –

विधि-व्यवसाय करने वाले प्लीडर का कुछ न्यायालयों में मजिस्ट्रेट के तौर पर न बैठना-

कोई प्लीडर, जो किसी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में विधि-व्यवसाय करता है, उस न्यायालय में या उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के अन्दर किसी न्यायालय में मजिस्ट्रेट के तौर पर न बैठेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 481 |  Section 481 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 481 in Hindi ] –

विक्रय से संबद्ध लोक सेवक का सम्पत्ति का क्रय न करना और उसके लिए बोली न लगाना-

कोई लोक सेवक, जिसे इस संहिता के अधीन संपत्ति के विक्रय के बारे में किसी कर्तव्य का पालन करना है, उस संपत्ति का न तो क्रय करेगा और न उसके लिए बोली लगाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 |  Section 482 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 482 in Hindi ] –

उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियों की व्यावृत्ति-

इस संहिता की कोई बात उच्च न्यायालय की ऐसे आदेश देने की अन्तर्निहित शक्ति को सीमित या प्रभावित करने वाली न समझी जाएगी जैसे इस संहिता के अधीन किसी आदेश को प्रभावी करने के लिए या किसी न्यायालय की कार्यवाही का दुरुपयोग निवारित करने के लिए या किसी अन्य प्रकार से न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 483 |  Section 483 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 483 in Hindi ] –

न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों पर अधीक्षण का निरंतर प्रयोग करने का उच्च न्यायालय का कर्तव्य-

प्रत्येक उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों पर अपने अधीक्षण का प्रयोग इस प्रकार करेगा जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि ऐसे मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों का निपटारा शीघ्र और उचित रूप से किया जाता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 484 |  Section 484 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 484 in Hindi ] –

निरसन और व्यावृत्तियां-

निरसन और व्यावृत्तियां-(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) इसके द्वारा निरसित की जाती है। (2) ऐसे निरसन के होते हुए भी यह है कि,
(क) यदि उस तारीख के जिसको यह संहिता प्रवृत्त हो, ठीक पूर्व कोई अपील, आवेदन, विचारण, जांच या अन्वेषण लंबित हो तो ऐसी अपील, आवेदन, विचारण, जांच या अन्वेषण को ऐसे प्रारंभ के ठीक पूर्व यथा प्रवृत्त दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के (जिसे इसमें इसके पश्चात् पुरानी संहिता कहा गया है। उपबंधों के अनुसार, यथास्थिति, ऐसे निपटाया जाएगा, चालू रखा जाएगा या किया जाएगा मानो यह संहिता प्रवृत्त न हुई हो :
परन्तु यह कि पुरानी संहिता के अध्याय 18 के अधीन की गई प्रत्येक जांच, जो इस संहिता के प्रारंभ पर लंबित है, इस संहिता के उपबंधों के अनुसार की और निपटायी जाएगी:
(ख) पुरानी संहिता के अधीन प्रकाशित सभी अधिसूचनाएं, जारी की गई सभी उद्घोषणाएं, प्रदत्त सभी शक्तियां, विहित सभी प्ररूप, परिनिश्चित सभी स्थानीय अधिकारिताएं दिए गए सभी दंडादेश, किए गए सभी आदेश, नियम और ऐसी नियुक्तियां जो विशेष मजिस्ट्रेटों के रूप में नियुक्तियां नहीं हैं और जो इस संहिता के प्रारंभ के तुरंत पूर्व प्रवर्तन में हैं, क्रमशः इस संहिता के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन प्रकाशित अधिसूचनाएं, जारी की गई उद्घोषणाएं, प्रदत्त शक्तियां, विहित प्ररूप, परिनिश्चित स्थानीय अधिकारिताएं, दिए गए दंडादेश और किए गए आदेश, नियम और नियुक्तियां समझी जाएंगी;
(ग) पुरानी संहिता के अधीन दी गई किसी ऐसी मंजूरी या सम्मति के बारे में, जिसके अनुसरण में उस संहिता के अधीन कोई कार्यवाही प्रारंभ न की गई हो, यह समझा जाएगा कि वह इस संहिता के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन दी गई है और ऐसी मंजूरी या सम्मति के अनुसरण में इस संहिता के अधीन कार्यवाहियां की जा सकेंगी;
(घ ) पुरानी संहिता के उपबंधों का संविधान के अनुच्छेद 363 के अर्थ के अन्तर्गत किसी शासक के विरुद्ध प्रत्येक अभियोजन की बाबत लागू होना चालू रहेगा।
(3) जहां पुरानी संहिता के अधीन किसी आवेदन या अन्य कार्यवाही के लिए विहित अवधि इस संहिता के प्रारंभ पर या उसके पूर्व समाप्त हो गई हो, वहां इस संहिता की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह इस संहिता के अधीन ऐसे आवेदन के किए जाने या कार्यवाही के प्रारंभ किए जाने के लिए केवल इस कारण समर्थ करती है कि उसके लिए इस संहिता द्वारा दीर्चतर अवधि विहित की गई है या इस संहिता में समय बढ़ाने के लिए उपबंध किया गया है।

 


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