दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 401 | Section 401 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 401 in
Hindi ] –
उच्च न्यायालय की
पुनरीक्षण की शक्तियां
(1) ऐसी किसी कार्यवाही के मामले में, जिसका अभिलेख उच्च न्यायालय ने स्वयं
मंगवाया है जिसकी उसे अन्यथा जानकारी हुई है, वह धाराएं 386,389, 390 और 391 द्वारा
अपील न्यायालय को या धारा 307 द्वारा
सेशन न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों में से किसी का स्वविवेकानुसार प्रयोग कर सकता
है और जब वे न्यायाधीश, जो
पुनरीक्षण न्यायालय में पीठासीन हैं, राय में समान रूप से विभाजित हैं तब मामले का निपटारा धारा 392 द्वारा उपबंधित रीति से किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन कोई आदेश, जो अभियुक्त या अन्य व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, तब तक न किया जाएगा जब तक उसे अपनी
प्रतिरक्षा में या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा सुने जाने का अवसर न मिल चुका हो।
(3) इस धारा की कोई बात उच्च न्यायालय को दोषमुक्ति के निष्कर्ष
को दोषसिद्धि के निष्कर्ष में संपरिवर्तित करने के लिए प्राधिकृत करने वाली न समझी
जाएगी।
(4) जहां संहिता के अधीन अपील हो सकती है किन्तु कोई अपील की
नहीं जाती है वहाँ उस पक्षकार की प्रेरणा पर, जो अपील कर सकता था, पुनरीक्षण की कोई कार्यवाही ग्रहण न की जाएगी।
(5) जहाँ इस संहिता के अधीन अपील होती है किन्तु उच्च न्यायालय
को किसी व्यक्ति द्वारा पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया गया है और उच्च न्यायालय का
यह समाधान हो जाता है कि ऐसा आवेदन इस गलत विश्वास के आधार पर किया गया था कि उससे
कोई अपील नहीं होती है और न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है तो उच्च न्यायालय
पुनरीक्षण के लिए आवेदन को अपील की अर्जी मान सकता है और उस पर तद्नुसार कार्यवाही
कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 402 | Section 402 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 402 in
Hindi ] –
उच्च न्यायालय की
पुनरीक्षण के मामलों को वापस लेने या अन्तरित करने की शक्ति–
(1) जब एक ही विचारण में दोषसिद्ध एक या अधिक व्यक्ति पुनरीक्षण
के लिए आवेदन उच्च न्यायालय को करते हैं और उसी विचारण में दोषसिद्ध कोई अन्य
व्यक्ति पुनरीक्षण के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश को करता है तब उच्च न्यायालय, पक्षकारों की सुविधा और अन्तर्ग्रस्त
प्रश्नों के महत्व को ध्यान में रखते हुए यह विनिश्चय करेगा कि उन दोनों में से
कौन सा न्यायालय पुनरीक्षण के लिए आवेदनों को अंतिम रूप से निपटाएगा और जब उच्च
न्यायालय यह विनिश्चय करता है कि पुनरीक्षण के लिए सभी आवेदन उसी के द्वारा निपटाए
जाने चाहिए तब उच्च न्यायालय यह निदेश देगा कि सेशन न्यायाधीश के समक्ष लंबित
पुनरीक्षण के लिए आवेदन उसे अन्तरित कर दिए जाएं और जहाँ उच्च न्यायालय यह
विनिश्चय करता है कि पुनरीक्षण के आवेदन उसके द्वारा निपटाए जाने आवश्यक नहीं है
वहाँ वह यह निदेश देगा कि उसे किए गए पुनरीक्षण के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश को अन्तरित
किए जाएं।
(2) जब कभी पुनरीक्षण के लिए आवेदन उच्च न्यायालय को अन्तरित
किया जाता है तब वह न्यायालय उसे इस प्रकार निपटाएगा मानो वह उसके समक्ष सम्बक्ततः
किया गया आवेदन है।
(3) जब कभी पुनरीक्षण के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश को अन्तरित
किया जाता है तब वह न्यायाधीश उसे इस प्रकार निपटाएगा मानो वह उसके समक्ष
सम्यक्ततः किया गया आवेदन है।
(4) जहां पुनरीक्षण के लिए आवेदन उच्च न्यायालय द्वारा सेशन
न्यायाधीश को अन्तरित किया जाता है वहां उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों की प्रेरणा
पर जिनके पुनरीक्षण के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश द्वारा निपटाए गए हैं पुनरीक्षण
के लिए कोई और आवेदन उच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय में नहीं होगा
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 403 | Section 403 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 403 in
Hindi ] –
पक्षकारों को
सुनने का न्यायालय का विकल्प–
इस संहिता में अभिव्यक्त रूप से जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, जो न्यायालय अपनी पुनरीक्षण की
शक्तियों का प्रयोग कर रहा है उसके समक्ष स्वयं या प्लीडर द्वारा सुने जाने का
अधिकार किसी भी पक्षकार को नहीं है ; किन्तु यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग
करते समय किसी पक्षकार को स्वयं या उसके प्लीडर द्वारा सुन सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 404 | Section 404 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 404 in
Hindi ] –
महानगर मजिस्ट्रेट
के विनिश्चय के आधारों के कथन पर उच्च न्यायालय द्वारा विचार किया जाना—
जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा किसी महानगर
मजिस्ट्रेट का अभिलेख धारा 397 के
अधीन मंगाया जाता है तब वह मजिस्ट्रेट अपने विनिश्चय या आदेश के आधारों का और
किन्हीं ऐसे तथ्यों का, जिन्हें
वह विवाद्यक के लिए तात्त्विक समझता है, वर्णन करने वाला कथन अभिलेख के साथ भेज सकता है और न्यायालय उक्त
विनिश्चय या आदेश को उलटने या अपास्त करने से पूर्व ऐसे कथन पर विचार करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 405 | Section 405 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 405 in
Hindi ] –
उच्च न्यायालय के
आदेश का प्रमाणित करके निचले न्यायालय को भेजा जाना—
जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश द्वारा कोई मामला इस
अध्याय के अधीन पुनरीक्षित किया जाता है तब वह धारा 388 द्वारा उपबंधित रीति से अपना विनिश्चय
या आदेश प्रमाणित करके उस न्यायालय को भेजेगा, जिसके द्वारा पुनरीक्षित निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश अभिलिखित किया गया या पारित किया गया था, और तब वह न्यायालय, जिसे विनिश्चय या आदेश ऐसे प्रमाणित
करके भेजा गया है ऐसे आदेश करेगा, जो
ऐसे प्रमाणित विनिश्चय के अनुरूप है और यदि आवश्यक हो तो अभिलेख में तद्नुसार
संशोधन कर दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 406 | Section 406 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 406 in
Hindi ] –
मामलों और अपीलों
को अन्तरित करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति–
(1) जब कभी उच्चतम न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि न्याय
के उद्देश्यों के लिए यह समीचीन है कि इस धारा के अधीन आदेश किया जाए, तब वह निदेश दे सकता है कि कोई
विशिष्ट मामला या अपील एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को या एक उच्च
न्यायालय के अधीनस्थ दंड न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ समान या
वरिष्ठ अधिकारिता वाले दूसरे दंड न्यायालय को अन्तरित कर दी जाए।
(2) उच्चतम न्यायालय भारत के महान्यायवादी या हितबद्ध पक्षकार के
आवेदन पर ही इस धारा के अधीन कार्य कर सकता है और ऐसा प्रत्येक आवेदन समावेदन
द्वारा किया जाएगा जो उस दशा के सिवाय, जब कि आवेदक भारत का महान्यायवादी या राज्य का महाधिववक्ता है, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित
होगा।
(3) जहाँ इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिए
कोई आवेदन खारिज कर दिया जाता है वहां, यदि उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला
था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हजार रुपए से अनधिक इतनी राशि, जितनी वह् न्यायालय उस मामले की
परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर
के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध किया था
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 407 | Section 407 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 407 in
Hindi ] –
मामलों और अपीलों
को अन्तरित करने की उच्च न्यायालय की शक्ति–
(1) जब कभी उच्च न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि
(क) उसके अधीनस्थ किसी दंड न्यायालय में ऋजु और पक्षपातरहित जांच या
विचारण न हो सकेगा ; अथवा (ख)
किसी असाधारणतः कठिन विधि प्रश्न के उठने की संभाव्यता है ; अथवा
(ग) इस धारा के अधीन आदेश इस संहिता के किसी उपबंध द्वारा अपेक्षित
है, या पक्षकारों या साक्षियों के लिए
साधारण सुविधाप्रद होगा, या न्याय
के उद्देश्यों के लिए समीचीन है, तब
वह आदेश दे सकेगा कि
(1) किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे किसी न्यायालय द्वारा किया
जाए जो धारा 177
से 185 तक के (जिनके अन्तर्गत ये दोनों
धाराएं भी है) अधीन तो अर्हित नहीं है किन्तु ऐसे अपराध की जांच या विचारण करने के
लिए अन्यथा सक्षम है।
(ii) कोई विशिष्ट मामला या अपील या मामलों या अपीलों का वर्ग उसके
प्राधिकार के अधीनस्थ किसी दंड न्यायालय से ऐसे समान वरिष्ठ अधिकारिता वाले किसी
अन्य दंड न्यायालय को अंतरित कर दिया जाए;
(iii) कोई विशिष्ट मामला सेशन न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द कर
दिया जाए ;
अथवा (iv) कोई विशिष्ट मामला या अपील स्वयं उसको
अन्तरित कर दी जाए, और उसका
विचारण उसके समक्ष
किया जाए।
(2) उच्च न्यायालय निचले न्यायालय की रिपोर्ट पर, या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर या
स्वप्रेरणा पर कार्यवाही कर सकता है:
परन्तु किसी मामले को एक ही सेशन खंड के एक दंड न्यायालय से
दूसरे दंड न्यायालय को अन्तरित करने के लिए आवेदन उच्च न्यायालय से तभी किया जाएगा
जब ऐसा अन्तरण करने के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश को कर दिया गया है और उसके द्वारा
नामंजूर कर दिया गया है।
(3) उपधारा (1) के
अधीन आदेश के लिए प्रत्येक आवेदन समावेदन द्वारा किया जाएगा, जो उस दशा के सिवाय जब आवेदक राज्य का
महाधिववक्ता हो,
शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा
समर्थित होगा।
(4) जब ऐसा आवेदन कोई अभियुक्त व्यक्ति करता है, तब उच्च न्यायालय उसे निदेश दे सकता
है कि वह किसी प्रतिकर के संदाय के लिए, जो उच्च न्यायालय उपधारा (7) के अधीन अधिनिर्णीत करे, प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे।
(5) ऐसा आवेदन करने वाला प्रत्येक अभियुक्त व्यक्ति लोक अभियोजक
को आवेदन की लिखित सूचना उन आधारों की प्रतिलिपि के सहित देगा जिन पर वह किया गया
है, और आवेदन के गुणागुण पर तब तक कोई
आदेश न किया जाएगा जब तक ऐसी सूचना के दिए जाने और आवेदन की सुनवाई के बीच कम से
कम चौबीस घंटे न बीत गए हों। दंड
प्रक्रिया संहिता की धारा 408 | Section 408 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 408 in
Hindi ] –
मामलों और अपीलों
को अन्तरित करने की सेशन न्यायाधीश की शक्ति–
(1) जब कभी सेशन न्यायाधीश को यह प्रतीत कराया जाता है कि न्याय
के उद्देश्यों के लिए यह समीचीन है कि इस उपधारा के अधीन आदेश दिया जाए, तब वह् आदेश दे सकता है कि कोई
विशिष्ट मामला उसके सेशन खंड में एक दंड न्यायालय से दूसरे दंड न्यायालय को
अन्तरित कर दिया जाए।
(2) सेशन न्यायाधीश निचले न्यायालय की रिपोर्ट पर या किसी
हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर या स्वप्रेरणा पर कार्रवाई कर सकता है।
(3) धारा 407 की
उपधारा (3),
(4), (5), (6), (7) और
(9) के उपबंध इस धारा की उपधारा (1) के अधीन आदेश के लिए सेशन न्यायाधीश
को आवेदन के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे धारा 407 की उपधारा (1) के अधीन आदेश के लिए उच्च न्यायालय को
आवेदन के संबंध में लागू होते हैं, सिवाय
इसके कि उस धारा की उपधारा (7) इस
प्रकार लागू होगी मानो उसमें आने वाले “एक हजार रुपए” शब्दों
के स्थान पर “दो सौ पचास रुपए” शब्द रख दिए गए हैं।
(6) जहां आवेदन किसी अधीनस्थ न्यायालय से कोई मामला या अपील
अंतरित करने के लिए है, वहां यदि
उच्च न्यायालय का समाधान हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के हित में आवश्यक है, तो वह आदेश दे सकता है कि जब तक आवेदन
का निपटारा न हो जाए तब तक के लिए अधीनस्थ न्यायालय की कार्यवाहियां, ऐसे निबंधनों पर, जिन्हें अधिरोपित करना उच्च न्यायालय
ठीक समझे, रोक दी जाएंगी:
परन्तु ऐसी रोक धारा 309 के अधीन प्रतिप्रेषण की अधीनस्थ न्यायालयों की शक्ति पर
प्रभाव न डालेगी।
(7) जहां उपधारा (1) के अधीन आदेश देने के लिए आवेदन खारिज कर दिया जाता है वहां, यदि उच्च न्यायालय की यह राय है कि
आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हजार
रुपए से अनधिक इतनी राशि, जितनी वह
न्यायालय उस मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध
किया था।
(8) जब उच्च न्यायालय किसी न्यायालय से किसी मामले का अन्तरण
अपने समक्ष विचारण करने के लिए उपधारा (1) के अधीन आदेश देता है तब वह ऐसे विचारण में उसी प्रक्रिया का
अनुपालन करेगा जिस मामले का ऐसा अन्तरण न किए जाने की दशा में वह न्यायालय करता।
(9) इस धारा की कोई बात धारा 197 के अधीन सरकार के किसी आदेश पर प्रभाव
डालने वाली न समझी जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 409 | Section 409 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 409 in
Hindi ] –
सेशन न्यायाधीशों
द्वारा मामलों और अपीलों का वापस लिया जाना—
(1) सेशन न्यायाधीश अपने अधीनस्थ किसी सहायक सेशन न्यायाधीश या
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से कोई मामला या अपील वापस ले सकता है या कोई मामला या
अपील, जिसे उसने उसके ह्वाले किया हो, वापस मंगा सकता है।
(2) अपर सेशन न्यायाधीश के समक्ष मामले का विचारण या अपील की सुनवाई
प्रारंभ होने से पूर्व किसी समय सेशन न्यायाधीश किसी मामले या अपील को, जिसे उसने अपर सेशन न्यायाधीश के
हवाले किया है,
वापस मंगा सकता है।
(3) जहां सेशन न्यायाधीश कोई मामला या अपील उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन वापस मंगाता है या वापस लेता
है वहां वह,
यथास्थिति, या तो उस मामले का अपने न्यायालय में
विचारण कर सकता है या उस अपील को स्वयं सुन सकता है या उसे विचारण या सुनवाई के
लिए इस संहिता के उपबंधों के अनुसार दूसरे न्यायालय के हवाले कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 410 | Section 410 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 410 in
Hindi ] –
न्यायिक
मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों का वापस लिया जाना—
(1) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट
से किसी मामले को वापस ले सकता है या किसी मामले को, जिसे उसने ऐसे मजिस्ट्रेट के हवाले किया है, वापस मंगा सकता है और मामले की जांच
या विचारण स्वयं कर सकता है या उसे जांच या विचारण के लिए किसी अन्य ऐसे
मजिस्ट्रेट को निर्देशित कर सकता है जो उसकी जांच या विचारण करने के लिए सक्षम है।
(2) कोई न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी मामले को, जो उसने धारा 192 की उपधारा (2) के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के
हवाले किया है,
वापस मंगा सकता है और ऐसे मामले
की जांच या विचारण स्वयं कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 411 | Section 411 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 411 in
Hindi ] –
कार्यपालक
मजिस्ट्रेटों द्वारा मामलों का अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेट के हवाले किया जाना या
वापस लिया जाना—
कोई जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट-
(क) किसी ऐसी कार्यवाही को, जो उसके समक्ष आरंभ हो चुकी है, निपटाने के लिए अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट के हवाले कर सकता है:
(ख) अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट से किसी मामले को वापस ले सकता है
या किसी मामले को, जिसे
उसने ऐसे मजिस्ट्रेट के हवाले किया हो, वापस मंगा सकता है और ऐसी कार्यवाही को स्वयं निपटा सकता है या उसे
निपटाने के लिए किसी अन्य मजिस्ट्रेट को निर्देशित कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 412 | Section 412 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 412 in
Hindi ] –
कारणों का
अभिलिखित किया जाना—
धारा 408, धारा
409, धारा 410 या धारा 411 के अधीन आदेश करने वाला सेशन
न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट ऐसा आदेश करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 413 | Section 413 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 413 in
Hindi ] –
धारा 368 के अधीन दिए गए आदेश का निष्पादन–
जब मृत्यु दंडादेश की पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय को
प्रस्तुत किसी मामले में, सेशन
न्यायालय को उस पर उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि का आदेश या अन्य आदेश प्राप्त होता
है, तो वह वारंट जारी करके या अन्य ऐसे
कदम उठाकर,
जो आवश्यक हो, उस आदेश को क्रियान्वित कराएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 414 | Section 414 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 414 in
Hindi ] –
उच्च न्यायालय
द्वारा दिए गए मृत्यु दंडादेश का निष्पादन-
जब अपील में या पुनरीक्षण में उच्च न्यायालय द्वारा मृत्यु
दंडादेश किया जाता है तब सेशन न्यायालय उच्च न्यायालय का आदेश प्राप्त होने पर
वारंट जारी करके दंडादेश को क्रियान्वित कराएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 415 | Section 415 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 415 in
Hindi ] –
उच्चतम न्यायालय
की अपील की दशा में मृत्यु दंडादेश के निष्पादन का मुल्तवी किया जाना—
(1) जहां किसी व्यक्ति को उच्च न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश
दिया गया है और उसके निर्णय के विरुद्ध कोई अपील संविधान के अनुच्छेद 134 के खंड (1) के उपखंड (क) या उपखंड (ख) के अधीन
उच्चतम न्यायालय को होती है वहां उच्च न्यायालय दंडादेश का निष्पादन तब तक के लिए
मुल्तवी किए जाने का आदेश देगा जब तक ऐसी अपील करने के लिए अनुज्ञात अवधि समाप्त
नहीं हो जाती है अथवा यदि उस अवधि के अन्दर कोई अपील की गई है तो जब तक उस अपील का
निपटारा नहीं हो जाता है।
(2) जहाँ उच्च न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश दिया गया है या
उसकी पुष्टि की गई है, और
दंडादिष्ट व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 132 के अधीन या अनुच्छेद 134 के खंड (1) के
उपखंड (ग) के अधीन प्रमाणपत्र दिए जाने के लिए उच्च न्यायालय से आवेदन करता है, तो उच्च न्यायालय दंडादेश का निष्पादन
तब तक के लिए मुल्तवी किए जाने का आदेश देगा जब तक उस आवेदन का उच्च न्यायालय
द्वारा निपटारा नहीं हो जाता है या यदि ऐसे आवेदन पर कोई प्रमाणपत्र दिया गया है, तो जब तक उस प्रमाणपत्र पर उच्चतम
न्यायालय को अपील करने के लिए अनुज्ञात अवधि समाप्त नहीं हो जाती है।
(3) जहाँ उच्च न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश दिया गया है या
उसकी पुष्टि की गई है और उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि दंडादिष्ट
व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन अपील के लिए विशेष इजाजत दिए जाने के लिए उच्चतम न्यायालय
में अर्जी पेश करना चाहता है, वहां
उच्च न्यायालय दंडादेश का निष्पादन इतनी अवधि तक के लिए, जितनी बह ऐसी अर्जी पेश करने के लिए
पर्याप्त समझे,
मुल्तवी किए जाने का आदेश देगा।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 416 | Section 416 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 416 in
Hindi ] –
गर्भवती स्त्री को
मृत्यु दंड का मुल्तवी किया जाना—
यदि वह स्त्री, जिसे मृत्यु दंडादेश दिया गया है, गर्भवती पाई जाती है तो उच्च न्यायालय ‘[***] दंडादेश का आजीवन कारावास के रूप में
लघुकरण कर सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 417 | Section 417 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 417 in
Hindi ] –
कारावास का स्थान
नियत करने की शक्ति–
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा जैसा उपबंधित है उसके
सिवाय राज्य सरकार निदेश दे सकती है कि किसी व्यक्ति को, जिसे इस संहिता के अधीन कारावासित
किया जा सकता है या अभिरक्षा के लिए सुपुर्द किया जा सकता है, किस स्थान में परिरुद्ध किया जाएगा।
(2) यदि कोई व्यक्ति, जिसे इस संहिता के अधीन कारावासित किया जा सकता है या अभिरक्षा के
लिए सुपुर्द किया जा सकता है, सिविल
जेल में परिरुद्ध है तो कारावास या सुपुर्दगी के लिए आदेश देने वाला न्यायालय या
मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति के दांडिक जेल में भेजे जाने का निदेश दे सकता है।
(3) जब उपधारा (2) के
अधीन कोई व्यक्ति दांडिक जेल में भेजा जाता है तब वहाँ से छोड़ दिए जाने पर उसे उस
दशा के सिवाय सिविल जेल को लौटाया जाएगा जब या तो
(क) दांडिक जेल में उसके भेजे जाने से तीन वर्ष बीत गए हैं ; जिस दशा में वह, यथास्थिति, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 58 या प्रांतीय दिवाला अधिनियम, 1920 (1920 का 5) की धारा 23 के अधीन सिविल जेल से छोड़ा गया समझा
जाएगा, या
(ख) सिविल जेल में उसके कारावास का आदेश देने वाले न्यायालय द्वारा
दांडिक जेल के भारसाधक अधिकारी को यह प्रमाणित करके भेज दिया गया है कि वह, यथास्थिति, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 58 या प्रांतीय दिवाला अधिनियम, 1920 (1920 का 5) की धारा 23 के अधीन छोड़े जाने का हकदार है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 418 | Section 418 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 418 in
Hindi ] –
कारावास के दंडादेश
का निष्पादन–
(1) जहां उन मामलों से, जिनके लिए धारा 413 द्वारा उपबंध किया गया है, भिन्न मामलों में अभियुक्त आजीवन कारावास या किसी अवधि के कारावास
के लिए दंडादिष्ट किया गया है, वहां
दंडादेश देने वाला न्यायालय उस जेल या अन्य स्थान को, जिसमें वह परिरुद्ध है या उसे
परिरुद्ध किया जाना है तत्काल वारण्ट भेजेगा और यदि अभियुक्त पहले से ही उस जेल या
अन्य स्थान में परिरुद्ध नहीं है तो वारंट के साथ उसे ऐसी जेल या अन्य स्थान को
भिजवाएगा:
परन्तु जहां अभियुक्त को न्यायालय के उठने तक के लिए कारावास
का दंडादेश दिया गया है, वहां
वारण्ट तैयार करना या वारण्ट जेल को भेजना आवश्यक न होगा और अभियुक्त को ऐसे स्थान
में, जो न्यायालय निदिष्ट करे, परिरुद्ध किया जा सकता है।
(2) जहां अभियुक्त न्यायालय में उस समय उपस्थित नहीं है जब उसे
ऐसे कारावास का दंडादेश दिया गया है जैसा उपधारा (1) में उल्लिखित है, वहां न्यायालय उसे जेल या ऐसे अन्य
स्थान में,
जहां उसे परिरुद्ध किया जाना है, भेजने के प्रयोजन से उसकी गिरफ्तारी
के लिए वारंट जारी करेगा; और ऐसे
मामले में दंडादेश उसकी गिरफ्तारी की तारीख से प्रारंभ होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 419 | Section 419 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 419 in
Hindi ] –
निष्पादन के लिए
वारण्ट का निदेशन
कारावास के दंडादेश के निष्पादन के लिए प्रत्येक बारण्ट उस
जेल या अन्य स्थान के भारसाधक अधिकारी को निदिष्ट होगा, जिसमें बंदी परिरुद्ध है या परिरुद्ध
किया जाना है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 420 | Section 420 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 420 in
Hindi ] –
वारण्ट किसको
सौंपा जाएगा-
जब बंदी जेल में परिरुद्ध किया जाना है, तब वारण्ट जेलर को सौंपा जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 421 | Section 421 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 421 in
Hindi ] –
जुर्माना उद्गृहीत
करने के लिए बारण्ट-
(1) जब किसी अपराधी को जुर्माने का
दंडादेश दिया गया है तब दंडादेश देने वाला न्यायालय निम्नलिखित प्रकारों में से
किसी या दोनों प्रकार से जुर्माने की वसूली के लिए कार्रवाई कर सकता है, अर्थात् वह –
(क) अपराधी की किसी जंगम संपत्ति की कुर्की और विक्रय द्वारा रकम को
उद्गृहीत करने के लिए वारण्ट जारी कर सकता है,
(ख) व्यतिक्रमी की जंगम या स्थावर संपत्ति या दोनों से भू-राजस्व की
बकाया के रूप में रकम को उद्गृहीत करने के लिए जिले के कलक्टर को प्राधिकृत करते
हुए उसे वारंट जारी कर सकता है :
परन्तु यदि दंडादेश निदिष्ट करता है कि जुर्माना देने में
व्यतिक्रम होने पर अपराधी कारावासित किया जाएगा और यदि अपराधी ने व्यतिक्रम के
बदले में ऐसा पूरा कारावास भुगत लिया है तो कोई न्यायालय ऐसा वारण्ट तब तक न जारी
करेगा जब तक वह विशेष कारणों से जो अभिलिखित किए जाएंगे, ऐसा करना आवश्यक न समझे अथवा जब तक
उसने जुर्माने में से व्यय या प्रतिकर के संदाय के लिए धारा 357 के अधीन आदेश न किया हो।
(2) राज्य सरकार उस रीति को विनियमित करने के लिए, जिससे उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन वारंट निष्पादित
किए जाने हैं और ऐसे वारण्ट के निष्पादन में कुर्क की गई किसी संपत्ति के बारे में
अपराधी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किन्हीं दावों के संक्षिप्त अवधारण के
लिए, नियम बना सकती है।
(3) जहां न्यायालय कलक्टर को उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन वारण्ट जारी करता
है वहाँ कलक्टर उस रकम को भू-राजस्व की बकाया की वसूली से संबंधित विधि के अनुसार
वसूल करेगा मानो ऐसा वारण्ट ऐसी विधि के अधीन जारी किया गया प्रमाणपत्र हो :
परन्तु ऐसा कोई वारण्ट अपराधी की गिरफ्तारी या कारावास में
निरोध द्वारा निष्पादित न किया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 422 | Section 422 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 422 in
Hindi ] –
ऐसे वारण्ट का
प्रभाव—
किसी न्यायालय द्वारा धारा 421 की उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन जारी किया गया कोई
वारण्ट उस न्यायालय को स्थानीय अधिकारिता के अन्दर निष्पादित किया जा सकता है और
वह ऐसी अधिकारिता के बाहर की किसी ऐसी संपत्ति की कुर्की और विक्रय उस दशा में
प्राधिकृत करेगा जब वह उस जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के
अन्दर ऐसी संपत्ति पाई जाए, पृष्ठांकित
कर दिया गया
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 423 | Section 423 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 423 in
Hindi ] –
जुर्माने के
उग्रहण के लिए किसी ऐसे राज्यक्षेत्र के न्यायालय द्वारा जिस पर इस संहिता का
विस्तार नहीं है, जारी किया
गया वारण्ट–
इस संहिता में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी
बात के होते हुए भी जब किसी अपराधी को किसी ऐसे राज्यक्षेत्र के, जिस पर इस संहिता का विस्तार नहीं है
किसी दंड न्यायालय द्वारा जुर्माना देने का दंडादेश दिया गया है और दंडादेश देने
वाला न्यायालय ऐसी रकम को, भू-राजस्व
की बकाया के तौर पर उद्गृहीत करने के लिए, उन राज्यक्षेत्र के, जिन पर इस संहिता का विस्तार है, किसी जिले के कलक्टर को प्राधिकृत करते हुए वारण्ट जारी करता
है, तब ऐसा वारण्ट उन राज्यक्षेत्रों के, जिन पर इस संहिता का विस्तार है, किसी न्यायालय द्वारा धारा 421 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन जारी किया गया
वारण्ट समझा जाएगा और तद्नुसार ऐसे वारण्ट के निष्पादन के बारे में उक्त धारा की
उपधारा (3)
के उपबंध लागू होंगे
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 424 | Section 424 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 424 in
Hindi ] –
कारावास के
दंडादेश के निष्पादन का निलंबन-
(1) जब अपराधी को केवल जुर्माने का और
जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास का दंडादेश दिया गया है और जुर्माना
तत्काल नहीं दिया जाता है तब न्यायालय-
(क) आदेश दे सकता है कि जुर्माना या तो ऐसी तारीख को या उससे पहले, जो आदेश की तारीख से तीस दिन से अधिक
बाद की न होगी,
पूर्णतः संदेय होगा, या दो या तीन किस्तों में संदेय होगा
जिनमें से पहली किस्त ऐसी तारीख को या उससे पहले संदेय होगी, जो आदेश की तारीख से तीस दिन से अधिक
बाद की न होगी और अन्य किस्त या किस्तें, यथास्थिति, तीस दिन
से अधिक के अन्तराल या अन्तरालों पर संदेय होगी या होंगी;
(ख) कारावास के दंडादेश का निष्पादन निलम्बित कर सकता है और अपराधी
द्वारा प्रतिभुओं सहित या रहित, जैसा
न्यायालय ठीक समझे, इस शर्त
का बंधपत्र निष्पादित किए जाने पर कि, यथास्थिति, जुर्माना
या उसकी किस्तें देने की तारीख या तारीखों को वह न्यायालय के समक्ष हाजिर होगा, अपराधी को छोड़ सकता है, और यदि, यथास्थिति, जुर्माने
की या किसी किस्त की रकम उस अंतिम तारीख को या उसके पूर्व जिसको वह आदेश के अधीन
संदेय हो, प्राप्त न हो तो न्यायालय कारावास के
दंडादेश के तुरंत निष्पादित किए जाने का निदेश दे सकता है।
(2) उपधारा (1) के
उपबंध किसी ऐसे मामले में भी लागू होंगे जिसमें ऐसे धन के संदाय के लिए आदेश किया
गया है जिसके वसूल न होने पर कारावास अधिनिर्णीत किया जा सकता है और धन तुरंत नहीं
दिया गया है,
और यदि वह व्यक्ति जिसके
विरुद्ध आदेश दिया गया है उस उपधारा में निर्दिष्ट बंधपत्र लिखने की अपेक्षा किए
जाने पर ऐसा करने में असफल रहता है तो न्यायालय कारावास का दंडादेश तुरन्त पारित
कर सकता है
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 425 | Section 425 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 425 in
Hindi ] –
वारण्ट कौन जारी
कर सकेगा–
किसी दंडादेश के निष्पादन के लिए प्रत्येक वारण्ट या तो उस
न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसने
दंडादेश पारित किया है या उसके पद-उत्तरवर्ती द्वारा जारी किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 426 | Section 426 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 426 in
Hindi ] –
निकल भागे
सिद्धदोष पर दंडादेश कब प्रभावशील होगा-
(1) जब निकल भागे सिद्धदोष को इस संहिता के अधीन मृत्यु. आजीवन
कारावास या जुर्माने का दंडादेश दिया जाता है तब ऐसा दंडादेश इसमें इसके पूर्व
अन्तर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए तुरन्त प्रभावी हो जाएगा।
(2) जब निकल भागे सिद्धृदोष को इस संहिता के अधीन किसी अवधि के
कारावास का दंडादेश दिया जाता है, तब,
(क) यदि ऐसा दंडादेश उस दंडादेश से कठोरतर किस्म का हो जिसे ऐसा
सिद्धदोष, जब वह निकल भागा था, तब भोग रहा था तो नया दंडादेश तुरन्त
प्रभावी हो जाएगा;
(ख) यदि ऐसा दंडादेश उस दंडादेश से कठोरतर किस्म का न हो जिसे ऐसा
सिद्धदोष, जब वह निकल भागा था तब, भोग रहा था, तो नया दंडादेश, उसके द्वारा उस अतिरिक्त अवधि के लिए
कारावास भोग लिए जाने के पश्चात् प्रभावी होगा, जो उसके निकल भागने के समय उसके पूर्ववर्ती दंडादेश की शेष अवधि के
बराबर है।
(3) उपधारा (2) के
प्रयोजनों के लिए, कठोर
कारावास का दंडादेश सादा कारावास के दंडादेश से कठोरतर किस्म का समझा जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 427 | Section 427 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 427 in
Hindi ] –
ऐसे अपराधी की
दंडादेश जो अन्य अपराध के लिए पहले से दंडादिष्ट है—
(1) जब कारावास का दंडादेश पहले से ही भोगने वाले व्यक्ति को
पश्चात्वर्ती-दोषसिद्धि पर कारावास या आजीवन कारावास का दंडादेश दिया जाता है तब
जब तक न्यायालय यह निदेश न दे कि पश्चात्वर्ती दंडादेश ऐसे पूर्व दंडादेश के
साथ-साथ भोगा जाएगा, ऐसा
कारावास या आजीवन कारावास उस कारावास की समाप्ति पर, जिसके लिए, वह
पहले दंडादेश हुआ था, प्रारंभ
होगा: ।
परन्तु, जहाँ
उस व्यक्ति को,
जिसे प्रतिभूति देने में
व्यतिक्रम करने पर धारा 122 के
अधीन आदेश द्वारा कारावास का दंडादेश दिया गया है ऐसा दंडादेश भोगने के दौरान ऐसे
आदेश के दिए जाने के पूर्व किए गए अपराध के लिए कारावास का दंडादेश दिया जाता है, वहां पश्चात्कथित दंडादेश तुरन्त
प्रारंभ हो जाएगा।
(2) जब किसी व्यक्ति को, जो आजीवन कारावास का दंडादेश पहले से ही भोग रहा है, पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर किसी अवधि
के कारावास या आजीवन कारावास का दंडादेश दिया जाता है तब पश्चात्वर्ती दंडादेश
पूर्व दंडादेश के साथ-साथ भोगा जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 428 | Section 428 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 428 in
Hindi ] –
अभियुक्त द्वारा
भोगी गई विरोध की अवधि का कारावास के दंडादेश के विरुद्ध मुजरा किया जाना—
जहां अभियुक्त व्यक्ति दोषसिद्धि पर किसी अवधि के लिए
कारावास से दंडादिष्ट किया गया है, ‘[जो जुर्माने के संदाय में व्यतिक्रम के लिए कारावास नहीं है। वहां
उसी मामले के अन्वेषण, जांच या
विचारण के दौरान और ऐसी दोषसिद्धि की तारीख से पहले उसके द्वारा भोगे गए, यदि कोई हो, निरोध की अवधि का, ऐसी दोषसिद्धि पर उस पर अधिरोपित
कारावास की अवधि के विरुद्ध मुजरा किया जाएगा और ऐसी दोषसिद्धि पर उस व्यक्ति का
कारावास में जाने का दायित्व उस पर अधिरोपित कारावास की अवधि के शेष भाग तक, यदि कोई हो, निर्बन्धित किया जाएगा।
[“परन्तु धारा 433क
में निर्दिष्ट मामलों में निरोध की ऐसी अवधि का उस धारा में निर्दिष्ट चौदह वर्ष
की अवधि के विरुद्ध मुजरा किया जाएगा।”]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 429 | Section 429 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 429 in
Hindi ] –
व्यावृत्ति-
(1) धारा 426 या
धारा 427 की कोई बात किसी व्यक्ति को उस दंड के
किसी भाग से क्षम्य करने वाली न समझी जाएगी जिसका वह अपनी पूर्व या पश्चात्वर्ती
दोषसिद्धि पर भागी है।
(2) जब जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास का
अधिनिर्णय कारावास के मुख्य दंडादेश के साथ उपाबद्ध है और दंडादेश भोगने वाले
व्यक्ति को उसके निष्पादन के पश्चात् कारावास के अतिरिक्त मुख्य दंडादेश या
अतिरिक्त मुख्य दंडादेश को भोगना है तब जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर
कारावास का अधिनिर्णय तब तक क्रियान्वित न किया जाएगा जब तक वह व्यक्ति अतिरिक्त
दंडादेश या दंडादेशों को भुगत चुका हो।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 430 | Section 430 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 430 in
Hindi ] –
दंडादेश के
निष्पादन पर वारण्ट का लौटाया जाना—
जब दंडादेश पूर्णतया निष्पादित किया जा चुका है तब उसका
निष्पादन करने वाला अधिकारी वारण्ट को, वारण्ट स्व-हस्ताक्षर सहित पृष्ठांकन द्वारा उस रीति को, प्रमाणित करते हुए, जिससे दंडादेश का निष्पादन किया गया
था, उस न्यायालय को, जिसने उसे जारी किया था, लौटा देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 431 | Section 431 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 431 in
Hindi ] –
जिस धन का संदाय
करने का आदेश दिया गया है उसका जुर्माने के रूप में वसूल किया जा सकना —
कोई धन (जो जुर्माने से भिन्न है, जो इस संहिता के अधीन दिए गए किसी
आदेश के आधार पर संदेय है और जिसकी वसूली का ढंग अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित
नहीं है, ऐसे वसूल किया जा सकता है मानो वह
जुर्माना है :
परन्तु इस धारा के आधार पर, धारा 359 के
अधीन किसी आदेश को लागू होने में धारा 421 का अर्थ इस प्रकार लगाया जाएगा मानो धारा 421 की उपधारा (1) के परन्तुक में “धारा 357 के अधीन आदेश” शब्दों और अंकों के पश्चात्, “या बों के संदाय के लिए धारा 359 के अधीन आदेश” शब्द और अंक अन्तःस्थापित कर दिए गए
हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 | Section 432 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 432 in
Hindi ] –
दंडादेशों का
निलम्बन या परिहार करने की शक्ति–
(1) जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दंडादेश दिया जाता है
तब समुचित सरकार किसी समय, शर्तों
के बिना या ऐसी शर्तों पर जिन्हें दंडादिष्ट व्यक्ति स्वीकार करे उसके दंडादेश के
निष्पादन का निलंबन या जो दंडादेश उसे दिया गया है उसका पूरे का या उसके किसी भाग
का परिहार कर सकती है।
(2) जब कभी समुचित सरकार से दंडादेश के निलम्बन या परिहार के लिए
आवेदन किया जाता है तब समुचित सरकार उस न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश से, जिसके समक्ष दोषसिद्धि हुई थी या
जिसके द्वारा उसकी पुष्टि की गई थी, अपेक्षा कर सकेगी कि वह इस बारे में कि आवेदन मंजर किया जाए या
नामंजूर किया जाए, अपनी राय
ऐसी राय के लिए अपने कारणों सहित कथित करे और अपनी राय के कथन के साथ विचारण के
अभिलेख की या उसके ऐसे अभिलेख की, जैसा
विद्यमान हो,
प्रमाणित प्रतिलिपि भी भेजे।
(3) यदि कोई शर्त, जिस पर दंडादेश का निलम्बन या परिहार किया गया है, समुचित सरकार की राय में पूरी नहीं हुई
है तो समुचित सरकार निलम्बन या परिहार को रद्द कर सकती है और तब, यदि वह व्यक्ति, जिसके पक्ष में दंडादेश का निलम्बन या
परिहार किया गया था मुक्त है तो वह किसी पुलिस अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना
गिरफ्तार किया जा सकता है और दंडादेश के अनवसित भाग को भोगने के लिए प्रतिप्रेषित
किया जा सकता है।
(4) वह शर्त, जिस
पर दंडादेश का निलम्बन या परिहार इस धारा के अधीन किया जाए, ऐसी हो सकती है जो उस व्यक्ति द्वारा, जिसके पक्ष में दंडादेश का निलम्बन या
परिहार किया जाए, पूरी की
जाने वाली हो या ऐसी हो सकती है जो उसकी इच्छा पर आश्रित न हो।
(5) समुचित सरकार दंडादेशों के निलम्बन के बारे में, और उन शर्तों के बारे में जिन पर
अर्जियां उपस्थित की और निपटाई जानी चाहिएं, साधारण नियमों या विशेष आदेशों द्वारा निदेश दे सकती है :
परन्तु अठारह वर्ष से अधिक की आयु के किसी पुरुष के विरुद्ध
किसी दंडादेश की दशा में (जो जुर्माने के दंडादेश से भिन्न है। दंडादिष्ट व्यक्ति
द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई कोई ऐसी अर्जी तब तक ग्रह्ण
नहीं की जाएगी जब तक दंडादिष्ट व्यक्ति जेल में न हो, तथा
(क) जहाँ ऐसी अर्जी दंडादिष्ट व्यक्ति द्वारा दी जाती है वहां जब तक
वह जेल के भारसाधक अधिकारी की मार्फत उपस्थित न की जाए; अथवा
(ख) जहाँ ऐसी अर्जी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी जाती है वहाँ जब तक
उसमें यह घोषणा न हो कि दंडादिष्ट व्यक्ति जेल में है।
(6) ऊपर की उपधाराओं के उपबंध दंड न्यायालय द्वारा इस संहिता की
या किसी, अन्य विधि की किसी धारा के अधीन पारित
ऐसे आदेश को भी लागू होंगे जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को निर्बन्धित करता है
या उस पर या उसकी सम्पत्ति पर कोई दायित्व अधिरोपित करता है।
(7) इस धारा में और धारा 433 में “समुचित
सरकार” पद से,
(क) उन दशाओं में जिनमें दंडादेश ऐसे विषय से सम्बद्ध किसी विधि के
विरुद्ध अपराध के लिए हैं, या
उपधारा (6)
में निर्दिष्ट आदेश ऐसे विषय से
संबद्ध किसी विधि के अधीन पारित किया गया है, जिस विषय पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, केन्द्रीय सरकार, अभिप्रेत है;
(ख) अन्य दशाओं में, उस
राज्य की सरकार अभिप्रेत है जिसमें अपराधी दंडादिष्ट किया गया है या उक्त आदेश
पारित किया गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 433 | Section 433 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 433 in
Hindi ] –
दंडादेश के लघुकरण
की शक्ति-
समुचित सरकार दंडादिष्ट व्यक्ति की सम्मति के बिना
(क) मृत्यु दंडादेश का भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) द्वारा उपबन्धित किसी अन्य दंड के रूप
में लघुकरण कर सकती है।
(ख) आजीवन कारावास के दंडादेश का, चौदह वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास में या जुर्माने के रूप
में लघुकरण कर सकती है।
(ग) कठिन कारावास के दंडादेश का किसी ऐसी अवधि के सादा कारावास में
जिसके लिए वह व्यक्ति दंडादिष्ट किया जा सकता है, या जुर्माने के रूप में लघुकरण कर सकती है।
(घ) सादा कारावास के दंडादेश का जुर्माने के रूप में लघुकरण कर सकती
है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 434 | Section 434 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 434 in
Hindi ] –
मृत्यु दंडादेशों
की दशा में केन्द्रीय सरकार की समवर्ती शक्ति-
धारा 431 और
433 द्वारा राज्य सरकार को प्रदत्त
शक्तियां मृत्यु दंडादेशों की दशा में केन्द्रीय सरकार द्वारा भी प्रयुक्त की जा
सकती हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 435 | Section 435 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 435 in
Hindi ] –
कुछ मामलों में
राज्य सरकार का केन्द्रीय सरकार से परामर्श करने के पश्चात कार्य करना—
(1) किसी दंडादेश का परिहार करने या उसके लघुकरण के बारे में
धारा 432 और 433 द्वारा राज्य सरकार को प्रदत्त
शक्तियों का राज्य सरकार द्वारा प्रयोग उस दशा में केन्द्रीय सरकार से परामर्श किए
बिना नहीं किया जाएगा जब दंडादेश किसी ऐसे अपराध के लिए है
(क) जिसका अन्वेषण दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन गठित दिल्ली विशेष पुलिस
स्थापन द्वारा या इस संहिता से भिन्न किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन अपराध का
अन्वेषण करने के लिए सशक्त किसी अन्य अभिकरण द्वारा किया गया है, अथवा
(ख) जिसमें केन्द्रीय सरकार की किसी संपत्ति का दुर्विनियोग या नाश
या नुकसान अन्तर्ग्रस्त है, अथवा
(ग) जो केन्द्रीय सरकार की सेवा में के किसी व्यक्ति द्वारा तब किया
गया है जब वह अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा था या उसका ऐसे
कार्य करना तात्पर्यित था।
(2) जिस व्यक्ति को ऐसे अपराधों के लिए दोषसिद्ध किया गया है
जिनमें से कुछ उन विषयों से संबंधित हैं जिन पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का
विस्तार है,
और जिसे पृथक-पृथक अवधि के
कारावास का,
जो साथ-साथ भोगी जानी है, दंडादेश दिया गया है, उसके संबंध में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण का राज्य सरकार द्वारा
पारित कोई आदेश प्रभावी तभी होगा जब ऐसे विषयों के बारे में जिन पर संघ की
कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, उस
व्यक्ति द्वारा किए गए अपराधों के संबंध में ऐसे दंडादेशों के, यथास्थिति, परिहार, निलंबन या लघुकरण का आदेश केन्द्रीय सरकार द्वारा भी कर दिया
गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436 | Section 436 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 436 in
Hindi ] –
किन मामलों में
जमानत ली जाएगी–
(1) जब अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से भिन्न कोई व्यक्ति
पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया
जाता है या न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है और जब वह ऐसे अधिकारी
की अभिरक्षा में है उस बीच किसी समय, या ऐसे न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों के किसी प्रक्रम में, जमानत देने के लिए तैयार है तब ऐसा
व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाएगा :
परन्तु यदि ऐसा अधिकारी या न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे
व्यक्ति से जमानत लेने के बजाय उसे इसमें इसके पश्चात उपबंधित प्रकार से अपने
हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर उन्मोचित कर सकेगा और
यदि ऐसा व्यक्ति निर्धन है और जमानत देने में असमर्थ है, तो उसे ऐसे उन्मोचित करेगा।]
स्पष्टीकरण-जहां कोई व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी की तारीख के एक
सप्ताह के भीतर जमानत देने में असमर्थ है वहाँ अधिकारी या न्यायालय के लिए यह
उपधारणा करने का पर्याप्त आधार होगा कि वह इस परन्तुक के प्रयोजनों के लिए निर्धन
व्यक्ति है।]:
परन्तु यह और कि इस धारा की कोई बात धारा 116 की उपधारा (B) [या धारा 446क] के उपबंधों पर प्रभाव डालने वाली न
समझी जाएगी।
(2) उपधारा (1) में
किसी बात के होते हुए भी, जहां कोई
व्यक्ति, हाजिरी के समय और स्थान के बारे में
जमानतपत्र की शर्तों का अनुपालन करने में असफल रहता है वहां न्यायालय उसे, जब वह उसी मामले में किसी
पश्चात्वर्ती अवसर पर न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या अभिरक्षा में लाया जाता
है, जमानत पर छोड़ने से इनकार कर सकता है
और ऐसी किसी इनकारी का, ऐसे
जमानतपत्र से आबद्ध किसी व्यक्ति से धारा 446 के अधीन उसके शास्ति देने की अपेक्षा करने की न्यायालय की
शक्तियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 | Section 437 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 437 in
Hindi ] –
अजमानतीय अपराध की
दशा में कब जमानत ली जा सकेगी-
(1) जब कोई व्यक्ति, जिस पर अजामनतीय अपराध का अभियोग है
या जिस पर यह संदेह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है. पुलिस थाने के भारसाधक
अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय
अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब
वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है, किन्तु
(1) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होते हैं कि
ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का दोषी है तो वह इस प्रकार
नहीं छोड़ा जाएगा;
(ii) यदि ऐसा अपराध कोई संज्ञेय अपराध है और ऐसा व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे
अधिक के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया गया है, या वह ‘तीन वर्ष या उससे अधिक के, किन्तु सात वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी
संज्ञेय अपराध] के लिए दो या अधिक अवसरों पर पहले दोषसिद्ध किया किया गया है तो वह
इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा:
परन्तु न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि खंड (i) या खंड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़
दिया जाए यदि ऐसा व्यक्ति, सोलह
वर्ष से कम आयु का है या कोई स्त्री या कोई रोगी या शिथिलांग व्यक्ति है :
परन्तु यह और कि न्यायालय यह भी निदेश दे सकेगा कि खंड (i) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़
दिया जाए, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि
किसी अन्य विशेष कारण से ऐसा करना न्यायोचित तथा ठीक है :
परन्तु यह और भी कि केवल यह बात कि अभियुक्त की आवश्यकता, अन्वेषण में साक्षियों द्वारा पहचाने
जाने के लिए हो सकती है, जमानत
मंजूर करने से इनकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगी, यदि वह अन्यथा जमानत पर छोड़ दिए जाने
के लिए हकदार है और वह वचन देता है कि वे ऐसे निदेशों का, जो न्यायालय द्वारा दिए जाएं, अनुपालन करेगा:]
परन्तु यह भी कि किसी भी व्यक्ति को, यदि उस द्वारा किया गया अभिकथित अपराध
मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष अथवा उससे
अधिक के कारावास से दंडनीय है तो लोक अभियोजक को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना इस
उपधारा के अधीन न्यायालय द्वारा जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा।]
(2) यदि ऐसे अधिकारी या न्यायालय को, यथास्थिति, अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में
यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं है कि अभियुक्त ने
अजमानतीय अपराध किया है किन्तु उसके दोषी होने के बारे में और जांच करने के लिए पर्याप्त आधार है तो
अभियुक्त धारा 446क के उपबंधों के अधीन रहते हुए और ऐसी
जांच लंबित रहने तक] जमानत पर, या
ऐसे अधिकारी या न्यायालय के स्वविवेकानुसार, इसमें इसके पश्चात् उपबंधित प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए
प्रतिभुओं रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर छोड़ दिया जाएगा।
(3) जब कोई व्यक्ति, जिस पर ऐसे कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की या उससे अधिक की
है, दंडनीय कोई अपराध या भारतीय दंड
संहिता (1860
का 45) के अध्याय 6, अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी
अपराध का दुप्रेरण या षडयंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है. उपधारा (1) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है तो
न्यायालय यह शर्त अधिरोपित करेगा:
(क) कि ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों
के अनुसार हाजिर होगा; (ख) कि
ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा, जिसको
करने का उस पर अभियोग या संदेह है, कोई
अपराध नहीं करेगा; और
(ग) कि ऐसा व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को
न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने
के वास्ते प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य
को नहीं बिगाड़ेगा, और न्याय के हित में ऐसी अन्य शर्ते, जिसे वह ठीक समझे, भी अधिरोपित कर सकेगा।]
(4) उपधारा (1) या
उपधारा (2)
के अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति
को छोड़ने वाला अधिकारी या न्यायालय ऐसा करने के अपने ‘[कारणों या विशेष कारणों को लेखबद्ध
करेगा।
(5) यदि कोई न्यायालय, जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है तो ऐसे
व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर
सकता है।
(6) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति
का विचारण,
जो किसी अजमानतीय अपराध का
अभियुक्त है,
उस मामले में साक्ष्य देने के
लिए नियत प्रथम तारीख के साठ दिन की अवधि के अन्दर पूरा नहीं हो जाता है तो, यदि ऐसा व्यक्ति उक्त सम्पूर्ण अवधि
के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो, जब
तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश न दे वह
मजिस्ट्रेट की समाधानप्रद जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।
(7) यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त
हो जाने के पश्चात् और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है
कि यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है
और अभियुक्त अभिरक्षा में है तो वह अभियुक्त को, निर्णय सुनने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित
बंधपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 | Section 438 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 438 in
Hindi ] –
गिरफ्तारी की
आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के लिए निदेश–
(1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसको किसी
अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह इस धारा के अधीन निदेश के लिए
उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है ; और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह
निदेश दे सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए।
(2) जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (1) के अधीन निदेश देता है तब वह उस
विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निदेशों में ऐसी शर्ते, जो वह ठीक समझे, सम्मिलित कर सकता है जिनके अन्तर्गत
निम्नलिखित भी हैं
(i) यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले
परिप्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और जब अपेक्षित हो, उपलब्ध होगा;
(ii) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी
व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के
लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा;
(iii) यह शर्त की वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना
भारत नहीं छोड़ेगा;
(iv) ऐसी अन्य शर्ते जो धारा 437 की उपधारा (3) के
अधीन ऐसे अधिरोपित की जा सकती हैं मानो उस धारा के अधीन जमानत मंजूर की गई हो।
(3) यदि तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने के
भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो
गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने
के लिए तैयार है, तो उसे
जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, तथा यदि
ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि उस व्यक्ति के
विरुद्ध प्रथम बार ही वारण्ट जारी किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (1) के अधीन न्यायालय के निदेश के अनुरूप जमानतीय वारण्ट जारी करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 | Section 439 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 439 in
Hindi ] –
जमानत के बारे में
उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय की विशेष शक्तियां-
(1) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय यह
निदेश दे सकता है कि
(क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिस पर किसी अपराध का अभियोग है और जो अभिरक्षा में है, जमानत पर छोड़ दिया जाए और यदि अपराध
धारा 437 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट प्रकार का है, तो वह ऐसी कोई शर्त, जिसे वह उस उपधारा में वर्णित
प्रयोजनों के लिए आवश्यक समझे, अधिरोपित
कर सकता है;
(ख) किसी व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने के समय मजिस्ट्रेट द्वारा
अधिरोपित कोई शर्त अपास्त या उपांतरित कर दी जाए: परन्तु उच्च न्यायालय या सेशन
न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति की, जो
ऐसे अपराध का अभियुक्त है जो अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है, या जो यद्यपि इस प्रकार विचारणीय नहीं
है, आजीवन कारावास से दंडनीय है, जमानत लेने के पूर्व जमानत के लिए
आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को उस दशा के सिवाय देगा जब उसकी, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे यह राय है कि
ऐसी सूचना देना साध्य नहीं है।
(2) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर
छोड़ा जा चुका है, गिरफ्तार
करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 440 | Section 440 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 440 in
Hindi ] –
बंधपत्र की रकम और
उसे घटाना—
(1) इस अध्याय के अधीन निष्पादित प्रत्येक बंधपत्र की रकम मामले
की परिस्थितियों का सम्यक् ध्यान रख कर नियत की जाएगी और अत्यधिक नहीं होगी।
(2) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय यह निदेश दे सकता है कि
पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट द्वारा अपेक्षित जमानत घटाई जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 441 | Section 441 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 441 in
Hindi ] –
अभियुक्त और
प्रतिभुओं का बंधपत्र—
(1) किसी व्यक्ति के जमानत पर छोड़े जाने या अपने बंधपत्र पर
छोड़े जाने के पूर्व उस व्यक्ति द्वारा, और जब वह जमानत पर छोड़ा जाता है तब एक या अधिक पर्याप्त प्रतिभुओं
द्वारा इतनी धनराशि के लिए जितनी, यथास्थिति, पुलिस अधिकारी या न्यायालय पर्याप्त
समझे, इस शर्त का बंधपत्र निष्पादित किया
जाएगा कि ऐसा व्यक्ति बंधपत्र में वर्णित समय और स्थान पर हाजिर होगा और जब तक, यथास्थिति, पुलिस अधिकारी या न्यायालय द्वारा
अन्यथा निदेश नहीं दिया जाता है इस प्रकार बराबर हाजिर होता रहेगा।
(2) जहां किसी व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने के लिए कोई शर्त
अधिरोपित की गई है, वहां
बंधपत्र में वह शर्त भी अंतर्विष्ट होगी।
(3) यदि मामले से ऐसा अपेक्षित है तो बंधपत्र द्वारा, जमानत पर छोड़े गए व्यक्ति को अपेक्षा
किए जाने पर आरोप का उत्तर देने के लिए उच्च न्यायालय, सेशन न्यायालय या अन्य न्यायालय में
हाजिर होने के लिए भी आबद्ध किया जाएगा।
(4) यह अवधारित करने के प्रयोजन के लिए कि क्या प्रतिभू उपयुक्त
या पर्याप्त है अथवा नहीं, न्यायालय
शपथपत्रों को प्रतिभुओं के पर्याप्त या उपयुक्त होने के बारे में उनमें
अन्तर्विष्ट बातों के सबूत के रूप में, स्वीकार कर सकता है अथवा यदि न्यायालय आवश्यक समझे तो वह ऐसे
पर्याप्त या उपयुक्त होने के बारे में या तो स्वयं जांच कर सकता है या अपने
अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट से जांच करवा सकता है।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 442 | Section 442 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 442 in
Hindi ] –
अभिरक्षा से
उन्मोचन–
(1) ज्यों ही बंधपत्र निष्पादित कर दिया जाता है त्यों ही वह
व्यक्ति, जिसकी हाजिरी के लिए वह निष्पादित
किया गया है,
छोड़ दिया जाएगा और जब वह जेल
में हो तब उसकी जमानत मंजूर करने वाला न्यायालय जेल के भारसाधक अधिकारी को उसके
छोड़े जाने के लिए आदेश जारी करेगा और वह अधिकारी आदेश की प्राप्ति पर उसे छोड़
देगा।
(2) इस धारा की या धारा 436 या धारा 437 की कोई भी बात किसी ऐसे व्यक्ति के छोड़े जाने की अपेक्षा करने
वाली न समझी जाएगी जो ऐसी बात के लिए निरुद्ध किए जाने का भागी है जो उस बात से
भिन्न है जिसके बारे में बंधपत्र निष्पादित किया गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 443 | Section 443 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 443 in
Hindi ] –
जब पहले ली गई
जमानत अपर्याप्त है तब पर्याप्त जमानत के लिए आदेश देने की शक्ति-
यदि भूल या कपट के कारण या अन्यथा अपर्याप्त प्रतिभू स्वीकार
कर लिए गए हैं अथवा यदि वे बाद में अपर्याप्त हो जाते हैं तो न्यायालय यह निदेश
देते हुए गिरफ्तारी का वारण्ट जारी कर सकता है कि जमानत पर छोड़े गए व्यक्ति को
उसके समक्ष लाया जाए और उसे पर्याप्त प्रतिभू देने का आदेश दे सकता है और उसके ऐसा
करने में असफल रहने पर उसे जेल सुपुर्द कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 444 | Section 444 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 444 in
Hindi ] –
प्रतिभुओं का उन्मोचन–
(1) जमानत पर छोड़े गए व्यक्ति की हाजिरी और उपस्थिति के लिए
प्रतिभुओं में से सब या कोई बंधपत्र के या तो पूर्णतया या वहां तक, जहां तक वह आवेदकों से संबंधित है, प्रभावोन्मुक्त किए जाने के लिए किसी
समय मजिस्ट्रेट से आवेदन कर सकते हैं।
(2) ऐसा आवेदन किए जाने पर मजिस्ट्रेट यह निदेश देते हुए
गिरफ्तारी का वारण्ट जारी करेगा कि ऐसे छोड़े गए व्यक्ति को उसके समक्ष लाया जाए।
(3) वारण्ट के अनुसरण में ऐसे व्यक्ति के हाजिर होने पर या उसके
स्वेच्छया अभ्यर्पण करने पर मजिस्ट्रेट बंधपत्र के या तो पूर्णतया या, वहां तक, जहां तक कि वह आवेदकों से संबंधित है, प्रभावोन्मुक्त किए जाने का निदेश
देगा और ऐसे व्यक्ति से अपेक्षा करेगा कि वह अन्य पर्याप्त प्रतिभू दे और यदि वह
ऐसा करने में असफल रहता है तो उसे जेल सुपुर्द कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 445 | Section 445 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 445 in
Hindi ] –
मुचलके के बजाय
निक्षेप-
जब किसी व्यक्ति से किसी न्यायालय या अधिकारी द्वारा
प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा की जाती है तब वह
न्यायालय या अधिकारी, उस दशा
में जब वह बंधपत्र सदाचार के लिए नहीं है उसे ऐसे बंधपत्र के निष्पादन के बदले में
इतनी धनराशि या इतनी रकम के सरकारी वचन पत्र, जितनी वह न्यायालय या अधिकारी नियत करे, निक्षिप्त करने की अनुज्ञा दे सकता
है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 446 | Section 446 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 446 in
Hindi ] –
प्रक्रिया, जब बंधपत्र समपहृत कर लिया जाता है—
(1) जहाँ इस संहिता के अधीन कोई बंधपत्र किसी न्यायालय के समक्ष
हाजिर होने या सम्पत्ति पेश करने के लिए है और उस न्यायालय या किसी ऐसे न्यायालय
को, जिसे तत्पश्चात् मामला अंतरित किया
गया है, समाधानप्रद रूप में यह साबित कर दिया
जाता है कि बंधपत्र समपहृत हो चुका है,
अथवा जहां इस संहिता के अधीन किसी अन्य बंधपत्र की बाबत उस
न्यायालय को जिसके द्वारा बंधपत्र लिया गया था, या ऐसे किसी न्यायालय को, जिसे तत्पश्चात् मामला अंतरित किया गया है, या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के किसी
न्यायालय को,
समाधानप्रद रूप में यह साबित कर
दिया जाता है कि बंधपत्र समपहत हो चुका है,
वहां न्यायालय ऐसे सबूत के आधारों को अभिलिखित करेगा और ऐसे
बंधपत्र से आबद्ध किसी व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह उसकी शास्ति दे या कारण
दर्शित करे कि वह क्यों नहीं दी जानी चाहिए।
स्पष्टीकरण-न्यायालय के समक्ष हाजिर होने या
सम्पत्ति पेश करने के लिए बंधपत्र की किसी शर्त का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके
अंतर्गत ऐसे न्यायालय के समक्ष, जिसको
तत्पश्चात् मामला अन्तरित किया जाता है, यथास्थिति, हाजिर
होने या सम्पत्ति पेश करने की शर्त भी है।
(2) यदि पर्याप्त कारण दर्शित नहीं किया जाता है और शास्ति नहीं
दी जाती है तो न्यायालय उसकी वसूली के लिए अग्रसर हो सकेगा मानो वह शास्ति इस
संहिता के अधीन उसके द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो :
परन्तु जहां ऐसी शास्ति नहीं दी जाती है और वह पूर्वोक्त रूप
में वसूल नहीं की जा सकती है वहाँ, प्रतिभू
के रूप में इस प्रकार आबद्ध व्यक्ति, उस न्यायालय के आदेश से, जो शास्ति की वसूली का आदेश करता है, सिविल कारागार में कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा।]
(3) न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करने के
पश्चात्] उल्लिखित शास्ति के किसी प्रभाग का परिहार और केवल भाग के संदाय का
प्रवर्तन कर सकता है।
(4) जहां बंधपत्र के लिए कोई प्रतिभू बंधपत्र का समपहरण होने के
पूर्व मर जाता है वहां उसकी संपदा, बंधपत्र
के बारे में सारे दायित्व से उन्मोचित हो जाएगी।
(5) जहाँ कोई व्यक्ति, जिसने धारा 106 या
धारा 117 या धारा 360 के अधीन प्रतिभूति दी है, किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया
जाता है, जिसे करना उसके बंधपत्र की या उसके
बंधपत्र के बदले में धारा 448 के
अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों का भंग होता है, वहां उस न्यायालय के निर्णय की, जिसके द्वारा वह ऐसे अपराध के लिए
दोषसिद्ध किया गया था, प्रमाणित
प्रतिलिपि उसके प्रतिभू या प्रतिभुओं के विरुद्ध इस धारा के अधीन सब कार्यवाहियों
में साक्ष्य के रूप में उपयोग में लाई जा सकती है और यदि ऐसी प्रमाणित प्रतिलिपि
इस प्रकार उपयोग में लाई जाती है तो, जब तक प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि ऐसा
अपराध उसके द्वारा किया गया था।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 447 | Section 447 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 447 in
Hindi ] –
प्रतिभू के
दिवालिया हो जाने या उसकी मृत्यु हो जाने या बंधपत्र का समपहरण हो जाने की दशा में
प्रक्रिया-
जब इस संहिता के अधीन बंधपत्र का कोई प्रतिभू दिवालिया हो
जाता है या मर जाता है अथवा जब किसी बंधपत्र का धारा 446 के उपबंधों के अधीन समपहरण हो जाता है
तब वह न्यायालय,
जिसके आदेश से ऐसा बंधपत्र लिया
गया था या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को, जिससे ऐसी प्रतिभूति मांगी गई थी, यह आदेश दे सकता है कि वह मूल आदेश के
निदेशों के अनुसार नई प्रतिभूति दे और यदि ऐसी प्रतिभूति न दी जाए तो वह न्यायालय
या मजिस्ट्रेट ऐसे कार्यवाही कर सकता है मानो उस मूल आदेश के अनुपालन में
व्यतिक्रम किया गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 448 | Section 448 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 448 in
Hindi ] –
अवयस्क से
अपेक्षित बंधपत्र-
यदि बंधपत्र निष्पादित करने के लिए किसी न्यायालय या अधिकारी
द्वारा अपेक्षित व्यक्ति अवयस्क है तो वह न्यायालय या अधिकारी उसके बदले में केवल
प्रतिभू या प्रतिभुओं द्वारा निष्पादित बंधपत्र स्वीकार कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 449 | Section 449 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 449 in
Hindi ] –
धारा 446 के अधीन आदेशों से अपील-
धारा 446 के
अधीन किए गए सभी आदेशों की निम्नलिखित को अपील होगी, अर्थात् :
(i) किसी मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए आदेश की दशा में सेशन
न्यायाधीश ;
(ii) सेशन न्यायालय द्वारा किए गए आदेश की दशा में वह न्यायालय
जिसे ऐसे न्यायालय द्वारा किए गए आदेश की अपील होती है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 450 | Section 450 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 450 in
Hindi ] –
कुछ मुचलकों पर
देय रकम का उग्रहण करने का निदेश देने की शक्ति-
उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी मजिस्ट्रेट को निदेश दे
सकता है कि वह उस रकम को उद्गृहीत करे जो ऐसे उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय में
हाजिर और उपस्थित होने के लिए किसी बंधपत्र पर देय है।
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