वसीयत को लेकर अक्सर लोगों में भ्रांतिया होती हैं, कि वसीयत क्या है, वसीयत कैसे करें, क्यों करें, क्या वसीयत के लिए स्टाम्प आवश्यक है, कहां वसीयत कराऐं, कितना खर्च आयेगा, मेरी सम्पत्ति मेरे हाथ से तो नहीं निकल जायेगी, इत्यादि प्रश्न व्यक्ति के मन में चलते रहते हैं, इन सभी प्रश्नों के उत्तर के रूप में यह लेख तैयार किया गया है, जिसका अवलोकन आपको वसीयत के बारे में संतुष्ट करेगा।
वसीयत क्या है-
वसीयत को अंग्रेजी में Will कहते हैं, वसीयत एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे तैयार करके व्यक्ति अपने जीवनकाल में अपनी सम्पत्ति की व्यवस्था करता है, एवं निर्धारित करता है कि, जब तक मैं जीवित हूं तब तक सम्पत्ति मेरी रहेगी, एवं सम्पत्ति से संबंधित समस्त अधिकार मेरे पास रहेंगे, एवं मेरी मृत्यु पश्चात मेरी सम्पत्ति वसीयत अनुसार वसीयत में उल्लेखित व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को दे दी जाए। कानून के अनुसार कोई भी वसीयत उस दिनांक व समय को प्रभावशील मानी जाती है, जिस दिनांक व समय को वसीयत करने वाले की मृत्यु होती है। मृत्यु के पूर्व वसीयत मात्र एक कागज का टुकडा है, जिसका कोई मूल्य नहीं है, और न ही ऐसे कागज के आधार पर किसी भी व्यक्ति को सम्पत्ति में कोई अधिकार उत्पन्न होता है।
वसीयत कौन कर सकता है-
कोई भी वयस्क व्यक्ति अपनी वसीयत लिख सकता है, वसीयत करने के लिए किसी वकील की या किसी एक्सपर्ट की आवश्यकता नहीं होती है, हालांकि वसीयत किसी कानूनी दावपेंच में न उलझे इसलिए किसी वकील से अथवा एक्सपर्ट से राय लेकर वसीयत किया जाना उचित होता है।
वसीयत कैसे करें -
, वसीयत साधारण कागज पर भी लिखी जा सकती है, इसका नोटरी या रजिस्टर्ड होना भी आवश्यक नहीं होता है, और जरूरी नहीं है कि, वसीयत स्टाम्प पर लिखी जाए। स्टाम्प पर वसीयत करने का मात्र इतना उद्देश्य ही होता है कि, स्टाम्प का कागज मजबूत और अच्छा होता है, इसके अतिक्त स्टाम्प पर वसीयत करने का कोई कारण नहीं है। इसलिए सबसे कम मूल्य के स्टाम्प पर भी वसीयत की जा सकती है। कोई भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में जितने बार चाहे वसीयत कर सकता है, किन्तु वसीयतकर्ता द्वारा की गई अंतिम वसीयत मान्य होती है। वसीयत में दो साक्षीगण (गवाह) का होना आवश्यक है, यदि वसीयतकर्ता अंगूठा लगाता है, तो वसीयत पर गवाहों के फोटो लगाये जाने चाहिए। वसीयत पर गवाहों के समक्ष वसीयत करने वाले के हस्ताक्षर अथवा अंगूठा (बांये हाथ का) लगाया जाना चाहिए। वसीयत नोटरी से तस्दीक करवाना अथवा रजिस्टर्ड करवाना भी आवश्यक नहीं है, किन्तु वसीयत नोटरी से तस्दीक करवाने से अथवा रजिस्टर्ड वसीयत करवाने से यह लाभ होता है कि, जिसके पक्ष में वसीयत की जा रही है, वह वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात वसीयत को आसानी प्रमाणित कर सकता है।वसीयत में क्या-क्या लिखा जा सकता है-
वसीयत में यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि, मेरे द्वारा लिखी जा रही वसीयत मेरे मरने के बाद प्रभावशील होगी। वसीयत में लिखा जा सकता है कि, कौन-कौन सी सम्पत्ति किसे-किसे प्राप्त होगी, और सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए क्या-क्या योग्यताऐं धारण करनी होगी, मेरी सम्पत्ति में मेरे पुत्र को हिस्सा मिलेगा या नहीं या किस पुत्र को कितना हिस्सा प्राप्त होगा, पुत्री को कितना हिस्सा मिलेगा, या नहीं मिलेगा, पत्नी के भरण पोषण की व्यवस्था, मरने के बाद क्रिया कर्म कौन करेगा, मुखाग्नि कौन देगा, तीसरा अथवा तैरहवी करना है या नहीं, मृत्यु के पश्चात अंगों दान का दान, मंदिर में कितना दान देना है, कौन से रकम जेवर किसे देना है, बैंक खाते का उत्तराधिकारी कौन होगा, चल रहे प्रकरणों में पक्षकार बनने के लिए कौन उत्तराधिकारी होगा। अर्थात किसे क्या मिलेगा, इसका उल्लेख वसीयत में किया जा सकता है।
स्वअर्जित सम्पत्ति आवश्यक-
सम्पत्ति की वसीयत करते समय एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि, वसीयत केवल स्वअर्जित सम्पत्ति की ही की जा सकती है, दूसरे की सम्पत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती, और न ही पैतृक सम्पत्ति में अपने हिस्से से अधिक सम्पत्ति की वसीयत की जा सकती है। स्वअर्जित सम्पत्ति से तात्पर्य ऐसी सम्पत्ति से है जो वसीयत करने वाले ने स्वयं अर्जित की हो। वसीयत केवल उस संपत्ति की ही की जा सकती है जिसे अपने जीवित रहते दान रीति द्वारा अंतरित किया जा सकता हो ,ऐसी संपत्ति की वसीयत नहीं की जा सकती जिससे पत्नी का कानूनी अधिकार और किसी का भरण-पोषण का अधिकार प्रभावित होता है .
इस हेेेेतु हिन्दू विधि में दो पद्धतियाँ है -
[१] -दायभाग पद्धति- दायभाग पद्धति बंगाल तथा आसाम में प्रचलित हैं।
[२] -मिताक्षरा पद्धति-मिताक्षरा पद्धति भारत के अन्य प्रांतों में प्रचलित है।
मिताक्षरा विधि में संपत्ति का न्यागमन उत्तरजीविता व् उत्तराधिकार से होता है और दायभाग में उत्तराधिकार से। मिताक्षरा विधि का यह उत्तरजीविता का नियम संयुक्त परिवार की संपत्ति के सम्बन्ध में लागू होता है तथा उत्तराधिकार का नियम गत स्वामी की पृथक संपत्ति के संबंध में .मिताक्षरा पद्धति में दाय प्राप्त करने का आधार रक्त सम्बन्ध हैं और दाय भाग में पिंडदान .किन्तु अब वर्तमान विधि में हिन्दू उत्तराधिकार में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा ३० के अनुसार प्रत्येक मिताक्षरा सहदायिक अपने अविभक्त सहदायिकी अंश को इच्छापत्र द्वारा निवर्तित करने के लिए सक्षम हो गया है .अतः अब निम्न संपत्ति की वसीयत की जा सकती है - [मिताक्षरा विधि से ][१] स्वअर्जित सम्पदा[२] स्त्रीधन[३] अविभाज्य सम्पदा [रूढ़ि से मना न किया गया हो ][ दायभाग विधि से ][१] वे समस्त जो मिताक्षरा विधि से अंतरित हो सकती हैं ,[२] पिता द्वारा स्वअर्जित अथवा समस्त पैतृक संपत्ति ,[३] सहदायिक ,अपने सहदायिकी अधिकार को .वसीयत को कभी भी वसीयत कर्ता द्वारा परिवर्तित या परिवर्धित किया जा सकता है।.
किन स्थितियों में वसीयत निरर्थक हो जावेगी
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अगर संपत्ति का कोई हिस्सा ऐसे व्यक्ति को स्थानांतरित करने की बात हो, जो बतौर गवाह वसीयत पर हस्ताक्षर कर रहा हो, तो वसीयत बेकार साबित हो सकती है। अर्थात वसीयत पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति को वसीयत में वर्णित सम्पत्ति नहीं मिलेगी, एवं वसीयत में वर्णित अन्य व्यक्तियों के लिए यह वसीयत बेकार नहीं होगी, कानूनी प्रावधानों के मुताबिक, अगर कोई प्रॉपर्टी उस व्यक्ति या उसके पति/पत्नी को स्थानांतरित की जा रही हो, जिसने हस्ताक्षर किया है, तब यह बेकार हो जाता है। हंसराज का कहना है, 'इसके पीछे तर्क यही है कि इसमें हितों का टकराव का मामला बनता है। इससे साफ है कि जो व्यक्ति हस्ताक्षर कर रहा है, वह वसीयत के बारे में सब कुछ जानता था।' अस्पष्ट शब्दों के चयन से भी वसीयत बेकार हो सकती है। दूसरे कारणों में वसीयत में ऐसी शर्त को शामिल करना, जो संभव नहीं हो, तब भी वसीयत बेकार हो जायेगी।
इस हेेेेतु हिन्दू विधि में दो पद्धतियाँ है -
[२] -मिताक्षरा पद्धति-मिताक्षरा पद्धति भारत के अन्य प्रांतों में प्रचलित है।
मिताक्षरा विधि में संपत्ति का न्यागमन उत्तरजीविता व् उत्तराधिकार से होता है और दायभाग में उत्तराधिकार से। मिताक्षरा विधि का यह उत्तरजीविता का नियम संयुक्त परिवार की संपत्ति के सम्बन्ध में लागू होता है तथा उत्तराधिकार का नियम गत स्वामी की पृथक संपत्ति के संबंध में .मिताक्षरा पद्धति में दाय प्राप्त करने का आधार रक्त सम्बन्ध हैं और दाय भाग में पिंडदान .किन्तु अब वर्तमान विधि में हिन्दू उत्तराधिकार में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा ३० के अनुसार प्रत्येक मिताक्षरा सहदायिक अपने अविभक्त सहदायिकी अंश को इच्छापत्र द्वारा निवर्तित करने के लिए सक्षम हो गया है .अतः अब निम्न संपत्ति की वसीयत की जा सकती है - [मिताक्षरा विधि से ][१] स्वअर्जित सम्पदा[२] स्त्रीधन[३] अविभाज्य सम्पदा [रूढ़ि से मना न किया गया हो ][ दायभाग विधि से ][१] वे समस्त जो मिताक्षरा विधि से अंतरित हो सकती हैं ,[२] पिता द्वारा स्वअर्जित अथवा समस्त पैतृक संपत्ति ,[३] सहदायिक ,अपने सहदायिकी अधिकार को .वसीयत को कभी भी वसीयत कर्ता द्वारा परिवर्तित या परिवर्धित किया जा सकता है।.
किन स्थितियों में वसीयत निरर्थक हो जावेगी
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के अगर संपत्ति का कोई हिस्सा ऐसे व्यक्ति को स्थानांतरित करने की बात हो, जो बतौर गवाह वसीयत पर हस्ताक्षर कर रहा हो, तो वसीयत बेकार साबित हो सकती है। अर्थात वसीयत पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति को वसीयत में वर्णित सम्पत्ति नहीं मिलेगी, एवं वसीयत में वर्णित अन्य व्यक्तियों के लिए यह वसीयत बेकार नहीं होगी, कानूनी प्रावधानों के मुताबिक, अगर कोई प्रॉपर्टी उस व्यक्ति या उसके पति/पत्नी को स्थानांतरित की जा रही हो, जिसने हस्ताक्षर किया है, तब यह बेकार हो जाता है। हंसराज का कहना है, 'इसके पीछे तर्क यही है कि इसमें हितों का टकराव का मामला बनता है। इससे साफ है कि जो व्यक्ति हस्ताक्षर कर रहा है, वह वसीयत के बारे में सब कुछ जानता था।' अस्पष्ट शब्दों के चयन से भी वसीयत बेकार हो सकती है। दूसरे कारणों में वसीयत में ऐसी शर्त को शामिल करना, जो संभव नहीं हो, तब भी वसीयत बेकार हो जायेगी।
वसीयत की आवश्यकता -
यदि कोई व्यक्ति वसीयत किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसकी सम्पत्ति उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत उत्तराधिकारों में बांट दी जाती है, वसीयत को दूसरे शब्दों में अंतिम इच्छापत्र कहते हैं, और प्रत्येक व्यक्ति की अंतिम इच्छा की पूर्ति करना धार्मिक कृत्य माना जाता है, इसी को कानूनी रूप देकर वसीयत के रूप में उल्लेखित किया गया है। इसलिए कोई व्यक्ति अंतिम इच्छा अनुसार जो भी चाहता है, अथवा लिखित में अंतिम इच्छा बताता है, तो उसकी वैध इच्छाओं की पूर्ति करते हुए न्यायालय वसीयतकर्ता की इच्छानुसार ही अपने निर्णय देता है, अथवा वसीयतकर्ता की भावना को ध्यान में रखकर कार्यवाही करने का आदेश देता है। वसीयत करने की आवश्यकता नहीं है, किन्तु कोई अंतिम इच्छा हो अथवा सम्पत्ति की व्यवस्था करने की अथवा मृत्यु पश्चात उत्तराधिकारियों में झगडे न हो, ऐसी भावना हो तो वसीयत अवश्य करें।
शैलेश जैन, एडव्होकेट
पटेल मार्ग, शुजालपुर मण्डी, जिला शाजापुर (म.प्र.)
मोबाईल नम्बर 09479836178
शैलेश जैन, एडव्होकेट
पटेल मार्ग, शुजालपुर मण्डी, जिला शाजापुर (म.प्र.)
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