भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के बारे में-
370. जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थाई उपबंध-
(1) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,
(क) अनुच्छेद 238 (सन 1956 में हटा दिया गया है) के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू नहीं होगें।
(ख) जम्मू-कश्मीर राज्य के लिए विधि बनाने की संसद की शक्ति-
(i) संघ सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों तक सीमित होगी, जिनको राष्ट्रपति, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके, उन विषयों के तत्स्थानी विषय घोषित कर दे, जो भारत डोमिनियम (अधिराज्य) में उस राज्य के अधिमिलन को शासित करने वाले अधिमिलन पत्र में ऐसे विषयों के रूप में विनिर्दिष्ट हैं, जिसके संबंध में डोमिनियम विधान मण्डल उस राज्य के लिए विधि बना सकता है, और
-ii) उक्त विषयों के उन अन्य विषयों तक सीमित होगी, जो राष्ट्रपति उस राज्य की सरकार की सहमति से, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।
स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, उस राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसे राष्ट्रपति से, जम्मू कश्मीर के महाराजा की 5 मार्च 1948 की उदघोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मंत्री परिषद की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू कश्मीर के महाराजा के रूप में तत्समय मान्यता प्राप्त थी।
(ग) अनुच्छेद (1) और इस अनुच्छेद के उपबंध उस राज्य के संबंध में लागू होंगे।
(घ) इस संविधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, उस राज्य के संबंध में लागू होंगे।
परन्तु ऐसा कोई आदेश जो उपखण्ड (ख) के पैरा (i) में निर्दिष्ट राज्य के अधिमिलन पत्र में विनिर्दिष्ट विषयों से संबंधित है, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
परन्तु यह और कि ऐसा कोई आदेश जो अंतिम पूर्ववर्ती परंतुक में निर्दिष्ट विषयों से भिन्न विषयों से संबंधित है, उस सरकार की सहमति से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
(2) यदि खण्ड (1) के उपखण्ड (ख) के पैरा (ii) में या उस खण्ड के उपखण्ड (घ) के दूसरे परंतुक में निर्दिष्ट उस राज्य की सरकार की सहमति, उस राज्य का संविधान बनाने के प्रयोजन के लिए संविधान सभा के बुलाये जाने से पहले दी जाए तो उसे ऐसा संविधान सभा के समक्ष ऐसे विनिश्चय के लिए रखा जाएगा जो वह उस पर करे।
(3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा, कि यह अनुच्छेद प्रवर्तना में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही और ऐसी तारीख से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे।
परन्तु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खण्ड (2) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।
-ii) उक्त विषयों के उन अन्य विषयों तक सीमित होगी, जो राष्ट्रपति उस राज्य की सरकार की सहमति से, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।
स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, उस राज्य की सरकार से वह व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसे राष्ट्रपति से, जम्मू कश्मीर के महाराजा की 5 मार्च 1948 की उदघोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मंत्री परिषद की सलाह पर कार्य करने वाले जम्मू कश्मीर के महाराजा के रूप में तत्समय मान्यता प्राप्त थी।
(ग) अनुच्छेद (1) और इस अनुच्छेद के उपबंध उस राज्य के संबंध में लागू होंगे।
(घ) इस संविधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवादों और उपांतरणों के अधीन रहते हुए, जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, उस राज्य के संबंध में लागू होंगे।
परन्तु ऐसा कोई आदेश जो उपखण्ड (ख) के पैरा (i) में निर्दिष्ट राज्य के अधिमिलन पत्र में विनिर्दिष्ट विषयों से संबंधित है, उस राज्य की सरकार से परामर्श करके ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
परन्तु यह और कि ऐसा कोई आदेश जो अंतिम पूर्ववर्ती परंतुक में निर्दिष्ट विषयों से भिन्न विषयों से संबंधित है, उस सरकार की सहमति से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
(2) यदि खण्ड (1) के उपखण्ड (ख) के पैरा (ii) में या उस खण्ड के उपखण्ड (घ) के दूसरे परंतुक में निर्दिष्ट उस राज्य की सरकार की सहमति, उस राज्य का संविधान बनाने के प्रयोजन के लिए संविधान सभा के बुलाये जाने से पहले दी जाए तो उसे ऐसा संविधान सभा के समक्ष ऐसे विनिश्चय के लिए रखा जाएगा जो वह उस पर करे।
(3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रपति लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा, कि यह अनुच्छेद प्रवर्तना में नहीं रहेगा या ऐसे अपवादों और उपांतरणों सहित ही और ऐसी तारीख से, प्रवर्तन में रहेगा, जो वह विनिर्दिष्ट करे।
परन्तु राष्ट्रपति द्वारा ऐसी अधिसूचना निकाले जाने से पहले खण्ड (2) में निर्दिष्ट उस राज्य की संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक होगी।
धारा ३७० के तहत जो प्रावधान है उनमें समय समय पर परिवर्तन किया गया है जिनका आरम्भ १९५४ से हुआ। १९५४ का महत्व इस लिये है कि १९५३ में उस समय के कश्मीर के वजीर-ए-आजम शेख महम्मद अब्दुल्ला, जो जवाहरलाल नेहरू के अंतरंग मित्र थे, को गिरफ्तार कर बंदी बनाया था। ये सारे संशोधन जम्मू-कश्मीर के विधानसभा द्वारा पारित किये गये हैं।
संशोधित किये हुये प्रावधान इस प्रकार के हैं-
- (अ) १९५४ में चुंगी, केंद्रीय अबकारी, नागरी उड्डयन और डाकतार विभागों के कानून और नियम जम्मू-कश्मीर को लागू किये गये।
- (आ) १९५८ से केन्द्रीय सेवा के आई ए एस तथा आय पी एस अधिकारियों की नियुक्तियाँ इस राज्य में होने लगीं। इसी के साथ सी ए जी (CAG) के अधिकार भी इस राज्य पर लागू हुए।
- (इ) १९५९ में भारतीय जनगणना का कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू हुआ।
- (र्ई) १९६० में सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों को स्वीकार करना शुरू किया, उसे अधिकृत किया गया।
- (उ) १९६४ में संविधान के अनुच्छेद ३५६ तथा ३५७ इस राज्य पर लागू किये गये। इस अनुच्छेदों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में संवैधानिक व्यवस्था के गड़बड़ा जाने पर राष्ट्रपति का शासन लागू करने के अधिकार प्राप्त हुए।
- (ऊ) १९६५ से श्रमिक कल्याण, श्रमिक संगठन, सामाजिक सुरक्षा तथा सामाजिक बीमा सम्बन्धी केन्द्रीय कानून राज्य पर लागू हुए।
- (ए) १९६६ में लोकसभा में प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्वाचित अपना प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया।
- (ऐ) १९६६ में ही जम्मू-कश्मीर की विधानसभा ने अपने संविधान में आवश्यक सुधार करते हुए- ‘प्रधानमन्त्री’ के स्थान पर ‘मुख्यमन्त्री’ तथा ‘सदर-ए-रियासत’ के स्थान पर ‘राज्यपाल’ इन पदनामों को स्वीकृत कर उन नामों का प्रयोग करने की स्वीकृति दी। ‘सदर-ए-रियासत’ का चुनाव विधानसभा द्वारा हुआ करता था, अब राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होने लगी।
- (ओ) १९६८ में जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय ने चुनाव सम्बन्धी मामलों पर अपील सुनने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया।
- (औ) १९७१ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद २२६ के तहत विशिष्ट प्रकार के मामलों की सुनवाई करने का अधिकार उच्च न्यायालय को दिया गया।
- (अं) १९८६ में भारतीय संविधान के अनुच्छेद २४९ के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू हुए।
- (अः) इस धारा में ही उसके सम्पूर्ण समाप्ति की व्यवस्था बताई गयी है। धारा ३७० का उप अनुच्छेद ३ बताता है कि ‘‘पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी लिखा हो, राष्ट्रपति प्रकट सूचना द्वारा यह घोषित कर सकते है कि यह धारा कुछ अपवादों या संशोधनों को छोड दिया जाये तो समाप्त की जा सकती है।
इस धारा का एक परन्तुक (Proviso) भी है। वह कहता है कि इसके लिये राज्य की संविधान सभा की मान्यता चाहिये। किन्तु अब राज्य की संविधान सभा ही अस्तित्व में नहीं है। जो व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है वह कारगर कैसे हो सकती है?
जवाहरलाल नेहरू द्वारा जम्मू-कश्मीर के एक नेता पं॰ प्रेमनाथ बजाज को २१ अगस्त १९६२ में लिखे हुये पत्र से यह स्पष्ट होता है कि उनकी कल्पना में भी यही था कि कभी न कभी धारा ३७० समाप्त होगी। पं॰ नेहरू ने अपने पत्र में लिखा है-
- ‘‘वास्तविकता तो यह है कि संविधान का यह अनुच्छेद, जो जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिलाने के लिये कारणीभूत बताया जाता है, उसके होते हुये भी कई अन्य बातें की गयी हैं और जो कुछ और किया जाना है, वह भी किया जायेगा। मुख्य सवाल तो भावना का है, उसमें दूसरी और कोई बात नहीं है। कभी-कभी भावना ही बडी महत्त्वपूर्ण सिद्ध होती है।’’
जम्मू-कश्मीर को प्राप्त विशेष अधिकारों की सूची
1. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।2. जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।3. जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।4. जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।5. भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं।6. भारत की संसद को जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।7. जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी। इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।8. धारा 370 की वजह से कश्मीर में भारत के वे कानून लागू नहीं होते जो भारत सरकार से पास होने के बाद भी कश्मीर की सरकार द्वारा पास नहीं कर दिये जाऐं, और यहीं कारण है कि, जम्मू कश्मीर में RTI लागू नहीं है, RTE लागू नहीं है, CAG लागू नहीं है।9. कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।10. कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं।11. कश्मीर में चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते है।12. कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिन्दू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता।13. धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।14. धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
2011 की जनगणना अनुसार जम्मू शहर में 81.19% अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म बहुसंख्यक धर्म है। जम्मू शहर में सिख धर्म का दूसरा सबसे लोकप्रिय धर्म 8.83% है। जम्मू शहर में, इस्लाम के बाद 7.95%, जैन धर्म 0.33%, क्रिरिअति 8.83% और बौद्ध धर्म 8.83% है। लगभग 0.02% ने 'अन्य धर्म' कहा, लगभग 0.28% ने 'कोई विशेष धर्म' कहा।
Description Total प्रतिशत हिन्दू 467,795 81.19 % सिख 50,870 8.83 % मुसलमान 45,815 7.95 % ईसाई 7,800 1.35 % जैन 1,910 0.33 % कोई नहीं 1,611 0.28 % बुद्ध 273 0.05 % अन्य 124 0.02 % देश का प्रत्येक नागरिक चाहता है कि, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में धारा 370 पूरी तरह से समाप्त कर दी जावे, एवं कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों की तरह दर्जा दिया जावे, भारत एक संविधान, एक कानून, और एक ही परचम की नीचे उत्तरोत्तर उन्नति करे, और तब ही सही मायने में कहा जा सकेगा कि, काश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा भारत एक है।
शैलेश जैन, एडव्होकेटपटेल मार्ग, शुजालपुर मण्डी, जिला शाजापुर (म.प्र.)मोबाईल नम्बर 09479836178
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