दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 1 | Section 1 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 1 in Hindi ] –
संक्षिप्त
नाम, विस्तार और प्रारंभ-–
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 है।
(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय संपूर्ण भारत पर
है : परंतु इस संहिता के अध्याय 8, 10 और 11 से
संबंधित उपबंधों से भिन्न, उपबंध,
(क) नागालैंड राज्य को
(ख) जनजाति क्षेत्रों को. लागू नहीं होंगे, किंतु संबद्ध राज्य सरकार अधिसूचना
द्वारा, ऐसे उपबंधों या उनमें से किसी को, यथास्थिति, संपूर्ण नागालैंड राज्य या ऐसे जनजाति
क्षेत्र अथवा उनके किसी भाग पर ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक या पारिणामिक उपान्तरों सहित लागू कर सकती है जो अधिसूचना
में विनिर्दिष्ट किए जाएं।
स्पष्टीकरण-इस धारा में, “जनजाति क्षेत्र से वे राज्य क्षेत्र
अभिप्रेत हैं जो 1972 की
जनवरी के 21वें दिन के ठीक पहले, संविधान की षष्ठ अनुसूची के पैरा 20 में यथानिर्दिष्ट असम के जनजाति
क्षेत्रों में सम्मिलित थे और जो शिलांग नगरपालिका की स्थानीय सीमाओं के भीतर के
क्षेत्रों से भिन्न हैं।
(3) यह 1974 के
अप्रैल के प्रथम दिन प्रवृत्त होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2 | Section 2 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 2 in Hindi ] –
परिभाषाएं ––
इस संहिता में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,
(क) “जमानतीय
अपराध” से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो प्रथम
अनुसूची में जमानतीय के रूप में दिखाया गया है या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि
द्वारा जमानतीय बनाया गया है और “अजमानतीय
अपराध से कोई अन्य अपराध अभिप्रेत है :
(ख) “आरोप” के अंतर्गत, जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हों, आरोप का कोई भी शीर्ष है।
(ग) “संज्ञेय
अपराध से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और “संज्ञेय मामला से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमें, पुलिस अधिकारी प्रथम अनुसूची के या
तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अनुसार वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर सकता है;
(घ) “परिवाद” से इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट
द्वारा कार्रवाई किए जाने की दष्टि से मौखिक या लिखित रूप में उससे किया गया यह
अभिकथन अभिप्रेत है कि किसी व्यक्ति ने, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, अपराध किया है, किंतु
इसके अंतर्गत पुलिस रिपोर्ट नहीं है।
स्पष्टीकरण-ऐसे किसी मामले में, जो अन्वेषण के पश्चात् किसी असंज्ञेय
अपराध का किया जाना प्रकट करता है. पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट परिवाद
समझी जाएगी और वह पुलिस अधिकारी जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट की गई है, परिवादी समझा जाएगा;
(ङ) “उच्च
न्यायालय”
से अभिप्रेत है.
(1) किसी राज्य के संबंध में, उस राज्य का उच्च न्यायालय ;
(ii) किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में जिस पर किसी राज्य
के उच्च न्यायालय की अधिकारिता का विस्तार विधि द्वारा किया गया है, वह उच्च न्यायालय ;
(iii) किसी अन्य संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, भारत के उच्चतम न्यायालय से भिन्न, उस संघ राज्यक्षेत्र के लिए दाण्डिक
अपील का सर्वोच्च न्यायालय ;
(च) “भारत” से वे राज्यक्षेत्र अभिप्रेत हैं जिन
पर इस संहिता का विस्तार है;
(छ) “जांच” से, अभिप्रेत है विचारण से भिन्न, ऐसी प्रत्येक जांच जो इस संहिता के
अधीन मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाए:
(ज) “अन्वेषण
के अंतर्गत वे सब कार्यवाहियां हैं जो इस संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा या
(मजिस्ट्रेट से भिन्न) किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा जो मजिस्ट्रेट द्वारा इस
निमित्त प्राधिकृत किया गया है. साक्ष्य एकत्र करने के लिए की जाएं:
(झ) “न्यायिक
कार्यवाही के अंतर्गत कोई ऐसी कार्यवाही है जिसके अनुक्रम में साक्ष्य वैध रूप से
शपथ पर लिया जाता है या लिया जा सकता है:
(ञ) किसी न्यायालय या मजिस्ट्रेट के संबंध में “स्थानीय अधिकारिता से वह स्थानीय
क्षेत्र अभिप्रेत है जिसके भीतर ऐसा न्यायालय या मजिस्ट्रेट इस संहिता के अधीन
अपनी सभी या किन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकता है और ऐसे स्थानीय क्षेत्र में
संपूर्ण राज्य या राज्य का कोई भाग समाविष्ट हो सकता है जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे :
(ट) “महानगर
क्षेत्र” से वह क्षेत्र अभिप्रेत है जो धारा 8 के अधीन महानगर क्षेत्र घोषित किया
गया है या घोषित समझा गया है;
(ठ) “असंज्ञेय
अपराध से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और “असंज्ञेय मामला” से
ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमें पुलिस अधिकारी को वारण्ट के बिना गिरफ्तारी करने का
प्राधिकार नहीं होता है;
(ड) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना
अभिप्रेत है;
(ढ) “अपराध” से कोई ऐसा कार्य या लोप अभिप्रेत है
जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा दण्डनीय बना दिया गया है और इसके अंतर्गत कोई
ऐसा कार्य भी है जिसके बारे में पशु अतिचार अधिनियम, 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है:
(ण) “पुलिस
थाने का भारसाधक अधिकारी के अंतर्गत, जब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी थाने से अनुपस्थित हो या बीमारी
या अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तब थाने में उपस्थित ऐसा पुलिस
अधिकारी है,
जो ऐसी अधिकारी से पंक्ति में
ठीक नीचे है और कान्स्टेबल की पंक्ति से ऊपर है, या जब राज्य सरकार ऐसा निदेश दे तब, इस प्रकार उपस्थित कोई अन्य पुलिस
अधिकारी भी है;
(त) “स्थान” के अंतर्गत गृह, भवन, तम्बू, यान और जलयान भी हैं;
(थ) किसी न्यायालय में किसी कार्यवाही के बारे में प्रयोग किए जाने
पर “प्लीडर से, ऐसे न्यायालय में तत्समय प्रवृत्त
किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विधि-व्यवसाय करने के लिए प्राधिकृत व्यक्ति
अभिप्रेत है,
और इसके अंतर्गत कोई भी अन्य
व्यक्ति है,
जो ऐसी कार्यवाही में कार्य
करने के लिए न्यायालय की अनुज्ञा से नियुक्त किया गया है।
(द) “पुलिस
रिपोर्ट” से पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 173 की उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी गई
रिपोर्ट अभिप्रेत है:
(घ) “पुलिस
थाना से कोई भी चौकी या स्थान अभिप्रेत है जिसे राज्य सरकार द्वारा साधारणतया या
विशेषतया पुलिस थाना घोषित किया गया है और इसके अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा इस
निमित्त विनिर्दिष्ट कोई स्थानीय क्षेत्र भी हैं :
(न) “विहित” से इस संहिता के अधीन बनाए गए नियमों
द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(प) “लोक
अभियोजक से धारा 24 के
अधीन नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत लोक अभियोजक के निदेशों के अधीन
कार्य करने वाला व्यक्ति भी है;
(फ) “उपखण्ड” से जिले का उपखण्ड अभिप्रेत है;
(ब) “समन-मामला” से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो किसी
अपराध से संबंधित है और जो वारण्ट-मामला नहीं है;
(बक) “पीड़ित” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे उस
कार्य या लोप के कारण कोई हानि या क्षति कारित हुई है जिसके लिए अभियुक्त व्यक्ति
पर आरोप लगाया गया है और “पीड़ित
पद के अंतर्गत उसका संरक्षक या विधिक वारिस भी है;]
(भ) “वारण्ट-मामला” से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की
अवधि के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध से संबंधित है;
(म) उन शब्दों और पदों के, जो इसमें प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं किंतु भारतीय दण्ड
संहिता (1860
का 45) में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो उनके उस संहिता में
हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 3 | Section 3 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 3 in Hindi ] –
निर्देशों
का अर्थ लगाना-–
(1) इस संहिता में-
(क) विशेषक शब्दों के बिना मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का अर्थ, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न
हो,
(i) महानगर क्षेत्र के बाहर किसी क्षेत्र के संबंध में न्यायिक
मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश के रूप में लगाया जाएगा;
(ii) महानगर क्षेत्र के संबंध में महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति
निर्देश के रूप में लगाया जाएगा;
(ख) द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का महानगर क्षेत्र के
बाहर किसी क्षेत्र के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह द्वितीय वर्ग न्यायिक
मजिस्ट्रेट के प्रति और महानगर क्षेत्र के संबंध में महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति
निर्देश है;
(ग) प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का,
(i) किसी महानगर क्षेत्र के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह
उस क्षेत्र में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश
है :
(ii) किसी अन्य क्षेत्र के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह
उस क्षेत्र में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के
प्रति निर्देश है;
(घ ) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का किसी महानगर
क्षेत्र के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में अधिकारिता का
प्रयोग करने वाले मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश है।
(2) इस संहिता में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय के
प्रति निर्देश का महानगर क्षेत्र के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस
क्षेत्र के महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय के प्रति निर्देश है।
(3) जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो इस संहिता के
प्रारंभ के पूर्व पारित किसी अधिनियमिति में, –
(क) प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा
कि वह प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश है :
(ख) द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट या तृतीय वर्ग मजिस्ट्रेट के प्रति
निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के प्रति
निर्देश है ।
(ग) प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट या मुख्य प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट के
प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह क्रमशः महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य
महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश है;
(घ ) महानगर क्षेत्र में सम्मिलित किसी क्षेत्र के प्रति निर्देश का
यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह ऐसे महानगर क्षेत्र के प्रति निर्देश है, और प्रथम वर्ग या द्वितीय वर्ग
मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का ऐसे क्षेत्र के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि
वह उस क्षेत्र में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति
निर्देश है।
(4) जहाँ इस संहिता से भिन्न किसी विधि के अधीन, किसी मजिस्ट्रेट द्वारा किए जा सकने
वाले कृत्य ऐसे मामलों से संबंधित हैं,
(क) जिनमें साक्ष्य का अधिमूल्यन अथवा सूक्ष्म परीक्षण या कोई ऐसा
विनिश्चय करना अंतर्वलित है जिससे किसी व्यक्ति को किसी दंड या शास्ति की अथवा
अन्वेषण, जांच या विचारण होने तक अभिरक्षा में
निरोध की संभावना हो सकती है या जिसका प्रभाव उसे किसी न्यायालय के समक्ष विचारण
के लिए भेजना होगा, वहां वे
कृत्य इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किए जा
सकते हैं ;
या
(ख) जो प्रशासनिक या कार्यपालक प्रकार के हैं जैसे अनुज्ञप्ति का अनुदान, अनुज्ञप्ति का निलंबन या रद्द किया
जाना, अभियोजन की मंजूरी या अभियोजन वापस
लेना, वहां वे यथापूर्वोक्त के अधीन रहते
हुए, कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा किए जा
सकते हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 4 | Section 4 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 4 in Hindi ] –
भारतीय दंड
संहिता और अन्य विधियों के अधीन अपराधों का विचार-–
(1) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के
अधीन सब अपराधों का अन्वेषण, जांच, विचारण और उनके संबंध में अन्य
कार्यवाही इसमें इसके पश्चात् अन्तर्विष्ट उपबंधों के अनुसार की जाएगी।
(2) किसी अन्य विधि के अधीन सब अपराधों का अन्वेषण, जांच, विचारण और उनके संबंध में अन्य
कार्यवाही इन्हीं उपबंधों के अनुसार किंतु ऐसे अपराधों के अन्वेषण, जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही की रीति या
स्थान का विनियमन करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के अधीन रहते हुए, की जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 5 | Section 5 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 5 in Hindi ] –
व्यावृत्ति—
इससे प्रतिकूल किसी विनिर्दिष्ट उपबंध के अभाव में इस संहिता
की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी विशेष या स्थानीय विधि पर, या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि
द्वारा प्रदत्त किसी विशेष अधिकारिता या शक्ति या उस विधि द्वारा विहित किसी विशेष
प्रक्रिया पर प्रभाव नहीं डालेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 6 | Section 6 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 6 in Hindi ] –
दंड न्यायालयों
के वर्ग-
उच्च न्यायालयों और इस संहिता से भिन्न किसी विधि के अधीन
गठित न्यायालयों के अतिरिक्त, प्रत्येक
राज्य में निम्नलिखित वर्गों के दंड न्यायालय होंगे, अर्थात् :
(1) सेशन न्यायालय:
(ii) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट और किसी महानगर क्षेत्र में
महानगर मजिस्ट्रेट ;
(iii) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट ; और
(iv) कार्यपालक मजिस्ट्रेट।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 7 | Section 7 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 7 in Hindi ] –
प्रादेशिक
खंड-
(1) प्रत्येक राज्य एक सेशन खंड होगा या उसमें सेशन खंड होंगे और
इस संहिता के प्रयोजनों के लिए प्रत्येक सेशन खंड एक जिला होगा या उसमें जिले
होंगे :
परंतु प्रत्येक महानगर क्षेत्र, उक्त प्रयोजनों के लिए, एक पृथक् सेशन खंड और जिला होगा।
(2) राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, ऐसे खंडों और जिलों की सीमाओं या
संख्या में परिवर्तन कर सकती है।
(3) राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, किसी जिले को उपखंडों में विभाजित कर
सकती है और ऐसे उपखंडों की सीमाओं या संख्या में परिवर्तन कर सकती है।
(4) किसी राज्य में इस संहिता के प्रारंभ के समय विद्यमान सेशन
खंड, जिले और उपखंड इस धारा के अधीन बनाए
गए समझे जाएंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 8 | Section 8 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 8 in Hindi ] –
महानगर
क्षेत्र–
(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, घोषित
कर सकती है कि उस तारीख से ; जो
अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, राज्य
का कोई क्षेत्र जिसमें ऐसा नगर या नगरी समाविष्ट है जिसकी जनसंख्या दस लाख से अधिक
है. इस संहिता के प्रयोजनों के लिए महानगर क्षेत्र होगा।
(2) इस संहिता के प्रारंभ से, मुंबई, कलकत्ता
और मद्रास प्रेसिडेन्सी नगरों में से प्रत्येक और अहमदाबाद नगर, उपधारा (1) के अधीन महानगर क्षेत्र घोषित किए गए
समझे जाएंगे।
(3) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, महानगर
क्षेत्र की सीमाओं को बढ़ा सकती है, कम कर सकती है या परिवर्तित कर सकती है, किंतु ऐसी कमी या परिवर्तन इस प्रकार
नहीं किया जाएगा कि उस क्षेत्र की जनसंख्या दस लाख से कम रह जाए।
(4) जहां किसी क्षेत्र के महानगर क्षेत्र घोषित किए जाने या
घोषित समझे जाने के पश्चात् ऐसे क्षेत्र की जनसंख्या दस लाख से कम हो जाती है वहां
ऐसा क्षेत्र,
ऐसी तारीख को और उससे, जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा इस निमित्त
विनिर्दिष्ट करे, महानगर
क्षेत्र नहीं रहेगा ; किंतु
महानगर क्षेत्र न रहने पर भी ऐसी जांच, विचारण या अपील जो ऐसे न रहने के ठीक पहले ऐसे क्षेत्र में किसी
न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित थी इस संहिता के अधीन इस प्रकार निपटाई
जाएगी मानो वह महानगर क्षेत्र हो।
(5) जहां राज्य सरकार उपधारा (3) के अधीन, किसी महानगर क्षेत्र की सीमाओं को कम
करती है या परिवर्तित करती है वहां ऐसी जांच, विचारण या अपील पर जो ऐसे कम करने या परिवर्तन के ठीक पहले किसी
न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित थी ऐसे कम करने या परिवर्तन का कोई प्रभाव
नहीं होगा और ऐसी प्रत्येक जांच, विचारण
या अपील इस संहिता के आधीन उसी प्रकार निपटाई जाएगी मानो ऐसी कमी या परिवर्तन न
हुआ हो।
स्पष्टीकरण—इस धारा में, “जनसंख्या” पद से नवीनतम पूर्ववर्ती जनगणना में
यथा अभिनिश्चित वह जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो चुके
हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 9 | Section 9 in
The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 9 in Hindi ] –
सेशन
न्यायालय-
(1) राज्य सरकार प्रत्येक सेशन खंड के लिए एक सेशन न्यायालय
स्थापित करेगी। (2) प्रत्येक
सेशन न्यायालय में एक न्यायाधीश पीठासीन होगा, जो उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
(3) उच्च न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीशों और सहायक सेशन
न्यायाधीशों को भी सेशन न्यायालय में अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए नियुक्त कर
सकता है।
(4) उच्च न्यायालय द्वारा एक सेशन खंड के सेशन न्यायाधीश को
दूसरे खंड का अपर सेशन न्यायाधीश भी नियुक्त किया जा सकता है और ऐसी अवस्था में वह
मामलों को निपटाने के लिए दूसरे खंड के ऐसे स्थान या स्थानों में बैठ सकता है
जिनका उच्च न्यायालय निदेश दे।
(5) जहां किसी सेशन न्यायाधीश का पद रिक्त होता है वहां उच्च न्यायालय
किसी ऐसे अर्जेन्ट आवेदन के, जो
उस सेशन न्यायालय के समक्ष किया जाता है या लंबित है, अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा, अथवा यदि अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश
नहीं है तो सेशन खंड के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निपटाए जाने के लिए
व्यवस्था कर सकता है और ऐसे प्रत्येक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को ऐसे आवेदन पर कार्यवाही करने की
अधिकारिता होगी।
(6) सेशन न्यायालय सामान्यतः अपनी बैठक ऐसे स्थान या स्थानों पर
करेगा जो उच्च न्यायालय अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे; किंतु यदि किसी विशेष मामले में, सेशन न्यायालय की यह राय है कि सेशन
खंड में किसी अन्य स्थान में बैठक करने से पक्षकारों और साक्षियों को सुविधा होगी
तो वह, अभियोजन और अभियुक्त की सहमति से उस
मामले को निपटाने के लिए या उसमें साक्षी या साक्षियों की परीक्षा करने के लिए उस
स्थान पर बैठक कर सकता है।
स्पष्टीकरण-इस संहिता के प्रयोजनों के लिए
नियुक्ति के अंतर्गत सरकार द्वारा संघ या राज्य के कार्यकलापों के संबंध में किसी
सेवा या पद पर किसी व्यक्ति की प्रथम नियुक्ति, पद-स्थापना या पदोन्नति नहीं है जहां किसी विधि के अधीन ऐसी
नियुक्ति,
पदस्थापना या पदोन्नति सरकार द्वारा
किए जाने के लिए अपेक्षित है
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 10 | Section 10
in The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 10 in Hindi ] –
सहायक सेशन
न्यायाधीशों का अधीनस्थ होना–
(1) सब सहायक सेशन न्यायाधीश उस सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होंगे
जिसके न्यायालय में वे अधिकारिता का प्रयोग करते हैं।
(2) सेशन न्यायाधीश ऐसे सहायक सेशन न्यायाधीशों में कार्य के
वितरण के बारे में इस संहिता से संगत नियम, समय-समय पर बना सकता है।
(3) सेशन न्यायाधीश, अपनी अनुपस्थिति में या कार्य करने में असमर्थता की स्थिति में, किसी अर्जेण्ट आवेदन के अपर या सहायक
सेशन न्यायाधीश द्वारा, या यदि
कोई अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश न हो तो, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निपटाए जाने के लिए भी व्यवस्था
कर सकता है ;
और यह समझा जाएगा कि ऐसे
प्रत्येक न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को ऐसे आवेदन पर कार्यवाही करने की अधिकारिता
है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 11 | Section 11
in The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 11 in Hindi ] –
न्यायिक
मजिस्ट्रेटों के न्यायालय–
(1) प्रत्येक जिले में (जो महानगर क्षेत्र नहीं है। प्रथम वर्ग
और द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेटों के इतने न्यायालय, ऐसे स्थानों में स्थापित किए जाएंगे
जितने और जो राज्य सरकार, उच्च
न्यायालय से परामर्श के पश्चात् अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें:
[परंतु राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात् किसी
स्थानीय क्षेत्र के लिए, प्रथम
वर्ग या द्वितीय वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट के एक या अधिक विशेष न्यायालय, किसी विशेष मामले या विशेष वर्ग के
मामलों का विचारण करने के लिए स्थापित कर सकती है और जहां कोई ऐसा विशेष न्यायालय
स्थापित किया जाता है उस स्थानीय क्षेत्र में मजिस्ट्रेट के किसी अन्य न्यायालय को
किसी ऐसे मामले या ऐसे वर्ग के मामलों का विचारण करने की अधिकारिता नहीं होगी, जिनके विचारण के लिए न्यायिक
मजिस्ट्रेट का ऐसा विशेष न्यायालय स्थापित किया गया है।]
(2) ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा
नियुक्त किए जाएंगे।
(3) उच्च न्यायालय, जब कभी उसे यह समीचीन या आवश्यक प्रतीत हो, किसी सिविल न्यायालय में न्यायाधीश के
रूप में कार्यरत राज्य की न्यायिक सेवा के किसी सदस्य को प्रथम वर्ग या द्वितीय
वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 12 | Section 12
in The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 12 in Hindi ] –
मुख्य
न्यायिक मजिस्ट्रेट और अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, आदि–
(1) उच्च न्यायालय, प्रत्येक जिले में (जो महानगर क्षेत्र नहीं है) एक प्रथम वर्ग
न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगा।
(2) उच्च न्यायालय किसी प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपर
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है और ऐसे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के
अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की सब
या कोई शक्तियां, जिनका
उच्च न्यायालय निदेश दे, होंगी।
(3) (क) उच्च न्यायालय आवश्यकतानुसार किसी उपखंड में किसी प्रथम
वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को उपखंड न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में पदाभिहित कर सकता
है और उसे इस धारा में विनिर्दिष्ट उत्तरदायित्वों से मुक्त कर सकता है।
(ख) प्रत्येक उपखंड न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट
के साधारण नियंत्रण के अधीन रहते हुए उपखंड में (अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों
से भिन्न) न्यायिक मजिस्ट्रेटों के काम पर पर्यवेक्षण और नियंत्रण की ऐसी शक्तियां
भी होंगी,
जैसी उच्च न्यायालय साधारण या
विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, और वह उनका प्रयोग करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 13 | Section 13
in The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 13 in Hindi ] –
विशेष
न्यायिक मजिस्ट्रेट–
(1) यदि केंद्रीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के
लिए अनुरोध करती है तो उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को जो सरकार के अधीन कोई पद
धारण करता है या जिसने कोई पद धारण किया है, किसी स्थानीय क्षेत्र में, जो महानगर क्षेत्र नहीं है, विशेष मामलों या विशेष वर्ग के मामलों के संबंध में द्वितीय वर्ग
न्यायिक मजिस्ट्रेट को इस संहिता द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त या प्रदत्त की जा
सकने वाली सभी या कोई शक्तियां प्रदत्त कर सकता है :
परंतु ऐसी कोई शक्ति किसी व्यक्ति को प्रदान नहीं की जाएगी
जब तक उसके पास विधिक मामलों के संबंध में ऐसी अर्हता या अनुभव नहीं है जो उच्च
न्यायालय,
नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
(2) ऐसे मजिस्ट्रेट विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट कलाएंगे और एक समय
में एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए नियुक्त किए जाएंगे जितनी उच्च न्यायालय, साधारण या विशेष आदेश द्वारा
निर्दिष्ट करे।
(3) उच्च न्यायालय किसी विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपनी
स्थानीय अधिकारिता के बाहर के किसी महानगर क्षेत्र के संबंध में महानगर मजिस्ट्रेट
की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सशक्त कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 14 | Section 14
in The Code Of Criminal Procedure
[ Crpc
Sec. 14 in Hindi ] –
न्यायिक
मजिस्ट्रेटों की स्थानीय अधिकारिता–
(1) उच्च न्यायालय के नियंत्रण के अधीन रहते हुए, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, समय-समय पर उन क्षेत्रों की स्थानीय
सीमाएं परिनिश्चित कर सकता है जिनके अंदर धारा 11 या धारा 13 के अधीन नियुक्त मजिस्ट्रेट उन सब
शक्तियों का या उनमें से किन्हीं का प्रयोग कर सकेंगे, जो इस संहिता के अधीन उनमें निहित की
जाएं :
[परंतु विशेष मजिस्ट्रेट का न्यायालय उस स्थानीय क्षेत्र के भीतर, जिसके लिए वह स्थापित किया गया है, किसी स्थान में अपनी बैठक कर सकता है।
(2) ऐसे परिनिश्चय द्वारा जैसा उपबंधित है उसके सिवाय प्रत्येक
ऐसे मजिस्ट्रेट की अधिकारिता और शक्तियों का विस्तार जिले में सर्वत्र होगा।
(3) जहां धारा 11 या धारा 13 या
धारा 18 के अधीन नियुक्त मजिस्ट्रेट की
स्थानीय अधिकारिता का विस्तार, यथास्थिति, उस जिले या महानगर क्षेत्र के, जिसके भीतर वह मामूली तौर पर अपनी
बैठके करता है,
बाहर किसी क्षेत्र तक है वहां
इस संहिता में सेशन न्यायालय, मुख्य
न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश का ऐसे
मजिस्ट्रेट के संबंध में, जब तक कि
संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, यह
अर्थ लगाया जाएगा कि वह उसकी स्थानीय अधिकारिता के संपूर्ण क्षेत्र के भीतर उक्त
जिला या महानगर क्षेत्र के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले, यथास्थिति, सेशन न्यायालय, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य
महानगर मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश है।
ज के इस आर्टिकल में मै आपको “ न्यायिक मजिस्ट्रेटों का अधीनस्थ होना | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 15 क्या है | section 15 CrPC in
Hindi | CrPC Section 15 | Subordination of Judicial Magistrates ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा
करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 15 | Section 15
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 15 in Hindi ] –
न्यायिक
मजिस्ट्रेटों का अधीनस्थ होना–
(1) प्रत्येक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा और
प्रत्येक अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायाधीश के साधारण नियंत्रण के अधीन रहते हुए. मुख्य
न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होगा।
(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अपने अधीनस्थ न्यायिक मजिस्ट्रेटों
में कार्य के वितरण के बारे में, समय-समय
पर, इस संहिता से संगत नियम बना सकता है
या विशेष आदेश दे सकता है।
आज के इस आर्टिकल में मै आपको “ महानगर मजिस्ट्रेटों के न्यायालय | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 16 क्या है | section 16 CrPC in
Hindi | CrPC Section 16 | Courts of Metropolitan Magistrates ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा
करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 16 | Section 16
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 16 in Hindi ] –
महानगर
मजिस्ट्रेटों के न्यायालय–
(1) प्रत्येक महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेटों के इतने
न्यायालय,
ऐसे स्थानों में स्थापित किए
जाएंगे जितने और जो राज्य सरकार, उच्च
न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, अधिसूचना
द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
(2) ऐसे न्यायालयों के पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा
नियुक्त किए जाएंगे।
(3) प्रत्येक महानगर मजिस्ट्रेट की अधिकारिता और शक्तियों का विस्तार
महानगर क्षेत्र में सर्वत्र हो
ज के इस आर्टिकल में मै आपको “ मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 17 क्या है | section 17 CrPC in
Hindi | CrPC Section 17 | Chief Metropolitan Magistrates and Additional Chief
Metropolitan Magistrates ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा
करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 17 | Section 17
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 17 in Hindi ] –
मुख्य
महानगर मजिस्ट्रेट और अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट–
(1) उच्च न्यायालय अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर प्रत्येक
महानगर क्षेत्र के संबंध में एक महानगर मजिस्ट्रेट को ऐसे महानगर क्षेत्र का मुख्य
महानगर मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगा।
(2) उच्च न्यायालय किसी महानगर मजिस्ट्रेट को अपर मुख्य महानगर
मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है, और
ऐसे मजिस्ट्रेट को, इस
संहिता के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन मुख्य महानगर
मजिस्ट्रेट की सब या कोई शक्तियां, जिनका उच्च न्यायालय निदेश दे, होंगी।
आज के इस आर्टिकल में मै आपको “ विशेष महानगर मजिस्ट्रेट | दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 18 क्या है | section 18 CrPC in
Hindi | CrPC Section 18 | Special Metropolitan Magistrates ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा
करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की –
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 18 | Section 18
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 18 in Hindi ] –
विशेष
महानगर मजिस्ट्रेट-
(1) यदि केंद्रीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के
लिए अनुरोध करती है तो उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण
करता है या जिसने कोई पद धारण किया है, अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर किसी महानगर क्षेत्र में विशेष
मामलों के या विशेष वर्ग के मामलों के संबंध में महानगर मजिस्ट्रेट को इस संहिता
द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त या प्रदत्त की जा सकने वाली सभी या कोई शक्तियां प्रदत्त
कर सकता है:
परंतु ऐसी कोई शक्ति किसी व्यक्ति को प्रदान नहीं की जाएगी
जब तक उसके पास विधिक मामलों के संबंध में ऐसी अर्हता या अनुभव नहीं है जो उच्च
न्यायालय,
नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
(2) ऐसे मजिस्ट्रेट विशेष महानगर मजिस्ट्रेट कहलाएंगे और एक समय
में एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए नियुक्त किए जाएंगे जितनी उच्च न्यायालय, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, निर्दिष्ट करे।
(3) यथास्थिति, उच्च
न्यायालय या राज्य सरकार किसी महानगर मजिस्ट्रेट को, महानगर क्षेत्र के बाहर किसी स्थानीय
क्षेत्र में प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए
सशक्त कर सकती है।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 19 | Section 19
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 19 in Hindi ] –
महानगर
मजिस्ट्रेटों का अधीनस्थ होना–
(1) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और प्रत्येक अपर मुख्य महानगर
मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होगा और प्रत्येक अन्य महानगर मजिस्ट्रेट
सेशन न्यायाधीश के साधारण नियंत्रण के अधीन रहते हुए मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के
अधीनस्थ होगा।
(2) उच्च न्यायालय, इस संहिता के प्रयोजनों के लिए परिनिश्चित कर सकेगा कि अपर मुख्य
महानगर मजिस्ट्रेट किस विस्तार तक, यदि कोई हो, मुख्य
महानगर मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होगा।
(3) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट महानगर मजिस्ट्रेटों में कार्य के
वितरण के बारे में और अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट को कार्य के आबंटन के बारे में, समय-समय पर, इस संहिता से संगत नियम बना सकेगा या
विशेष आदेश दे सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 20 | Section 20
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 20 in Hindi ] –
कार्यपालक
मजिस्ट्रेट–
(1) राज्य सरकार प्रत्येक जिले और प्रत्येक महानगर क्षेत्र में
उतने व्यक्तियों को, जितने वह
उचित समझे,
कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त
कर सकती है और उनमें से एक को जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगी।
(2) राज्य सरकार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को अपर जिला
मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकेगी, और
ऐसे मजिस्ट्रेट को इस संहिता के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन
जिला मजिस्ट्रेट की वे] शक्तियां होंगी, जो राज्य सरकार निर्दिष्ट करे]।
(3) जब कभी किसी जिला मजिस्ट्रेट के पद की रिक्ति के
परिणामस्वरूप कोई अधिकारी उस जिले के कार्यपालक प्रशासन के लिए अस्थायी रूप से
उत्तरवर्ती होता है तो ऐसा अधिकारी, राज्य सरकार द्वारा आदेश दिए जाने तक, क्रमशः उन सभी शक्तियों का प्रयोग और
कर्तव्यों का पालन करेगा जो उस संहिता द्वारा जिला मजिस्ट्रेट को प्रदत्त या उस पर
अधिरोपित हों।
(4) राज्य सरकार आवश्यकतानुसार किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को
उपखंड का भारसाधक बना सकती है और उसको भारसाधन से मुक्त कर सकती है और इस प्रकार
किसी उपखंड का भारसाधक बनाया गया मजिस्ट्रेट उपखंड मजिस्ट्रेट कहलाएगा।
[(4क) राज्य सरकार, साधारण
या विशेष आदेश द्वारा और ऐसे नियंत्रण और निदेशों के अधीन रहते हुए, जो वह अधिरोपित करना ठीक समझे, उपधारा (4) के अधीन अपनी शक्तियां, जिला मजिस्ट्रेट को प्रत्यायोजित कर
सकेगी।]
(5) इस धारा की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन, महानगर क्षेत्र के संबंध में
कार्यपालक मजिस्ट्रेट की सब शक्तियां या उनमें से कोई शक्ति पुलिस आयुक्त को
प्रदत्त करने से राज्य सरकार को प्रवारित नहीं करेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 21 | Section 21
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 21 in Hindi ] –
विशेष
कार्यपालक मजिस्ट्रेट–
राज्य सरकार विशिष्ट क्षेत्रों के लिए या विशिष्ट कृत्यों का
पालन करने के लिए कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को, जो विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट के रूप में ज्ञात होंगे, इतनी अवधि के लिए जितनी वह उचित समझे, नियुक्त कर सकती है और इस संहिता के अधीन कार्यपालक
मजिस्ट्रेटों को प्रदत्त की जा सकने वाली शक्तियों में से ऐसी शक्तियां, जिन्हें वह उचित समझे, इन विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेटों को
प्रदत्त कर सकती है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 22 | Section 22
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 22 in Hindi ] –
कार्यपालक मजिस्ट्रेटों की स्थानीय अधिकारिता—
(1) राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन रहते हुए जिला मजिस्ट्रेट, समयसमय पर, उन क्षेत्रों की स्थानीय सीमाएं
परिनिश्चित कर सकता है जिनके अंदर कार्यपालक मजिस्ट्रेट उन सब शक्तियों का या
उनमें से किन्हीं का प्रयोग कर सकेंगे, जो इस संहिता के अधीन उनमें निहित की जाएं।
(2) ऐसे परिनिश्चय द्वारा जैसा उपबंधित है उनके सिवाय, प्रत्येक ऐसे मजिस्ट्रेट की अधिकारिता
और शक्तियों का विस्तार जिले में सर्वत्र होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 23 | Section 23
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 23 in Hindi ] –
कार्यपालक
मजिस्ट्रेटों का अधीनस्थ होना—
(1) अपर जिला मजिस्ट्रेटों से भिन्न सब कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जिला मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होंगे और
(उपखंड मजिस्ट्रेट से भिन्न) प्रत्येक कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जो उपखंड में शक्ति का प्रयोग कर रहा
है, जिला मजिस्ट्रेट के साधारण नियंत्रण
के अधीन रहते हुए, उपखंड
मजिस्ट्रेट के भी अधीनस्थ होगा।
(2) जिला मजिस्ट्रेट अपने अधीनस्थ कार्यपालक मजिस्ट्रेटों में
कार्य के वितरण के बारे में और अपर जिला मजिस्ट्रेट को कार्य के आबंटन के बारे में
समय-समय पर इस संहिता से संगत नियम बना सकता है या विशेष आदेश दे सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 | Section 24
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 24 in Hindi ] –
लोक अभियोजक–
(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के लिए, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार उस
उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात्, यथास्थिति, केंद्रीय
या राज्य सरकार की ओर से उस उच्च न्यायालय में किसी अभियोजन, अपील या अन्य कार्यवाही के संचालन के
लिए एक लोक अभियोजक नियुक्त करेगी और एक या अधिक अपर लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती
है।
(2) केंद्रीय सरकार किसी जिले या स्थानीय क्षेत्र में किसी मामले
या किसी वर्ग के मामलों के संचालन के प्रयोजनों के लिए एक या अधिक लोक अभियोजक
नियुक्त कर सकती है।
(3) प्रत्येक जिले के लिए, राज्य सरकार एक लोक अभियोजक नियुक्त करेगी और जिले के लिए एक या
अधिक अपर लोक अभियोजक भी नियुक्त कर सकती है :
परंतु एक जिले के लिए नियुक्त लोक अभियोजक या अपर लोक
अभियोजक किसी अन्य जिले के लिए भी, यथास्थिति, लोक
अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है।
(4) जिला मजिस्ट्रेट. सेशन न्यायाधीश के परामर्श से. ऐसे
व्यक्तियों के नामों का एक पैनल तैयार करेगा जो, उसकी राय में, उस जिले के लिए लोक अभियोजक या अपर
लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने के योग्य है।
(5) कोई व्यक्ति राज्य सरकार द्वारा उस जिले के लिए लोक अभियोजक
या अपर लोक अभियोजक नियुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि उसका नाम उपधारा (4) के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा तैयार
किए गए नामों के पैनल में न हो।
(6) उपधारा (5) में किसी बात के होते हुए भी, जहां किसी राज्य में अभियोजन अधिकारियों का नियमित काडर है वहां
राज्य सरकार ऐसा काडर, गठित
करने वाले व्यक्तियों में से ही लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त करेगी:
परंतु जहां राज्य सरकार की राय में ऐसे काडर में से कोई
उपयुक्त व्यक्ति नियुक्ति के लिए उपलब्ध नहीं है वहाँ राज्य सरकार उपधारा (4) के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा तैयार
किए गए नामों के पैनल में से, यथास्थिति, लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक के
रूप में किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकती है।
स्पष्टीकरण-इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए.
(क) “अभियोजन
अधिकारियों का नियमित काडर से अभियोजन अधिकारियों का वह काडर अभिप्रेत है, जिसमें लोक अभियोजक का, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, पद सम्मिलित है और जिसमें उस पद पर
सहायक लोक अभियोजक की, चाहे वह
किसी भी नाम से ज्ञात हो, पदोन्नति
के लिए उपबंध किया गया है।
(ख) “अभियोजन
अधिकारी से लोक अभियोजक, अपर लोक
अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक के कृत्यों का पालन करने के लिए इस संहिता के अधीन
नियुक्त किया गया व्यक्ति अभिप्रेत है, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो।]
(7) कोई व्यक्ति उपधारा (1) या उपधारा (2) या उपधारा (3) या उपधारा (6) के अधीन लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने का पात्र
तभी होगा जब वह कम से कम सात वर्ष तक अधिववक्ता के रूप में विधि व्यवसाय करता रहा
हो।
(8) केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार किसी मामले या किसी वर्ग के
मामलों के प्रयोजनों के लिए किसी अधिवक्ता को, जो कम से कम दस वर्ष तक विधि व्यवसाय करता रहा हो, विशेष लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है
:
[परंतु न्यायालय इस उपधारा के अधीन पीड़ित को, अभियोजन की सहायता करने के लिए अपनी
पसंद का अधिवक्ता रखने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा।]
(9) उपधारा (7) और उपधारा (8) के प्रयोजनों के लिए उस अवधि के बारे में, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने प्लीडर
के रूप में विधि व्यवसाय किया है या लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक या सहायक लोक
अभियोजक या अन्य अभियोजन अधिकारी के रूप में, चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो, सेवाएं की हैं (चाहे इस संहिता के
प्रारंभ के पहले की गई हों या पश्चात्) यह समझा जाएगा कि वह ऐसी अवधि है जिसके
दौरान ऐसे व्यक्ति ने अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय किया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 25 | Section 25
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 25 in Hindi ] –
सहायक लोक
अभियोजक—
(1) राज्य सरकार प्रत्येक जिले में मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों
में अभियोजन का संचालन करने के लिए एक या अधिक सहायक लोक अभियोजक नियुक्त करेगी।
(1क) केंद्रीय सरकार मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किसी मामले या किसी
वर्ग के मामलों के संचालन के प्रयोजनों के लिए एक या अधिक सहायक लोक अभियोजक नियुक्त
कर सकती है।]
(2) जैसा उपधारा (3) में उपबंधित है उसके सिवाय, कोई पुलिस अधिकारी सहायक लोक अभियोजक नियुक्त होने का पात्र होगा।
(3) जहाँ कोई सहायक लोक अभियोजक किसी विशिष्ट मामले के प्रयोजनों
के लिए उपलभ्य नहीं है वहां जिला मजिस्ट्रेट किसी अन्य व्यक्ति को उस मामले का
भारसाधक सहायक लोक अभियोजक नियुक्त कर सकता है : परंतु कोई पुलिस अधिकारी इस
प्रकार नियुक्त नहीं किया जाएगा
(क) यदि उसने उस अपराध के अन्वेषण में कोई भाग लिया है, जिसके बारे में आयुक्त अभियोजित किया
जा रहा है,
या
(ख) यदि वह निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 26 | Section 26
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 26 in Hindi ] –
न्यायालय, जिनके द्वारा
अपराध विचारणीय हैं—
इस संहिता के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए.
(क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के
अधीन किसी अपराध का विचारण
(i) उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, या
(ii) सेशन न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, या
(iii) किसी अन्य ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके द्वारा
उसका विचारणीय होना प्रथम अनुसूची में दर्शित किया गया है:
[परंतु भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की
धारा 376 और धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ
या धारा 376]
के अधीन किसी अपराध का विचारण
यथासाध्य ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा, जिसमें महिला पीठासीन हो।]
(ख) किसी अन्य विधि के अधीन किसी अपराध का विचारण, जब उस विधि में इस निमित्त कोई
न्यायालय उल्लिखित है, तब उस
न्यायालय द्वारा किया जाएगा और जब कोई न्यायालय इस प्रकार उल्लिखित नहीं है तब
(i) उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, या
(ii) किसी अन्य ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके द्वारा
उसका विचारणीय होना प्रथम अनुसूची में दर्शित किया गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 27 | Section 27
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 27 in Hindi ] –
किशोरों के
मामलों में अधिकारिता—
किसी ऐसे अपराध का विचारण, जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय
नहीं है और जो ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है, जिसकी आयु उस तारीख को, जब वह न्यायालय के समक्ष हाजिर हो या लाया जाए, सोलह वर्ष से कम है, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय
द्वारा या किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसे बालक अधिनियम, 1960 (1960 का 60) या किशोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए उपबंध
करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन विशेष रूप से सशक्त किया गया
है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 28 | Section 28
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 28 in Hindi ] –
दंडादेश, जो उच्च न्यायालय
और सेशन न्यायाधीश दे सकेंगे—
(1) उच्च न्यायालय विधि द्वारा प्राधिकृत कोई दंडादेश दे सकता
है।
(2) सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश विधि द्वारा प्राधिकृत
कोई भी दंडादेश दे सकता है। किंतु उसके द्वारा दिए गए मृत्यु दंडादेश के उच्च
न्यायालय द्वारा पुष्ट किए जाने की आवश्यकता होगी।
(3) सहायक सेशन न्यायाधीश मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से
अधिक की अवधि के लिए कारावास के दंडादेश के सिवाय कोई ऐसा दंडादेश दे सकता है जो
विधि द्वारा प्राधिकृत है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 29 | Section 29
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 29 in Hindi ] –
दंडादेश, जो मजिस्ट्रेट दे
सकेंगे—
(1) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय मृत्यु या आजीवन
कारावास या सात वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास के दंडादेश के सिवाय कोई ऐसा
दंडादेश दे सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है।
(2) प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय तीन वर्ष से अनधिक अवधि
के लिए कारावास का या दस हजार रुपए से अनधिक जुर्माने का, या दोनों का, दंडादेश दे सकता है।
(3) द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय एक वर्ष से अनधिक अवधि
के लिए कारावास का या पांच हजार रुपए] से अनधिक जुर्माने का, या दोनों का, दंडादेश दे सकता है।
(4) मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय को मुख्य न्यायिक
मजिस्ट्रेट के न्यायालय की शक्तियां और महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय को प्रथम
वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियां होंगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 30 | Section 30
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 30 in Hindi ] –
जुर्माना
देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास का दंडादेश–
(1) किसी मजिस्ट्रेट का न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम
होने पर इतनी अवधि का कारावास अधिनिर्णीत कर सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है:
परंतु वह अवधि
(क) धारा 29 के
अधीन मजिस्ट्रेट की शक्ति से अधिक नहीं होगी;
(ख) जहां कारावास मुख्य दंडादेश के भाग के रूप में अधिनिर्णीत किया
गया है, वहां वह उस कारावास की अवधि के चौथाई
से अधिक न होगी जिसको मजिस्ट्रेट उस अपराध के लिए, न कि जुर्माना देने में व्यतिक्रम
होने पर दंड के तौर पर, देने के
लिए सक्षम है।
(2) इस धारा के अधीन अधिनिर्णीत कारावास उस मजिस्ट्रेट द्वारा
धारा 29 के अधीन अधिनिर्णीत की जा सकने वाली
अधिकतम अवधि के कारावास के मुख्य दंडादेश के अतिरिक्त हो सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 31 | Section 31
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 31 in Hindi ] –
एक ही
विचारण में कई अपराधों के लिए दोषसिद्ध होने के मामलों में दंडादेश–
(1) जब एक विचारण में कोई व्यक्ति दो या अधिक अपराधों के लिए
दोषसिद्ध किया जाता है तब, भारतीय
दंड संहिता (1860
का 45) की धारा 71 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, न्यायालय उसे उन अपराधों के लिए विहित
विभिन्न दंडों में से उन दंडों के लिए, जिन्हें देने के लिए ऐसा न्यायालय सक्षम है. दंडादेश दे सकता है ; जज ऐसे दंड कारावास के रूप में हो तब, यदि न्यायालय ने यह निदेश न दिया हो
कि ऐसे दंड साथ-साथ भोगे जाएंगे, तो
वे ऐसे क्रम से एक के बाद एक प्रारंभ होंगे जिसका न्यायालय निदेश दे।
(2) दंडादेशों के क्रमवर्ती होने की दशा में केवल इस कारण से कि
कई अपराधों के लिए संकलित दंड उस दंड से अधिक है जो वह न्यायालय एक अपराध के लिए
दोषसिद्धि पर देने के लिए सक्षम है, न्यायालय के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि अपराधी को उच्चतर न्यायालय
के समक्ष विचारण के लिए भेजे
परंतु-
(क) किसी भी दशा में ऐसा व्यक्ति चौदह वर्ष से अधिक की अवधि के
कारावास के लिए दंडादिष्ट नहीं किया जाएगा;
(ख) संकलित दंड उस दंड की मात्रा के दुगने से अधिक न होगा जिसे एक
अपराध के लिए देने के लिए वह न्यायालय सक्षम है।
(3) किसी सिद्धदोष व्यक्ति द्वारा अपील के प्रयोजन के लिए उन
क्रमवर्ती दंडादेशों का योग, जो
इस धारा के अधीन उसके विरुद्ध दिए गए हैं, एक दंडादेश समझा जाएगा।
धारा 31 CrPC
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 32 | Section 32
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 32 in Hindi ] –
शक्तियां
प्रदान करने का ढंग—
(1) इस संहिता के अधीन शक्तियां प्रदान करने में, यथास्थिति, उच्च न्यायालय या राज्य सरकार
व्यक्तियों को विशेषतया नाम से या उनके पद के आधार पर अथवा पदधारियों के वर्गों को
साधारणतया उनके पदीय अभिधानों से, आदेश
द्वारा, सशक्त कर सकती है।
(2) ऐसा प्रत्येक आदेश उस तारीख से प्रभावी होगा जिस तारीख को वह
ऐसे सशक्त किए गए व्यक्ति को संसूचित किया जाता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 33 | Section 33
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 33 in Hindi ] –
नियुक्त
अधिकारियों की शक्तियां —
सरकार की सेवा में पद धारण करने वाला ऐसा व्यक्ति, जिसमें उच्च न्यायालय या राज्य सरकार
द्वारा, उस संहिता के अधीन कोई शक्तियां किसी
समग्र स्थानीय क्षेत्र के लिए निहित की गई हैं, जब कभी उसी प्रकार के समान या उच्चतर पद पर उसी राज्य सरकार के
अधीन वैसे ही स्थानीय क्षेत्र के अंदर नियुक्त किया जाता है, तब वह, जब तक, यथास्थिति, उच्च न्यायालय या राज्य सरकार अन्यथा
निदेश न दे या न दे चुकी हो, उस
स्थानीय क्षेत्र में, जिसमें
वह ऐसे नियुक्त किया गया है, उन्हीं
शक्तियों का प्रयोग करेगा
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 34 | Section 34
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 34 in Hindi ] –
शक्तियों को
वापस लेना-
(1) यथास्थिति, उच्च
न्यायालय या राज्य सरकार, उन सब
शक्तियों को या उनमें से किसी को वापस ले सकती है जो उसने या उसके अधीनस्थ किसी
अधिकारी ने किसी व्यक्ति को इस संहिता के अधीन प्रदान की हैं।
(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रदत्त
किन्हीं शक्तियों को उस मजिस्ट्रेट द्वारा वापस लिया जा सकता है जिसके द्वारा वे
शक्तियां प्रदान की गई थीं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 35 | Section 35
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 35 in Hindi ] –
न्यायाधीशों
और मजिस्ट्रेटों की शक्तियों का उनके पद-उत्तरवर्तियों द्वारा प्रयोग किया जा
सकना-
(1) इस संहिता के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट की
शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग या पालन उसके पद-उत्तरवर्ती द्वारा किया जा सकता
है।
(2) जब इस बारे में कोई शंका है कि किसी अपर या सहायक सेशन
न्यायाधीश का पद-उत्तरवर्ती कौन है तब सेशन न्यायाधीश लिखित आदेश द्वारा यह
अवधारित करेगा कि कौन सा न्यायाधीश इस संहिता के, या इसके अधीन किन्हीं कार्यवाहियों या
आदेशों के प्रयोजनों के लिए ऐसे अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश का पद-उत्तरवर्ती
समझा जाएगा।
(3) जब इस बारे में कोई शंका है कि किसी मजिस्ट्रेट का पद-उत्तरवर्ती
कौन है तब,
यथास्थिति. मुख्य न्यायिक
मजिस्ट्रेट या जिला मजिस्ट्रेट लिखित आदेश द्वारा यह अवधारित करेगा कि कौन सा
मजिस्ट्रेट इस संहिता के, या इसके
अधीन किन्हीं कार्यवाहियों या आदेशों के, प्रयोजनों के लिए ऐसे मजिस्ट्रेट का पद-उत्तरवर्ती समझा जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 36 | Section 36
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 36 in Hindi ] –
वरिष्ठ
पुलिस अधिकारियों की शक्तियां-
पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से पंक्ति में वरिष्ठ पुलिस
अधिकारी जिस स्थानीय क्षेत्र में नियुक्त है, उसमें सर्वत्र, उन
शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं जिनका प्रयोग अपने थाने की सीमाओं के अंदर ऐसे
अधिकारी द्वारा किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 37 | Section 37
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 37 in Hindi ] –
जनता कब
मजिस्ट्रेट और पुलिस की सहायता करेगी–
प्रत्येक व्यक्ति, ऐसे मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी की सहायता करने के लिए आबद्ध है, जो निम्नलिखित कार्यों में उसकी
सहायता उचित रूप से मांगता है,
(क) किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को, जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी गिरफ्तार करने के लिए
प्राधिकृत है,
पकड़ना या उसका निकल भागने से
रोकना ; अथवा
(ख) परिशान्ति भंग का निवारण या दमन ; अथवा
(ग) किसी रेल, नहर, तार या लोक-संपत्ति को क्षति पहुंचाने
के प्रयत्न का निवारण ।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 38 | Section 38
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 38 in Hindi ] –
पुलिस
अधिकारी से भिन्न ऐसे व्यक्ति को सहायता जो वारंट का निष्पादन कर रहा है –
जब कोई वारंट पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति को
निदिष्ट है तब कोई भी अन्य व्यक्ति उस वारंट के निष्पादन में सहायता कर सकता है
यदि वह व्यक्ति, जिसे
वारंट निदिष्ट है, पास में
हैं और वारंट के निष्पादन में कार्य कर रहा है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 | Section 39
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 39 in Hindi ] –
कुछ अपराधों
की इत्तिला का जनता द्वारा दिया जाना—
(1) प्रत्येक व्यक्ति जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की निम्नलिखित धाराओं के अधीन दंडनीय
किसी अपराध के किए जाने से या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा करने के आशय से अवगत है, उचित प्रतिहेतु के अभाव में, जिसे साबित करने का भार इस प्रकार
अबगत व्यक्ति पर होगा, ऐसे किए
जाने या आशय की इत्तिला तुरंत निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को देगा, अर्थात्:
(i) धारा 121 से 126, दोनों
सहित, और धारा 130 (अर्थात्, उक्त संहिता के अध्याय 6 में विनिर्दिष्ट राज्य के विरुद्ध
अपराध);
(ii) धारा 143, 144, 145, 147 और 148 (अर्थात्, उक्त संहिता के अध्याय 8 में विनिर्दिष्ट लोक प्रशांति के
विरुद्ध अपराध);
(iii) धारा 161 से 165क, दोनों सहित, (अर्थात्, अवैध परितोषण से संबंधित अपराध);
(iv) धारा 272 से 278, दोनों
सहित, (अर्थात्, खाद्य और औषधियों के अपमिश्रण से
संबंधित अपराध आदि);
(v) धारा 302, 303 और 304 (अर्थात्
जीवन के लिए संकटकारी अपराध);
(क) धारा 364क
(अर्थात् फिरौती, आदि के
लिए व्यपहरण से संबंधित अपराध)]
(vi) धारा 382 (अर्थात्, चोरी
करने के लिए मृत्यु, उपहति या
अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी का अपराध);
(vii) धारा 392 से 399, दोनों
सहित, और धारा 402 (अर्थात्, लूट और डकैती के अपराध);
(vii) धारा 409 (अर्थात्, लोक सेवक
आदि द्वारा आपराधिक न्यासभंग से संबंधित अपराध);
(ix) धारा 431 से 439, दोनों
सहित, (अर्थात्, संपत्ति के विरुद्ध रिष्टि के अपराध);
(x) धारा 449 और 450 (अर्थात, गृह अतिचार का अपराध);
(xi) धारा 456 से 460, दोनों
सहित, (अर्थात्, प्रच्छन्न गृह अतिचार के अपराध); और
(xii) धारा 489क से 489ङ, दोनों सहित, (अर्थात्, करेंसी नोटों और बैंक नोटों से
संबंधित अपराध)।
(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए “अपराध” शब्द
के अंतर्गत भारत के बाहर किसी स्थान में किया गया कोई ऐसा कार्य भी है जो यदि भारत
में किया जाता तो अपराध होता।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 40 | Section 40
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 40 in Hindi ] –
ग्राम के
मामलों के संबंध में नियोजित अधिकारियों के कतिपय रिपोर्ट करने का कर्तव्य—
(1) किसी ग्राम के मामलों के संबंध में
नियोजित प्रत्येक अधिकारी और ग्राम में निवास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति, निकटतम मजिस्ट्रेट को या निकटतम पुलिस
थाने के भारसाधक अधिकारी को, जो
भी निकटतर हो,
कोई भी जानकारी जो उसके पास
निम्नलिखित के बारे में हो, तत्काल
संसूचित करेगा,
(क) ऐसे ग्राम में या ऐसे ग्राम के पास किसी ऐसे व्यक्ति का, जो चुराई हुई संपत्ति का कुख्यात
प्रापक या विक्रेता है, स्थायी
या अस्थायी निवास
(ख) किसी व्यक्ति का. जिसका वह ठग. लटेरा, निकल भागा सिद्धृदोष या उद्घोषित
अपराधी होना जानता है या जिसके ऐसा होने का उचित रूप से संदेह करता है, ऐसे ग्राम के किसी भी स्थान में
आना-जाना या उसमें से हो कर जाना;
(ग) ऐसे ग्राम में या उसके निकट कोई अजमानतीय अपराध या भारतीय दंड
संहिता (1860
का 45) की धारा 143, धारा 144, धारा 145, धारा 147 या धारा 148 के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया जाना
या करने का आशय ;
(घ) ऐसे ग्राम में या उसके निकट कोई आकस्मिक या अप्राकृतिक मृत्यु
होना, या सन्देहजनक परिस्थितियों में कोई
मृत्यु होना,
या ऐसे ग्राम में या उसके निकट
किसी शव का,
या शव के अंग का ऐसी
परिस्थितियों में, जिनसे
उचित रूप से संदेह पैदा होता है कि ऐसी मृत्यु हुई, पाया जाना, या ऐसे ग्राम से किसी व्यक्ति का, ऐसी परिस्थितियों में जिनसे उचित रूप
से संदेह पैदा होता है कि ऐसे व्यक्ति के संबंध में अजमानतीय अपराध किया गया है, गायब हो जाना;
(ङ) ऐसे ग्राम के निकट, भारत के बाहर किसी स्थान में ऐसा कोई कार्य किया जाना या करने का
आशय जो यदि भारत में किया जाता तो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की इन धाराओं, अर्थात्-231 से 238 तक (दोनों सहित), 302, 304, 382, 392 से 399 तक (दोनों सहित), 402, 435, 436,
449,450, 457 से 460 तक (दोनों सहित), 489क, 489,ख, 489ग
और 4894 में से किसी के अधीन दंडनीय अपराध
होता;
(च) व्यवस्था बनाए रखने या अपराध के निवारण अथवा व्यक्ति या संपत्ति
के क्षेम पर संभाब्यता प्रभाव डालने वाला कोई विषय जिसके संबंध में जिला
मजिस्ट्रेट ने राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से किए गए साधारण या विशेष आदेश द्वारा
उसे निदेश दिया है कि वह उस विषय पर जानकारी संसूचित करे।
(2) इस धारा में-
(i) “ग्राम के अंतर्गत ग्राम-भूमियां भी हैं ;
(ii) “उद्घोषित अपराधी पद के अंतर्गत ऐसा व्यक्ति भी है जिसे भारत
के किसी ऐसे राज्यक्षेत्र में जिस पर इस संहिता का विस्तार नहीं है किसी न्यायालय
या प्राधिकारी ने किसी ऐसे कार्य के बारे में, अपराधी उद्घोषित किया है जो यदि उन राज्यक्षेत्रों में, जिन पर इस संहिता का विस्तार है, किया जाता तो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की इन धाराओं, अर्थात्-302, 304, 382, 392 से 399 तक (दोनों सहित), 402, 435, 436, 449,
450 और 457 से 460 तक (दोनों सहित), में से किसी के अधीन दंडनीय अपराध
होता;
(iii) “ग्राम के मामलों के संबंध में नियोजित प्रत्येक अधिकारी” शब्दों से ग्राम पंचायत का कोई सदस्य
अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत ग्रामीण और प्रत्येक ऐसा अधिकारी या अन्य व्यक्ति भी
है जो ग्राम के प्रशासन के संबंध में किसी कृत्य का पालन करने के लिए नियुक्त किया
गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 | Section 41
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 41 in Hindi ] –
पुलिस वारंट
के बिना कब गिरफ्तार कर सकेगी—
(1) कोई पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के
बिना किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है
‘[(क) जो पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में संज्ञेय अपराध करता है;
(ख) जिसके विरुद्ध इस बारे में उचित परिवाद किया जा चुका है या
विश्वसनीय इत्तिला प्राप्त हो चुकी है या उचित संदेह विद्यमान है कि उसने कारावास
से, जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की हो
सकेगी या जिसकी अवधि सात वर्ष की हो सकेगी, चाहे वह जुर्माने सहित हो अथवा जुर्माने के बिना, दंडनीय संज्ञेय अपराध किया है, यदि निम्नलिखित शर्ते पूरी कर दी जाती
हैं, अर्थात् :
(i) पुलिस अधिकारी के पास ऐसे परिवाद, इत्तिला या संदेह के आधार पर यह
विश्वास करने का कारण है कि उस व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है।
(ii) पुलिस अधिकारी का यह समाधान हो गया है कि ऐसी गिरफ्तारी :
(क) ऐसे व्यक्ति को कोई और अपराध करने से निवारित करने के लिए : या
(ख) अपराध के समुचित अन्वेषण के लिए; या
(ग) ऐसे व्यक्ति को ऐसे अपराध के साक्ष्य को गायब करने या ऐसे
साक्ष्य के साथ किसी भी रीति में छेड़छाड़ करने से निवारित करने के लिए; या
(घ) उस व्यक्ति को, किसी
ऐसे व्यक्ति को, जो मामले
के तथ्यों से परिचित है, उप्रेरित
करने, उसे धमकी देने या उससे वायदा करने से
जिससे उसे न्यायालय या पुलिस अधिकारी को ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाया
जा सके, निवारित करने के लिए ; या
(ङ) जब तक ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर लिया जाता, न्यायालय में उसकी उपस्थिति, जब भी । अपेक्षत हो, सुनिश्चित नहीं की जा सकती, आवश्यक है, और पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करते
समय अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा;
[परंतु कोई पुलिस अधिकारी, ऐसे सभी मामलों में, जहां किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी इस उपधारा के उपबंधों के । अधीन
अपेक्षित नहीं है, गिरफ्तारी
ने करने के कारणों को लेखबद्ध करेगा।]
(खक) जिसके विरुद्ध विश्वसनीय इत्तिला प्राप्त हो चुकी है कि उसने
कारावास से,
जिसकी अवधि सात वर्ष से अधिक की
हो सकेगी,
चाहे वह जुर्माने सहित हो अथवा
जुर्माने के बिना, अथवा
मृत्यु दंडादेश से दंडनीय संज्ञेय अपराध किया है और पुलिस अधिकारी के पास उस
इत्तिला के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि उस व्यक्ति ने उक्त अपराध किया
है;]
(ग) जो या तो इस संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा
अपराधी उद्घोषित किया जा चुका है ; अथवा
(घ) जिसके कब्जे में कोई ऐसी चीज पाई जाती है जिसके चुराई हुई
संपत्ति होने का उचित रूप से संदेह किया जा सकता है और जिस पर ऐसी चीज के बारे में
अपराध करने का उचित रूप से संदेह किया जा सकता है ; अथवा
(ङ) जो पुलिस अधिकारी को उस समय बाधा पहुंचाता है जब वह अपना
कर्तव्य कर रहा है, या जो
विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है या निकल भागने का प्रयत्न करता है ; अथवा
(च) जिस पर संघ के सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्याजक होने का
उचित संदेह है ; अथवा
(छ) जो भारत से बाहर किसी स्थान में किसी ऐसे कार्य किए जाने से, जो यदि भारत में किया गया होता तो
अपराध के रूप में दंडनीय होता, और
जिसके लिए वह प्रत्यर्पण संबंधी किसी विधि के अधीन या अन्यथा भारत में पकड़े जाने
का या अभिरक्षा में निरुद्ध किए जाने का भागी है, संवद्ध रह चुका है या जिसके विरुद्ध
इस बारे में उचित परिवाद किया जा चुका है या विश्वसनीय इत्तिला प्राप्त हो चुकी है
या उचित संदेह विद्यमान है कि वह ऐसे संबद्ध रह चुका है ; अथवा
(ज) जो छोड़ा गया सिद्धदोष होते हुए धारा 356 की उपधारा (5) के अधीन बनाए गए किसी नियम को भंग
करता है ;
अथवा
(झ) जिसकी गिरफ्तारी के लिए किसी अन्य पुलिस अधिकारी से लिखित या
मौखिक अध्यपेक्षा प्राप्त हो चुकी है, परंतु यह तब जब कि अध्यपेक्षा में उस व्यक्ति का, जिसे गिरफ्तार किया जाना है, और उस अपराध का या अन्य कारण का, जिसके लिए गिरफ्तारी की जानी है, विनिर्देश है और उससे यह दर्शित होता
है कि अध्यपेक्षा जारी करने वाले अधिकारी द्वारा वारंट के बिना वह व्यक्ति विधिपूर्वक गिरफ्तार किया
जा सकता था।
(2) धारा 42 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, ऐसे किसी व्यक्ति को, जो किसी असंज्ञेय अपराध से संबद्ध है या जिसके विरुद्ध कोई परिवाद
किया जा चुका है या विश्वसनीय इत्तिला प्राप्त हो चुकी है या उचित संदेह विद्यमान
है कि वह ऐसे संबद्ध रह चुका है, मजिस्ट्रेट
के वारंट या आदेश के सिवाय, गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 42 | Section 42
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 42 in Hindi ] –
नाम और
निवास बताने से इनकार करने पर गिरफ्तारी-
(1) जब कोई व्यक्ति जिसने पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में
असंज्ञेय अपराध किया है या जिस पर पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध
करने का अभियोग लगाया गया है, उस
अधिकारी की मांग पर अपना नाम और निवास बताने से इनकार करता है या ऐसा नाम या निवास
बताता है. जिसके बारे में उस अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि वह मिथ्या
है, तब वह ऐसे अधिकारी द्वारा इसलिए
गिरफ्तार किया जा सकता है कि उसका नाम और निवास अभिनिश्चित किया जा सके।
(2) जब ऐसे व्यक्ति का सही नाम और निवास अभिनिश्चित कर लिया जाता
है तब वह प्रतिभुओं सहित या रहित यह बंधपत्र निष्पादित करने पर छोड़ दिया जाएगा कि
यदि उससे मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा की गई तो वह उसके समक्ष हाजिर
होगा:
परंतु यदि ऐसा व्यक्ति भारत में निवासी नहीं है तो वह
बंधपत्र भारत में निवासी प्रतिभू या प्रतिभुओं द्वारा प्रतिभूत किया जाएगा।
(3) यदि गिरफ्तारी के समय से चौबीस घंटों के अंदर ऐसे व्यक्ति का
सही नाम और निवास अभिनिश्चित नहीं किया जा सकता है या वह बंधपत्र निष्पादित करने
में या अपेक्षित किए जाने पर पर्याप्त प्रतिभू देने में असफल रहता है तो वह
अधिकारिता रखने वाले निकटतम मजिस्ट्रेट के पास तत्काल भेज दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 43 | Section 43
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 43 in Hindi ] –
प्राइवेट
व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी और ऐसी गिरफ्तारी पर प्रक्रिया–
(1) कोई प्राइवेट व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को जो उसकी उपस्थिति
में अजमानतीय और संज्ञेय अपराध करता है, या किसी उद्घोषित अपराधी को गिरफ्तार कर सकता है या गिरफ्तार करवा
सकता है और ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अनावश्यक विलंब के बिना पुलिस अधिकारी
के हवाले कर देगा या ह्वाले करवा देगा या पुलिस अधिकारी की अनुपस्थिति में ऐसे
व्यक्ति को अभिरक्षा में निकटतम पुलिस थाने ले जाएगा या भिजवाएगा।
(2) यदि यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसा व्यक्ति धारा 41 के उपबंधों के अंतर्गत आता है तो
पुलिस अधिकारी उसे फिर से गिरफ्तार करेगा।
(3) यदि यह विश्वास करने का कारण है कि उसने असंज्ञेय अपराध किया
है और वह पुलिस अधिकारी की मांग पर अपना नाम और निवास बताने से इनकार करता है, या ऐसा नाम या निवास बताता है, जिसके बारे में ऐसे अधिकारी को यह
विश्वास करने का कारण है कि वह मिथ्या है, तो उसके विषय में धारा 42 के उपबंधों के अधीन कार्यवाही की जाएगी; किंतु यदि यह विश्वास करने का कोई
पर्याप्त कारण नहीं है कि उसने कोई अपराध किया है तो वह तुरंत छोड़ दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 44 | Section 44
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 44 in Hindi ] –
मजिस्ट्रेट
द्वारा गिरफ्तारी-
(1) जब कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में उसकी
स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई अपराध किया जाता है तब वह अपराधी को स्वयं गिरफ्तार
कर सकता है या गिरफ्तार करने के लिए किसी व्यक्ति को आदेश दे सकता है और तब जमानत
के बारे में इसमें अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपराधी को अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर
सकता है।
(2) कोई कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी भी समय अपनी
स्थानीय अधिकारिता के भीतर किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है. या अपनी
उपस्थिति में उसकी गिरफ्तारी का निदेश दे सकता है, जिसकी गिरफ्तारी के लिए वह उस समय और
उन परिस्थितियों में वारंट जारी करने के लिए सक्षम है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 45 | Section 45
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 45 in Hindi ] –
सशस्त्र
बलों के सदस्यों का गिरफ्तारी से संरक्षण–
(1) धारा 41 से 44 तक
की धाराओं में (दोनों सहित) किसी बात के होते हुए भी संघ के सशस्त्र बलों का कोई
भी सदस्य अपने पदीय कर्तव्यों का निर्वहन करने में अपने द्वारा की गई या की जाने
के लिए तात्पर्यित किसी बात के लिए तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा जब तक केंद्रीय
सरकार की सहमति नहीं ले ली जाती।
(2) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकती है कि उसमें
यथाविनिर्दिष्ट बल के ऐसे वर्ग या प्रवर्ग के सदस्यों को, जिन्हें लोक व्यवस्था बनाए रखने का
कार्यभार सौंपा गया है, जहां
कहीं वे सेवा कर रहे हों, उपधारा (1) के उपबंध लागू होंगे और तब उस उपधारा
के उपबंध इस प्रकार लागू होंगे मानो उसमें आने वाले केंद्रीय सरकार” पद के स्थान पर “राज्य सरकार” पद रख दिया गया हो।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 46 | Section 46 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 46 in Hindi
] –
गिरफ्तारी कैसे की
जाएगी-
(1) गिरफ्तारी करने में पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो गिरफ्तारी कर रहा है, गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के
शरीर को वस्तुतः हुएगा या परिरुद्ध करेगा, जब तक उसने वचन या कर्म द्वारा अपने को अभिरक्षा में समर्पित न कर
दिया हो।
परंतु जहां किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाना है वहां जब तक
कि परिस्थितियों से इसके विपरीत उपदर्शित न हो, गिरफ्तारी की मौखिक इत्तिला पर अभिरक्षा में उसके समर्पण कर देने
की उपधारणा की जाएगी और जब तक कि परिस्थितियों में अन्यथा अपेक्षित न हो या जब तक
पुलिस अधिकारी महिला न हो, तब तक
पुलिस अधिकारी महिला को गिरफ्तार करने के लिए उसके शरीर को नहीं छुएगा।]
(2) यदि ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किए जाने के प्रयास का बलात्
प्रतिरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो ऐसा पुलिस अधिकारी
या अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करने के लिए आवश्यक सब साधनों को उपयोग में ला सकता है।
(3) इस धारा की कोई बात ऐसे व्यक्ति की जिस पर मृत्यु या आजीवन
कारावास से दंडनीय अपराध का अभियोग नहीं है, मृत्यु कारित करने का अधिकार नहीं देती है।
(4) असाधारण परिस्थितियों के सिवाय, कोई स्त्री सूर्यास्त के पश्चात् और
सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं की जाएगी और जहां ऐसी असाधारण परिस्थितियां
विद्यमान हैं वहां स्त्री पुलिस अधिकारी, लिखित में रिपोर्ट करके, उस प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुज्ञा
अभिप्राप्त करेगी, जिसकी
स्थानीय अधिकारिता के भीतर अपराध किया गया है या गिरफ्तारी की जानी है।]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 47 | Section 47 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 47 in Hindi
] –
उस स्थान की तलाशी
जिसमें ऐसा व्यक्ति प्रविष्ट हुआ है जिसकी गिरफ्तारी की जानी है—
(1) यदि गिरफ्तारी के वारंट के अधीन कार्य करने वाले किसी व्यक्ति को, या गिरफ्तारी करने के लिए प्राधिकृत
किसी पुलिस अधिकारी को, यह
विश्वास करने का कारण है कि वह व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया जाना है, किसी स्थान में प्रविष्ट हुआ है, या उसके अंदर है तो ऐसे स्थान में
निवास करने वाला, या उस
स्थान का भारसाधक कोई भी व्यक्ति, पूर्वोक्त
रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति द्वारा या ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा मांग की जाने
पर उसमें उसे अबाध प्रवेश करने देगा और उसके अंदर तलाशी लेने के लिए सब उचित
सुविधाएं देगा।
(2) यदि ऐसे स्थान में प्रवेश उपधारा (1) के अधीन नहीं हो सकता तो किसी भी
मामले में उस व्यक्ति के लिए, जो
वारंट के अधीन कार्य कर रहा है, और
किसी ऐसे मामले में, जिसमें
वारंट निकाला जा सकता है किंतु गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को भाग जाने का
अवसर दिए बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता, पुलिस अधिकारी के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह ऐसे स्थान में
प्रवेश करे और वहां तलाशी ले और ऐसे स्थान में प्रवेश कर पाने के लिए किसी गृह या
स्थान के, चाहे वह उस व्यक्ति का हो जिसे
गिरफ्तार किया जाना है, या किसी
अन्य व्यक्ति का हो, किसी
बाहरी या भीतरी द्वार या खिड़की को तोड़कर खोल ले यदि अपने प्राधिकार और प्रयोजन
की सूचना देने के तथा प्रवेश करने की सम्यक् रूप से मांग करने के पश्चात् वह
अन्यथा प्रवेश प्राप्त नहीं कर सकता है :
परंतु यदि ऐसा कोई स्थान ऐसा कमरा है जो (गिरफ्तार किए जाने
वाले व्यक्ति से भिन्न) ऐसी स्त्री के वास्तविक अधिभोग में है जो रूढ़ि के अनुसार
लोगों के सामने नहीं आती है तो ऐसा व्यक्ति या पुलिस अधिकारी उस कमरे में प्रवेश
करने के पूर्व उस स्त्री को सूचना देगा कि वह वहां से हट जाने के लिए स्वतंत्र है
और हट जाने के लिए उसे प्रत्येक उचित सुविधा देगा और तब कमरे को तोड़कर खोल सकता
है और उसमें प्रवेश कर सकता है।
(3) कोई पुलिस अधिकारी या गिरफ्तार करने के लिए प्राधिकृत अन्य
व्यक्ति किसी गृह या स्थान का कोई बाहरी या भीतरी द्वार या खिड़की अपने को या किसी
अन्य व्यक्ति को जो गिरफ्तार करने के प्रयोजन से विधिपूर्वक प्रवेश करने के
पश्चात् वहां निरुद्ध है. मुक्त करने के लिए तोड़कर खोल
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 48 | Section 48 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 48 in Hindi
] –
अन्य अधिकारिताओं
में अपराधियों का पीछा करना-
पुलिस अधिकारी ऐसे किसी व्यक्ति को जिसे गिरफ्तार करने के
लिए वह प्राधिकृत है, वारंट के
बिना गिरफ्तार करने के प्रयोजन से भारत के किसी स्थान में उस व्यक्ति का पीछा कर
सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 49 | Section 49 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 49 in Hindi
] –
अनावश्यक अवरोध न
करना—
गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उससे अधिक अवरुद्ध न किया जाएगा
जितना उसको निकल भागने से रोकने के लिए आवश्यक है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 | Section 50 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 50 in Hindi
] –
गिरफ्तार किए गए
व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों और जमानत के अधिकार की इत्तिला दी जाना—
(1) किसी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार करने वाला प्रत्येक
पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति उस व्यक्ति को उस अपराध की, जिसके लिए वह गिरफ्तार किया गया है, पूर्ण विशिष्टियां या ऐसी गिरफ्तारी
के अन्य आधार तुरंत संसूचित करेगा।
(2) जहां कोई पुलिस अधिकारी अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति से
भिन्न किसी व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार करता है वहां वह गिरफ्तार किए गए
व्यक्ति को इत्तिला देगा कि वह जमानत पर छोड़े जाने का हकदार है और वह अपनी ओर से
प्रतिभुओं का इंतजाम करे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 51 | Section 51 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 51 in Hindi
] –
गिरफ्तार किए गए
व्यक्तियों की तलाशी-
(1) जब कभी पुलिस अधिकारी द्वारा ऐसे वारंट के अधीन, जो जमानत लिए जाने का उपबंध नहीं करता
है या ऐसे वारंट के अधीन, जो जमानत
लिए जाने का उपबंध करता है किंतु गिरफ्तार किया गया व्यक्ति जमानत नहीं दे सकता है, कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है,
तथा जब कभी कोई व्यक्ति वारंट के बिना या प्राइवेट व्यक्ति
द्वारा वारंट के अधीन गिरफ्तार किया जाता है और वैध रूप से उसकी जमानत नहीं ली जा
सकती है या वह जमानत देने में असमर्थ है.
तब गिरफ्तारी करने वाला अधिकारी, या जब गिरफ्तारी प्राइवेट व्यक्ति
द्वारा की जाती है तब वह पुलिस अधिकारी, जिसे वह व्यक्ति गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को सौंपता है, उस व्यक्ति की तलाशी ले सकता है और
पहनने के आवश्यक वस्त्रों को छोड़कर उसके पास पाई गई सब वस्तुओं को सुरक्षित अभिरक्षा में रख सकता है और
जहां गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से कोई वस्तु अभिगृहीत की जाती है वहां ऐसे व्यक्ति
को एक रसीद दी जाएगी जिसमें पुलिस अधिकारी द्वारा कब्जे में की गई वस्तं दर्शित
होंगी।
(2) जब कभी किसी स्त्री की तलाशी करना आवश्यक हो तब ऐसी तलाशी
शिष्टता का पूरा ध्यान रखते हुए अन्य स्त्री द्वारा की जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 52 | Section 52 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 52 in Hindi
] –
आक्रामक आयुधों का अभिग्रहण
करने की शक्ति–
वह अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो इस संहिता के अधीन गिरफ्तारी करता है गिरफ्तार किए गए
व्यक्ति से कोई आक्रामक आयुध, जो
उसके शरीर पर हों, ले सकता
है और ऐसे लिए गए सब आयुध उस न्यायालय या अधिकारी को परिदत्त करेगा, जिसके समक्ष वह अधिकारी या गिरफ्तार
करने वाला व्यक्ति गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पेश करने के लिए इस संहिता द्वारा अपेक्षित
है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 53 | Section 53 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 53 in Hindi
] –
पुलिस अधिकारी की
प्रार्थना पर चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा अभियुक्त की परीक्षा-
(1) जब कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करने के आरोप में गिरफ्तार किया
जाता है जो ऐसी प्रकृति का है और जिसका ऐसी परिस्थितियों में किया जाना अभिकथित है
कि यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि उसकी शारीरिक परीक्षा ऐसा अपराध किए जाने
के बारे में साक्ष्य प्रदान करेगी, तो
ऐसे पुलिस अधिकारी की, जो उप
निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, प्रार्थना पर कार्य करने में रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायी के
लिए और सद्भावपूर्वक उसकी सहायता करने में और उसके निदेशाधीन कार्य करने में किसी
व्यक्ति के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की ऐसी परीक्षा
करें जो उन तथ्यों को, जो ऐसा
साक्ष्य प्रदान कर सकें, अभिनिश्चित
करने के लिए उचित रूप से आवश्यक है और उतना बल प्रयोग करे जितना उस प्रयोजन के लिए
उचित रूप से आवश्यक है।
(2) जब कभी इस धारा के अधीन किसी स्त्री की शारीरिक परीक्षा की
जानी है तो ऐसी परीक्षा केवल किसी महिला द्वारा जो रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायी
है या उसके पर्यवेक्षण में की जाएगी।
स्पष्टीकरण-इस धारा में और धारा 53क और धारा 54 में
(क) परीक्षा में खून, खून के धब्बों, सीमन, लैंगिक अपराधों की दशा में सुआब, थूक और स्वाब, बाल के नमूनों और उंगली के नाखून की
कतरनों की आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों के, जिनके अंतर्गत डी.एन.ए. प्रोफाइल करना भी है, प्रयोग द्वारा परीक्षा और ऐसे अन्य
परीक्षण, जिन्हें रजिस्ट्रीकृत
चिकित्सा-व्यवसायी किसी विशिष्ट मामले में आवश्यक समझता है, सम्मिलित होंगे;
(ख) ‘रजिस्ट्रीकृत
चिकित्सा-व्यवसायी’ से वह
चिकित्सा-व्यवसायी अभिप्रेत है, जिसके
पास भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 (1956 का 102) की धारा 2 के खंड (ज) में यथापरिभाषित कोई
चिकित्सीय अर्हता है और जिसका नाम राज्य चिकित्सा रजिस्टर में प्रविष्ट किया गया
है।]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 54 | Section 54 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 54 in Hindi
] –
गिरफ्तार व्यक्ति
की चिकित्सा अधिकारी द्वारा परीक्षा-
(1) जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है तब गिरफ्तार किए जाने
के तुरंत पश्चात उसकी केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के सेवाधीन चिकित्सा अधिकारी
और जहां चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध नहीं हैं वहां रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी
द्वारा परीक्षा की जाएगी :
परंतु जहां गिरफ्तार किया गया व्यक्ति महिला है, वहां उसके शरीर की परीक्षा केवल महिला
चिकित्सा अधिकारी और जहां महिला चिकित्सा अधिकारी उपलब्ध नहीं है वहां रजिस्ट्रीकृत
महिला चिकित्सा व्यवसायी द्वारा या उसके पर्यवेक्षणाधीन की जाएगी।
(2) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की इस प्रकार परीक्षा करने वाला
चिकित्सा अधिकारी या रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी ऐसी परीक्षा का अभिलेख तैयार
करेगा जिसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के शरीर पर किन्हीं क्षतियों या हिंसा के
चिह्नों तथा अनुमानित समय का वर्णन करेगा जब ऐसी क्षति या चिह्न पहुंचाए गए होंगे।
(3) जहाँ उपधारा (1) के अधीन परीक्षा की जाती है वहां ऐसी परीक्षा की रिपोर्ट की एक
प्रति, यथास्थिति, चिकित्सा अधिकारी या रजिस्ट्रीकृत
चिकित्सा व्यवसायी द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति या ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति
द्वारा नामनिर्दिष्ट व्यक्ति को दी जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 55 | Section 55 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 55 in Hindi
] –
जब पुलिस अधिकारी
वारंट के बिना गिरफ्तार करने के लिए अपने अधीनस्थ को प्रतिनियुक्त करता है तब
प्रक्रिया–
(1) जब अध्याय 12 के
अधीन अन्वेषण करता हुआ कोई पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, या कोई पुलिस अधिकारी, अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी से किसी
ऐसे व्यक्ति को जो वारंट के बिना विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जा सकता है, वारंट के बिना (अपनी उपस्थिति में
नहीं, अन्यथा) गिरफ्तार करने की अपेक्षा
करता है, तब वह उस व्यक्ति का जिसे गिरफ्तार
किया जाना है और उस अपराध का या अन्य कारण का, जिसके लिए गिरफ्तारी की जानी है, विनिर्देश करते हुए लिखित आदेश उस अधिकारी को परिदत्त करेगा
जिससे यह अपेक्षा है कि वह गिरफ्तारी करे और इस प्रकार अपेक्षित अधिकारी उस
व्यक्ति को,
जिसे गिरफ्तार करना है, उस आदेश का सार गिरफ्तारी करने के
पूर्व सूचित करेगा और यदि वह व्यक्ति अपेक्षा करे तो उसे वह आदेश दिखा देगा।
(2) उपधारा (1) की
कोई बात किसी पुलिस अधिकारी की धारा 41 के अधीन किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने की शक्ति पर प्रभाव नहीं
डालेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 56 | Section 56 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 56 in Hindi
] –
गिरफ्तार किए गए
व्यक्ति का मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के समक्ष ले जाया जाना—
वारंट के बिना गिरफ्तारी करने वाला पुलिस अधिकारी अनावश्यक
विलंब के बिना और जमानत के संबंध में इसमें अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, उस व्यक्ति को. जो गिरफ्तार किया गया
है. उस मामले में अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष या किसी पुलिस थाने के
भारसाधक अधिकारी के समक्ष ले जाएगा या भेजेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 57 | Section 57 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 57 in Hindi
] –
गिरफ्तार किए गए
व्यक्ति का चौबीस घंटे से अधिक निरुद्ध न किया जाना—
कोई पुलिस अधिकारी वारंट के बिना गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को
उससे अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखेगा जो उस मामले की सब
परिस्थितियों में उचित है तथा ऐसी अवधि, मजिस्ट्रेट के धारा 167 के अधीन विशेष आदेश के अभाव में गिरफ्तारी के स्थान से
मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर, चौबीस घंटे से अधिक की नहीं होगी।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 58 | Section 58 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 58 in Hindi
] –
पुलिस का
गिरफ्तारियों की रिपोर्ट करना-
पुलिस थानों के भारसाधक अधिकारी जिला मजिस्ट्रेट को, या उसके ऐसा निदेश देने पर, उपखंड मजिस्ट्रेट को, अपने-अपने थानों की सीमाओं के अंदर
वारंट के बिना गिरफ्तार किए गए सब व्यक्तियों के मामलों की रिपोर्ट करेंगे, चाहे उन व्यक्तियों की जमानत ले ली गई
हो या नहीं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 59 | Section 59 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 59 in Hindi
] –
पकड़े गए व्यक्ति
का उन्मोचन—
पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति का
उन्मोचन उसी के बंधपत्र पर या जमानत पर या मजिस्ट्रेट के विशेष आदेश के अधीन ही
किया जाएगा,
अन्यथा नहीं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 60 | Section 60 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 60 in Hindi
] –
निकल भागने पर
पीछा करने और फिर पकड़ लेने की शक्ति–
(1) यदि कोई व्यक्ति विधिपूर्ण अभिरक्षा में से निकल भागता है या
छुड़ा लिया जाता है तो वह व्यक्ति, जिसकी
अभिरक्षा से वह निकल भागा है, छुड़ाया
गया है, उसका तुरंत पीछा कर सकता है और भारत
के किसी स्थान में उसे गिरफ्तार कर सकता है।
(2) उपधारा (1) के
अधीन गिरफ्तारियों को धारा 47 के उपबंध
लागू होंगे भले ही ऐसी गिरफ्तारी करने वाला व्यक्ति वारंट के अधीन कार्य न कर रहा
हो और गिरफ्तारी करने का प्राधिकार रखने वाला पुलिस अधिकारी न हो।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 60a | Section 60a in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 60a in
Hindi ] –
गिरफ्तारी का
सर्वथा संहिता के अनुसार ही किया जाना—
कोई गिरफ्तारी इस संहिता या गिरफ्तारी के लिए उपबंध करने
वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अनुसार ही की जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 61 | Section 61 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 61 in Hindi
] –
समन का प्ररूप-
न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधीन जारी किया गया प्रत्येक
समन लिखित रूप में और दो प्रतियों में, उस न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा या अन्य ऐसे अधिकारी द्वारा, जिसे उच्च न्यायालय नियम द्वारा
समय-समय पर निदिष्ट करे, हस्ताक्षरित
होगा और उस पर उस न्यायालय की मुद्रा लगी होगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 62 | Section 62 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 62 in Hindi
] –
समन की तामील कैसे
की जाए–
(1) प्रत्येक समन की तामील पुलिस अधिकारी द्वारा या ऐसे नियमों
के अधीन जो राज्य सरकार इस निमित्त बनाए, उस न्यायालय के, जिसने
वह् समन जारी किया है, किसी
अधिकारी द्वारा या अन्य लोक सेवक द्वारा की जाएगी।
(2) यदि साध्य हो तो समन किए गए व्यक्ति पर समन की तामील उसे उस
समन की दो प्रतियों में से एक का परिदान या निविदान करके वैयक्तिक रूप से की
जाएगी।
(3) प्रत्येक व्यक्ति, जिस पर समन की ऐसे तामील की गई है. यदि तामील करने वाले अधिकारी
द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाती है तो, दूसरी
प्रति पृष्ठ के भाग पर उसके लिए रसीद हस्ताक्षरित करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 63 | Section 63 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 63 in Hindi
] –
निगमित निकायों और
सोसाइटियों पर समन की तामील-
किसी निगम पर समन की तामील निगम के सचिव, स्थानीय प्रबंधक या अन्य प्रधान
अधिकारी पर तामील करके की जा सकती है या भारत में निगम के मुख्य अधिकारी के पते पर
रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेजे गए पत्र द्वारा की जा सकती है, जिस दशा में तामील तब हुई समझी जाएगी
जब डाक से साधारण रूप से वह पत्र पहुंचता।
स्पष्टीकरण-इस धारा में “निगम” से निगमित कंपनी या अन्य निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके
अंतर्गत सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत सोसाइटी भी है
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 64 | Section 64 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 64 in Hindi
] –
जब समन किए गए
व्यक्ति न मिल सकें तब तामील–
जहां समन किया गया व्यक्ति सम्यक् तत्परता बरतने पर भी न मिल
सके वहाँ समन की तामील दो प्रतियों में से एक को उसके कुटुंब के उसके साथ रहने
वाले किसी वयस्क पुरुष सदस्य के पास उस व्यक्ति के लिए छोड़कर की जा सकती है और
यदि तामील करने वाले अधिकारी द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाती है तो, जिस व्यक्ति के पास समन ऐसे छोड़ा
जाता है वह दूसरी प्रति के पृष्ठ भाग पर उसके लिए रसीद हस्ताक्षरित करेगा।
स्पष्टीकरण-सेवक, इस धारा के अर्थ में कुटुम्ब का सदस्य नहीं है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 65 | Section 65 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 65 in Hindi
] –
जब पूर्व उपबंधित
प्रकार से तामील न की जा सके तब प्रक्रिया–
यदि धारा 62, धारा 63 या धारा 64 में उपबंधित रूप से तामील सम्यक्
तत्परता बरतने पर भी न की जा सके तो तामील करने वाला अधिकारी समन की दो प्रतियों
में से एक को उस गृह या वासस्थान के, जिसमें समन किया गया व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सह्जदृश्य भाग में लगाएगा; और तब न्यायालय ऐसी जांच करने के
पश्चात् जैसी वह ठीक समझे या तो यह घोषित कर सकता है कि समन की सम्यक् तामील हो गई
है या वह ऐसीरीति से नई तामील का आदेश दे सकता है जिसे वह उचित समझे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 66 | Section 66 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 66 in Hindi
] –
सरकारी सेवक पर
तामील-
(1) जहां समन किया गया व्यक्ति सरकार की सक्रिय सेवा में है वहां
समन जारी करने वाला न्यायालय
मामूली तौर पर ऐसा समन दो प्रतियों में उस कार्यालय के प्रधान को भेजेगा जिसमें वह
व्यक्ति सेवक है और तब वह प्रधान, धारा
62 में उपबंधित प्रकार से समन की तामील
कराएगा और उस धारा द्वारा अपेक्षित पृष्ठांकन सहित उस पर अपने हस्ताक्षर करके उसे
न्यायालय को लौटा देगा।
(2) ऐसा हस्ताक्षर सम्यक तामील का साक्ष्य होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 67 | Section 67 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 67 in Hindi
] –
स्थानीय सीमाओं के
बाहर समन की तामील-
जब न्यायालय यह चाहता है कि उसके द्वारा जारी किए गए समन की
तामील उसकी स्थानीय अधिकारिता के बाहर किसी स्थान में की जाए तब वह मामूली तौर पर
ऐसा समन दो प्रतियों में उस मजिस्ट्रेट को भेजेगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर
उसकी तामील की जानी है या समन किया गया व्यक्ति निवास करता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 68 | Section 68 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 68 in Hindi
] –
ऐसे मामलों में और
जब तामील करने वाला अधिकारी उपस्थित न हो तब तामील का सबूत-
(1) जब न्यायालय द्वारा जारी किए गए समन की तामील उसकी स्थानीय
अधिकारिता के बाहर की गई है तब और ऐसे किसी मामले में जिसमें वह अधिकारी जिसने समन
की तामील की है,
मामले की सुनवाई के समय उपस्थित
नहीं है, मजिस्ट्रेट के समक्ष किया गया
तात्पर्यित यह शपथपत्र कि ऐसे समन की तामील हो गई है और समन की दूसरी प्रति, जिसका उस व्यक्ति द्वारा जिसको समन
परिदत्त या निविदत्त किया गया था, या
जिसके पास वह छोड़ा गया था (धारा 62 या
धारा 64 में उपबंधित प्रकार से), पृष्ठांकित होना तात्पर्यित है.
साक्ष्य में ग्राह्य होगी और जब तक तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, उसमें किए गए कथन सही माने जाएंगे।
(2) इस धारा में वर्णित शपथपत्र समन की दूसरी प्रति से संलग्न
किया जा सकता है और उस न्या
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 69 | Section 69 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 69 in Hindi
] –
साक्षी पर डाक
द्वारा समन की तामील–
(1) इस अध्याय की पूर्ववर्ती धाराओं में किसी बात के होते हुए भी
साक्षी के लिए समन जारी करने वाला न्यायालय, ऐसा समन जारी करने के अतिरिक्त और उसके साथ-साथ निदेश दे सकता है
कि उस समन की एक प्रति की तामील साक्षी के उस स्थान के पते पर, जहां वह मामूली तौर पर निवास करता है
या कारवार करता है या अभिलाभार्थ स्वयं काम करता है रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा की
जाए।
(2) जब साक्षी द्वारा हस्ताक्षर की गई तात्पर्यित अभिस्वीकृति या
डाक कर्मचारी द्वारा किया गया तात्पर्यित यह पृष्ठांकन कि साक्षी ने समन लेने से
इनकार कर दिया है, प्राप्त
हो जाता है तो समन जारी करने वाला न्यायालय यह घोषित कर सकता है कि समन की तामील
सम्यक् रूप से कर दी गई है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 70 | Section 70 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 70 in Hindi
] –
गिरफ्तारी के
बारंट का प्ररूप और अवधि–
(1) न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधीन जारी किया गया गिरफ्तारी
का प्रत्येक वारंट लिखित रूप में और ऐसे न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा
हस्ताक्षरित होगा और उस पर उस न्यायालय की मुद्रा लगी होगी।
(2) ऐसा प्रत्येक वारंट तब तक प्रवर्तन में रहेगा जब तक वह उसे
जारी करने वाले न्यायालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता है या जब तक वह निष्पादित
नहीं कर दिया जाता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 71 | Section 71 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 71 in Hindi
] –
प्रतिभूति लिए
जाने का निदेश देने की शक्ति–
(1) किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी करने वाला कोई
न्यायालय वारंट पर पृष्ठांकन द्वारा स्वविवेकानुसार यह निदेश दे सकता है कि यदि वह
व्यक्ति न्यायालय के समक्ष विनिर्दिष्ट समय पर और तत्पश्चात् जब तक न्यायालय द्वारा
अन्यथा निदेश नहीं दिया जाता है तब तक अपनी हाजिरी के लिए पर्याप्त प्रतिभुओं सहित
बंधपत्र निष्पादित करता है तो वह अधिकार जिसे वारंट निर्दिष्ट किया गया है. ऐसी
प्रतिभूति लेगा और उस व्यक्ति को अभिरक्षा से छोड़ देगा।
(2) पृष्ठांकन में निम्नलिखित बातें कथित होंगी:
(क) प्रतिभुओं की संख्या;
(ख) वह रकम, जिसके
लिए क्रमशः प्रतिभू और वह व्यक्ति, जिसकी
गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया गया है. आबद्ध होने हैं;
(ग) वह समय जब न्यायालय के समक्ष उसे हाजिर होना है।
(3) जब कभी इस धारा के अधीन प्रतिभूति ली जाती है तब वह अधिकारी
जिसे वारंट निर्दिष्ट है बंधपत्र न्यायालय के पास भेज देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 72 | Section 72 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 72 in Hindi
] –
वारंट किसको
निदिष्ट होंगे-
(1) गिरफ्तारी का वारंट मामूली तौर पर एक या अधिक पुलिस अधिकारियों
को निदिष्ट होगा; किंतु
यदि ऐसे वारंट का तुरंत निष्पादन आवश्यक है और कोई पुलिस अधिकारी तुरंत न मिल सके
तो वारंट जारी करने वाला न्यायालय किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को उसे निदिष्ट
कर सकता है और ऐसा व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति उसका निष्पादन करेंगे।
(2) जब बारंट एक से अधिक अधिकारियों या व्यक्तियों को निदिष्ट है
तब उसका निष्पादन उन सबके द्वारा या उनमें से किसी एक या अधिक के द्वारा किया जा
सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 73 | Section 73 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 73 in Hindi
] –
वारंट किसी भी
व्यक्ति को निदिष्ट हो सकेंगे—
(1) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट किसी
निकल भागे सिद्धदोष, उद्घोषित
अपराधी या किसी ऐसे व्यक्ति की जो किसी अजमानतीय अपराध के लिए अभियुक्त है और
गिरफ्तारी से बच रहा है, गिरफ्तारी करने के लिए वारंट अपनी
स्थानीय अधिकारिता के अंदर के किसी भी व्यक्ति को निदिष्ट कर सकता है।
(2) ऐसा व्यक्ति वारंट की प्राप्ति को लिखित रूप में अभिस्वीकार
करेगा और यदि वह व्यक्ति, जिसकी
गिरफ्तारी के लिए वह वारंट जारी किया गया है, उसके भारसाधन के अधीन किसी भूमि या अन्य संपत्ति में है या प्रवेश
करता है तो वह उस वारंट का निष्पादन करेगा।
(3) जब वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध ऐसा वारंट जारी किया गया है. गिरफ्तार कर लिया जाता
है, तब वह वारंट सहित निकटतम पुलिस
अधिकारी के हवाले कर दिया जाएगा, जो, यदि धारा 71 के अधीन प्रतिभूति नहीं ली गई है तो, उसे उस मामले में अधिकारिता रखने वाले
मजिस्ट्रेट के समक्ष भिजवाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 74 | Section 74 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 74 in Hindi
] –
पुलिस अधिकारी को निदिष्ट वारंट—
किसी पुलिस अधिकारी को निदिष्ट वारंट का निष्पादन किसी अन्य
ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा भी किया जा सकता है जिसका नाम वारंट पर उस अधिकारी
द्वारा पृष्ठांकित किया जाता है जिसे वह निदिष्ट या पृष्ठांकित है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 75 | Section 75 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 75 in Hindi
] –
वारंट के सार की
सूचना —
पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो गिरफ्तारी के वारंट का निष्पादन कर
रहा है, उस व्यक्ति को जिसे गिरफ्तार करना है, उसका सार सूचित करेगा और यदि ऐसी
अपेक्षा की जाती है तो वारंट उस व्यक्ति को दिखा देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 76 | Section 76 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 76 in Hindi
] –
गिरफ्तार किए गए
व्यक्ति का न्यायालय के समक्ष अविलम्ब लाया जाना—
पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो गिरफ्तारी के वारंट का निष्पादन
करता है गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को (धारा 71 के प्रतिभूति संबंधी उपबंधों के अधीन रहते हुए) अनावश्यक विलंब के
बिना उस न्यायालय के समक्ष लाएगा जिसके समक्ष उस व्यक्ति को पेश करने के लिए वह
विधि द्वारा अपेक्षित है
परंतु ऐसा विलंब किसी भी दशा में गिरफ्तारी के स्थान से
मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर चौबीस घंटे से अधिक
नहीं होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 77 | Section 77 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 77 in Hindi
] –
वारंट कहां
निष्पादित किया जा सकता है—
गिरफ्तारी का वारंट भारत के किसी भी स्थान में निष्पादित
किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 78 | Section 78 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 78 in Hindi
] –
अधिकारिता के बाहर
निष्पादन के लिए भेजा गया वारंट-
(1) जब वारंट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की
स्थानीय अधिकारिता के बाहर किया जाना है, तब वह न्यायालय ऐसा वारंट अपनी अधिकारिता के अंदर किसी पुलिस
अधिकारी को निदिष्ट करने के बजाय उसे डाक द्वारा या अन्यथा किसी ऐसे कार्यपालक
मजिस्ट्रेट या जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त को भेज सकता है जिसकी अधिकारिता
का स्थानीय सीमाओं के अंदर उसका निष्पादन किया जाना है, और वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिला
अधीक्षक या आयुक्त उस पर अपना नाम पृष्ठांकित करेगा और यदि साध्य है तो उसका
निष्पादन इसमें इसके पूर्व उपबंधित रीति से कराएगा।
(2) उपधारा (1) के
अधीन वारंट जारी करने वाला न्यायालय गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध
ऐसी जानकारी का सार ऐसी दस्तावेजों सहित, यदि कोई हो, जो धारा 81 के अधीन कार्रवाई करने वाले न्यायालय
को, यह विनिश्चित करने में कि उस व्यक्ति
की जमानत मंजूर की जाए या नहीं समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त हैं, वारंट के साथ भेजेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 79 | Section 79 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 79 in Hindi
] –
अधिकारिता के बाहर
निष्पादन के लिए पुलिस अधिकारी को निदिष्ट वारंट-
(1) जब पुलिस अधिकारी को निदिष्ट वारंट का निष्पादन उसे जारी
करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के बाहर किया जाना है तब वह पुलिस
अधिकारी उसे पृष्ठांकन के लिए मामूली तौर पर ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास या
पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से अनिम्न पंक्ति के पुलिस अधिकारी के पास जिसकी
अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अंदर उस वारंट का निष्पादन किया जाना है, ले जाएगा।
(2) ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी उस पर अपना नाम पृष्ठांकित
करेगा और ऐसा पृष्ठांकन उस पुलिस अधिकारी के लिए, जिसको वह वारंट निदिष्ट किया गया है, उसका निष्पादन करने के लिए पर्याप्त
प्राधिकार होगा और स्थानीय पुलिस यदि ऐसी अपेक्षा की जाती है तो ऐसे अधिकारी की
ऐसे वारंट का निष्पादन करने में सहायता करेगा।
(3) जब कभी यह विश्वास करने का कारण हो कि उस मजिस्ट्रेट या
पुलिस अधिकारी का जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर वह वारंट निष्पादित किया जाना
है, पृष्ठांकन प्राप्त करने में होने वाले
विलंब से ऐसा निष्पादन न हो पाएगा, तब
वह पुलिस अधिकारी जिसे वह निदिष्ट किया गया है उसका निष्पादन उस न्यायालय की जिसने
उसे जारी किया है, स्थानीय
अधिकारिता से परे किसी स्थान में ऐसे पृष्ठांकन के बिना कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 80 | Section 80 in The Code Of Criminal
Procedure
[ CrPC Sec. 80 in Hindi
] –
जिस व्यक्ति के
विरुद्ध वारंट जारी किया गया है, उसके गिरफ्तार होने पर प्रक्रिया-
जब गिरफ्तारी के वारंट का निष्पादन उस जिले से बाहर किया
जाता है जिसमें वह जारी किया गया था तब गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को, उस दशा के सिवाय जिसमें वह न्यायालय
जिसने वह वारंट जारी किया गिरफ्तारी के स्थान से तीस किलोमीटर के अंदर है या उस
कार्यपालक मजिस्ट्रेट या जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त से जिसकी अधिकारिता
की स्थानीय सीमाओं के अंदर गिरफ्तारी की गई थी, अधिक निकट है, या
धारा 71 के अधीन प्रतिभूति ले ली गई है, ऐसे मजिस्ट्रेट या जिला अधीक्षक या
आयुक्त के समक्ष ले जाया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 81 | Section 81 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 81 in Hindi
] –
उस मजिस्ट्रेट
द्वारा प्रक्रिया जिसके समक्ष ऐसे गिरफ्तार किया गया व्यक्ति लाया जाए–
(1) यदि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति वही व्यक्ति प्रतीत होता है
जो वारंट जारी करने वाले न्यायालय द्वारा आशयित है तो ऐसा कार्यपालक मजिस्ट्रेट या
जिला पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त उस न्यायालय के पास उसे अभिरक्षा में भेजने का
निदेश देगा:
परंतु यदि अपराध जमानतीय है और ऐसा व्यक्ति ऐसी जमानत देने
के लिए तैयार और रजामंद है जिससे ऐसे मजिस्ट्रेट, जिला अधीक्षक या आयुक्त का समाधान हो जाए या वारंट पर धारा 71 के अधीन निदेश पृष्ठांकित है और ऐसा
व्यक्ति ऐसे निदेश द्वारा अपेक्षित प्रतिभूति देने के लिए तैयार और रजामंद है तो
वह मजिस्ट्रेट,
जिला अधीक्षक या आयुक्त
यथास्थिति ऐसी जमानत या प्रतिभूति लेगा और बंधपत्र उस न्यायालय को भेज देगा जिसने
वारंट जारी किया था: ।
परंतु यह और कि यदि अपराध अजमानतीय है तो (धारा 437 के उपबंधों के अधीन रहते हुए) मुख्य
न्यायिक मजिस्ट्रेट के लिए या उस जिले के जिसमें गिरफ्तारी की गई है सेशन
न्यायाधीश के लिए धारा 78 की
उपधारा (2)
में निर्दिष्ट जानकारी और
दस्तावेजों पर विचार करने के पश्चात् ऐसे व्यक्ति को छोड़ देना विधिपूर्ण होगा।
(2) इस धारा की कोई बात पुलिस अधिकारी को धारा 71 के अधीन प्रतिभूति लेने से रोकने वाली
न समझी जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 | Section 82 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 82 in Hindi
] –
फरार व्यक्ति के
लिए उद्घोषणा–
(1) यदि किसी न्यायालय को (चाहे साक्ष्य
लेने के पश्चात् या लिए बिना) यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति जिसके
विरुद्ध उसने वारंट जारी किया है, फरार
हो गया है,
या अपने को छिपा रहा है जिससे
ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता तो ऐसा न्यायालय उससे यह अपेक्षा करने
वाली लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है कि वह व्यक्ति विनिर्दिष्ट स्थान में और
विनिर्दिष्ट समय पर, जो उस
उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम तीस दिन पश्चात् का होगा, हाजिर हो।
(2) उद्घोषणा निम्नलिखित रूप से प्रकाशित की जाएगी:
(i) (क) वह उस नगर या ग्राम के, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य स्थान में सार्वजनिक
रूप से पढ़ी जाएगी;
(ख) वह उस गृह या वासस्थान के, जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है, किसी सहजदृश्य भाग पर या ऐसे नगर या
ग्राम के किसी सह्जदृश्य स्थान पर लगाई जाएगी।
(ग) उसकी एक प्रति उस न्याय सदन के किसी सह्जदृश्य भाग पर लगाई
जाएगी;
(ii) यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह यह निदेश भी दे सकता है कि
उद्घोषणा की एक प्रति उस स्थान में, परिचालित किसी दैनिक समाचार-पत्र में प्रकाशित की जाए जहां ऐसा
व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है।
(3) उद्घोषणा जारी करने वाले न्यायालय द्वारा यह लिखित कथन कि
उद्घोषणा विनिर्दिष्ट दिन उपधारा (2) के खंड (0) में
विनिर्दिष्ट रीति से सम्यक् रूप से प्रकाशित कर दी गई है. इस बात का निश्चायक
साक्ष्य होगा कि इस धारा की अपेक्षाओं का अनुपालन कर दिया गया है और उद्घोषणा उस
दिन प्रकाशित कर दी गई थी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 83 | Section 83 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 83 in Hindi
] –
फरार व्यक्ति की
संपत्ति की कुर्की-
(1) धारा 82 के अधीन
उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय, ऐसे
कारणों से,
जो लेखबद्ध किए जाएंगे उद्घोषणा
जारी किए जाने के पश्चात् किसी भी समय, उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर अथवा दोनों प्रकार की किसी भी
संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है:
परंतु यदि उद्घोषणा जारी करते समय न्यायालय का शपथपत्र
द्वारा या अन्यथा यह समाधान हो जाता है कि वह व्यक्ति जिसके संबंध में उद्घोषणा निकाली
जाती है
(क) अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग का व्ययन करने वाला है, अथवा
(ख) अपनी समस्त संपत्ति या उसके किसी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय
अधिकारिता से हटाने वाला है, तो वह
उद्घोषणा जारी करने के साथ ही साथ कुर्की का आदेश दे सकता है।
(2) ऐसा आदेश उस जिले में, जिसमें वह दिया गया है, उस व्यक्ति की किसी भी संपत्ति की कर्की प्राधिकत करेगा और उस जिले
के बाहर की उस व्यक्ति की किसी संपत्ति की कुर्की तब प्राधिकृत करेगा जब वह उस
जिला मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसके
जिले में ऐसी संपत्ति स्थित है, पृष्ठांकित
कर दिया जाए।
(3) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है, ऋण या अन्य जंगम संपत्ति हो, तो इस धारा के अधीन कुर्की
(क) अभिग्रहण द्वारा की जाएगी ; अथवा (ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी ; अथवा
(ग) उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस संपत्ति का
परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी ; अथवा
(घ) इन रीतियों में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे।
(4) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है.
स्थावर है तो इस धारा के अधीन कुर्की राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा
में उस जिले के कलक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें वह भूमि स्थित है. और अन्य सब
दशाओं में
(क) कब्जा लेकर की जाएगी ; अथवा (ख) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी ; अथवा
(ग) उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी संपत्ति का
किराया देने या उस संपत्ति का परिदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश
द्वारा की जाएगी; अथवा ।
(घ) इन रीतियों में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी, जैसा न्यायालय ठीक समझे। (5) यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का
आदेश दिया गया है, जीवधन है
या विनश्वर प्रकृति की है तो, यदि
न्यायालय समीचीन समझता है तो वह उसके तुरंत विक्रय का आदेश दे सकता है और ऐसी दशा
में विक्रय के आगम न्यायालय के आदेश के अधीन रहेंगे।
(6) उस धारा के अधीन नियुक्त रिसीवर की शक्तियां, कर्तव्य और दायित्व वे ही होंगे जो
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन
नियुक्त रिसीवर के होते हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 84 | Section 84 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 84 in Hindi
] –
कुर्की के बारे में दावे और
आपत्तियां-
(1) यदि धारा 83 के
अधीन कुर्क की गई किसी संपत्ति के बारे में उस कुर्की की तारीख से छह मास के भीतर
कोई व्यक्ति,
जो उद्घोषित व्यक्ति से भिन्न
है, इस आधार पर दावा या उसके कुर्क किए
जाने पर आपत्ति करता है कि दावेदार या आपत्तिकर्ता का उस संपत्ति में कोई हित है
और ऐसा हित धारा 83 के अधीन
कुर्क नहीं किया जा सकता तो उस दावे या आपत्ति की जांच की जाएगी, और उसे पूर्णतः या भागतः मंजूर या
नामंजूर किया जा सकता है :
परंतु इस उपधारा द्वारा अनुज्ञात अवधि के अंदर किए गए किसी
दावे या आपत्ति को दावेदार या आपत्तिकर्ता की मृत्यु हो जाने की दशा में उसके
विधिक प्रतिनिधि द्वारा चालू रखा जा सकता है।
(2) उपधारा (1) के
अधीन दावे या आपत्तियां उस न्यायालय में, जिसके द्वारा कुर्की का आदेश जारी किया गया है, या यदि दावा या आपत्ति ऐसी संपत्ति के
बारे में है जो धारा 83 की
उपधारा (2)
के अधीन पृष्ठांकित आदेश के
अधीन कुर्क की गई है तो, उस जिले
के, जिसमें कुर्की की जाती है मुख्य
न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जा सकती है।
(3) प्रत्येक ऐसे दावे या आपत्ति की जांच उस न्यायालय द्वारा की
जाएगी जिसमें वह किया गया था की गई है :
परंतु यदि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किया
गया था की गई है तो वह उसे निपटारे के लिए अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को दे
सकता है।
(4) कोई व्यक्ति, जिसके
दावे या आपत्ति को उपधारा (1) के अधीन
आदेश द्वारा पूर्णत: या भागतः नामंजूर कर दिया गया है, ऐसे आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि
के भीतर, उस अधिकार को सिद्ध करने के लिए, जिसका दावा वह विवादग्रस्त संपत्ति के
बारे में करता है, वाद
संस्थित कर सकता है ; किंतु वह
आदेश ऐसे वाद के, यदि कोई
हो, परिणाम के अधीन रहते हुए निश्चायक
होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 85 | Section 85 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 85 in Hindi
] –
कुर्क की हुई
संपत्ति को निर्मुक्त करना, विक्रय और वापस करना—
(1) यदि उद्भोषित व्यक्ति उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट समय के अंदर
हाजिर हो जाता है तो न्यायालय संपत्ति को कुर्की से निर्मुक्त करने का आदेश देगा।
(2) यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट समय के अंदर
हाजिर नहीं होता है तो कुर्क संपत्ति, राज्य सरकार के व्ययनाधीन रहेगी, और, उसका
विक्रय कुर्की की तारीख से छह मास का अवसान हो जाने पर तथा धारा 84 के अधीन किए गए किसी दावे या आपत्ति
का उस धारा के अधीन निपटारा हो जाने पर ही किया जा सकता है किंतु यदि वह शीघ्रतया
और प्रकृत्या क्षयशील है या न्यायालय के विचार में विक्रय करना स्वामी के फायदे के
लिए होगा तो इन दोनों दशाओं में से किसी में भी न्यायालय, जब कभी ठीक समझे, उसका विक्रय करा सकता है।
(3) यदि कुर्की की तारीख से दो वर्ष के अंदर कोई व्यक्ति, जिसकी संपत्ति उपधारा (2) के अधीन राज्य सरकार के व्ययनाधीन है
या रही है,
उस न्यायालय के समक्ष, जिसके आदेश से वह संपत्ति कुर्क की गई
थी या उस न्यायालय के समक्ष, जिसके
ऐसे न्यायालय अधीनस्थ है, स्वेच्छा
से हाजिर हो जाता है या पकड़ कर लाया जाता है और उस न्यायालय को समाधानप्रद रूप
में यह साबित कर देता है कि वह वारंट के निष्पादन से बचने के प्रयोजन से फरार नहीं
हुआ या नहीं छिपा और यह कि उसे उद्घोषणा की ऐसी सूचना नहीं मिली थी जिससे वह उसमें
विनिर्दिष्ट समय के अंदर हाजिर हो सकता तो ऐसी संपत्ति का, या यदि बह् विक्रय कर दी गई है तो
विक्रय के शुद्ध आगमों का,
या यदि उसका केवल कुछ भाग विक्रय किया गया है तो ऐसे विक्रय
के शुद्ध आगमों और अवशिष्ट संपत्ति का, कुर्की के परिणामस्वरूप उपगत सब खचों को उसमें से चुका कर, उसे परिदान कर दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 86 | Section 86 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 86 in Hindi
] –
कुर्क संपत्ति की
वापसी के लिए आवेदन नामंजूर करने वाले आदेश से अपील-
धारा 85 की
उपधारा (3)
में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति, जो संपत्ति या उसके विक्रय के आगमों
के परिदान के इनकार से व्यथित है, उस
न्यायालय से अपील कर सकता है जिसमें प्रथम उल्लिखित न्यायालय के दंडादेशों से
सामान्यता या अपीलें होती हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 87 | Section 87 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 87 in Hindi
] –
समन के स्थान पर
या उसके अतिरिक्त वारंट का जारी किया जाना—
न्यायालय किसी भी ऐसे मामले में, जिसमें वह किसी व्यक्ति की हाजिरी के
लिए समन जारी करने के लिए इस संहिता द्वारा सशक्त किया गया है, अपने कारणों को अभिलिखित करने के
पश्चात्, उसकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी कर
सकता है
(क) यदि या तो ऐसा समन जारी किए जाने के पूर्व या पश्चात् किंतु
उसकी हाजिरी के लिए नियत समय के पूर्व न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण दिखाई
पड़ता है कि वह फरार हो गया है या समन का पालन न करेगा ; अथवा
(ख) यदि वह ऐसे समय पर हाजिर होने में असफल रहता है और यह साबित कर
दिया जाता है कि उस पर समन की तामील सम्यक् रूप से ऐसे समय में कर दी गई थी कि
उसके तद्नुसार हाजिर होने के लिए अवसर था और ऐसी असफलता के लिए कोई उचित प्रतिहेतु
नहीं दिया जाता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 88 | Section 88 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 88 in Hindi
] –
हाजिरी के लिए
बंधपत्र लेने की शक्ति–
जब कोई व्यक्ति, जिसकी हाजिरी या गिरफ्तारी के लिए किसी न्यायालय का पीठासीन
अधिकारी समन या वारंट जारी करने के लिए सशक्त है, ऐसे न्यायालय में उपस्थित है तब वह अधिकारी उस व्यक्ति से
अपेक्षा कर सकता है कि वह उस न्यायालय में या किसी अन्य न्यायालय में, जिसको मामला विचारण के लिए अंतरित
किया जाता है,
अपनी हाजिरी के लिए बंधपत्र, प्रतिभुओं सहित या रहित, निष्पादित करे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 89 | Section 89 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 89 in Hindi
] –
हाजिरी का बंधपत्र भंग करने पर गिरफ्तारी–
जब कोई व्यक्ति, जो इस संहिता के अधीन लिए गए किसी बंधपत्र द्वारा न्यायालय के
समक्ष हाजिर होने के लिए आबद्ध है, हाजिर
नहीं होता है तब उस न्यायालय का पीठासीन अधिकारी यह निदेश देते हुए वारंट जारी कर
सकता है कि वह व्यक्ति गिरफ्तार किया जाए और उसके समक्ष पेश किया जाए।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 90 | Section 90 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 90 in Hindi
] –
इस अध्याय के
उपबंधों का साधारणतया समनों और गिरफ्तारी के वारंटों को लागू होना–
समन और वारंट तथा उन्हें जारी करने, उनकी तामील और उनके निष्पादन संबंधी
जो उपबंध इस अध्याय में हैं वे इस संहिता के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन और
गिरफ्तारी के प्रत्येक वारंट को, यथाशक्य
लागू होंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 91 | Section 91 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 91 in Hindi
] –
दस्तावेज या अन्य
चीज पेश करने के लिए समन–
(1) जब कभी कोई न्यायालय या पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी
यह समझता है कि किसी ऐसे अन्वेषण, जांच, विचारण, या अन्य कार्यवाही के प्रयोजनों के लिए, जो इस संहिता के अधीन ऐसे न्यायालय या
अधिकारी के द्वारा या समक्ष हो रही हैं, किसी दस्तावेज या अन्य चीज का पेश किया जाना आवश्यक या वांछनीय है
तो जिस व्यक्ति के कब्जे या शक्ति में ऐसी दस्तावेज या चीज के होने का विश्वास है
उसके नाम ऐसा न्यायालय एक समन या ऐसा अधिकारी एक लिखित आदेश उससे यह अपेक्षा करते
हुए जारी कर सकता है कि उस समन या आदेश में उल्लिखित समय और स्थान पर उसे पेश करे
अथवा हाजिर हो और उसे पेश करे।।
(2) यदि कोई व्यक्ति, जिससे इस धारा के अधीन दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने की ही
अपेक्षा की गई है उसे पेश करने के लिए स्वयं हाजिर होने के बजाय उस दस्तावेज या
चीज को पेश करवा दे तो यह समझा जाएगा कि उसने उस अपेक्षा का अनुपालन कर दिया है।
(3) इस धारा की कोई बात-
(क) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और 124 या बैंककार बही साक्ष्य अधिनियम, 1891 (1891 का 13) पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी; अथवा
(ख) डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में किसी पत्र, पोस्टकार्ड, तार या अन्य दस्तावेज या किसी पार्सल
या चीज को लागू होने वाली नहीं समझी जाएगी।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 92 | Section 92 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 92 in Hindi
] –
पत्रों और तारों
के संबंध में प्रक्रिया–
(1) यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय की राय में किसी डाक या तार
प्राधिकारी की अभिरक्षा की कोई दस्तावेज, पार्सल या चीज इस संहिता के अधीन किसी अन्वेषण, जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजन के लिए चाहिए तो वह
मजिस्ट्रेट या न्यायालय, यथास्थिति, डाक या तार प्राधिकारी से यह अपेक्षा
कर सकता है कि उस दस्तावेज, पार्सल
या चीज का परिदान उस व्यक्ति को, जिसका
वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय निदेश
दे, कर दिया जाए।
(2) यदि किसी अन्य मजिस्ट्रेट की, चाहे वह कार्यपालक है या न्यायिक, या किसी पुलिस आयुक्त या जिला पुलिस
अधीक्षक की राय में ऐसी कोई दस्तावेज, पार्सल या चीज ऐसे किसी प्रयोजन के लिए चाहिए तो वह, यथास्थिति, डाक या तार प्राधिकारी से अपेक्षा कर
सकता है कि वह ऐसी दस्तावेज, पार्सल
या चीज के लिए तलाशी कराए और उसे उपधारा (1) के अधीन जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या न्यायालय के आदेशों के मिलने तक
निरुद्ध रखे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 93 | Section 93 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 93 in Hindi
] –
तलाशी-वारंट कब
जारी किया जा सकता है—
(1)(क) जहां किसी न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है कि वह
व्यक्ति, जिसको धारा 91 के अधीन समन या आदेश या धारा 92 की उपधारा (1) के अधीन अपेक्षा संबोधित की गई है या
की जाती है,
ऐसे समन या अपेक्षा द्वारा यथा
अपेक्षित दस्तावेज या चीज पेश नहीं करेगा या हो सकता है कि पेश न करे ; अथवा
(ख) जहाँ ऐसी दस्तावेज या चीज के बारे में न्यायालय को यह ज्ञात
नहीं है कि वह किसी व्यक्ति के कब्जे में है ; अथवा
(ग) जहां न्यायालय यह समझता है कि इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के
प्रयोजनों की पूर्ति साधारण तलाशी या निरीक्षण से होगी, वहां वह तलाशी-वारंट जारी कर सकता है; और वह व्यक्ति जिसे ऐसा वारंट निदिष्ट
है, उसके अनुसार और इसमें इसके पश्चात्
अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार तालशी ले सकता है या निरीक्षण कर सकता है।
(2) यदि, न्यायालय
ठीक समझता है,
तो वह वारंट में उस विशिष्ट
स्थान या उसके भाग को विनिर्दिष्ट कर सकता है और केवल उसी स्थान या भाग की तलाशी
या निरीक्षण होगा; तथा वह
व्यक्ति जिसको ऐसे वारंट के निष्पादन का भार सौंपा जाता है केवल उसी स्थान या भाग
की तलाशी लेगा या निरीक्षण करेगा जो ऐसे विनिर्दिष्ट है।
(3) इस धारा की कोई बात जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक
मजिस्ट्रेट से भिन्न किसी मजिस्ट्रेट को डाक या तार प्राधिकारी की अभिरक्षा में
किसी दस्तावेज,
पार्सल या अन्य चीज की तलाशी के
लिए वारंट जारी करने के लिए प्राधिकृत नहीं करेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 94 | Section 94 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 94 in Hindi
] –
उस स्थान की तलाशी, जिसमें चुराई हुई संपत्ति, कूटरचित दस्तावेज आदि होने का संदेह है-
(1) यदि जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलने पर और
ऐसी जांच के पश्चात् जैसी वह आवश्यक समझे, यह विश्वास करने का कारण है कि कोई स्थान चुराई हुई संपत्ति के
निक्षेप या विक्रय के लिए या किसी ऐसी आपत्तिजनक वस्तु के, जिसको यह धारा लागू होती है, निक्षेप, विक्रय या उत्पादन के लिए उपयोग में
लाया जाता है,
या कोई ऐसी आपत्तिजनक वस्तु
किसी स्थान में निक्षिप्त है, तो
वह कांस्टेबल की पंक्ति से ऊपर के किसी पुलिस अधिकारी को वारंट द्वारा यह
प्राधिकार दे सकता है कि वह
(क) उस स्थान में ऐसी सहायता के साथ, जैसी आवश्यक हो, प्रवेश करे;
(ख) वारंट में विनिर्दिष्ट रीति से उसकी तलाशी ले ;
(ग) वहाँ पाई गई किसी भी संपत्ति या वस्तु को, जिसके चुराई हुई संपत्ति या ऐसी
आपत्तिजनक वस्तु, जिसको यह
धारा लागू होती है, होने का
उसे उचित संदेह है, कब्जे
में ले;
(घ) ऐसी संपत्ति या वस्तु को मजिस्ट्रेट के पास ले जाए या अपराधी को
मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाने तक उसको उसी स्थान पर पहरे में रखे या अन्यथा उसे
किसी सुरक्षित स्थान में रखे ;
(ङ) ऐसे स्थान में पाए गए ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को अभिरक्षा में ले
और मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाए, जिसके
बारे में प्रतीत हो कि वह किसी ऐसी संपत्ति या वस्तु के निक्षेप, विक्रय या उत्पादन में यह जानते हुए
या संदेह करने का उचित कारण रखते हुए संसर्गी रहा है कि, यथास्थिति, वह चुराई हुई संपत्ति है या ऐसी
आपत्तिजनक वस्तु है, जिसको यह
धारा लागू होती है।
(2) वे आपत्तिजनक वस्तुएं, जिनको यह धारा लागू होती है. निम्नलिखित हैं:
(क) कूटकृत सिक्का;
(ख) धातु टोकन अधिनियम, 1889 (1889 का 1) के उल्लंघन में बनाए गए अथवा
सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) की
धारा 11 के अधीन तत्समय प्रवृत्त किसी
अधिसूचना के उल्लंघन में भारत में लाए गए धातु-खंड;
(ग) कूटकृत करेंसी नोट ; कूटकृत स्टाम्प ;
(घ) कूटरचित दस्तावेज
(ङ) नकली मुद्राएं;
(च) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 292 में निर्दिष्ट अश्लील वस्तुं ;
(छ) खंड (क) से (च) तक के खंडों में उल्लिखित वस्तुओं में से किसी
के उत्पादन के लिए प्रयुक्त उपकरण या सामग्री।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 95 | Section 95 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 95 in Hindi
] –
कुछ प्रकाशनों के
समपहृत होने की घोषणा करने और उनके लिए तलाशी-वारंट जारी करने की शक्ति–
(1) जहां राज्य सरकार को प्रतीत होता है कि-
(क) किसी समाचार-पत्र या पुस्तक में ; अथवा
(ख) किसी दस्तावेज में, चाहे वह कहीं भी मुद्रित हुई हो, कोई ऐसी बात अंतर्विष्ट है जिसका प्रकाशन भारतीय दंड संहिता
(1860 का 45) की धारा 124क या धारा 153क या धारा 153ख या धारा 292 या धारा 293 या धारा 295क के अधीन दंडनीय है, वहां राज्य सरकार ऐसी बात अंतर्विष्ट
करने वाले समाचार-पत्र के अंक की प्रत्येक प्रति का और ऐसी पुस्तक या अन्य
दस्तावेज की प्रत्येक प्रति का सरकार के पक्ष में समपहरण कर लिए जाने की घोषणा, अपनी राय के आधारों का कथन करते हुए, अधिसूचना द्वारा कर सकती है और तब
भारत में, जहाँ भी वह मिले, कोई भी पुलिस अधिकारी उसे अभिगृहीत कर
सकता है और कोई मजिस्ट्रेट, उप-निरीक्षक
से अनिम्न पंक्ति के किसी पुलिस अधिकारी को, किसी ऐसे परिसर में, जहां ऐसे किसी अंक की कोई प्रति या ऐसी कोई पुस्तक या अन्य
दस्तावेज है या उसके होने का उचित संदेह है, प्रवेश करने और उसके लिए तलाशी लेने के लिए वारंट द्वारा प्राधिकृत
कर सकता है।
(2) इस धारा में और धारा 96 में-
(क) “समाचार-पत्र” और “पुस्तक के वे ही अर्थ होंगे जो प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण
अधिनियम,
1867 (1867 का 25) में हैं,
(ख) “दस्तावेज” के अंतर्गत रंगचित्र रेखाचित्र या फोटोचित्र
या अन्य दृश्यरूपण भी हैं।
(3) इस धारा के अधीन पारित किसी आदेश या की गई किसी कार्रवाई को
किसी न्यायालय में धारा 96 के
उपबंधों के अनुसार ही प्रश्नगत किया जाएगा अन्यथा नहीं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 96 | Section 96 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 96 in Hindi
] –
समपहरण की घोषणा
को अपास्त करने के लिए उच्च न्यायालय में आवेदन–
(1) किसी ऐसे समाचार-पत्र, पुस्तक या अन्य दस्तावेज में, जिसके बारे में धारा 95 के अधीन समपहरण की घोषणा की गई है, कोई हित रखने वाला कोई व्यक्ति उस घोषणा के राजपत्र में
प्रकाशन की तारीख से दो मास के अंदर उस घोषणा को इस आधार पर अपास्त कराने के लिए
उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकता है कि समाचार-पत्र के उस अंक या उस पुस्तक अथवा
अन्य दस्तावेज में, जिसके
बारे में वह घोषणा की गई थी ; कोई
ऐसी बात अंतर्विष्ट नहीं है जो धारा 95 की उपधारा (1) में
निर्दिष्ट है।
(2) जहां उच्च न्यायालय में तीन या अधिक न्यायाधीश हैं, वहां ऐसा प्रत्येक आवेदन उच्च
न्यायालय के तीन न्यायाधीशों से बनी विशेष न्यायपीठ द्वारा सुना और अवधारित किया
जाएगा और जहां उच्च न्यायालय में तीन से कम न्यायाधीश हैं वहां ऐसी विशेष न्यायपीठ
में उस उच्च न्यायालय के सब न्यायाधीश होंगे।
(3) किसी समाचार-पत्र के संबंध में ऐसे किसी आवेदन की सुनवाई में, उस समाचार-पत्र में, जिसकी बाबत समपहरण की घोषणा की गई थी, अंतर्विष्ट शब्दों, चिह्नों या दृश्यरूपणों की प्रकृति या
प्रवृत्ति के सबूत में सहायता के लिए उस समाचार-पत्र की कोई प्रति साक्ष्य में दी
जा सकती है।
(4) यदि उच्च न्यायालय का इस बारे में समाधान नहीं होता है कि
समाचार-पत्र के उस अंक में या उस पुस्तक या अन्य दस्तावेज में, जिसके बारे में वह आवेदन किया गया है, कोई ऐसी बात अंतर्विष्ट है जो धारा 95 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट है, तो वह समपहरण की घोषणा को अपास्त कर
देगा।
(5) जहाँ उन न्यायाधीशों में, जिनसे विशेष न्यायपीठ बनी है, मतभेद है वहाँ विनिश्चय उन न्यायाधीशों की बहुसंख्या की राय के
अनुसार होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 97 | Section 97 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 97 in Hindi
] –
सदोष परिरुद्ध
व्यक्तियों के लिए तलाशी-
यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास
करने का कारण है कि कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में परिरुद्ध है, जिनमें वह परिरोध अपराध की कोटि में
आता है, तो वह तलाशी-वारंट जारी कर सकता है और
वह व्यक्ति,
जिसको ऐसा वारंट निदिष्ट किया
जाता है, ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति के लिए तलाशी ले
सकता है, और ऐसी तलाशी तद्नुसार ही ली जाएगी और
यदि वह व्यक्ति मिल जाए, तो उसे
तुरंत मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाया जाएगा, जो ऐसा आदेश करेगा जैसा उस मामले की परिस्थितियों में उचित प्रतीत
हो।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 98 | Section 98 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 98 in Hindi
] –
अपहृत स्त्रियों
को वापस करने के लिए विवश करने की शक्ति—
किसी स्त्री या अठारह वर्ष से कम आयु की किसी बालिका के किसी
विधिविरुद्ध प्रयोजन के लिए अपहृत किए जाने या विधिविरुद्ध निरुद्ध रखे जाने का
शपथ पर परिवाद किए जाने की दशा में जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट यह आदेश कर सकता
है कि उस स्त्री को तुरंत स्वतंत्र किया जाए या बह् बालिका उसके पति, माता-पिता, संरक्षक या अन्य व्यक्ति को, जो उस बालिका का विधिपूर्ण भारसाधक है, तुरंत वापस कर दी जाए और ऐसे आदेश का
अनुपालन ऐसे बल के प्रयोग द्वारा, जैसा
आवश्यक हो,
करा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 99 | Section 99 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 99 in Hindi
] –
तलाशी-वारंटों का
निदेशन आदि–
धारा 38, 70, 72, 74, 77, 78 और 79 के उपबंध, जहां तक हो सके, उन सब तलाशी-वारंटों को लागू होंगे जो
धारा 93, धारा 94, धारा 95 या धारा 97 के अधीन किए जाते हैं।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 100 | Section 100 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 100 in
Hindi ] –
बंद स्थान के
भारसाधक व्यक्ति तलाशी लेने देंगे—
(1) जब कभी इस अध्याय के अधीन तलाशी लिए जाने या निरीक्षण किए
जाने वाला कोई स्थान बंद है तब उस स्थान में निवास करने वाला या उसका भारसाधक
व्यक्ति उस अधिकारी या अन्य व्यक्ति की, जो वारंट
का निष्पादन कर रहा है, मांग पर
और वारंट के पेश किए जाने पर उसे उसमें अबाध प्रवेश करने देगा और वहां तलाशी लेने
के लिए सब उचित सुविधाएं देगा।
(2) यदि उस स्थान में इस प्रकार प्रवेश प्राप्त नहीं हो सकता है
तो वह अधिकारी या अन्य व्यक्ति, जो
वारंट का निष्पादन कर रहा है धारा 47 की उपधारा (2) द्वारा
उपबंधित रीति से कार्यवाही कर सकेगा।
(3) जहां किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में, जो ऐसे स्थान में या उसके आसपास है, उचित रूप से यह संदेह किया जाता है कि
वह अपने शरीर पर कोई ऐसी वस्तु छिपाए हुए है जिसके लिए तलाशी ली जानी चाहिए तो उस
व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती है और यदि वह व्यक्ति स्त्री है, तो तलाशी शिष्टता का पूर्ण ध्यान रखते
हुए अन्य स्त्री द्वारा ली जाएगी।
(4) इस अध्याय के अधीन तलाशी लेने के पूर्व ऐसा अधिकारी या अन्य
व्यक्ति, जब तलाशी लेने ही वाला हो, तलाशी में हाजिर रहने और उसके साक्षी
बनने के लिए उस मुहल्ले के, जिसमें
तलाशी लिया जाने वाला स्थान है, दो
या अधिक स्वतंत्र और प्रतिष्ठित निवासियों को या यदि उक्त मुहल्ले का ऐसा कोई
निवासी नहीं मिलता है या उस तलाशी का साक्षी होने के लिए रजामंद नहीं है तो किसी
अन्य मुहल्ले के ऐसे निवासियों को बुलाएगा और उनको या उनमें से किसी को ऐसा करने
के लिए लिखित आदेश जारी कर सकेगा।
(5) तलाशी उनकी उपस्थिति में ली जाएगी और ऐसी तलाशी के अनुक्रम
में अभिगृहीत सब चीजों की और जिन-जिन स्थानों में वे पाई गई हैं उनकी सूची ऐसे
अधिकारी या अन्य व्यक्ति द्वारा तैयार की जाएगी और ऐसे साक्षियों द्वारा उस पर
हस्ताक्षर किए जाएंगे, किंतु इस
धारा के अधीन तलाशी के साक्षी बनने वाले किसी व्यक्ति से, तलाशी के साक्षी के रूप में न्यायालय
में हाजिर होने की अपेक्षा उस दशा में ही की जाएगी जब वह न्यायालय द्वारा विशेष
रूप से समन किया गया हो।
(6) तलाशी लिए जाने वाले स्थान के अधिभोगी को या उसकी ओर से किसी
व्यक्ति को तलाशी के दौरान हाजिर रहने की अनुज्ञा प्रत्येक दशा में दी जाएगी और इस
धारा के अधीन तैयार की गई उक्त साक्षियों द्वारा हस्ताक्षरित सूची की एक प्रतिलिपि
ऐसे अधिभोगी या ऐसे व्यक्ति को परिदत्त की जाएगी।
(7) जब किसी व्यक्ति की तलाशी उपधारा (3) के अधीन ली जाती है तब कब्जे में ली
गई सब चीजों की सूची तैयार की जाएगी और उसकी एक प्रतिलिपि ऐसे व्यक्ति को परिदत्त
की जाएगी।
(8) कोई व्यक्ति जो इस धारा के अधीन तलाशी में हाजिर रहने और
साक्षी बनने के लिए ऐसे लिखित आदेश द्वारा, जो उसे परिदत्त या निविदत्त किया गया है, बुलाए जाने पर, ऐसा करने से उचित कारण के बिना इनकार
या उसमें उपेक्षा करेगा, उसके
बारे में यह समझा जाएगा कि उसने भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 187 के अधीन अपराध किया है।
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