संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 58(a) में बंधक (Mortgage) को परिभाषित किया गया है I जिसके अनुसार बंधक का तात्पर्य किसी ऋण
के रूप में अग्रिम तौर पर ली गई या ली जाने वाली राशी अथवा कोई विधमान या
भविष्य ऋण अथवा किसी कार्य व्यवहार से उत्पन्न आर्थिक देनदारियों के
दायित्व के भुगतान की सुरक्षा के उद्देश्य के लिए किसी विनिर्दिष्ट अचल संपत्ति में हित के अंतरण से हैं I अचल सम्पत्ति के बदले ॠण प्राप्त करना बंधक कहलाता है, जबकि चल सम्पत्ति के बदले ॠण प्राप्त करना गिरवी कहलाता है।
बंधक के प्रकार:
१) बंधक (कब्जा रहित)- Mortgage (Without Possession) जहां बंधककर्ता (ॠण प्राप्त करने वाले) बंधक ग्रहिता (ॠण प्रदान करने वाले) को अपनी सम्पत्ति बंधक रखकर ॠण प्राप्त करता है, जिसका कब्जा बंधककर्ता के पास ही रहता है, एवं स्वामित्व भी बंधककर्ता का ही रहता है, तो ऐसा बंधक साधारण बंधक कहलाता है, इस बंधक के अनुसार यदि बंधककर्ता ॠण राशि अदा करने में विफल रहता है तो बंधक ग्रहिता न्यायालय में कार्यवाही कर न्यायालयीन आदेश से बंधक सम्पत्ति का विक्रय कर अपनी ॠण राशि एवं ब्याज व व्यय प्राप्त करने का अधिकारी होता है। कब्जा रहित बंधक में ॠण राशि का एक प्रतिशत स्टाम्प शुल्क देय होता है।
२) बंधक (कब्जा सहित)- Mortgage (With Possession) जहां बंधककर्ता बंधकग्रहिता को सम्पत्ति का कब्जा एवं स्वामित्व बंधक ग्रहिता को प्रदान कर देता है, एवं ॠण प्राप्त करके कथन करता है कि, यदि वह निर्धारित अवधि में ॠण चुकाने में असफल रहे तो बंधक सम्पत्ति ॠण देने वाला अर्थात बंधकग्रहिता अपने पास रख ले। तब यदि सम्पत्ति का मालिक ॠण चुकाने में असफल रहता है तो बंधकग्रहिता सम्पत्ति का स्वामी हो जावेगा। सम्पत्ति की कीमत ज्यादा है या कम है इसका कोई मतलब नहीं होगा। कब्जा सहित बंधक में स्टाम्प शुल्क विक्रयपत्र को रजिस्टर्ड कराने के बराबर लगता है।


शैलेश जैन, एडव्होकेट
मोबाईल नम्बर 09479836178
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