Thursday, 4 January 2018

निर्वसीयती उत्तराधिकार

सहदायिकी सम्पत्ति में के हित का न्यागमन
(1) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ पर और से, मिताक्षरा विधि द्वारा शासित संयुक्त हिन्दू परिवार में, सहदायिक की पुत्री —
(क) जन्म से उसी ढंग में अपने अधिकार में सहदायिक होगी, जैसे पुत्र,
(ख) को सहदायिकी सम्पति में वही अधिकार होगा, जैसा उसे होता, यदि वह पुत्र होता,
(ग) उक्त सहदायिकी सम्पति के सम्बन्ध में उन्हीं दायित्वों के अध्यधीन होगी, जैसे पुत्र का दायित्व है।
और हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का कोई निदेश सहदायिक की पुत्री के निर्देश को शामिल करने वाला माना जायेगा; परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई चीज सम्पति के किसी विभाजन या वसीयती विन्यास को, जो दिसम्बर, 2004 के 20वें दिन के पूर्व किया गया है, शामिल करके किसी विन्यास या अन्य संक्रमण को प्रभावित नहीं करेगी या अविधिमान्य नहीं बनायेगी।
(2) कोई सम्पति, जिसमें महिला हिन्दू उपधारा (1) के परिणामस्वरूप हकदार होती है, उसके द्वारा सहदायिकी स्वामित्व की घटना के साथ धारण की जायेगी और इस अधिनियम या तत्समय प्रवर्तित किस अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी चीज के होते हुये भी वसीयती विन्यास द्वारा उसके द्वारा व्ययन करने योग्‍य सम्पति मानी जायेगी।
(3) जहाँ हिन्दू की मृत्यु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के बाद होती है वहाँ मिताक्षरा विधि द्वारा शासित संयुक्त हिन्दू परिवार की सम्पत्ति में उसका हित इस अधिनियम के अधीन वसीयती या निवसीयती उत्तराधिकार द्वारा, यथास्थिति, निगमित होगा औ उत्तरजीविता के द्वारा नहीं; और सहदायिकी सम्पति विभाजित की गयी मानी जायेगी, मानों विभाजन् हुआ था और, -
(क) पुत्री को वही अंश आवंटित किया जाता है, जो पुत्र को आवंटित किया जाता है,
(ख) पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री का अंश, जिसे वे प्राप्त करते, यदि वे विभाजन के समय जीवित् रहते, ऐसे पूर्व मृत पुत्र के या ऐसे पूर्व मृत पुत्री के उत्तरजीवी सन्तान को आवंटित किय जायेगा, और
(ग) पूर्व मृत पुत्र के या पूर्व मृत पुत्री के पूर्व मृत सन्तान का अंश, जिसे ऐसी सन्तान प्राप्त करता, यदि वह विभाजन के समय जीवित रहता या रहती, पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री के, यथास्थिति, के पूर्व मृत सन्तान की सन्तान को आवंटित किया जायेगा।
स्पष्टीकरण
इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का हित सम्पत्तिमें वह अंश समझा जायेगा जो उसे विभाजन में मिलता, यदि उसकी अपनी मृत्यु में अव्यवहित पूर्व सम्पत्ति का विभाजन किया गया होता इस बात का विचार किये बिना कि वह विभाजन का दावा करने का हकदार था या नहीं।
(4) हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के बाद, कोई न्यायालय पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध उसके पिता, पितामह-प्रपितामह से किसी बकाया ऋण की वसूली के लिये एकमात्र हिन्दू विधि के अधीन पवित्र कर्तव्य के आधार पर किसी ऐसे ऋण का उन्मोचन करने के लिए ऐसे पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के हिन्दू विधि के अधीन पवित्र आबद्धता के आधार पर कार्यवाही करने के किसी अधिकार को मान्यता नहीं देगा; परन्तु हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ के पूर्व लिये गये किसी ऋण के मामले में इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई चीज -
(क) पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरुद्ध, यथास्थिति, कार्यवाही करने के लिये किसी लेनदार के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा, या
(ख) किसी ऐसे ऋण के सम्बन्ध में या ऋण की तुष्टि में किये गये किसी अन्य संक्रमण को प्रभावित नहीं करेगा और कोई ऐसा अधिकार या अन्य संक्रमण उसी ढंग में और उसी विस्तार तक पवित्र कर्तव्य के नियम के अधीन प्रवर्तनीय होगा, जैसे यह प्रवर्तनीय होता, मानों हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 प्रवर्तित किया गया है।
स्पष्टीकरण - खण्ड (ख) के प्रयोजनों के लिये अभिव्यक्ति 'पुत्र', 'पौत्र' या 'प्रपौत्र' को पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र को, यथास्थिति निर्दिष्ट करने वाला माना जायेगा, जिसे हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रारम्भ पूर्व जन्मा था या दत्तक लिया गया था।
(5) इस धारा में अंतर्विष्ट कोई चीज उस विभाजन को लागू नहीं होगी, जो दिसम्बर, 2004 के 20वें दिन के पूर्व हुआ था।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये 'विभाजन' से रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (1908 का 16) के अधीन सम्यक् से पंजीकृत विभाजन विलेख के निष्पादन द्वारा किया गया कोई विभाजन, न्यायालय के डिक्री द्वारा किया गया विभाजन अभिप्रेत है।


शैलेश जैन, एडव्‍होकेट
मोबाईल नम्‍बर 09479836178

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