Thursday, 3 May 2018

चेक बाउंस होने पर कानूनी प्रक्रिया


चेक एक ऐसा दस्‍तावेज है,  जो एक निश्चित धनराशि का भुगतान करने के लिए दिया जाता है  रेखांकित चेक (crossed cheque) और खाते से भुगतान होने वाले चेक (account payee cheque) द्वारा केवल उसी व्यक्ति को धनराशि का भुगतान किया जाता है, जिसका नाम प्राप्तकर्ता के रूप में चेक पर लिखा रहता हैl ऐसे चेक को प्राप्तकर्ता के बैंक खाते में जमा करना पड़ता हैl



कानूनी रूप से चेक के मालिक को “चेकदाता” या “चेक जारीकर्ता” (Drawer) कहा जाता है, जिसके पक्ष में चेक तैयार किया जाता है उसे “प्राप्तकर्ता” (Payee) कहा जाता है और जिस बैंक को धनराशि का भुगतान करने के लिए निर्देशित किया जाता है, उसे “भुगतानकर्ता” (Drawee) कहा जाता है।

चेक बांउस होने पर क्‍या प्रक्रिया अपनाई जाती है।
जब एक चेक बाउंस हो जाता है तो भुगतानकर्ता बैंक (Drawee Bank) तुरंत ही “प्राप्तकर्ता” (Payee) के बैंक को “चेक रिटर्न मेमो” जारी करता है और भुगतान न करने का कारण बताता हैl इसके बाद “प्राप्तकर्ता” (Payee) का बैंक “प्राप्तकर्ता” (Payee) को अनादरित चेक और “चेक वापसी मेमो” सौंप देता हैl यदि धारक या प्राप्तकर्ता को यह लगता है कि दूसरी बार चेक को जमा करने पर उसे स्वीकार कर लिया जाएगा और चैक में वर्णित राशि प्राप्‍त हो सकेगी, तो वह चैक जारी होने के दिनांक से तीन महीनों के भीतर पुनः चेक को जमा कर सकता हैl लेकिन यदि चेक जारीकर्ता दूसरी बार भी भुगतान करने में विफल रहता है तो धारक या प्राप्तकर्ता को चेक जारीकर्ता के विरूद्ध कानूनी तौर पर मुकदमा दर्ज कराने का अधिकार प्रदान किया गया है।
प्राप्तकर्ता (Payee) चेक बाउंस होने पर डिफॉल्टर/चेक जारीकर्ता के विरूद्ध कानूनी रूप से तभी मुकदमा कर सकता है जब चेक में उल्लिखित राशि के भुगतान के लिए डिफॉल्टर/चेक जारीकर्ता द्वारा प्राप्तकर्ता के लिए जारी किया गया हैl

यदि चेक उपहार के रूप में जारी किया गया हो, ऋण देने के लिए जारी किया हो या गैरकानूनी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जारी किया गया हो अथवा सिक्‍यूरिटी या  ग्‍यारंटी के  तौर पर  जारी  किया गया हो तो ऐसे मामलों में यह चैक परक्राम्‍य लिखत अधिनियम  1881 की  धारा 138 की परिधि से बाहर हो जाता है, एवं चैक बाउंस होने के लिए कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है, किन्‍तु कानूनी कार्यवाही हेतु अलग से सिविल उपचार उपलब्‍ध है। इसका  अर्थ है‍ कि, यदि किसी कारण से कार्यवाही  धारा 138 की परिधि से बाहर हो गई या मामला समय सीमा से बाहर हो गया तो इसके लिए चैक को एक लेखी साक्ष्‍य के रुप में उपयोग कर व्‍यवहार न्‍यायालय में बी क्‍लास सूट दर्ज कर राशि वसूलने हेतु प्रकरण पंजीबद्ध किया जा सकता है।
कानूनी कार्रवाई
चेक बाउंस होने से संबंधित मामलों की जांच परक्राम्य लिखत अधिनियम (The Negotiable Instruments Act), 1881 के अंतर्गत की जाती हैl 1881 के बाद से इस अधिनियम को कई बार संशोधित किया गया हैl
इस अधिनियम की धारा 138 के अनुसार चेक का अस्वीकृत होना एक दंडनीय अपराध है और इसके लिए दो साल का कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैंl
यदि चेक प्राप्तकर्ता कानूनी कार्यवाही करने का निर्णय लेता है तो पहले चेक जारीकर्ता को तुरंत चेक की राशि चुकाने का मौका देना चाहिए। इस तरह का एक मौका केवल लिखित रूप से नोटिस के रूप में देना चाहिए।

प्राप्तकर्ता (Payee), बैंक से "चेक रिटर्न मेमो" प्राप्त करने की तारीख से 30 दिन के अंदर चेक जारीकर्ता को नोटिस भेज सकता हैl इस नोटिस में यह बात का उल्लेख अवश्य करना चाहिए कि चेक जारीकर्ता को नोटिस प्राप्ति की तारीख से 15 दिनों के अंदर प्राप्तकर्ता को चेक की राशि का भुगतान करना होगा। यदि चेक जारीकर्ता नोटिस प्राप्त करने के 30 दिनों के भीतर भुगतान करने में विफल रहता है, तो प्राप्तकर्ता (Payee) परक्राम्य लिखत अधिनियम (The Negotiable Instruments Act) की धारा 138 के तहत उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकता हैl


इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि नोटिस अवधि की समाप्ति से एक महीने के भीतर किसी मजिस्ट्रेट के कोर्ट में शिकायत दर्ज हो जानी चाहिए। इस तरह के मुकदमे में आगे बढ़ने के लिए एक ऐसे वकील से परामर्श करना आवश्यक होता है जो इस क्षेत्र से अच्छी तरह वाकिफ हो और उसे ऐसे मुकदमों पर काम करने का अच्छा खासा अनुभव हो।

अभियोजन पक्ष (prosecution) के लिए शर्तें
कानूनी रूप से धारा 138 के प्रावधानों का उपयोग करने के लिए अभियोजन पक्ष को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है:
1. “चेक जारीकर्ता” (Drawer) ने अपने नाम से चल रहे खाते से चेक जारी किया हो l
2.“चेक जारीकर्ता” (Drawer) के खाते में अपर्याप्त धनराशि के कारण चेक को लौटाया या अस्वीकार किया गया हो l
3. चेक को किसी ऋण या कानूनी दायित्व को पूरा करने के लिए जारी किया गया है।
नोटिस प्राप्त करने के बाद अगर चेक जारीकर्ता नोटिस प्राप्त करने के दिन से 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं करता है, तो वह परक्राम्य लिखत अधिनियम (The Negotiable Instruments Act) की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध करता है।
सजा और जुर्माना
इस मामले से संबंधित हलफनामा और जरूरी कागजातों के साथ शिकायत प्राप्त करने पर अदालत सम्मन (summon) जारी करेगी और मामले की सुनवाई करेगीl यदि दोष सिद्ध हो जाता है, तो डिफॉल्टर को जुर्माने की राशि के रूप में चेक में अंकित राशि से दुगुना वसूला जा सकता है या दो साल की कैद हो सकती है या जुर्माना और कैद दोनों हो सकती हैl इसके साथ ही किसी व्यक्ति द्वारा जारी किया चेक बार-बार बाउंस हो जाता है बैंक उस व्यक्ति को चेक बुक की सुविधा से वंचित कर सकती है और उसके खाते को भी बंद कर सकती है।


अगर चेक जारीकर्ता नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर चेक राशि का भुगतान करता है, तो वह किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। अन्यथा, आवेदक नोटिस में निर्धारित 15 दिनों की समाप्ति की तारीख से एक महीने के भीतर उस क्षेत्र के मजिस्ट्रेट के कोर्ट में प्रकरण दर्ज कर सकता हैl
इस प्रकार कहा जा सकता है कि सरकार ने चेक बाउंस के बढ़ते मामलों को रोकने और लोगों को उनकी वित्तीय जिम्मेदारियों को ठीक से अदा करने के लिए, चेक बाउंस को परक्राम्य लिखत अधिनियम (The Negotiable Instruments Act) की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध घोषित किया है। 
धारा 138 के मुकदमे में परिवादी के लिए यह साबित करने का दायित्व नहीं है कि उस चेक देने वाले व्यक्ति ने उक्त चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया था। अपितु यह साबित करने का दायित्व अभियुक्त पर है कि उसे उक्त चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए नहीं दिया गया था।
इन मामलों में अभियोजन पक्ष की साक्ष्य समाप्त होने के उपरान्त यदि अभियुक्त अपने बचाव में कोई साक्ष्य प्रस्तुत करे और उस के उपरान्त प्रकरण अन्तिम बहस के लिए तिथि निश्चित किए जाने के समय परिवादी या उस के वकील को ऐसा प्रतीत हो कि प्रकरण में अभियुक्त ने अपने बचाव में यह साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत की है कि उक्त चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए नहीं दिया गया था तो यह साबित करने के लिए कि वह चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया गया था न्यायालय से आवेदन कर के साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर मांगना चाहिए और स्वयं यह साबित करना चाहिए कि कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए दिया गया था।
इस तरह के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि यदि अभियुक्त अभियोजन पक्ष की साक्ष्य से या प्रतिरक्षा में प्रस्तुत साक्ष्य से यह साबित कर देता है कि चेक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय किसी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए नहीं दिया गया था अपितु उस का कोई अन्य उद्देश्य जैसे किसी तरह की सुरक्षा (Security) उत्पन्न करना मात्र था तो वैसी स्थिति में अभियोजन असफल हो जाएगा।


राजीनामा योग्य होता है चेक बाउंस का मामला  

परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के अनुसार यदि चेक जारी कर्ता के खाते में पर्याप्त राशि न हो और उसके द्वारा जारी किया गया चेक बाउंस हो जाता है, तो जारीकर्ता को दो साल तक के कारावास एवं चेक राशि की दुगुनी राशि तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। साथ ही इसमें परिवादी यानी चेक प्राप्तकर्ता को प्रतिकर दिलाए जाने का भी प्रावधान है। किंतु यह भी महत्वपूर्ण है कि इसी अधिनियम की धारा 147 का यह अपराध राजीनामा योग्य है और मामले के दोनों पक्षकार चाहें तो ऐसे मामले का निराकरण आपसी राजीनामा के आधार पर करा सकते हैं। इसके लिए दोनों पक्ष संबंधित न्यायालय में या लोक अदालत में अपने मामले का निराकरण करा सकते हैं।
 
शैलेश जैन, एडव्‍होकेट
मोबाईल नम्‍बर 09479836178