सम्पत्ति दो तरह की होती है, चल व अचल सम्पत्ति। जो वस्तुऐं भूमि से जुड़ी रहती हैं, अचल सम्पत्ति कहलाती हैं, चल सम्पत्ति का नुकसान एक बार सहा जा सकता है, लेकिन अचल सम्पत्ति का नुकसान सम्पत्ति से संबंधित व्यक्ति के साथ-साथ उसके परिवार के भविष्य को संकट में डाल देता है। सम्पत्ति खरीदते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है-
दोस्तों यदि हम कोई मकान, दुकान या कोई भी अचल सम्पत्ति खरीदने जा रहे हैं तो हमें सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि, इसके लिए कानूनी प्रक्रियाऐं कौन-कौन सी हैं, इसके लिए हम बात करते हैं, सम्पत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 54 के बारे में-
धारा 54 विक्रय की परिभाषा- विक्रय ऐसी कीमत के बदले में स्वामित्व का अंतरण है, जो दी जा चुकी हो या जिसके देने का वचन दिया गया हो, या जिसका कोई भाग दे दिया गया हो, और किसी भाग के देने का वचन दिया गया हो।
विक्रय कैसे किया जाता है- यदि कोई अचल सम्पत्ति जिसका मूल्य 100/- रूपये से अधिक है, तो वह अचल सम्पत्ति रजिस्टर्ड विक्रयपत्र द्वारा ही क्रय या विक्रय की जा सकती है, इसके अलावा 100/- रूपये से कम मूल्य की अचल सम्पत्ति का विक्रय परिदान द्वारा अथवा रजिस्टर्ड लिखत द्वारा किया जा सकता है। अचल सम्पत्ति का परिदान तब हो जाता है, जब विक्रेता क्रेता को या क्रेता द्वारा बताये गये व्यक्ति को सम्पत्ति का कब्जा करा देता है।
विक्रय संविदा - अचल से संबंधित किया गया करार जिससे सम्पत्ति से संबंधित संविदा की गई हो, विक्रय संविदा कही जाती है।
विक्रय संविदा हेतु आवश्यक तत्व - अचल सम्पत्ति को क्रय विक्रय करने हेतु निम्नांकित आवश्यक तत्व माने गये हैं-
(१) विक्रेता एवं क्रेता का होना - सम्पत्ति अंतरण के लिए स्वामी के रूप में विक्रेता एवं खरीदने वाले के रूप में क्रेता होना आवश्यक है।
(२) सम्पत्ति का होना - वैध सम्पत्ति अंतरण के लिए सम्पत्ति का भौतिक रूप में होना आवश्यक है।
(३) अंतरण - किसी भी सम्पत्ति का विक्रय बिना भुगतान के नहीं होता है, क्रेता सम्पत्ति का मूल्य अदा कर विके्ता से सम्पत्ति का अंतरण ग्रहण करे। दान, हिबा और अन्य माध्यमों से जहां सम्पत्ति बिना मूल्य के अंतरित की जाती है, उसके अलग से कानून हैं।
(४) मूल्य - सम्पत्ति का मूल्य होना चाहिए, जिसके भुगतान के उपरांत सम्पत्ति का हस्तांतरण किया जा सके।
क्रेता (खरीदने वाला) को विक्रेता की पूरी जानकारी होना आवश्यक है। उसका नाम, पता और और वास्तव में वह विक्रीत सम्पत्ति का स्वामी है, या नहीं इसकी जानकारी बेहद आवश्यक है, और इसके लिए क्रेता को चाहिए कि, वह विक्रेता से सम्पत्ति से संबंधित स्वामित्व प्रमाणपत्र, नामांतरण, खसरा, बीवन, आदि की मांग करे, इसके अतिरिक्त उस सम्पत्ति का ३० वर्षों का शासकीय रिकार्ड भी चेक करवा लेना चाहिए। मूल दस्तावेज इत्यादि से यह पता चल जायेगा कि, वर्तमान सम्पत्ति धारण करने वाला किस प्रकार भूमि का स्वामी बना है। किसी व्यक्ति के पास मात्र उसके नाम से रजिस्टर्ड विक्रयपत्र होने से उसे सम्पत्ति का मालिक नहीं कहा जा सकता।
क्रेता को विक्रेता के अधिकारों का भी ज्ञान होना चाहिए कि, उस सम्पत्ति के बारे में उसके क्या अधिकार हैं, वह इस सम्पत्ति का पूर्ण स्वामी है या इसमें कोई साझेदार भी है।
इन बातों से अवगत होने के बाद ही वास्तव में भूमि का स्वामी और भूमि के अधिकार स्पष्ट हों तो क्रेता को सम्पत्ति खरीदने के बारे में सोचना चाहिए। सम्पत्ति अंतरण के समय स्वामित्व प्रमाणपत्र, नामांतरण, खसरा, बीवन इत्यादि दस्तावेज प्राप्त करने के उपरांत क्रय विक्रय की प्रक्रिया के तहत रजिस्ट्री करवा लेना चाहिए और आवश्यक स्टाम्प शुल्क अदा कर स्वामित्व व कब्जा प्राप्त कर लेना चाहिए।
कहीं-कहीं होता है कि, विक्रेता के पास मूल दस्तावेज नहीं होते हैं, ऐसे में विक्रेता से इस बाबत शपथपत्र प्राप्त कर लेना चाहिए और स्थानीय समाचारपत्रों में इस बाबत सूचना प्रकाशित करा लेनी चाहिए कि इस सम्पत्ति पर किसी का कोई अधिकार तो नहीं है, या यह भूमि कहीं बंधक तो नहीं है। सूचना प्रकाशन के बाद कोई आपत्ति नहीं आती है, तो सम्पत्ति का मूल्य अदा कर विक्रेता से अपने पक्ष में स्वामित्व करवा लेना चाहिए।
इसके उपरांत इस भूमि का रिकार्ड शासकीय खाते में अपने नाम दर्ज करवा लेना चाहिए। सम्पत्ति का खसरा और अक्स आपके नाम पर होने के बाद आप उस सम्पत्ति के स्वामी बन सकते हैं। अब क्रेता का दायित्व है कि, वह उस सम्पत्ति का कब्जा ले और उसको बचाने के लिए अपनी ओर से सुरक्षा का प्रबंध करे। सम्पत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत क्रेता के दायित्व केवल विक्रय धनराशि का भुगतान कर उसका अंतरण करवाना उसका अधिकार है। विक्रेता का दायित्व है कि, वह क्रेता को इन बातों को बताये-
(१) विक्रेता का दायित्व है कि, वह भूमि स्वामी होने के नाते वे दस्तावेज प्रस्तुत करे, जिसके आधार पर सम्पत्ति का स्वामी बना है, यह दस्तावेज विक्रय के समय क्रेता को उपलब्ध कराये।
(२) विक्रेता का दायित्व है कि, क्रेता से सम्पत्ति का मूल्य प्राप्त करने के बाद उसके पक्ष में हक विलेख यानी सम्पत्ति उसके नाम करने की प्रक्रिया में सहयोग दे। स्वामित्व हंस्तातरण में जहां उसकी आवश्यकता हो उसका पालन करे।
(३) सम्पत्ति विक्रय करने की दिनांक तक जो भी बंधक या अन्य भुगतान क्रेता को करके अथवा सम्पत्ति को समस्त दायित्वों से मुक्त करके क्रेता को प्रदान करे। अगर ऐसा न हो सके तो क्रेता को उस संबंध में अवगत कराये, और दायित्वों के भुगतान का मामला स्पष्ट करे।
सम्पत्ति का अंतरण, सम्पत्ति अंतरण अधिनियम 1882 के अनुसार होना आवश्यक है। सम्पत्ति क्रय करने में सावधानी का पहलू ही क्रेता को धोखाधड़ी और फर्जीबाड़े से बचा सकता है। इसलिए सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए क्रय विक्रय की कानूनी जानकारी आवश्यक है।
शैलेश जैन, एडव्होकेट
पटेल मार्ग, शुजालपुर मण्डी, जिला शाजापुर (म.प्र.)
मोबाईल नम्बर 09479836178

धारा 54 विक्रय की परिभाषा- विक्रय ऐसी कीमत के बदले में स्वामित्व का अंतरण है, जो दी जा चुकी हो या जिसके देने का वचन दिया गया हो, या जिसका कोई भाग दे दिया गया हो, और किसी भाग के देने का वचन दिया गया हो।
विक्रय कैसे किया जाता है- यदि कोई अचल सम्पत्ति जिसका मूल्य 100/- रूपये से अधिक है, तो वह अचल सम्पत्ति रजिस्टर्ड विक्रयपत्र द्वारा ही क्रय या विक्रय की जा सकती है, इसके अलावा 100/- रूपये से कम मूल्य की अचल सम्पत्ति का विक्रय परिदान द्वारा अथवा रजिस्टर्ड लिखत द्वारा किया जा सकता है। अचल सम्पत्ति का परिदान तब हो जाता है, जब विक्रेता क्रेता को या क्रेता द्वारा बताये गये व्यक्ति को सम्पत्ति का कब्जा करा देता है।
विक्रय संविदा - अचल से संबंधित किया गया करार जिससे सम्पत्ति से संबंधित संविदा की गई हो, विक्रय संविदा कही जाती है।
विक्रय संविदा हेतु आवश्यक तत्व - अचल सम्पत्ति को क्रय विक्रय करने हेतु निम्नांकित आवश्यक तत्व माने गये हैं-
(१) विक्रेता एवं क्रेता का होना - सम्पत्ति अंतरण के लिए स्वामी के रूप में विक्रेता एवं खरीदने वाले के रूप में क्रेता होना आवश्यक है।
(२) सम्पत्ति का होना - वैध सम्पत्ति अंतरण के लिए सम्पत्ति का भौतिक रूप में होना आवश्यक है।
(३) अंतरण - किसी भी सम्पत्ति का विक्रय बिना भुगतान के नहीं होता है, क्रेता सम्पत्ति का मूल्य अदा कर विके्ता से सम्पत्ति का अंतरण ग्रहण करे। दान, हिबा और अन्य माध्यमों से जहां सम्पत्ति बिना मूल्य के अंतरित की जाती है, उसके अलग से कानून हैं।
(४) मूल्य - सम्पत्ति का मूल्य होना चाहिए, जिसके भुगतान के उपरांत सम्पत्ति का हस्तांतरण किया जा सके।
क्रेता (खरीदने वाला) को विक्रेता की पूरी जानकारी होना आवश्यक है। उसका नाम, पता और और वास्तव में वह विक्रीत सम्पत्ति का स्वामी है, या नहीं इसकी जानकारी बेहद आवश्यक है, और इसके लिए क्रेता को चाहिए कि, वह विक्रेता से सम्पत्ति से संबंधित स्वामित्व प्रमाणपत्र, नामांतरण, खसरा, बीवन, आदि की मांग करे, इसके अतिरिक्त उस सम्पत्ति का ३० वर्षों का शासकीय रिकार्ड भी चेक करवा लेना चाहिए। मूल दस्तावेज इत्यादि से यह पता चल जायेगा कि, वर्तमान सम्पत्ति धारण करने वाला किस प्रकार भूमि का स्वामी बना है। किसी व्यक्ति के पास मात्र उसके नाम से रजिस्टर्ड विक्रयपत्र होने से उसे सम्पत्ति का मालिक नहीं कहा जा सकता।
क्रेता को विक्रेता के अधिकारों का भी ज्ञान होना चाहिए कि, उस सम्पत्ति के बारे में उसके क्या अधिकार हैं, वह इस सम्पत्ति का पूर्ण स्वामी है या इसमें कोई साझेदार भी है।
- क्रेता को सम्पत्ति के बारे में भी ज्ञान होना चाहिए कि, क्या यह भूमि स्वतंत्र है। यह भूमि ऐसी भूमि होना चाहिए, जिसके विक्रय पर कोई बंधन नहीं हो। कानून के अनुसार कुछ भूमि ऐसी होती है, जिसका स्वामी उनका प्रयोग तो कर सकता है, लेकिन विक्रय नहीं कर सकता है। देवोत्तर भूमि, सेवा भूमि, दान भूमि, वक्फ भूमि या मुस्लिम महिला के मेहर की भूमि इत्यादि को बेचा नहीं जा सकता है। इनका अंतरण अतिरिक्त कानूनों द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त शासकीय भूमि या कोई ऐसी भूमि जिस पर पट्टा दिया गया है, तो ऐसी भूमि विक्रय नहीं की जा सकती है।
- म०प्र० में आदिवासियों की भूमि को खरीदा नहीं जा सकता है। विशेष परिस्थितियों में जिला कलेक्टर की अनुमति लेकर ही इनका विक्रय हो सकता है।
इन बातों से अवगत होने के बाद ही वास्तव में भूमि का स्वामी और भूमि के अधिकार स्पष्ट हों तो क्रेता को सम्पत्ति खरीदने के बारे में सोचना चाहिए। सम्पत्ति अंतरण के समय स्वामित्व प्रमाणपत्र, नामांतरण, खसरा, बीवन इत्यादि दस्तावेज प्राप्त करने के उपरांत क्रय विक्रय की प्रक्रिया के तहत रजिस्ट्री करवा लेना चाहिए और आवश्यक स्टाम्प शुल्क अदा कर स्वामित्व व कब्जा प्राप्त कर लेना चाहिए।
कहीं-कहीं होता है कि, विक्रेता के पास मूल दस्तावेज नहीं होते हैं, ऐसे में विक्रेता से इस बाबत शपथपत्र प्राप्त कर लेना चाहिए और स्थानीय समाचारपत्रों में इस बाबत सूचना प्रकाशित करा लेनी चाहिए कि इस सम्पत्ति पर किसी का कोई अधिकार तो नहीं है, या यह भूमि कहीं बंधक तो नहीं है। सूचना प्रकाशन के बाद कोई आपत्ति नहीं आती है, तो सम्पत्ति का मूल्य अदा कर विक्रेता से अपने पक्ष में स्वामित्व करवा लेना चाहिए।
इसके उपरांत इस भूमि का रिकार्ड शासकीय खाते में अपने नाम दर्ज करवा लेना चाहिए। सम्पत्ति का खसरा और अक्स आपके नाम पर होने के बाद आप उस सम्पत्ति के स्वामी बन सकते हैं। अब क्रेता का दायित्व है कि, वह उस सम्पत्ति का कब्जा ले और उसको बचाने के लिए अपनी ओर से सुरक्षा का प्रबंध करे। सम्पत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत क्रेता के दायित्व केवल विक्रय धनराशि का भुगतान कर उसका अंतरण करवाना उसका अधिकार है। विक्रेता का दायित्व है कि, वह क्रेता को इन बातों को बताये-
(१) विक्रेता का दायित्व है कि, वह भूमि स्वामी होने के नाते वे दस्तावेज प्रस्तुत करे, जिसके आधार पर सम्पत्ति का स्वामी बना है, यह दस्तावेज विक्रय के समय क्रेता को उपलब्ध कराये।
(२) विक्रेता का दायित्व है कि, क्रेता से सम्पत्ति का मूल्य प्राप्त करने के बाद उसके पक्ष में हक विलेख यानी सम्पत्ति उसके नाम करने की प्रक्रिया में सहयोग दे। स्वामित्व हंस्तातरण में जहां उसकी आवश्यकता हो उसका पालन करे।
(३) सम्पत्ति विक्रय करने की दिनांक तक जो भी बंधक या अन्य भुगतान क्रेता को करके अथवा सम्पत्ति को समस्त दायित्वों से मुक्त करके क्रेता को प्रदान करे। अगर ऐसा न हो सके तो क्रेता को उस संबंध में अवगत कराये, और दायित्वों के भुगतान का मामला स्पष्ट करे।
सम्पत्ति का अंतरण, सम्पत्ति अंतरण अधिनियम 1882 के अनुसार होना आवश्यक है। सम्पत्ति क्रय करने में सावधानी का पहलू ही क्रेता को धोखाधड़ी और फर्जीबाड़े से बचा सकता है। इसलिए सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए क्रय विक्रय की कानूनी जानकारी आवश्यक है।
शैलेश जैन, एडव्होकेट
पटेल मार्ग, शुजालपुर मण्डी, जिला शाजापुर (म.प्र.)
मोबाईल नम्बर 09479836178
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