सम्पत्ति को लेकर अक्सर विवाद सामने आते हैं, सम्पत्ति को लेकर पिता-पुत्र, भाई-भाई,
पति-पत्िन एवं अन्य रक्त संबंधियों में आपस में विवाद होने लगता है,
जबकि इसके बारे में अधिकतर व्यक्तियों को कानूनी जानकारी नहीं होती,
मेरा उद्देश्य है कि, सभी साधारण जन को इस विषय में कानून की पूरी जानकारी होना चाहिए।
ताकि इस संबंध में विवाद से पूर्व ही हम समस्या को सुलझा सकें, एवं
जानकारी के अभाव में हम किसी व्यक्ति द्वारा ठगे न जा सकें, तो आईये हम
इस बारे में देखते हैं, कि कोई सम्पत्ति कैसे रक्त संबंधियों
को प्राप्त होती है।
जानते हैं स्वअर्जित सम्पत्ति के बारे में -
यदि आप हिन्दू पुरूष हैं, और आपने
अपनी लगन मेहनत से अर्थात स्वयं मेहनत करके कोई सम्पत्ति अर्जित की है तो ऐसी
सम्पत्ति को स्वअर्जित सम्पत्ति कहा जायेगा। इसके अतिरिक्त वसीयत से प्राप्त
एवं दान में मिली सम्पत्ति भी स्वअर्जित सम्पत्ति की श्रेणी में आती है। स्व-अर्जित
सम्पत्ति जिस व्यक्ति द्वारा अर्जित की जाती है, उस व्यक्ति
को अपनी अर्जित की गई सम्पत्ति पर सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है, एवं
अन्य कोई व्यक्ति (पुत्र, पुत्री, माता,
पिता,
भाई,
बहन,
या अन्य कोई भी व्यक्ति) आपकी स्व-अर्जित सम्पत्ति पर किसी प्रकार का अधिकार
नहीं जता सकता, और आपके जीवित रहते आपकी मर्जी के बगैर उस सम्पत्ति को हासिल
भी नहीं कर सकता। ऐसी स्वअर्जित सम्पत्ति आप चाहे जिसे वसीयत कर सकते हैं, दान
कर सकते हैं, विक्रय कर सकते हैं, बंधक कर सकते हैं, या किसी भी प्रकार से अंतरित कर सकते हैं,
अर्थात ऐसी सम्पत्ति पर आपको सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। इस मामले में पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट ने
अपने एक आदेश में कहा था कि वयस्क बेटे को माता-पिता की कमाई हुई संपत्ति में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि अगर घर
माता-पिता का है तो वहां बेटा सिर्फ उनकी दया पर ही रह सकता है, वो भी जब तक पैरंट्स चाहें।
यदि आप हिन्दू महिला हैं तो आपको प्राप्त समस्त प्रकार की
सम्पत्ति, अर्थात आपका स्त्रीधन, दहेज, दान
में प्राप्त सम्पत्ति, पति अथवा पिता (पैत्रक) से हिस्से में
प्राप्त सम्पत्ति, अथवा अन्य कोई भी सम्पत्ति आपकी स्वअर्जित सम्पत्ति मानी
जाती है। ऐसी स्वअर्जित सम्पत्ति आप चाहे जिसे वसीयत कर सकते हैं, दान
कर सकते हैं, विक्रय कर सकते हैं, बंधक कर सकते हैं, या किसी भी प्रकार से अंतरित कर सकते हैं,
अर्थात ऐसी सम्पत्ति पर आपको सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं।
अब बात करते हैं, पैत्रक सम्पत्ति के बारे में –
पूर्वजों से प्राप्त होती चली आ रही सम्पत्ति को पैत्रक सम्पत्ति
कहते हैं, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार पैत्रक सम्पत्ति
में पुत्र का जन्म से ही हिस्सा होता है, इस अधिनियम में सन 2005 में
संशौधन हुआ, जिसमें सन 2005 के बाद से पुत्री को भी पैत्रक सम्पत्ति में पुत्र
की भांति जन्म से बराबर का हिस्सा दिया जाने लगा है, सन 2005 के
बाद अर्थात अधिनियम लागू होने के बाद से पैत्रक सम्पत्ति में बहनों को भी अपने
भाईयों के साथ बराबर का हिस्सा प्राप्त है अगर आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया गया है तो आप विपक्षी पार्टी को एक कानूनी नोटिस भेज सकते हैं। आप अपने हिस्से पर दावा ठोकने के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा भी दायर कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मामले के विचाराधीन होने के दौरान प्रॉपर्टी को बेचा न जाए, उसके लिए आप उसी मामले में कोर्ट से रोक लगाने की मांग कर सकते हैं। मामले में अगर आपकी सहमति के बिना ही संपत्ति बेच दी गई है तो आपको उस खरीदार को केस में पार्टी के तौर पर जोड़कर अपने हिस्से का मुकदमा भी दायर कर सकते हैं।
उत्तराधिकार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी –
यदि किसी ऐसे महिला अथवा पुरूष की मृत्यु हो जावे जिसने अपने
जीवनकाल में कोई वसीयत नहीं की हो तो, उसकी स्वअर्जित सम्पत्ति में
मृतक व्यक्ति की माता, पत्नि (अगर दो या दो अधिक पत्िन जीवित
हैं तो प्रथम पत्नि) पुत्रियों एवं पुत्रों को समान हिस्सा प्राप्त होता है। हिंदू कानून के मुताबिक अगर आप एक बिना बंटे हुए हिंदू परिवार के मुखिया हैं तो कानून के तहत आपके पास परिवार की संपत्तियों को मैनेज करने का अधिकार है। लेकिन इससे आपका संपत्ति पर पूरा और इकलौता अधिकार नहीं हो जाता, क्योंकि उस परिवार के हर उत्तराधिकारी का संपत्ति में एक हिस्सा, टाइटल और रुचि है।

जानते हैं स्वअर्जित सम्पत्ति के बारे में -
यदि आप हिन्दू पुरूष हैं, और आपने
अपनी लगन मेहनत से अर्थात स्वयं मेहनत करके कोई सम्पत्ति अर्जित की है तो ऐसी
सम्पत्ति को स्वअर्जित सम्पत्ति कहा जायेगा। इसके अतिरिक्त वसीयत से प्राप्त
एवं दान में मिली सम्पत्ति भी स्वअर्जित सम्पत्ति की श्रेणी में आती है। स्व-अर्जित
सम्पत्ति जिस व्यक्ति द्वारा अर्जित की जाती है, उस व्यक्ति
को अपनी अर्जित की गई सम्पत्ति पर सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है, एवं
अन्य कोई व्यक्ति (पुत्र, पुत्री, माता,
पिता,
भाई,
बहन,
या अन्य कोई भी व्यक्ति) आपकी स्व-अर्जित सम्पत्ति पर किसी प्रकार का अधिकार
नहीं जता सकता, और आपके जीवित रहते आपकी मर्जी के बगैर उस सम्पत्ति को हासिल
भी नहीं कर सकता। ऐसी स्वअर्जित सम्पत्ति आप चाहे जिसे वसीयत कर सकते हैं, दान
कर सकते हैं, विक्रय कर सकते हैं, बंधक कर सकते हैं, या किसी भी प्रकार से अंतरित कर सकते हैं,
अर्थात ऐसी सम्पत्ति पर आपको सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। इस मामले में पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट ने
अपने एक आदेश में कहा था कि वयस्क बेटे को माता-पिता की कमाई हुई संपत्ति में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि अगर घर
माता-पिता का है तो वहां बेटा सिर्फ उनकी दया पर ही रह सकता है, वो भी जब तक पैरंट्स चाहें।
यदि आप हिन्दू महिला हैं तो आपको प्राप्त समस्त प्रकार की
सम्पत्ति, अर्थात आपका स्त्रीधन, दहेज, दान
में प्राप्त सम्पत्ति, पति अथवा पिता (पैत्रक) से हिस्से में
प्राप्त सम्पत्ति, अथवा अन्य कोई भी सम्पत्ति आपकी स्वअर्जित सम्पत्ति मानी
जाती है। ऐसी स्वअर्जित सम्पत्ति आप चाहे जिसे वसीयत कर सकते हैं, दान
कर सकते हैं, विक्रय कर सकते हैं, बंधक कर सकते हैं, या किसी भी प्रकार से अंतरित कर सकते हैं,
अर्थात ऐसी सम्पत्ति पर आपको सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं।
पूर्वजों से प्राप्त होती चली आ रही सम्पत्ति को पैत्रक सम्पत्ति
कहते हैं, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार पैत्रक सम्पत्ति
में पुत्र का जन्म से ही हिस्सा होता है, इस अधिनियम में सन 2005 में
संशौधन हुआ, जिसमें सन 2005 के बाद से पुत्री को भी पैत्रक सम्पत्ति में पुत्र
की भांति जन्म से बराबर का हिस्सा दिया जाने लगा है, सन 2005 के
बाद अर्थात अधिनियम लागू होने के बाद से पैत्रक सम्पत्ति में बहनों को भी अपने
भाईयों के साथ बराबर का हिस्सा प्राप्त है अगर आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया गया है तो आप विपक्षी पार्टी को एक कानूनी नोटिस भेज सकते हैं। आप अपने हिस्से पर दावा ठोकने के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा भी दायर कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मामले के विचाराधीन होने के दौरान प्रॉपर्टी को बेचा न जाए, उसके लिए आप उसी मामले में कोर्ट से रोक लगाने की मांग कर सकते हैं। मामले में अगर आपकी सहमति के बिना ही संपत्ति बेच दी गई है तो आपको उस खरीदार को केस में पार्टी के तौर पर जोड़कर अपने हिस्से का मुकदमा भी दायर कर सकते हैं।
उत्तराधिकार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी –
यदि किसी ऐसे महिला अथवा पुरूष की मृत्यु हो जावे जिसने अपने
जीवनकाल में कोई वसीयत नहीं की हो तो, उसकी स्वअर्जित सम्पत्ति में
मृतक व्यक्ति की माता, पत्नि (अगर दो या दो अधिक पत्िन जीवित
हैं तो प्रथम पत्नि) पुत्रियों एवं पुत्रों को समान हिस्सा प्राप्त होता है। हिंदू कानून के मुताबिक अगर आप एक बिना बंटे हुए हिंदू परिवार के मुखिया हैं तो कानून के तहत आपके पास परिवार की संपत्तियों को मैनेज करने का अधिकार है। लेकिन इससे आपका संपत्ति पर पूरा और इकलौता अधिकार नहीं हो जाता, क्योंकि उस परिवार के हर उत्तराधिकारी का संपत्ति में एक हिस्सा, टाइटल और रुचि है।
हिंदुओं को उत्तराधिकार – Hindu Succession
- 1-किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों(लड़के तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है ।
- 2-अगर उसके किसी पुत्र की उससे पहले मृत्यु हो गयी हो तो बेटे की विधवा तथा बच्चों को संपत्ति का एक हिस्सा मिलेगा।
- 3-उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी हिंदू पुरुष द्वारा पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी कर लेने से दूसरी पत्नी को उत्तराधिकार नहीं मिलता है , लेकिन उसके बच्चों का पहली पत्नी के बच्चों की तरह ही अधिकार होता है ।
- 4-हिंदू महिला की संपत्ति उसके बच्चों (लड़के तथा लड़कियां ) तथा पति को मिलेगी । उससे पहले मरने वाले बेटे के बच्चों को भी बराबर का एक हिस्सा मिलेगा ।
- 5-अगर किसी हिंदू व्यक्ति के परिवार के नजदीकी सदस्य जीवित नहीं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पाने वाले उत्तराधिकारियों का निश्चित वर्गीकरण होता है ।
एक हिंदू पुरूष के संपत्ति के उत्तराधिकारी उसके निम्नलिखित रिश्तेदार हो सकते है-
पुत्र, पुत्री, विधवा मां, मृतक पुत्र का पुत्र, मृतक पुत्र की पुत्री, मृतक पुत्री के बेटा-बेटी, मृतक बेटे की विधवा, मृतक बेटे के बेटे का बेटा, मृतक बेटे के बेटे की विधवा, मृतक बेटे के मृतक बेटे की बेटी.
- 1-किसी हिंदू की मृत्यु होने पर उसकी संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों(लड़के तथा लड़कियां) तथा मां के बीच बराबर बांटी जाती है ।
- 2-अगर उसके किसी पुत्र की उससे पहले मृत्यु हो गयी हो तो बेटे की विधवा तथा बच्चों को संपत्ति का एक हिस्सा मिलेगा।
- 3-उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी हिंदू पुरुष द्वारा पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी कर लेने से दूसरी पत्नी को उत्तराधिकार नहीं मिलता है , लेकिन उसके बच्चों का पहली पत्नी के बच्चों की तरह ही अधिकार होता है ।
- 4-हिंदू महिला की संपत्ति उसके बच्चों (लड़के तथा लड़कियां ) तथा पति को मिलेगी । उससे पहले मरने वाले बेटे के बच्चों को भी बराबर का एक हिस्सा मिलेगा ।
- 5-अगर किसी हिंदू व्यक्ति के परिवार के नजदीकी सदस्य जीवित नहीं हैं, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पाने वाले उत्तराधिकारियों का निश्चित वर्गीकरण होता है ।
एक हिंदू पुरूष के संपत्ति के उत्तराधिकारी उसके निम्नलिखित रिश्तेदार हो सकते है-
पुत्र, पुत्री, विधवा मां, मृतक पुत्र का पुत्र, मृतक पुत्र की पुत्री, मृतक पुत्री के बेटा-बेटी, मृतक बेटे की विधवा, मृतक बेटे के बेटे का बेटा, मृतक बेटे के बेटे की विधवा, मृतक बेटे के मृतक बेटे की बेटी.
मुसलमानों (शिया और सुन्नी) को उत्तराधिकार –
शिया और सुन्नियों के लिए अलग-अलग नियम हैं। लेकिन निम्नलिखित सामान्य नियम दोनों पर लागू होते हैं
- 1-अंतिम संस्कार के खर्च और ऋणों के भुगतान के बाद बची संपत्ति का केवल एक तिहाई वसीयत के रुप में दिया जा सकता है ।
- 2-पुरुष वारिस को महिला वारिस से दोगुना हिस्सा मिलता है ।
- 3-वंश-परंपरा में (जैसे पुत्र-पोता) नजदीकी रिश्ते (पुत्र) के होने पर दूर के रिश्ते (पोते) को हिस्सा नहीं मिलता है ।
शिया और सुन्नियों के लिए अलग-अलग नियम हैं। लेकिन निम्नलिखित सामान्य नियम दोनों पर लागू होते हैं
- 1-अंतिम संस्कार के खर्च और ऋणों के भुगतान के बाद बची संपत्ति का केवल एक तिहाई वसीयत के रुप में दिया जा सकता है ।
- 2-पुरुष वारिस को महिला वारिस से दोगुना हिस्सा मिलता है ।
- 3-वंश-परंपरा में (जैसे पुत्र-पोता) नजदीकी रिश्ते (पुत्र) के होने पर दूर के रिश्ते (पोते) को हिस्सा नहीं मिलता है ।
ईसाइयों को उत्तराधिकार – Christian Succession
भारतीय ईसाइयों को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति का निर्धारण उत्तराधिकार कानून के तहत होता है । विशेष विवाह कानून के तहत विवाह करने वाले तथा भारत में रहने वाले यूरोपीय, एंग्लो इंडियन तथा यहूदी भी इसी कानून के तहत आते हैं ।
- 1-विधवा को एक तिहाई संपत्ति पाने का हक है । बाकी दो तिहाई मृतक की सीधी वंश परंपरा के उत्तराधिकारियों को मिलता है।
- 2-बेटे और बेटियों को बराबर का हिस्सा मिलता है ।
- 3-पिता की मृत्यु से पहले मर जाने वाले बेटे की संतानों को उसे बेटे का हिस्सा मिल जाता है ।
- 4-अगर केवल विधवा जीवित हो तो उसे आधी संपत्ति मिलती है और आधी मृतक के पिता को मिल जाती है ।
- 5-अगर पिता जिंदा ना हो तो यह हिस्सा मां, भाइयों तथा बहनों को मिल जाता है ।
- 6-किसी महिला की संपत्ति का भी इसी तरह बंटवारा होता है
भारतीय ईसाइयों को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति का निर्धारण उत्तराधिकार कानून के तहत होता है । विशेष विवाह कानून के तहत विवाह करने वाले तथा भारत में रहने वाले यूरोपीय, एंग्लो इंडियन तथा यहूदी भी इसी कानून के तहत आते हैं ।
- 1-विधवा को एक तिहाई संपत्ति पाने का हक है । बाकी दो तिहाई मृतक की सीधी वंश परंपरा के उत्तराधिकारियों को मिलता है।
- 2-बेटे और बेटियों को बराबर का हिस्सा मिलता है ।
- 3-पिता की मृत्यु से पहले मर जाने वाले बेटे की संतानों को उसे बेटे का हिस्सा मिल जाता है ।
- 4-अगर केवल विधवा जीवित हो तो उसे आधी संपत्ति मिलती है और आधी मृतक के पिता को मिल जाती है ।
- 5-अगर पिता जिंदा ना हो तो यह हिस्सा मां, भाइयों तथा बहनों को मिल जाता है ।
- 6-किसी महिला की संपत्ति का भी इसी तरह बंटवारा होता है
पारसियों को उत्तराधिकार – Parsi Succession
- 1-पारसियों में पुरुष की संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों तथा माता-पिता में बंटती है ।
- 2-लड़के तथा विधवा को लड़की से दोगुना हिस्सा मिलता है ।
- 3-पिता को पोते के हिस्से का आधा तथा माता को पोती के हिस्से का आधा मिलता है ।
- 4-किसी महिला की संपत्ति उसके पति और बच्चों में बराबर-बराबर बंटती हिस्सों में बंटती है ।
- 5-पति की संपत्ति के बंटवारे के समय उसमें पत्नी की निजी संपत्ति नहीं जोड़ी जाती है ।
- 6-पत्नी को अपनी संपत्ति पर पूरा अधिकार है । उसकी संपत्ति में उसकी आय, निजी साज-सामान तथा विवाह के समय मिले उपहार शामिल हैं ।
- 7-शादी के समय दुल्हन को मिले उपहार और भेंट स्त्रीधन के तहत आते हैं ।
- 8-उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह कानून की धारा 27 के तहत स्त्रीधन पर पूर्ण अधिकार पत्नी का होता है और उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है ।
अधिनियम का लागू होना -
(1) यह अधिनियम लागू है -
(क) ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो हिन्दू धर्म के किसी भी रूप या विकास के अनुसार, जिसके अन्तर्गत वीरशैव, लिंगायत अथवा ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज या आर्य समाज के अनुयायी भी आते हैं, धर्मत: हिन्दू हो;
(ख) ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो धर्मत: बौद्ध, जैन या सिक्ख हो; तथा
(ग) ऐसे किसी भी अन्य व्यक्ति को जो धर्मत: मुस्लिम, क्रिश्चियन, पारसी या यहूदी न हो, जब तक कि यह साबित न कर दिया जाय कि यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो ऐसा कोई भी व्यक्ति एतस्मिन् उपबन्धित किसी भी बात के बारे में हिन्दू विधि या उस विधि के भाग-रूप किसी रूढ़ि या प्रथा द्वारा शासित न होता।
स्पष्टीकरण-
निम्नलिखित व्यक्ति धर्मत: यथास्थिति, हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख है:-
(क) कोई भी अपत्य, धर्मज या अधर्मज, जिसके माता-पिता दोनों ही धर्मत: हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हों;
(ख) कोई भी अपत्य, धर्मज या अधर्मज, जिसके माता-पिता में से कोई एक धर्मत: हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हो और जो उस जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुम्ब के सदस्य के रूप में पला हो जिसका वह माता या पिता सदस्य है या था;
(ग) कोई भी ऐसा व्यक्ति जो हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख धर्म में संपरिवर्तित या प्रतिसंपरिवर्तित हो गया हो।
(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई भी बात किसी ऐसी जनजाति के सदस्यों को, जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (25) के अर्थ के अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति हो, लागू न होगी जब तक कि केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न कर दे।
(3) इस अधिनियम के किसी भी प्रभाग में आए हुए 'हिन्दू' पद का ऐसा अर्थ लगाया जाएगा मानों उसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति आता हो जो यद्यपि धर्मत: हिन्दू नहीं है तथापि ऐसा व्यक्ति है जिसे यह अधिनियम इस धारा में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के आधार पर लागू होता है।
(1) इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो
(क) 'गोत्रज 'एक व्यक्ति दूसरे का 'गोत्रज' कहा जाता है यदि वे दोनों केवल पुरुषों के माध्यम से रत या दत्तक द्वारा एक-दूसरे से सम्बन्धित हों,
(ख) ‘आलियसन्तान विधि ”से वह विधि-पद्धति अभिप्रेत है जो ऐसे व्यक्ति को लागू है जो यदि यह अधिनियम पारित न किया गया हो तो मद्रास अलियसन्तान ऐक्ट, 1949 (मद्रास ऐक्ट 1949 का 9) द्वारा या रूढ़िगत अलियसन्तान विधि द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होता जिनके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है;
(ग) ‘बन्धु' एक व्यक्ति दूसरे का 'बन्धु" कहा जाता है यदि वे दोनों रक्त या दत्तक द्वारा एक-दूसरे से सम्बन्धित हों किन्तु केवल पुरुषों के माध्यम से नहीं,
(घ) ‘रूढ़ि ' और "प्रथा" पद ऐसे किसी भी नियम का संज्ञान कराते हैं जिसने दीर्घकाल तक निरन्तर और एकरूपता से अनुपालित किए जाने के कारण किसी स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुम्ब के हिन्दुओं में विधि का बल अभिप्राप्त कर लिया हो :
परन्तु यह तब जब कि नियम निश्चित हो और अयुक्तियुक्त या लोक नीति के विरुद्ध न हो :
तथा परन्तु यह और भी कि ऐसे नियम की दशा में जो एक कुटुम्ब को ही लागू हो, उसकी निरन्तरता उस कुटुम्ब द्वारा बन्द न कर दी गई हो;
(ड०) "पूर्णरक्त", "अर्धरक्त" और "एकोदररक्त" -
(i) कोई भी दो व्यक्ति एक-दूसरे से पूर्ण रक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वज से उसकी एक ही पत्नी द्वारा अवजनित हुए हों, और अर्धरक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वज से किन्तु उसकी भिन्न पत्नियों द्वारा अवजनित हुए हों,
(ii) दो व्यक्ति एक-दूसरे से एकोदररक्त द्वारा सम्बन्धित कहे जाते हैं जबकि वे एक ही पूर्वजा से किन्तु उसके भिन्न पतियों से अवजनित हुए हों,
स्पष्टीकरण - इस खण्ड में "पूर्वज" पद के अन्तर्गत पिता आता है और "पूर्वजा" के अन्तर्गत माता आती है;
(च) ‘वारिस ” से ऐसा कोई भी व्यक्ति अभिप्रेत है चाहे वह पुरुष हो, या नारी, जो निर्वसीयत की सम्पति का उत्तराधिकारी होने का इस अधिनियम के अधीन हकदार है;
(छ) "निर्वसीयत" कोई व्यक्ति चाहे पुरुष हो या नारी, जिसने किसी सम्पति के बारे में ऐसा वसीयती व्ययन न किया हो जो प्रभावशील होने योग्य हो, वह उस सम्पति के विषय में निर्वसीयत मरा समझा जाता है;
(ज) ‘मरुमक्कतायम विधि” से विधि की वह पद्धति अभिप्रेत है जो उन व्यक्तियों को लागू है
(क) जो यदि यह अधिनियम पारित न हुआ होता तो मद्रास मरुमक्कत्तायम ऐक्ट, 1932 (मद्रास अधिनियम 1933 का 22), ट्रावन्कोर नायर ऐक्ट (1100-के का 2), ट्रावन्कोर ईषवा ऐक्ट (1100-के का 3), ट्रावन्कोर नान्जिनाड वेल्लाल ऐक्ट (1101-के का 6), ट्रावन्कोर क्षेत्रीय ऐक्ट (1108-के का 7), ट्रावन्कोर कृष्णवका मरुमक्कतायी ऐक्ट (1115-के का 7), कोचीन मरुमक्कतायम् ऐक्ट (1113-के का 33), या कोचीन नायर ऐक्ट (1113-के का 29) द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होते जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है; अथवा
(ख) जो ऐसे समुदाय के हैं जिसके सदस्य अधिकतर तिरुवांकुर कोचीन या मद्रास राज्य में, जैसा कि वह पहली नवम्बर, 1956 के अव्यवहित पूर्व अस्तित्व में था, अधिवासी हैं और यदि यह अधिनियम पारित न हुआ होता तो जो उन विषयों के बारे में जिनके लिए इस अधिनियम द्वारा उपबन्ध किया गया है विरासत की ऐसी पद्धति द्वारा शासित होते जिसमें नारी परम्परा के माध्यम से अवजनन गिना जाता है;
किन्तु इसके अन्तर्गत अलियसन्तान विधि नहीं आती;
(झ) ‘नंबूदिरी विधि” से विधि की वह पद्धति अभिप्रेत है जो उन व्यक्तियों को लागू है जो यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मद्रास नंबूदिरी ऐक्ट, 1932 (मद्रास अधिनियम 1933 का 21), कोचीन नम्बूदिरी ऐक्ट (1113-के का 17), या ट्रावन्कोर मलायल्ल ब्राह्मण ऐक्ट (1106-के का 3), द्वारा उन विषयों के बारे में शासित होते जिनके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है;
(ज) ‘सम्बन्धित 'से अभिप्रेत है, धर्मज द्वारा सम्बन्धित :
परन्तु अधर्मज अपत्य अपनी माता से परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित समझे जाएंगे और उनके धर्मज वंशज उनसे और परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित समझे जाएंगे और किसी भी ऐसे शब्द का जो सम्बन्ध को अभिव्यक्त करे या संबंधी को घोषित करे तदनुसार अर्थ लगाया जायगा।
(2) इस अधिनियम में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, पुल्लिंग संकेत करने वाले शब्दों के अन्तर्गत नारियां न समझी जाएंगी।
अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव —
(1) इस अधिनियम में अभिव्यक्ततः उपबन्धित के सिवाय—
(क) हिन्दू विधि का कोई ऐसा शास्त्र-वाक्य, नियम या निर्वचन या उस विधि की भागरूप कोई भी रूढ़ि या प्रथा, जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के अव्यवहित पूर्व प्रवृत्त रही हो, ऐसे किसी भी विषय के बारे में, जिसके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध किया गया है, प्रभावहीन हो जाएगी,
(ख) इस अधिनियम के प्रारम्भ के अव्यवहित पूर्व प्रवृत्त किसी भी अन्य विधि का हिन्दुओं को लागू होना वहाँ तक बन्द हो जाएगा जहां तक कि वह इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट उपबन्धों में से किसी से भी असंगत हो।
अधिनियम का कुछ सम्पत्तियों को लागू न होना - यह अधिनियम निम्नलिखित को लागू न होगा —
(i) ऐसी किसी सम्पत्ति की जिसके लिए उत्तराधिकार, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (1954 का 43) की धारा 21 में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के कारण भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (1925 का 39) द्वारा विनियमित होता है;
(ii) ऐसी किसी सम्पदा को जो किसी देशी राज्य के शासक द्वारा भारत सरकार से की गई किसी प्रसंविदा या करार के निबन्धनों द्वारा इस अधिनियम के प्रारम्भ से पूर्व पारित किसी अधिनियमिति के निबन्धनों द्वारा किसी एकल वारिस को अवजनित हुई है;
(iii) वलियम्ग थम्पूरन कोविलागम् सम्पदा और पैलेस फण्ड को जो कि महाराजा कोचीन द्वारा 29 जून, 1949 को प्रख्यापित उद्घोषणा (1124-के का 9) द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर पैलेस एडमिनिस्ट्रेिशन बोर्ड द्वारा प्रशासित है।
सहदायिकी सम्पत्ति में के हित का न्यागमन -
(1) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ पर और से, मिताक्षरा विधि द्वारा शासित संयुक्त हिन्दू परिवार में, सहदायिक की पुत्री —
(क) जन्म से उसी ढंग में अपने अधिकार में सहदायिक होगी, जैसे पुत्र,
(ख) को सहदायिकी सम्पति में वही अधिकार होगा, जैसा उसे होता, यदि वह पुत्र होता,
(ग) उक्त सहदायिकी सम्पति के सम्बन्ध में उन्हीं दायित्वों के अध्यधीन होगी, जैसे पुत्र का दायित्व है।
और हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का कोई निदेश सहदायिक की पुत्री के निर्देश को शामिल करने वाल माना जायेगा :
परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई चीज सम्पति के किसी विभाजन या वसीयती विन्यास को, जो दिसम्बर, 2004 के 20वें दिन के पूर्व किया गया है, शामिल करके किसी विन्यास या अन्य संक्रमण को प्रभावित नहीं करेगी या अविधिमान्य नहीं बनायेगी।
(2) कोई सम्पति, जिसमें महिला हिन्दू उपधारा (1) के परिणामस्वरूप हकदार होती है, उसके द्वारा सहदायिकी स्वामित्व की घटना के साथ धारण की जायेगी और इस अधिनियम या तत्समय प्रवर्तित किस अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी चीज के होते हुये भी वसीयती विन्यास द्वारा उसके द्वारा व्ययन करने योग्र सम्पति मानी जायेगी।
(3) जहाँ हिन्दू की मृत्यु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के बाद होती है वहाँ मिताक्षरा विधि द्वारा शासित संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति में उसका हित इस अधिनियम के अधीन वसीयती या निवसीयती उत्तराधिकार द्वारा, यथास्थिति, निगमित होगा औ उत्तरजीविता के द्वारा नहीं; और सहदायिकी सम्पति विभाजित की गयी मानी जायेगी, मानों विभाजन् हुआ था और, -
(क) पुत्री को वही अंश आवंटित किया जाता है, जो पुत्र को आवंटित किया जाता है,
(ख) पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री का अंश, जिसे वे प्राप्त करते, यदि वे विभाजन के समय जीवित् रहते, ऐसे पूर्व मृत पुत्र के या ऐसे पूर्व मृत पुत्री के उत्तरजीवी सन्तान को आवंटित किय जायेगा, और
(ग) पूर्व मृत पुत्र के या पूर्व मृत पुत्री के पूर्व मृत सन्तान का अंश, जिसे ऐसी सन्तान प्राप्त करता, यदि वह विभाजन के समय जीवित रहता या रहती, पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री के, यथास्थिति, के पूर्व मृत सन्तान की सन्तान को आवंटित किया जायेगा।
स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का हित सम्पत्तिमें वह अंश समझा जायेगा जो उसे विभाजन में मिलता, यदि उसकी अपनी मृत्यु में अव्यवहित पूर्व सम्पत्ति का विभाजन किया गया होता इस बात का विचार किये बिना कि वह विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं।
(4) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के बाद, कोई न्यायालय पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध उसके पिता, पितामह-प्रपितामह से किसी बकाया ऋण की वसूली के लिये एकमात्र हिन्दू विधि के अधीन पवित्र कर्तव्य के आधार पर किसी ऐसे ऋण का उन्मोचन करने के लिए ऐसे पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के हिन्दू विधि के अधीन पवित्र आबद्धता के आधार पर कार्यवाही करने के किसी अधिकार को मान्यता नहीं देगा :
परन्तु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के पूर्व लिये गये किसी ऋण के मामले में इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई चीज -
(क) पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध, यथास्थिति, कार्यवाही करने के लिये किसी लेनदार के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा, या
(ख) किसी ऐसे ऋण के सम्बन्ध में या ऋण की तुष्टि में किये गये किसी अन्य संक्रमण को प्रभावित नहीं करेगा और कोई ऐसा अधिकार या अन्य संक्रमण उसी ढंग में और उसी विस्तार तक पवित्र कर्तव्य के नियम के अधीन प्रवर्तनीय होगा, जैसे यह प्रवर्तनीय होता, मानों हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 प्रवर्तित किया गया है।
स्पष्टीकरण - खण्ड (ख) के प्रयोजनों के लिये अभिव्यक्ति 'पुत्र', 'पौत्र' या 'प्रपौत्र' को पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र को, यथास्थिति निर्दिष्ट करने वाला माना जायेगा, जिसे हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ पूर्व जन्मा था या दत्तक लिया गया था।
(5) इस धारा में अंतर्विष्ट कोई चीज उस विभाजन को लागू नहीं होगी, जो दिसम्बर, 2004 के 20वें दिन के पूर्व हुआ था।
स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिये 'विभाजन' से रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (1908 का 16) के अधीन सम्यक् से पंजीकृत विभाजन विलेख के निष्पादन द्वारा किया गया कोई विभाजन, न्यायालय के डिक्री द्वारा किया गया विभाजन अभिप्रेत है।]
7. तरवाड, तावषि, कुटुम्ब, कबरु या इल्लम की सम्पत्ति में हित का न्यागमन -
(1) जबकि कोई हिन्दू जिसे यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो मरुमक्कत्तायम् या नंबूदिरी विधि लागू होती इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् अपनी मृत्यु के समय, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इल्लम् की सम्पति में हित रखते हुए मरे तब सम्पत्ति में उसका हित इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, वसीयती या निर्वसीयती उतराधिकार द्वारा न्यागत होगा, मरुमक्कत्तायम् या नंबूदिरी विधि के अनुसार नहीं।
स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजन के लिए तरवाड, तावषि या इल्लम् की सम्पति में हिन्दू का हित, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इल्लम् की सम्पत्ति में वह अंश समझा जाएगा जो उसे मिलता यदि उसकी अपनी मृत्यु के अव्यवहित पूर्व, यथास्थिति, तरवाड, तावषि या इल्लम् के उस समय जीवित सब सदस्यों में उस सम्पत्ति का विभाजन व्यक्तिवार हुआ होता, चाहे वह अपने को लागू मरुमक्कतायम् या नंबूदिरी विधि के अधीन ऐसे विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं तथा ऐसा अंश उसे बांट में आत्यंतिकत: दे दिया गया समझा जाएगा।
(2) जबकि कोई हिन्दू, जिसे यदि वह अधिनियम पारित न किया गया होता तो अलियसन्तान विधि लागू होती इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् अपनी मृत्यु के समय, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरू की सम्पत्ति में अविभक्त हित रखते हुए मरे तब सम्पति में उसका अपना हित इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, वसीयती, या निर्वसीयती उत्तराधिकार द्वारा न्यागत होगा, अलियसन्तान विधि के अनुसार नहीं।
स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए कुटुम्ब या कवरु की सम्पति में हिन्दू का हित, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरु की सम्पति में अंश समझा जाएगा जो उसे मिलता यदि उसकी अपनी मृत्यु के अव्यवहित पूर्व, यथास्थिति, कुटुम्ब या कवरु के उस समय जीवित सब सदस्यों में उस सम्पति का विभाजन व्यक्तिवार हुआ होता, चाहे वह अलियसन्तान विधि के अधीन ऐसे विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं तथा ऐसा अंश उसे बाँट में आत्यंतिकत: दे दिया गया समझा जाएगा।
(3) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी जबकि इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् कोई स्थानम्दार मरे तब उसके द्वारा धारित स्थानम् सम्पत्ति उस कुटुम्ब के सदस्यों की जिसका वह स्थानम्दार है और स्थानम्दार के वारिसों को ऐसे न्यागत होगी मानो स्थानम् सम्पत्ति स्थानम्दार और उसके उस समय जीवित कुटुम्ब के सब सदस्यों के बीच स्थानम्दार की मृत्यु के अव्यवहित पूर्व व्यक्तिवार तौर पर विभाजित कर दी गई थी और स्थानम्दार के कुटुम्ब के सदस्यों और स्थानम्दार के वारिसों को जो अंश मिले उन्हें वे अपनी पृथक् सम्पति के तौर पर धारित करेंगे।
स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए स्थानम्दार के कुटुम्ब के अन्तर्गत उस कुटुम्ब की, चाहे विभक्त हो या अविभक्त, हर वह शाखा आएगी जिसके पुरुष सदस्य यदि अधिनियम पारित न किया गया होता तो किसी रूढ़ि या प्रथा के आधार पर स्थानम्दार के पद पर उत्तरवर्ती होने के हकदार होते।
शैलेश जैन, एडव्होकेट
मोबाईल नम्बर 09479836178
- 1-पारसियों में पुरुष की संपत्ति उसकी विधवा , बच्चों तथा माता-पिता में बंटती है ।
- 2-लड़के तथा विधवा को लड़की से दोगुना हिस्सा मिलता है ।
- 3-पिता को पोते के हिस्से का आधा तथा माता को पोती के हिस्से का आधा मिलता है ।
- 4-किसी महिला की संपत्ति उसके पति और बच्चों में बराबर-बराबर बंटती हिस्सों में बंटती है ।
- 5-पति की संपत्ति के बंटवारे के समय उसमें पत्नी की निजी संपत्ति नहीं जोड़ी जाती है ।
- 6-पत्नी को अपनी संपत्ति पर पूरा अधिकार है । उसकी संपत्ति में उसकी आय, निजी साज-सामान तथा विवाह के समय मिले उपहार शामिल हैं ।
- 7-शादी के समय दुल्हन को मिले उपहार और भेंट स्त्रीधन के तहत आते हैं ।
- 8-उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि हिंदू विवाह कानून की धारा 27 के तहत स्त्रीधन पर पूर्ण अधिकार पत्नी का होता है और उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है ।
अधिनियम का लागू होना -
शैलेश जैन, एडव्होकेट
मोबाईल नम्बर 09479836178