Friday, 1 September 2017

304 ख अथवा 304 (B)

(1) जहां किसी स्‍त्री की मृत्‍यु किसी दाह या किसी शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है, या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्‍य परिस्थितियों से अन्‍यथा हो जाती है और य‍ह दर्शित किया जाता है कि, उसके मृत्‍यु के कुछ समय पूर्व पति ने या उसके पति के किसी नातेदार ने, दहेज की किसी मांग के लिए, या उसके संबंध में, उसके साथ क्रूरता की थी, या उसे तंग किया था, वहां ऐसी मृत्‍यु को दहेज मृत्‍यु कहा जाएगा, और ऐसा पति या नातेदार उसकी मृत्‍यु कारित करने वाला समझा जाएगा।
(2) जो कोई दहेज मृत्‍यु कारित करेगा वह कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नहीं होगी किन्‍तु आजीवन कारावास तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा।

धारा 304-B को लागू करने के लिए निम्न कारकों का होना आवश्यक है:
  • महिला की मृत्यु:
महिला की मृत्यु चाहे वह आत्महत्या हो या हत्या, धारा 304-B को लागू करने की सबसे पहली शर्त है. कि महिला की मृत्‍यु हुई हो, महिला की मृत्‍यु कारित करने का प्रयास करने पर अलग प्रावधान है, जो भारतीय द‍ण्‍ड विधान की धारा 307 के अंतर्गत आते हैं।
  • असाधारण परिस्थितियों में मौत:
जलने, जिस्मानी घावों, गला घोंटने, जहरखुरानी, फांसी से होने वाली मौत सभी असाधारण मौत के उदहारण हैं. धारा 304-B को प्रत्यक्ष प्रमाण की जरुरत नहीं है. किसी लड़की के द्वारा इस आरोप के साथ कि उसके ससुरालवालों ने नाकाफी दहेज़ के कारण उसका जीना मुश्किल कर दिया था, के कारण की गयी आत्महत्या, उसकी मौत को अप्राकृतिक मौत की श्रेणी में रखती है. (देविंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य सरकार, 2005, Cr.L.J.4160 SC )
  • विवाह के सात वर्षों के अन्दर मृत्यु:
304-B के तहत मुकदमा चलाने के लिए विवाह के सात साल की नियत अवधि का होना जरूरी है.अगर शादी के सात साल बाद महिला की मौत होती है तो मामले को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (ख़ुदकुशी के लिए उकसाना) के साथ भारतीय प्रमाण अधिनियम की धारा 113-A (विवाहित महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का पूर्वानुमान) के तहत दर्ज किया जाता है. यह अवधि विवाह की तिथि से गिनी जाती है न की लड़की की विदाई वाले दिन से. डी. एस. सिसोदिया बनाम के. सी. समदरिया (2001 Cr.L.J. NOC 156 Raj)  के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि शादी की तारीख को शादी के जलसे से मानना चाहिए न की ‘मुकलावा’ के उत्सव से.
  • पति या पति के परिजनों के द्वारा महिला क्रूरता या यातना की शिकार होनी चाहिए
 क्रूरता शब्द को शारीरिक और मानसिक क्रूरता दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A के विवरणों के लिए भी प्रयुक्त होता है. इस धारा के अनुसार क्रूरता से आशय है “जानबूझकर किया गया ऐसा काम जिसे किसी महिला की आत्महत्या की संभावना या उसे जीवन, हाथ-पैरों या सेहत को चाहे शारीरिक या मानसिक तौर पर क्षति पहुँचती हो  या उसे इस तरह से यातना दी जाए कि जिसमें यातना का उद्देश्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की नाजायज मांगों को पूरा करने के लिए या ऐसी नाजायज मांगों को उसके या उसके रिश्तेदारों द्वारा पूरा न कर पाने की सूरत में उसे या उसके किसी जानकार को नुकसान पहुँचाने की मंशा निहित हो.”  श्रीमती शांति बनाम हरियाणा राज्य सरकार (AIR 1991 SC 1226)  के मामले में उच्चतम न्यायलय का बयान था , “धारा 304 –B में ‘क्रूरता’ के बारे में कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन ऐसे अपराधों की समान पृष्ठभूमि को देखते हुए हमें क्रूरता या प्रताड़ना को धारा 498 A के तहत प्रस्तुत दंडनीय क्रूरता के रूप में देखना चाहिए.”
  • इस प्रकार की क्रूरता या प्रताड़ना दहेज़ की मांग से संम्बंधित होनी चाहिए:
फरियादी पक्ष को यह साबित करना होगा कि, ससुराल वाले दहेज की मांग करते थे, और इसी कारण से महिला की मृत्‍यु हुई है।
दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 के अनुसार ही परिभाषित ‘दहेज़’ शब्द को समझा जाना चाहिए. इस परिभाषा में ‘विवाह के उक्त पक्षों के सम्बन्ध में ’ महत्वपूर्ण शब्द हैं. इसका मतलब है कि “किसी को किसी समय पर संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा देना या देने का आश्वासन देना विवाह के पक्षों से संबंधित होना चाहिए.” दंपत्ति में से किसी को धनराशि के भुगतान या संपत्ति देने की कई अन्य घटनाएं भी हो सकती हैं. उदाहरण के लिए अलग अलग समाजों में बच्चे के जन्म पर या दूसरे समारोह में रीति-रिवाजमूलक प्रथाएं प्रचलित हैं. इस तरह के भुगतान को ‘दहेज़’ के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता है. (सतवीर सिंह बनाम पंजाब राज्य सरकार, (2001) 8 SCC 633)
  • महिला की मौत से कुछ समय पहले ही उसके साथ इस प्रकार की क्रूरता या प्रताड़ना घटित होनी चाहिए.
भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B और प्रमाण अधिनियम की धारा 113-B में उल्लिखित ‘मौत से कुछ समय पहले ही’ का अर्थ है कि यहाँ पर एक निश्चित और जीवंत सम्बन्ध होना चाहिए यानी की दहेज़ की मांग पर आधारित क्रूरता और सम्बन्ध हत्या के बीच में साफ़ तौर पर दिखाई देने वाला कार्य-कारण सम्बन्ध होना चाहिए. दोनों, यानी हत्या और प्रताड़ना के बीच में अधिक समयांतराल नहीं होना चाहिए.
भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B में मौजूद शब्दों, ‘मौत से कुछ समय पहले ही’ को कोई खास समयावधि में नहीं बांधा जा सकता और न ही इसे किसी समय के पैमाने पर मापा जा सकता है कि यातना मौत से कितने समय पहले दी गयी हो. इस सम्बन्ध में किसी नियत समयावधि का संकेत करना खतरनाक हो सकता है और इसे प्रत्येक मामले की खास परिस्थितियों के अनुसार तय किया जाना चाहिए.

टिप्‍पणी-

दहेज मृत्‍यु - धारा 304 (ख) भारतीय दण्‍ड संहिता के अंतर्गत दहेज मृत्‍यु के अपराध में अभियोजन को जो एक अवयव साबित करना होता है, वह यह होता है कि, महिला को उसके पति या उसके रिश्‍तेदारों ने दहेज की मांग के संबंध में या उसके लिए क्रूरता का परिपीडन करना चाहिए। धारा 304(बी) (1) भारतीय दण्‍ड विधान के स्‍पष्‍टकरण अनुसार दहेज शब्‍द का वही अर्थ है जो दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा 2 में दिया गया है। उक्‍त परिषाभा के अनुसार दहेज होने के लिए कोई सम्‍पत्ति या मूल्‍यवान प्रतिभूति, शादी के समय, पूर्व या उसके पश्‍चात उक्‍त पक्षों की शादी के संबंध में दी जाना चाहिए या देने का अनुबंध होना चाहिए। यदि कोई आर्थिक तंगी, या घरेलू खर्च की पूर्ति के लिए या खाद खरीदने के लिए कोई राशि की मांग की जाती है तो ऐसी मांग को दहेज की मांग नहीं कहा जा सकता (अप्‍पा साहेब विरूद्ध महाराष्‍ट राज्‍य 2007(1) CCSC 689)