दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 101 | Section
101 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 101 in Hindi ] –
अधिकारिता
के परे तलाशी में पाई गई चीजों का व्ययन–
जब तलाशी-वारंट को किसी ऐसे स्थान में निष्पादित करने में, जो उस न्यायालय की जिसने उसे जारी
किया है, स्थानीय अधिकारिता से परे है, उन चीजों में से, जिनके लिए तलाशी ली गई है, कोई चीजें पाई जाएं तब वे चीजें, इसमें इसके पश्चात् अंतर्विष्ट
उपबंधों के अधीन तैयार की गई, उनकी
सूची के सहित उस न्यायालय के समक्ष, जिसने वारंट जारी किया था तुरंत ले जाई जाएंगी किंतु यदि बह् स्थान
ऐसे न्यायालय की अपेक्षा उस मजिस्ट्रेट के अधिक समीप है, जो वहां अधिकारिता रखता है, तो सूची और चीजें उस मजिस्ट्रेट के
समक्ष तुंरत ले जाई जाएंगी और जब तक तत्प्रतिकूल अच्छा कारण न हो, वह मजिस्ट्रेट उन्हें ऐसे न्यायालय के
पास ले जाने के लिए प्राधिकृत करने का आदेश देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 102 | Section
102 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 102 in Hindi ] –
कुछ संपत्ति
को अभिगृहीत करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति–
(1) कोई पुलिस अधिकारी किसी ऐसी संपत्ति को, अभिगृहीत कर सकता है जिसके बारे में
यह अभिकथन या संदेह है कि वह चुराई हुई है अथवा जो ऐसी परिस्थितियों में पाई जाती
है, जिनसे किसी अपराध के किए जाने का
संदेह हो।
(2) यदि ऐसा पुलिस अधिकारी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के
अधीनस्थ है तो वह उस अधिग्रहण की रिपोर्ट उस अधिकारी को तत्काल देगा।
(3) उपधारा (1) के अधीन कार्य करने वाला प्रत्येक पुलिस अधिकारी अधिकारिता रखने
वाले मजिस्ट्रेट को अभिग्रह्ण की रिपोर्ट तुरंत देगा और जहां अभिगृहीत संपत्ति ऐसी
है कि वह सुगमता से न्यायालय में नहीं लाई जा सकती है या जहां ऐसी संपत्ति की
अभिरक्षा के लिए उचित स्थान प्राप्त करने में कठिनाई है, या जहां अन्वेषण के प्रयोजन के लिए
संपत्ति को पुलिस अभिरक्षा में निरंतर रखा जाना आवश्यक नहीं समझा जाता है। वहां वह
उस संपत्ति को किसी ऐसे व्यक्ति की अभिरक्षा में देगा जो यह वचनबंध करते हुए
बंधपत्र निष्पादित करे कि वह संपत्ति को जब कभी अपेक्षा की जाए तब न्यायालय के
समक्ष पेश करेगा और उसके ब्ययन की बाबत न्यायालय के अतिरिक्त आदेशों का पालन
करेगा:
परंतु जहाँ उपधारा (1) के अधीन अभिगृहीत की गई संपत्ति शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील हो
और यदि ऐसी संपत्ति के कब्जे का हकदार व्यक्ति अज्ञात है अथवा अनुपस्थित है और ऐसी
संपत्ति का मूल्य पांच सौ रुपए से कम है, तो उसका पुलिस अधीक्षक के आदेश से तत्काल नीलामी द्वारा विक्रय
किया जा सकेगा और धारा 457 और
धारा 458 के उपबंध, यथासाध्य निकटतम रूप में, ऐसे विक्रय के शुद्ध आगमों को लागू होंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 103 | Section
103 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 103 in Hindi ] –
मजिस्ट्रेट
अपनी उपस्थिति में तलाशी ली जाने का निदेश दे सकता है –
कोई मजिस्ट्रेट किसी स्थान की, जिसकी तलाशी के लिए वह तलाशी वारंट
जारी करने के लिए सक्षम है, अपनी
उपस्थिति में तलाशी ली जाने का निदेश दे सकता है।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 104 | Section
104 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 104 in Hindi ] –
पेश की गई
दस्तावेज आदि, को परिबद्ध करने की शक्ति-
यदि कोई न्यायालय ठीक समझता है, तो वह किसी दस्तावेज या चीज को, जो इस संहिता के अधीन उसके समक्ष पेश
की गई है,
परिबद्ध कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105 | Section
105 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105 in Hindi ] –
आदेशिकाओं
के बारे में व्यतिकारी व्यवस्था—
(1) जहां उन राज्य क्षेत्रों का कोई न्यायालय, जिन पर इस संहिता का विस्तार है
(जिन्हें इसके पश्चात् इस धारा में उक्त राज्यक्षेत्र कहा गया है। यह चाहता है कि-
(क) किसी अभियुक्त व्यक्ति के नाम किसी समन की ; अथवा
(ख) किसी अभियुक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए किसी वारंट की ; अथवा
(ग) किसी व्यक्ति के नाम यह अपेक्षा करने वाले ऐसे किसी समन की कि
वह किसी दस्तावेज या अन्य चीज को पेश करे, अथवा हाजिर हो और उसे पेश करे; अथवा
(घ) किसी तलाशी-वारंट की,
[जो उस न्यायालय द्वारा जारी किया गया है, तामील या निष्पादन किसी ऐसे स्थान में
किया जाए जो-
(i) उक्त राज्यक्षेत्रों के बाहर भारत में किसी राज्य या क्षेत्र
के न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के अंदर है, वहां वह ऐसे समन या वारंट की तामील या निष्पादन के लिए, दो प्रतियों में, उस न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के
पास डाक द्वारा या अन्यथा भेज सकता है ; और जहां खंड (क) या खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी समन की तामील इस
प्रकार कर दी गई है वहां धारा 68 के उपबंध उस समन के संबंध में ऐसे लागू होंगे, मानो जिस न्यायालय को वह भेजा गया है
उसका पीठासीन अधिकारी उक्त राज्यक्षेत्रों में मजिस्ट्रेट है;
(ii) भारत के बाहर किसी ऐसे देश या स्थान में है, जिसकी बाबत केंद्रीय सरकार द्वारा, दांडिक मामलों के संबंध में समन या
वारंट की तामील या निष्पादन के लिए ऐसे देश या स्थान की सरकार के (जिसे इस धारा
में इसके पश्चात् संविदाकारी राज्य कहा गया है। साथ व्यवस्था की गई है, वहां वह ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को निर्दिष्ट
ऐसे समन या वारंट को, दो
प्रतियों में,
ऐसे प्ररूप में और पारेषण के लिए ऐसे प्राधिकारी को
भेजेगा, जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
(2) जहाँ उक्त राज्यक्षेत्रों के न्यायालय को-
(क) किसी अभियुक्त व्यक्ति के नाम कोई समन ; अथवा
(ख) किसी अभियुक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए कोई वारंट ; अथवा
(ग) किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा करने वाला ऐसा कोई समन कि वह कोई
दस्तावेज या अन्य चीज पेश करे अथवा हाजिर हो और उसे पेश करे; अथवा
(घ) कोई तलाशी-वारंट,
[जो निम्नलिखित में से किसी के द्वारा जारी किया गया है :
(1) उक्त राज्यक्षेत्रों के बाहर भारत में किसी राज्य या क्षेत्र
के न्यायालय :
(2) किसी संविदाकारी राज्य का कोई न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट,
तामील या निष्पादन के लिए प्राप्त होता है, वहां वह उसकी तामील या निष्पादन ऐसे
कराएगा] मानो वह ऐसा समन या वारंट है जो उसे उक्त राज्यक्षेत्रों के किसी अन्य
न्यायालय से अपनी स्थानीय अधिकारिता के अंदर तामील या निष्पादन के लिए प्राप्त हुआ
है ; और जहां
(i) गिरफ्तारी का वारंट निष्पादित कर दिया जाता है, वहां गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के बारे
में कार्यवाही यथासंभव धारा 80 और 81 द्वारा
विहित क्रिया के अनुसार की जाएगी,
(ii) तलाशी-वारंट निष्पादित कर दिया जाता है वहां तलाशी में पाई
गई चीजों के बारे में कार्यवाही यथासंभव धारा 101 में विहित प्रक्रिया के अनुसार की जाएगी:
परंतु उस मामले में, जहां संविदाकारी राज्य से प्राप्त समन या तलाशी वारंट का निष्पादन
कर दिया गया है, तलाशी
में पेश किए गए दस्तावेज या चीजें या पाई गई चीजें, समन या तलाशी वारंट जारी करने वाले
न्यायालय की,
ऐसे प्राधिकारी की मार्फत
अग्रेषित की जाएंगी जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस
निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105a | Section
105a in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105a in Hindi ] –
परिभाषाएं-
इस अध्याय में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,
(क) “संविदाकारी
राज्य से भारत के बाहर कोई देश या स्थान अभिप्रेत है जिसके संबंध में केंद्रीय
सरकार द्वारा संधि के माध्यम से या अन्यथा ऐसे देश की सरकार के साथ कोई व्यवस्था
की गई है।
(ख) “पहचान
करना” के अंतर्गत यह सबूत स्थापित करना है
कि संपत्ति किसी अपराध के किए जाने से व्युत्पन्न हुई है या उसमें उपयोग की गई है।
(ग) “अपराध के
आगम” से आपराधिक क्रियाकलापों के (जिनके
अंतर्गत मुद्रा अंतरणों को अंतर्वलित करने वाले अपराध है) परिणामस्वरूप किसी
व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्युत्पन्न या अभिप्राप्त कोई
संपत्ति या ऐसी किसी संपत्ति का मूल्य अभिप्रेत है;
(घ) “संपत्ति
से भौतिक या अभौतिक”, जंगम
या स्थावर,
मूर्त या अमूर्त हर प्रकार की
संपत्ति और आस्ति तथा ऐसी संपत्ति या आस्ति में हक या हित को साक्ष्यित करने वाला
विलेख और लिखत अभिप्रेत है जो किसी अपराध के किए जाने से व्युत्पन्न होती है या
उसमें उपयोग की जाती है और इसके अंतर्गत अपराध के आगम के माध्यम से अभिप्राप्त
संपत्ति है;
(ङ) “पता
लगाना” से किसी संपत्ति की प्रकृति, उसका स्रोत, व्ययन, संचलन, हक या स्वामित्व का अवधारण करना
अभिप्रेत है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105b | Section
105b in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105b in Hindi ] –
व्यक्तियों
का अंतरण सुनिश्चित करने में सहायता–
(1) जहां भारत का कोई न्यायालय, किसी आपराधिक मामले के संबंध में यह
चाहता है कि हाजिर होने अथवा किसी दस्तावेज या अन्य चीज को पेश करने के लिए, किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए
किसी वारंट का,
जो उस न्यायालय द्वारा जारी
किया गया है,
निष्पादन किसी संविदाकारी राज्य
के किसी स्थान में किया जाए वहां वह ऐसे वारंट को दो प्रतियों में और ऐसे प्ररूप
में ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश
या मजिस्ट्रेट को, ऐसे
प्राधिकारी के माध्यम से भेजेगा, जो
केंद्रीय सरकार, अधिसूचना
द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, और, यथास्थिति, वह न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट उसका
निष्पादन कराएगा।
(2) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी, यदि, किसी अपराध के किसी अन्वेषण या किसी
जांच के दौरान अन्वेषण अधिकारी या अन्वेषण अधिकारी से पंक्ति में वरिष्ठ किसी
अधिकारी द्वारा यह आवेदन किया जाता है कि किसी ऐसे व्यक्ति की, जो किसी संविदाकारी राज्य के किसी स्थान
में है, ऐसे अन्वेषण या जांच के संबंध में
हाजिरी अपेक्षित है और न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी हाजिरी अपेक्षित
है तो वह उक्त व्यक्ति के विरुद्ध ऐसे समन या वारंट को तामील और निष्पादन कराने के
लिए, दो प्रतियों में, ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को ऐसे
प्ररूप में जारी करेगा, जो
केंद्रीय सरकार, अधिसूचना
द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
(3) जहाँ भारत किसी न्यायालय को, किसी आपराधिक मामले के संबंध में, किसी संविदाकारी राज्य के किसी
न्यायालय,
न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा
जारी किया गया कोई वारंट किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए प्राप्त होता है जिसमें
ऐसे व्यक्ति से उस न्यायालय में या किसी अन्य अन्वेषण अभिकरण के समक्ष हाजिर होने
अथवा हाजिर होने और कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने की अपेक्षा की गई है वहां
वह उसका निष्पादन इस प्रकार कराएगा मानो यह ऐसा वारंट हो जो उसे भारत के किसी अन्य
न्यायालय से अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर निष्पादन के लिए प्राप्त हुआ है।
(4) जहां उपधारा (3) के अनुसरण में किसी संविदाकारी राज्य को अंतरित कोई व्यक्ति भारत
में बंदी है वहां भारत का न्यायालय या केंद्रीय सरकार ऐसी शर्ते अधिरोपित कर सकेगी
जो वह न्यायालय या सरकार ठीक समझे।
(5) जहां उपधारा (1) या उपधारा (2) के अनुसरण में भारत को अंतरित कोई व्यक्ति किसी संविदाकारी राज्य
में बंदी है वहां भारत का न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि उन शर्तों का, जिनके अधीन बंदी भारत को अंतरित किया
जाता है. अनुपालन किया जाए और ऐसे बंदी को ऐसी शर्तों के अधीन अभिरक्षा में रखा
जाएगा, जो केंद्रीय सरकार लिखित रूप में
निर्दिष्ट करे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105c | Section
105c in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105c in Hindi ] –
संपत्ति की
कुर्की या समपहरण के आदेशों के संबंध में सहायता–
(1) जहां भारत के किसी न्यायालय के पास यह विश्वास करने के
युक्तियुक्त आधार हैं कि किसी व्यक्ति द्वारा अभिप्राप्त कोई संपत्ति ऐसे व्यक्ति
को किसी अपराध के किए जाने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्युत्पन्न या
अभिप्राप्त हुई है वहां वह ऐसी संपत्ति की कुर्की या समपहरण का कोई आदेश दे सकेगा
जो वह धारा 105च से धारा 105ब (दोनों सहित) के उपबंधों के अधीन
ठीक समझे।
(2) जहाँ न्यायालय ने उपधारा (1) के अधीन किसी संपत्ति की कुर्की या
समपहरण का कोई आदेश दिया है और ऐसी संपत्ति के किसी संविदाकारी राज्य में होने का
संदेह है वहां न्यायालय, संविदाकारी
राज्य के न्यायालय या प्राधिकारी को ऐसे आदेश के निष्पादन के लिए अनुरोध-पत्र जारी
कर सकेगा।
(3) जहां केंद्रीय सरकार को किसी संविदाकारी राज्य के किसी
न्यायालय या किसी प्राधिकारी से अनुरोध-पत्र प्राप्त होता है जिसमें किसी ऐसी
संपत्ति की भारत में कुर्की या समपहरण करने का अनुरोध किया गया है जो किसी व्यक्ति
द्वारा किसी ऐसे अपराध के किए जाने से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्युत्पन्न
या अभिप्राप्त की गई है जो उस संविदाकारी राज्य में किया गया है वहां केंद्रीय
सरकार, ऐसा अनुरोध-पत्र ऐसे किसी न्यायालय को, जिसे वह ठीक समझे, यथास्थिति, धारा 105घ से धारा 105ब (दोनों सहित) के या तत्समय प्रवृत्त
किसी अन्य विधि के उपबंधों के अनुसार निष्पादन के लिए अग्रेषित कर सकेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105d | Section
105d in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105d in Hindi ] –
विधिविरुद्धतया
अर्जित संपत्ति की पहचान करना—
(1) न्यायालय, धारा
105ग की उपधारा (1) के अधीन या उसकी उपधारा (8) के अधीन अनुरोध-पत्र प्राप्त होने पर
पुलिस उप-निरीक्षक से अनिम्न पंक्ति के किसी पुलिस अधिकारी को ऐसी संपत्ति का पता
लगाने और पहचान करने के लिए सभी आवश्यक कार्रवाई करने के लिए निदेश देगा।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट कार्रवाई के अंतर्गत, किसी व्यक्ति, स्थान, संपत्ति, आस्ति, दस्तावेज, किसी बैंक या सार्वजनिक वित्तीय संस्था
की लेखाबही या किसी अन्य सुसंगत विषय की बाबत जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण भी हो सकेगा।
(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट कोई जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण, उक्त न्यायालय द्वारा इस निमित्त दिए गए निदेशों के अनुसार उपधारा
(1) में उल्लिखित अधिकारी द्वारा किया
जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105e | Section
105e in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105e in Hindi ] –
सम्पत्ति का
अभिग्रहण या कुर्की-
(1) जहां धारा 105च के अधीन जांच या अन्वेषण करने वाले किसी अधिकारी के पास यह
विश्वास करने का कारण है कि किसी संपत्ति के, जिसके संबंध में ऐसी जांच या अन्वेषण किया जा रहा है, छिपाए जाने, अंतरित किए जाने या उसके विषय में
किसी रीति से व्यवहार किए जाने की संभावना है जिसका परिणाम ऐसी संपत्ति का ब्ययन
होगा वहाँ वह उक्त संपत्ति का अभिग्रहण करने का आदेश कर सकेगा और जहां ऐसी संपत्ति
का अभिग्रहण करना साध्य नहीं है वहां वह कुर्की का आदेश यह निदेश देते हुए कर
सकेगा कि ऐसी संपत्ति ऐसा आदेश करने वाले अधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना अंतरित
नहीं की जाएगी या उसके विषय में अन्यथा व्यवहार नहीं किया जाएगा और ऐसे आदेश की एक
प्रति की तामील संबंधित व्यक्ति पर की जाएगी।
(2) उपधारा (1) के अधीन किए गए किसी आदेश का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा, जब तक उक्त आदेश की, उसके किए जाने से तीस दिन की अवधि के
भीतर उक्त न्यायालय के आदेश द्वारा पुष्टि नहीं कर दी जाती है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105f | Section
105f in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105f in Hindi ] –
इस अध्याय
के अधीन अभिग्रहीत या समपहृत संपत्ति का प्रबंध-
(1) न्यायालय उस क्षेत्र के, जहां संपत्ति स्थित है, जिला मजिस्ट्रेट को, या अन्य किसी अधिकारी को, जो जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नामनिर्देशित किया जाए, ऐसी संपत्ति के प्रशासक के कृत्यों का
पालन करने के लिए नियुक्त कर सकेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किया गया प्रशासक, उस संपत्ति को, जिसके संबंध में धारा 105ङ की उपधारा (1) के अधीन या धारा 105ज के अधीन आदेश किया गया है, ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन
रहते हुए,
जो केंद्रीय सरकार द्वारा
विनिर्दिष्ट की जाएं, प्राप्त
करेगा और उसका प्रबंध करेगा।
(3) प्रशासक, केंद्रीय
सरकार को समपहृत संपत्ति के व्ययन के लिए ऐसे उपाय भी करेगा, जो केंद्रीय सरकार निदिष्ट करे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105g | Section
105g in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105g in Hindi ] –
संपत्ति के
समपहरण की सूचना-
(1) यदि, धारा 105घ के अधीन जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण के परिणामस्वरूप, न्यायालय के पास यह विश्वास करने का
कारण है कि सभी या कोई संपत्ति, अपराध
का आगम है तो वह ऐसे व्यक्ति पर (जिसे इसमें इसके पश्चात् प्रभावित व्यक्ति कहा
गया है। ऐसी सूचना की तामील कर सकेगा जिसमें उससे यह अपेक्षा की गई हो कि वह उस
सूचना में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर उस आय, उपार्जन या आस्तियों के वे खोत, जिनसे या जिनके द्वारा उसने ऐसी
संपत्ति अर्जित की है, वह
साक्ष्य जिस पर वह निर्भर करता है तथा अन्य सुसंगत जानकारी और विशिष्टियां
उपदर्शित करे और यह कारण बताए कि, यथास्थिति, ऐसी सभी या किसी संपत्ति को अपराध का
आगम क्यों न घोषित किया जाए और उसे केंद्रीय सरकार को क्यों न समपहृत कर लिया जाए।
(2) जहां किसी व्यक्ति को उपधारा (1) के अधीन सूचना में यह विनिर्दिष्ट
किया जाता है कि कोई संपत्ति ऐसे व्यक्ति की ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा धारित
है वहां सूचना की एक प्रति की ऐसे अन्य व्यक्ति पर भी तामील की जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105h | Section
105h in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105h in Hindi ] –
कतिपय
मामलों में संपत्ति का समपहरण—
(1) न्यायालय, धारा
1050 के अधीन जारी की गई कारण बताओ सूचना
के स्पष्टीकरण पर, यदि कोई
हो, और उसके समक्ष उपलब्ध सामग्रियों पर
विचार करने के पश्चात् तथा प्रभावित व्यक्ति को (और ऐसे मामले में जहां प्रभावित
व्यक्ति सूचना में विनिर्दिष्ट कोई संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से धारित
करता है वहां ऐसे अन्य व्यक्ति को भी) सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात्, आदेश द्वारा, अपना यह निष्कर्ष अभिलिखित करेगा कि
प्रश्नगत सभी या कोई संपत्ति अपराध का आगम है या नहीं:
परंतु यदि प्रभावित व्यक्ति (और मामले में जहां प्रभावित
व्यक्ति सूचना में विनिर्दिष्ट कोई संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से धारित
करता है वहां ऐसा अन्य व्यक्ति भी) न्यायालय के समक्ष हाजिर नहीं होता है या कारण
बताओ सूचना में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर उसके समक्ष अपना मामला
अभ्यावेदित नहीं करता है तो न्यायालय, अपने समक्ष उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर इस उपधारा के अधीन एकपक्षीय
निष्कर्ष अभिलिखित करने के लिए अग्रसर हो सकेगा।
(2) जहाँ न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि कारण बताओ सूचना
में निर्दिष्ट संपत्ति में से कुछ अपराध का आगम है किंतु ऐसी संपत्ति की
विनिर्दिष्ट रूप से पहचान करना संभव नहीं है वहां न्यायालय के लिए ऐसी संपत्ति को
विनिर्दिष्ट करना जो उसके सर्वोत्तम
अधीन निष्कर्ष अभिलिखित करना विधिपूर्ण होगा।
(3) जहां न्यायालय इस धारा के अधीन इस आशय का निष्कर्ष अभिलिखित
करता है कि कोई संपत्ति अपराध का आगम है वहां ऐसी संपत्ति सभी विल्लंगमों से मुक्त
होकर केंद्रीय सरकार को समपहृत हो जाएगी।
(4) जहां किसी कंपनी के कोई शेयर इस धारा के अधीन केंद्रीय सरकार
को समपहृत हो जाते हैं वहां कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में या कंपनी के संगम-अनुच्छेद में
किसी बात के होते हुए भी, कंपनी
केंद्रीय सरकार को ऐसे शेयरों के अंतरिती के रूप में तुरंत रजिस्टर करेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105i | Section
105i in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105i in Hindi ] –
समपहरण के
बदले जुर्माना—
(1) जहाँ न्यायालय यह घोषणा करता है कि कोई संपत्ति धारा 105ज के अधीन केंद्रीय सरकार को समपहृत
हो गई है और यह ऐसा मामला है जहां ऐसी संपत्ति के केवल कुछ भाग का स्रोत न्यायालय
को समाधानप्रद रूप में साबित नहीं किया गया है वहां वह प्रभावित व्यक्ति को, समपहरण के बदले में ऐसे भाग के बाजार
मूल्य के बराबर जुर्माने का संदाय करने का विकल्प देते हुए, आदेश देगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन जुर्माना अधिरोपित करने का आदेश देने के पूर्व, प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का
युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा।
(3) जहां प्रभावित व्यक्ति, उपधारा (1) के
अधीन देय जुर्माने का ऐसे समय के भीतर, जो उस निमित्त अनुज्ञात किया जाए, संदाय कर देता है वहां न्यायालय, आदेश द्वारा, धारा 105ज के अधीन की गई समपहरण की घोषणा का
प्रतिसंहरण कर सकेगा और तब ऐसी संपत्ति निर्मुक्त हो जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105j | Section
105j in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105j in Hindi ] –
कुछ अंतरणों
का अकृत और शून्य होना—
जहां धारा 105 की उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश करने या धारा 105छ के अधीन कोई सूचना जारी करने के
पश्चात्, उक्त आदेश या सूचना में निर्दिष्ट कोई
संपत्ति किसी भी रीति से अंतरित कर दी जाती है वहां इस अध्याय के अधीन
कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिए, ऐसे अंतरणों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा और यदि ऐसी संपत्ति बाद में
धारा 105ज के अधीन केंद्रीय सरकार को समपहृत
हो जाती है तो ऐसी संपत्ति का अंतरण अकृत और शून्य समझा जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105k | Section
105k in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105k in Hindi ] –
अनुरोध पत्र
की बाबत प्रक्रिया—
इस अध्याय के अधीन केंद्रीय सरकार को किसी संविदाकारी राज्य
से प्राप्त प्रत्येक अनुरोध-पत्र, समन
या वारंट और किसी संविदाकारी राज्य को पारेषित किया जाने वाला प्रत्येक
अनुरोध-पत्र,
समन या वारंट केंद्रीय सरकार
द्वारा, ऐसे प्ररूप में और ऐसी रीति से जो केंद्रीय
सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करें, यथास्थिति, संविदाकारी राज्य को परेषित किया
जाएगा या भारत के संबंधित न्यायालय को भेजा जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 105L | Section
105L in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 105L in Hindi ] –
इस अध्याय
का लागू होना-
केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि ऐसे संविदाकारी राज्य के संबंध में, जिसके साथ व्यतिकारी व्यवस्था की गई
है. इस अध्याय का लागू होना ऐसी शर्तों, अपवादों या अर्हताओं के अधीन होगा जो उक्त अधिसूचना में
विनिर्दिष्ट की जाएं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 106 | Section
106 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 106 in Hindi ] –
दोषसिद्धि
पर परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति-
(1) जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी
व्यक्ति को उपधारा (2) में
विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के दुप्रेरण के
लिए सिद्धदोष ठहराता है और उसकी यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशांति कायम रखने
के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति ली जाए, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दंडादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है
कि वह तीन वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी वह ठीक समझे, परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित, बंधपत्र निष्पादित करे। (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपराध निम्नलिखित हैं :
(क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के
अध्याय 8 के अधीन दंडनीय कोई अपराध जो धारा 153क या धारा 153ख या धारा 154 के अधीन दंडनीय अपराध से भिन्न है;
(ख) कोई ऐसा अपराध जो, या जिसके अंतर्गत, हमला
या आपराधिक बल का प्रयोग या रिष्टि करना है।
(ग) आपराधिक अभित्रास का कोई अपराध ;
(घ ) कोई अन्य अपराध, जिससे परिशांति भंग हुई है या जिससे परिशांति भंग आशयित है, या जिसके बारे में ज्ञात था कि उससे
परिशांति भंग संभाव्य है।
(3) यदि दोषसिद्धि अपील पर या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो
बंधपत्र, जो ऐसे निष्पादित किया गया था, शून्य हो जाएगा।
(4) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय द्वारा या किसी न्यायालय
द्वारा भी जब वह पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, किया जा सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107 | Section
107 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 107 in Hindi ] –
अन्य दशाओं में परिशांति कायम
रखने के लिए प्रतिभूति-
(1) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि संभाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशांति
भंग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा सदोष कार्य करेगा जिससे
संभाव्यतः परिशांति भंग हो जाएगी या लोक प्रशांति विक्षुब्ध हो जाएगी तब यदि उसकी
राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह्, ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात
उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि एक वर्ष से अनधिक की
इतनी अवधि के लिए, जितनी
मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशांति
कायम रखने के लिए उसे प्रतिभुओं सहित या रहित] बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश
क्यों न दिया जाए।
(2) इस धारा के अधीन कार्यवाही किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के
समक्ष तब की जा सकती है जब या तो वह स्थान जहाँ परिशांति भंग या विक्षोभ की आशंका
है, उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर है या
ऐसी अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो ऐसी अधिकारिता के परे संभाव्यतः परिशांति भंग करेगा या लोक
प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या यथापूर्वोक्त कोई सदोष कार्य करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 108 | Section
108 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 108 in Hindi ] –
राजद्रोहात्मक
बातों को फैलाने वाले व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति-
(1) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट] को इत्तिला मिलती है कि उसकी
स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है जो ऐसी अधिकारिता के अंदर या बाहर
(i) या तो मौखिक रूप से या लिखित रूप से या किसी अन्य रूप से
निम्नलिखित बातें साशय फैलाता है या फैलाने का प्रयत्न करता है या फैलाने का
दुप्रेरण करता है, अर्थात्
(क) कोई ऐसी बात, जिसका
प्रकाशन भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 124क या धारा 153क या धारा 153ख या धारा 295क के अधीन दंडनीय है ; अथवा
(ख) किसी न्यायाधीश से, जो अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा है या कार्य
करने का तात्पर्य रखता है. संबद्ध कोई बात जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन आपराधिक अभित्रास या मानहानि
की कोटि में आती है; अथवा
(ii) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 292 के यथानिर्दिष्ट कोई अश्लील वस्तु
विक्रय के लिए बनाता, उत्पादित
करता, प्रकाशित करता या रखता है, आयात करता है, निर्यात करता है, प्रवण करता है, विक्रय करता है, भाड़े पर देता है. वितरित करता है, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है
या किसी अन्य प्रकार से परिचालित करता है.
और उस मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त
आधार है तब ऐसा मजिस्ट्रेट, ऐसे
व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण
दर्शित करे कि एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए, जितनी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे, उसे अपने सदाचार के लिए प्रतिभुओं
सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए।
(2) प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 (1867 का 25) में दिए गए नियमों के अधीन
रजिस्ट्रीकृत,
और उनके अनुरूप संपादित.
मुद्रित और प्रकाशित किसी प्रकाशन में अंतर्विष्ट किसी बात के बारे में कोई कार्यवाही ऐसे प्रकाशन के संपादक, स्वत्वधारी, मुद्रक या प्रकाशक के विरुद्ध राज्य
सरकार के,
या राज्य सरकार द्वारा इस
निमित्त सशक्त किए गए किसी अधिकारी के आदेश से या उसके प्राधिकार के अधीन ही की
जाएगी, अन्यथा नहीं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 109 | Section
109 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 109 in Hindi ] –
संदिग्ध
व्यक्तियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति—
जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट] को इत्तिला मिलती है कि कोई
व्यक्ति उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपनी उपस्थिति छिपाने के लिए
पूर्वावधानियां बरत रहा है और यह विश्वास करने का कारण है कि वह कोई संज्ञेय अपराध
करने की दृष्टि से ऐसा कर रहा है, तब
वह मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता
है कि वह कारण दर्शित करे कि एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए, जितनी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे, उसे अपने सदाचार के लिए प्रतिभुओं
सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 110 | Section
110 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 110 in Hindi ] –
आभ्यासिक
अपराधियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति—
जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट] को यह इत्तिला मिलती है कि
उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो
(क) अभ्यासतः लुटेरा, गृहभेदक, चोर या
कूटरचयिता है ;
अथवा (ख) चुराई हुई संपत्ति का, उसे चुराई हुई जानते हुए, अभ्यासतः प्रापक है ; अथवा
(ग) अभ्यासतः चोरों की संरक्षा करता है या चोरों को संश्रय देता है
या चुराई हुई संपत्ति को छिपाने या उसके व्ययन में सहायता देता है ; अथवा
(घ) व्यपहरण, अपहरण, उद्दापन, छल या रिष्टि का अपराध या भारतीय दंड
संहिता (1860
का 45) के अध्याय 12 के अधीन या उस संहिता की धारा 489क, धारा 489ख, धारा 489ग या धारा 489घ के अधीन दंडनीय कोई अपराध अभ्यासत:
करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने का दुप्रेरण करता है ; अथवा
(ङ) ऐसे अपराध अभ्यासतः करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने
का दुष्प्रेरण करता है, जिनमें
परिशांति भंग समाहित है ; अथवा
(च) कोई ऐसा अपराध अभ्यासतः करता है या करने का प्रयत्न करता है या
करने का दुष्प्रेरण करता है जो-
(i) निम्नलिखित अधिनियमों में से एक या अधिक के अधीन कोई अपराध
है, अर्थात् :
(क) औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (1940 का 23);
(ख) विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 (1973 का 46);]
(ग) कर्मचारी भविष्य-निधि [और कुटुंब पेंशन निधि] अधिनियम, 1952 (1952 का 19);
(घ) खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (1954 का 37);
(ङ) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10);
(च) अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 (1955 का 22);
(छ) सीमाशुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52),* * *
‘[(ज) विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946 (1946 का 31); या]
(ii) जमाखोरी या मुनाफाखोरी अथवा खाद्य या औषधि के अपमिश्रण या
भ्रष्टाचार के निवारण के लिए उपबंध करने वाली किसी अन्य विधि के अधीन दंडनीय कोई
अपराध है ;
या
(झ) ऐसा दुसाहसिक और भयंकर है कि उसका प्रतिभूति के बिना स्वच्छन्द
रहना समाज के लिए परिसंकटमय है,
तब ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित
रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि तीन वर्ष से अनधिक की इतनी
अवधि के लिए,
जितनी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझता
है. उसे अपने सदाचार के लिए प्रतिभुओं सहित बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों
न दिया जाए।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 111 | Section
111 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 111 in Hindi ] –
आदेश का
दिया जाना—
जब कोई मजिस्ट्रेट, जो धारा 107, धारा
108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कार्य कर रहा है, यह आवश्यक समझता है कि किसी व्यक्ति
से अपेक्षा की जाए कि वह उस धारा के अधीन कारण दर्शित करे तब वह मजिस्ट्रेट
प्राप्त इत्तिला का सार, उस
बंधपत्र की रकम, जो
निष्पादित किया जाना है, वह अवधि
जिसके लिए वह प्रवर्तन में रहेगा और प्रतिभुओं की (यदि कोई हो) अपेक्षित संख्या, प्रकार और वर्ग बताते हुए लिखित आदेश
देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 112 | Section
112 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 112 in Hindi ] –
न्यायालय में उपस्थित व्यक्ति के बारे में
प्रक्रिया–
यदि वह व्यक्ति, जिसके बारे में ऐसा आदेश दिया जाता है, न्यायालय में उपस्थित है तो वह उसे
पढ़कर सुनाया जाएगा या यदि वह ऐसा चाहे तो उसका सार उसे समझाया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 113 | Section
113 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 113 in Hindi ] –
ऐसे व्यक्ति
के बारे में समन या वारंट जो उपस्थित नहीं है–
यदि ऐसा व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित नहीं है तो मजिस्ट्रेट
उससे हाजिर होने की अपेक्षा करते हुए समन, या जब ऐसा व्यक्ति अभिरक्षा में है तब जिस अधिकारी की अभिरक्षा में
बह है उस अधिकारी को उसे न्यायालय के समक्ष लाने का निदेश देते हुए वारंट, जारी करेगा :
परंतु जब कभी ऐसे मजिस्ट्रेट को पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट पर
या अन्य इत्तिला पर (जिस रिपोर्ट या इत्तिला का सार मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित
किया जाएगा),
यह प्रतीत होता है कि परिशांति
भंग होने के डर के लिए कारण है और ऐसे व्यक्ति की तुरंत गिरफ्तारी के बिना ऐसे
परिशांति भंग करने का निवारण नहीं किया जा सकता है तब वह मजिस्ट्रेट उसकी
गिरफ्तारी के लिए किसी समय वारंट जारी कर सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 114 | Section
114 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 114 in Hindi ] –
समन या
वारंट के साथ आदेश की प्रति होगी–
धारा 113 के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन या वारंट के साथ धारा 111 के अधीन दिए गए आदेश की प्रति होगी और
उस समन या वारंट की तामील या निष्पादन करने वाला अधिकारी वह प्रति उस व्यक्ति को
परिदत्त करेगा जिस पर उसकी तामील की गई है या जो उसके अधीन गिरफ्तार किया गया है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 115 | Section 115
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 115 in Hindi ] –
वैयक्तिक
हाजिरी से अभिमुक्ति देने की शक्ति-
यदि मजिस्ट्रेट को पर्याप्त कारण दिखाई देता है तो वह ऐसे
किसी व्यक्ति को, जिससे इस
बात का कारण दर्शित करने की अपेक्षा की गई है कि उसे परिशांति कायम रखने या सदाचार
के लिए बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए, वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति दे सकता
है और प्लीडर द्वारा हाजिर होने की अनुज्ञा दे सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 116 | Section
116 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 116 in Hindi ] –
इत्तिला की
सच्चाई के बारे में जांच-
(1) जब धारा 111 के अधीन आदेश किसी व्यक्ति को, जो न्यायालय में उपस्थित है, धारा 112 के
अधीन पढ़कर सुना या समझा दिया गया है अथवा जब कोई व्यक्ति धारा 113 के अधीन जारी किए गए समन या वारंट के
अनुपालन या निष्पादन में मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर है या लाया जाता है तब
मजिस्ट्रेट उस इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांच करने के लिए अग्रसर होगा जिसके
आधार पर वह कार्रवाई की गई है और ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य ले सकता है जो उसे आवश्यक
प्रतीत हो।
(2) ऐसी जांच यथासाध्य, उस रीति से की जाएगी जो समन-मामलों के विचारण और साक्ष्य के
अभिलेखन के लिए इसमें इसके पश्चात् विहित है।
(3) उपधारा (1) के अधीन जांच प्रारंभ होने के पश्चात् और उसकी समाप्ति से पूर्व
यदि मजिस्ट्रेट समझता है कि परिशांति भंग का या लोक प्रशांति विक्षुब्ध होने का या
किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए, या लोक सुरक्षा के लिए तुरंत उपाय करने आवश्यक हैं, तो वह ऐसे कारणों से, जिन्हें लेखबद्ध किया जाएगा, उस व्यक्ति को, जिसके बारे में धारा 111 के अधीन आदेश दिया गया है निदेश दे
सकता है कि वह जांच समाप्त होने तक परिशांति कायम रखने और सदाचारी बने रहने के लिए
प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे और जब तक ऐसा बंधपत्र निष्पादित
नहीं कर दिया जाता है. या निष्पादन में व्यतिक्रम होने की दशा में जब तक जांच
समाप्त नहीं हो जाती है, उसे
अभिरक्षा में निरुद्ध रख सकता है : परंतु
(क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के
अधीन कार्यवाही नहीं की जा रही है, सदाचारी बने रहने के लिए बंधपत्र निष्पादित करने के लिए निदेश नहीं
दिया जाएगा;
(ख) ऐसे बंधपत्र की शर्ते, चाहे वे उसकी रकम के बारे में हों या प्रतिभू उपलब्ध करने के या
उनकी संख्या के, या उनके
दायित्व की धन संबंधी सीमा के बारे में हों, उनसे अधिक दुर्भर न होंगी जो धारा 111 के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट हैं।
(4) इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तथ्य कि कोई व्यक्ति
आभ्यासिक अपराधी है या ऐसा दुसाहसिक और भयंकर है कि उसका प्रतिभूति के बिना
स्वच्छन्द रहना समाज के लिए परिसंकटमय है, साधारण ख्याति के साक्ष्य से या अन्यथा साबित किया जा सकता है।
(5) जहां दो या अधिक व्यक्ति जांच के अधीन विषय में सयुक्त रहे
हैं वहां मजिस्ट्रेट एक ही जांच या पृथक् जांचों में, जैसा वह न्यायसंगत समझे, उनके बारे में कार्यवाही कर सकता है।
(6) इस धारा के अधीन जांच उसके आरंभ की तारीख से छह मास की अवधि
के अंदर पूरी की जाएगी, और यदि
जांच इस प्रकार पूरी नहीं की जाती है तो इस अध्याय के अधीन कार्यवाही उक्त अवधि की
समाप्ति पर,
पर्यवसित हो जाएगी जब तक विशेष
कारणों के आधार पर, जो
लेखबद्ध किए जाएंगे, मजिस्ट्रेट
अन्यथा निदेश नहीं करता है:
परंतु जहाँ कोई व्यक्ति, ऐसी जांच के लंबित रहने के दौरान निरुद्ध रखा गया है वहां उस
व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही, यदि
पहले ही पर्यवसित नहीं हो जाती है तो ऐसे निरोध के छह मास की अवधि की समाप्ति पर
पर्यवसित हो जाएगी।
(7) जहां कार्यवाहियों को चालू रखने की अनुज्ञा देते हुए उपधारा
(6) के अधीन निदेश किया जाता है, वहां सेशन न्यायाधीश व्यथित पक्षकार
द्वारा उसे किए गए आवेदन पर ऐसे निदेश को रद्द कर सकता है, यदि उसका समाधान हो जाता है कि वह
किसी विशेष कारण पर आधारित नहीं था या अनुचित था।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 117 | Section
117 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 117 in Hindi ] –
प्रतिभूति
देने का आदेश–
यदि ऐसी जांच से यह साबित हो जाता है कि, यथास्थिति, परिशांति कायम रखने के लिए या सदाचार
बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति, जिसके बारे में वह जांच की गई है, प्रतिभुओं सहित या रहित, बंधपत्र निष्पादित करे तो मजिस्ट्रेट
तद्नुसार आदेश देगा:
परंतु-
(क) किसी व्यक्ति को उस प्रकार से भिन्न प्रकार की या उस रकम से
अधिक रकम की या उस अवधि से दीर्घतर अवधि के लिए प्रतिभूति देने के लिए आदिष्ट न
किया जाएगा,
जो धारा 111 के अधीन दिए गए आदेश में विनिर्दिष्ट
है;
(ख) प्रत्येक बंधपत्र की रकम मामले की परिस्थितियों का सम्यक ध्यान
रख कर नियत की जाएगी और अत्यधिक न होगी:
(ग) जब वह व्यक्ति, जिसके
बारे में जांच की जाती है, अवयस्क
है, तब बंधपत्र केवल उसके प्रतिभुओं
द्वारा निष्पादित किया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 118 | Section
118 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 118 in Hindi ] –
उस व्यक्ति
का उन्मोचन जिसके विरुद्ध इत्तिला दी गई है–
यदि धारा 116 के अधीन जांच पर यह साबित नहीं होता है कि, यथास्थिति, परिशांति कायम रखने के लिए या सदाचार
बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति, जिसके बारे में जांच की गई है, बंधपत्र निष्पादित करे तो मजिस्ट्रेट उस अभिलेख में उस भाव की
प्रविष्टि करेगा और यदि ऐसा व्यक्ति केवल उस जांच के प्रयोजनों के लिए ही अभिरक्षा
में है तो उसे छोड़ देगा अथवा यदि ऐसा व्यक्ति अभिरक्षा में नहीं है तो उसे
उन्मोचित कर देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 119 | Section
119 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 119 in Hindi ] –
जिस अवधि के
लिए प्रतिभूति अपेक्षित की गई है उसका प्रारंभ-
(1) यदि कोई व्यक्ति, जिसके बारे में प्रतिभूति की अपेक्षा करने वाला आदेश धारा 106 या धारा 117 के अधीन दिया गया है, ऐसा आदेश दिए जाने के समय कारावास के
लिए दंडादिष्ट है या दंडादेश भुगत रहा है तो वह अवधि, जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति की अपेक्षा
की गई है,
ऐसे दंडादेश के अवसान पर
प्रारंभ होगी।
(2) अन्य दशाओं में ऐसी अवधि, ऐसे आदेश की तारीख से प्रारंभ होगी, जब तक कि मजिस्ट्रेट पर्याप्त कारण से
कोई बाद की तारीख नियत न करे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 120 | Section
120 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 120 in Hindi ] –
बंधपत्र की
अंतर्वस्तुं-
ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया जाने वाला बंधपत्र
उसे, यथास्थिति, परिशांति कायम रखने या सदाचारी रहने
के लिए आबद्ध करेगा और बाद की दशा में कारावास से दंडनीय कोई अपराध करना या करने
का प्रयत्न या दुष्प्रेरण करना
चाहे, वह कहीं भी किया जाए, बंधपत्र का भंग है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 121 | Section
121 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 121 in Hindi ] –
प्रतिभुओं
को अस्वीकार करने की शक्ति–
(1) मजिस्ट्रेट किसी पेश किए गए प्रतिभू
को स्वीकार करने से इनकार कर सकता है या अपने द्वारा, या अपने पूर्ववर्ती द्वारा, इस अध्याय के अधीन पहले स्वीकार किए
गए किसी प्रतिभू को इस आधार पर अस्वीकार कर सकता है कि ऐसा प्रतिभू बंधपत्र के
प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है :
परंतु किसी ऐसे प्रतिभू को इस प्रकार स्वीकार करने से इनकार
करने या उसे अस्वीकार करने के पहले वह प्रतिभू की उपयुक्तता के बारे में या तो
स्वयं शपथ पर जांच करेगा या अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेट से ऐसी जांच और उसके बारे में
रिपोर्ट करवाएगा।
(2) ऐसा मजिस्ट्रेट जांच करने के पहले प्रतिभू को और ऐसे व्यक्ति
को, जिसने वह प्रतिभू पेश किया है, उचित सूचना देगा और जांच करने में
अपने सामने दिए गए साक्ष्य के सार को अभिलिखित करेगा।
(3) यदि मजिस्ट्रेट को अपने समक्ष या उपधारा (1) के अधीन प्रतिनियुक्त मजिस्ट्रेट के
समक्ष ऐसे दिए गए साक्ष्य पर और ऐसे मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर (यदि कोई हो), विचार करने के पश्चात् समाधान हो जाता
है कि वह प्रतिभू बंधपत्र के प्रयोजनों के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति है तो वह उस
प्रतिभू को,
यथास्थिति, स्वीकार करने से इनकार करने का या उसे
अस्वीकार करने का आदेश करेगा और ऐसा करने के लिए अपने कारण अभिलिखित करेगा :
परंतु किसी प्रतिभू को, जो पहले स्वीकार किया जा चुका है, अस्वीकार करने का आदेश देने के पहले
मजिस्ट्रेट अपना समन या वारंट, जिसे
वह ठीक समझे,
जारी करेगा और उस व्यक्ति को, जिसके लिए प्रतिभू आबद्ध है, अपने समक्ष हाजिर कराएगा या बुलवाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 122 | Section
122 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 122 in Hindi ] –
प्रतिभूति
देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास–
(1) (क) यदि कोई व्यक्ति, जिसे धारा 106 या
धारा 117 के अधीन प्रतिभूति देने के लिए आदेश
दिया गया है. ऐसी प्रतिभूति उस तारीख को या उस तारीख के पूर्व, जिसको वह अवधि, जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति दी जानी है, प्रारंभ होती है, नहीं देता है, तो वह इसमें इसके पश्चात् ठीक आगे
वर्णित दशा के सिवाय कारागार में भेज दिया जाएगा अथवा यदि वह पहले से ही कारागार
में है तो वह कारागार में तब तक निरुद्ध रखा जाएगा जब तक ऐसी अवधि समाप्त न हो जाए
या जब तक ऐसी अवधि के भीतर वह उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को प्रतिभूति दे दे जिसने
उसकी अपेक्षा करने वाला आदेश दिया था।
(ख) यदि किसी व्यक्ति द्वारा धारा 117 के अधीन मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसरण
में परिशांति बनाए रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित कर दिए
जाने के पश्चात्, उसके
बारे में ऐसे मजिस्ट्रेट या उसके पद-उत्तरवर्ती को समाधानप्रद रूप में यह साबित कर
दिया जाता है कि उसने बंधपत्र का भंग किया है तो ऐसा मजिस्ट्रेट या पद-उत्तरवर्ती, ऐसे सबूत के आधारों को लेखबद्ध करने
के पश्चात् आदेश कर सकता है कि उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए और बंधपत्र की
अवधि की समाप्ति तक कारागार में निरुद्ध रखा जाए तथा ऐसा आदेश ऐसे किसी अन्य दंड
या समपहरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा जिससे कि उक्त विधि के अनुसार
दायित्वाधीन हो।
(2) जब ऐसे व्यक्ति को एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए प्रतिभूति
देने का आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया है, तब यदि ऐसा व्यक्ति यथापूर्वोक्त प्रतिभूति नहीं देता है तो वह
मजिस्ट्रेट यह निदेश देते हुए वारंट जारी करेगा कि सेशन न्यायालय का आदेश होने तक, वह व्यक्ति कारागार में निरुद्ध रखा
जाए और वह कार्यवाही सुविधानुसार शीघ्र ऐसे न्यायालय के समक्ष रखी जाएगी।
(3) ऐसा न्यायालय ऐसी कार्यवाही की परीक्षा करने के और उस
मजिस्ट्रेट से किसी और इत्तिला या साक्ष्य की, जिसे वह आवश्यक समझे, अपेक्षा करने के पश्चात् और संबद्ध व्यक्ति को सुने जाने का उचित
अवसर देने के पश्चात् मामले में ऐसे आदेश पारित कर सकता है जो वह ठीक समझे:
परंतु वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए कोई व्यक्ति प्रतिभूति
देने में असफल रहने के कारण कारावासित किया जाता है, तीन वर्ष से अधिक की न होगी।
(4) यदि एक ही कार्यवाही में ऐसे दो या अधिक व्यक्तियों से
प्रतिभूति की अपेक्षा की गई है, जिनमें
से किसी एक के बारे में कार्यवाही सेशन न्यायालय को उपधारा (2) के अधीन निर्देशित की गई है, तो ऐसे निर्देश में ऐसे व्यक्तियों
में से किसी अन्य व्यक्ति का भी, जिसे
प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया है, मामला शामिल किया जाएगा और उपधारा (2) और (3) के उपबंध उस दशा में ऐसे अन्य व्यक्ति
के मामले को भी इस बात के सिवाय लागू होंगे कि वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए वह
कारावासित किया जा सकता है, उस अवधि
से अधिक न होगी, जिसके
लिए प्रतिभूति देने के लिए उसे आदेश दिया गया था।
(5) सेशन न्यायाधीश उपधारा (2) या उपधारा (4) के अधीन उसके समक्ष रखी गई किसी कार्यवाही को स्वविवेकानुसार अपर
सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश को अंतरित कर सकता है और ऐसे अंतरण पर ऐसा
अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश ऐसी कार्यवाही के बारे में इस धारा के
अधीन सेशन न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।
(6) यदि प्रतिभूति जेल के भारसाधक अधिकारी को निविदत्त की जाती
है तो वह उस मामले को उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को, जिसने आदेश किया, तत्काल निर्देशित करेगा और ऐसे
न्यायालय या मजिस्ट्रेट के आदेशों की प्रतीक्षा करेगा।
(7) परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के
कारण कारावास सादा होगा।
(8) सदाचार के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के कारण कारावास, जहां कार्यवाही धारा 108 के अधीन की गई है, वहां सादा होगा और, जहां कार्यवाही धारा 109 या धारा 110 के अधीन की गई है वहां, जैसा प्रत्येक मामले में न्यायालय या
मजिस्ट्रेट निदेश दे, कठिन या
सादा होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 123 | Section 123
in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 123 in Hindi ] –
प्रतिभूति
देने में असफलता के कारण कारावासित व्यक्तियों को छोड़ने की शक्ति–
(1) जब कभी धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश
के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट]
की यह राय है कि कोई व्यक्ति जो इस अध्याय के अधीन प्रतिभूति देने में असफल रहने
के कारण कारावासित है. समाज या किसी अन्य व्यक्ति को परिसंकट में डाले बिना छोड़ा
जा सकता है तब वह ऐसे व्यक्ति के उन्मोचित किए जाने का आदेश दे सकता है।
(2) जब कभी कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन प्रतिभूति देने में
असफल रहने के कारण कारावासित किया गया हो तब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय या
जहां आदेश किसी अन्य न्यायालय द्वारा किया गया है वहां धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट
द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट] प्रतिभूति की रकम को या प्रतिभुओं की संख्या को या उस
समय को, जिसके लिए प्रतिभूति की अपेक्षा की गई
है, कम करते हुए आदेश दे सकता है।
(3) उपधारा (1) के अधीन आदेश ऐसे व्यक्ति का उन्मोचन या तो शर्तों के बिना या ऐसी
शर्तों पर,
जिन्हें वह व्यक्ति स्वीकार करे, निदिष्ट कर सकता है:
परंतु अधिरोपित की गई कोई शर्त उस अवधि की समाप्ति पर, प्रवृत्त न रहेगी जिसके लिए प्रतिभूति
देने का आदेश दिया गया है। (4) राज्य सरकार उन शर्तों को विहित कर सकती है जिन पर सशर्त उन्मोचन
किया जा सकता है।
(5) यदि कोई शर्त. जिस पर ऐसा कोई व्यक्ति उन्मोचित किया गया है, धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट
द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट] की राय में, जिसने उन्मोचन का आदेश दिया था या उसके उत्तरवर्ती की राय में पूरी
नहीं की गई है,
तो वह उस आदेश को रद्द कर सकता
है।
(6) जब उन्मोचन का सशर्त आदेश उपधारा (5) के अधीन रद्द कर दिया जाता है तब ऐसा
व्यक्ति किसी पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकेगा और फिर
धारा 117 के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट
द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट] के समक्ष पेश किया जाएगा।
(7) उस दशा के सिवाय जिसमें ऐसा व्यक्ति मूल आदेश के निबंधनों के
अनुसार उस अवधि के शेष भाग के लिए, जिसके लिए उसे प्रथम बार कारागार सुपुर्द किया गया था या निरुद्ध
किए जाने का आदेश दिया गया था (और ऐसा भाग उस अवधि के बराबर समझा जाएगा, जो उन्मोचन की शर्तों के भंग होने की
तारीख और उस तारीख के बीच की है जिसको यह ऐसे सशर्त उन्मोचन के अभाव में छोड़े
जाने का हकदार होता) प्रतिभूति दे देता है, [धारा 117 के
अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला
मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट] उस व्यक्ति को ऐसा
शेष भाग भुगतने के लिए कारागार भेज सकता है।
(8) उपधारा (7) के अधीन कारागार भेजा गया व्यक्ति, ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट को, जिसने ऐसा आदेश किया था या उसके
उत्तरवर्ती को,
पूर्वोक्त शेष भाग के लिए मूल
आदेश के निबंधनों के अनुसार प्रतिभूति देने पर, धारा 122 के
उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी भी
समय छोड़ा जा सकता है।
(9) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय परिशांति कायम रखने के लिए
या सदाचार के लिए बंधपत्र को, जो
उसके द्वारा किए गए किसी आदेश से इस अध्याय के अधीन निष्पादित किया गया है, पर्याप्त कारणों से, जो अभिलिखित किए जाएंगे, किसी समय भी रद्द कर सकता है और जहाँ
ऐसा बंधपत्र धारा 117 के
अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किसी आदेश के मामले में जिला
मजिस्ट्रेट या किसी अन्य मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट] के या उसके जिले के
किसी न्यायालय के आदेश के अधीन निष्पादित किया गया है वहां वह उसे ऐसे रद्द कर
सकता है।
(10) कोई प्रतिभू जो किसी अन्य व्यक्ति के शांतिमय आचरण या सदाचार
के लिए इस अध्याय के अधीन बंधपत्र के निष्पादित करने के लिए आदिष्ट है, ऐसा आदेश करने वाले न्यायालय से
बंधपत्र को रद्द करने के लिए किसी भी समय आवेदन कर सकता है और ऐसा आवेदन किए जाने
पर न्यायालय यह अपेक्षा करते हुए कि वह व्यक्ति, जिसके लिए ऐसा प्रतिभू आवद्ध है.
हाजिर हो या उसके समक्ष लाया जाए, समन
या वारंट,
जो भी वह ठीक समझे, जारी करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 124 | Section
124 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 124 in Hindi ] –
बंधपत्र की
शेष अवधि के लिए प्रतिभूति—
(1) जब वह व्यक्ति, जिसको हाजिरी के लिए धारा 121 की उपधारा (3) के परंतुक के अधीन या धारा 123 की उपधारा (10) के अधीन समन या वारंट जारी किया गया है, मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष
हाजिर होता है या लाया जाता है तब वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय ऐसे व्यक्ति द्वारा
निष्पादित बंधपत्र को रद्द कर देगा और उस व्यक्ति को ऐसे बंधपत्र की अवधि के शेष
भाग के लिए उसी भांति की, जैसी मूल
प्रतिभूति थी,
नई प्रतिभूति देने के लिए आदेश
देगा।
(2) ऐसा प्रत्येक आदेश धारा 120 से धारा 123 तक की धाराओं के (जिसके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी है) प्रयोजनों
के लिए, यथास्थिति, धारा 106 या धारा 117 के अधीन दिया गया आदेश समझा जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 | Section
125 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 125 in Hindi ] –
पत्नी, संतान और
माता-पिता के भरणपोषण के लिए आदेश–
(1) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति
(क) अपनी पत्नी का, जो
अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, या
(ख) अपनी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, या
(ग) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है. जहां
ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरणपोषण करने
में असमर्थ है,
या
(घ) अपने पिता या माता का, जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, भरणपोषण करने में उपेक्षा करता है या
भरणपोषण करने से इनकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इनकार के साबित हो
जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है
कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता
या माता के भरणपोषण के लिए *** ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय
ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निदेश दे :
परंतु मजिस्ट्रेट खंड (ख) में निर्दिष्ट अवयस्क पुत्री के
पिता को निदेश दे सकता है कि वह उस समय तक ऐसा भत्ता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो
जाती है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी अवयस्क पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है।
परंतु यह और कि मजिस्ट्रेट, इस उपधारा के अधीन भरणपोषण के लिए
मासिक भत्ते के संबंध में कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, ऐसे व्यक्ति को यह आदेश दे सकता है कि
वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता
या माता के अंतरिम भरणपोषण के लिए मासिक भत्ता और ऐसी कार्यवाही का व्यय दे जिसे
मजिस्ट्रेट उचित समझे और ऐसे व्यक्ति को उसका संदाय करे जिसको संदाय करने का
मजिस्ट्रेट समय-समय पर निदेश दे:
परंतु यह भी कि दूसरे परंतुक के अधीन अंतरिम भरणपोषण के लिए
मासिक भत्ते और कार्यवाही के व्ययों का कोई आवेदन, यथासंभव, ऐसे व्यक्ति पर आवेदन की सूचना की
तामील की तारीख से साठ दिन के भीतर निपटाया जाएगा।] स्पष्टीकरण-इस अध्याय के
प्रयोजनों के लिए –
(क) “अवयस्क
से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसके बारे में भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 (1875 का 9) के उपबंधों के अधीन यह समझा जाता है
कि उसने बयस्कता प्राप्त नहीं की है।
(ख) “पत्नी के
अंतर्गत ऐसी स्त्री भी है जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद कर लिया है या जिसने
अपने पति से विवाहविच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है।
(2) भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए ऐसा कोई भत्ता और
कार्यवाही के लिए व्यय, आदेश की
तारीख से. या. यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो, यथास्थिति, भरणपोषण
या अंतरिम भरणपोषण और कार्यवाही के व्ययों के लिए आवेदन की तारीख से संदेय होंगे।]
(3) यदि कोई व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त
कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भंग के लिए ऐसा कोई मजिस्ट्रेट
देय रकम के ऐसी रीति से उद्गृहीत किए जाने के लिए वारंट जारी कर सकता है जैसी रीति
जुर्माने उद्गृहीत करने के लिए उपबंधित है, और उस वारंट के निष्पादन के पश्चात् प्रत्येक मास के न चुकाए गए ‘यथास्थिति, भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए
पूरे भत्ते और कार्यवाही के व्यय] या उसके किसी भाग के लिए ऐसे व्यक्ति को एक मास
तक की अवधि के लिए, अथवा यदि
वह उससे पूर्व चुका दिया जाता है तो चुका देने के समय तक के लिए. कारावास का
दंडादेश दे सकता है:
परंतु इस धारा के अधीन देय किसी रकम की वसूली के लिए कोई
वारंट तब तक जारी न किया जाएगा जब तक उस रकम को उद्गृहीत करने के लिए, उस तारीख से जिसको बह देय हुई एक वर्ष
की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है:
परंतु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरणपोषण करने की
प्रस्थापना करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इनकार
करती है तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कथित इनकार के किन्हीं आधारों पर विचार कर
सकता है और ऐसी प्रस्थापना के किए जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है
यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिए न्यायसंगत आधार है।
स्पष्टीकरण-यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर
लिया है या बह रखेल रखता है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इनकार का
न्यायसंगत आधार माना जाएगा।
(4) कोई पत्नी अपने पति से इस आधार के अधीन यथास्थिति, भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए
भत्ता और कार्यवाही के व्यय] प्राप्त करने की हकदार न होगी, यदि वह जारता की दशा में रह रही है
अथवा यदि वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है अथवा
यदि वे पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं।
(5) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई
पत्नी. जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही
है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है अथवा वे
पारस्परिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 126 | Section
126 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 126 in Hindi ] –
प्रक्रिया–
(1) किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 125 के अधीन कार्यवाही किसी ऐसे जिले में
की जा सकती है
(क) जहां वह है, अथवा
(ख) जहां वह या उसकी पत्नी निवास करती है, अथवा
(ग) जहां उसने अंतिम बार, यथास्थिति, अपनी
पत्नी के साथ या अधर्मज संतान की माता के साथ निवास किया है। (2) ऐसी कार्यवाही में सब साक्ष्य, ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में, जिसके विरुद्ध भरणपोषण के लिए संदाय
का आदेश देने की प्रस्थापना है, अथवा
जब उसकी वैयक्तिक हाजिरी से अभियुक्ति दे दी गई है तब उसके प्लीडर की उपस्थिति में
लिया जाएगा और उस रीति से अभिलिखित किया जाएगा जो समन-मामलों के लिए विहित है :
परंतु यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाए कि ऐसा व्यक्ति जिसके
विरुद्ध भरणपोषण के लिए संदाय का आदेश देने की प्रस्थापना है, तामील से जानबूझकर बच रहा है अथवा
न्यायालय में हाजिर होने में जानबूझकर उपेक्षा कर रहा है तो मजिस्ट्रेट मामले को
एकपक्षीय रूप में सुनने और अवधारण करने के लिए अग्रसर हो सकता है और ऐसे दिया गया
कोई आदेश उसकी तारीख से तीन मास के अंदर किए गए आवेदन पर दर्शित अच्छे कारण से ऐसे
निबंधनों के अधीन जिनके अंतर्गत विरोधी पक्षकार को खर्चे के संदाय के बारे में ऐसे
निबंधन भी हैं जो मजिस्ट्रेट न्यायोचित और उचित समझें, अपास्त किया जा सकता है।
(3) धारा 125 के अधीन आवेदनों पर कार्यवाही करने में न्यायालय को शक्ति होगी कि
वह खर्चों के बारे में ऐसा आदेश दे जो न्यायसंगत है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 128 | Section
128 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 128 in Hindi ] –
भरणपोषण के
आदेश का प्रवर्तन –
यथास्थिति, भरणपोषण
या अंतरिम भरणपोषण और कार्यवाहियों के व्ययों] के आदेश की प्रति, उस व्यक्ति को, जिसके पक्ष में वह दिया गया है या
उसके संरक्षक को, यदि कोई
हो, या उस व्यक्ति को, ‘जिसे, यथास्थिति, भरणपोषण के लिए भत्ता या अंतरिम
भरणपोषण के लिए भत्ता और कार्यवाही के लिए व्यय दिया जाना है। नि:शुल्क दी जाएगी
और ऐसे आदेश का प्रवर्तन किसी ऐसे स्थान में, जहां वह व्यक्ति है. जिसके विरुद्ध वह आदेश दिया गया था, किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पक्षकारों को
पहचान के बारे में और यथास्थिति, देय
भत्ते या व्ययों के न दिए जाने के बारे में ऐसे मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाने पर
किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 129 | Section
129 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 129 in Hindi ] –
सिविल बल के
प्रयोग द्वारा जमाव को तितर-बितर करना—
(1) कोई कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी
या ऐसे भारसाधक अधिकारी की अनुपस्थिति में उप निरीक्षक की पंक्ति से अनिम्न कोई
पुलिस अधिकारी किसी विधिविरुद्ध जमाव को, या पांच या अधिक व्यक्तियों के किसी ऐसे जमाव को, जिससे लोकशांति विक्षुब्ध होने की
संभावना है,
तितर-बितर होने का समादेश दे
सकता है और तब ऐसे जमाव के सदस्यों का यह कर्तव्य होगा कि वे तदनुसार तितर-बितर हो
जाएं।
(2) यदि ऐसा समादेश दिए जाने पर ऐसा कोई जमाव तितर-बितर नहीं
होता है या यदि ऐसे समादिष्ट हुए बिना वह इस प्रकार से आचरण करता है, जिससे उसका तितर-बितर न होने का
निश्चय दर्शित होता है, तो
उपधारा (1)
में निर्दिष्ट कोई कार्यपालक
मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी उस जमाव को बल द्वारा तितर-बितर करने की कार्यवाही कर
सकता है और किसी पुरुष से जो सशस्त्र बल का अधिकारी या सदस्य नहीं है और उस नाते
कार्य नहीं कर रहा है, ऐसे जमाव
को तितर-बितर करने के प्रयोजन के लिए और यदि आवश्यक हो तो उन व्यक्तियों को, जो उसमें सम्मिलित हैं, इसलिए गिरफ्तार करने और परिरुद्ध करने
के लिए कि ऐसा जमाव तितर-बितर किया जा सके या उन्हें विधि के अनुसार दंड दिया जा
सके, सहायता की अपेक्षा कर सकता है
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 130 | Section
130 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 130 in Hindi ] –
जमाव को
तितर-बितर करने के लिए सशस्त्र बल का प्रयोग–
(1) यदि कोई ऐसा जमाव अन्यथा तितर-बितर नहीं किया जा सकता है और
यदि लोक सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि उसको तितर-बितर किया जाए तो उच्चतम पंक्ति
का कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जो
उपस्थित हो,
सशस्त्र बल द्वारा उसे
तितर-बितर करा सकता है।
(2) ऐसा मजिस्ट्रेट किसी एसे अधिकारी से, जो सशस्त्र बल के व्यक्तियों की किसी
टुकड़ी का समादेशन कर रहा है, यह
अपेक्षा कर सकता है कि वह अपने समादेशाधीन सशस्त्र बल की मदद से जमाव को तितर-बितर
कर दे और उसमें सम्मिलित ऐसे व्यक्तियों को, जिनकी बाबत मजिस्ट्रेट निदेश दे या जिन्हें जमाव को तितर-बितर करने
या विधि के अनुसार दंड देने के लिए गिरफ्तार और परिरुद्ध करना आवश्यक है, गिरफ्तार और परिरुद्ध करे।
(3) सशस्त्र बल का प्रत्येक ऐसा अधिकारी ऐसी अध्यपेक्षा का पालन
ऐसी रीति से करेगा जैसी वह ठीक समझे, किंतु ऐसा करने में केवल इतने ही बल का प्रयोग करेगा और शरीर और
संपत्ति को केवल इतनी ही हानि पहुंचाएगा जितनी उस जमाव को तितर-बितर करने और ऐसे
व्यक्तियों को गिरफ्तार और निरुद्ध करने के लिए आवश्यक है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 131 | Section
131 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 131 in Hindi ] –
जमाव को
तितर-बितर करने की सशस्त्र बल के कुछ अधिकारियों की शक्ति–
जब कोई ऐसा जमाव लोक सुरक्षा को स्पष्टतया संकटापन्न कर देता
है और किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट से संपर्क नहीं किया जा सकता है तब सशस्त्र बल का
कोई आयुक्त या राजपत्रित अधिकारी ऐसे जमाव को अपने समादेशाधीन सशस्त्र बल की मदद
से तितर-बितर कर सकता है और ऐसे किन्हीं व्यक्तियों को, जो उसमें सम्मिलित हों, ऐसे जमाव को तितर-बितर करने के लिए या
इसलिए कि उन्हें विधि के अनुसार दंड दिया जा सके, गिरफ्तार और परिरुद्ध कर सकता है, किंतु यदि उस समय, जब वह इस धारा के अधीन कार्य कर रहा
है, कार्यपालक मजिस्ट्रेट से संपर्क करना
उसके लिए साध्य हो जाता है तो वह ऐसा करेगा
और तदनन्तर इस बारे में कि वह ऐसी कार्यवाही चालू रखे या न रखे, मजिस्ट्रेट के अनुदेशों का पालन
करेगा।
ड प्रक्रिया संहिता की धारा 132 | Section
132 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 132 in Hindi ] –
पूर्ववर्ती धाराओं
के अधीन किए गए कार्यों के लिए अभियोजन से संरक्षण–
(1) किसी कार्य के लिए, जोधारा 129, धारा
130 या धारा 131 के अधीन किया गया तात्पर्यित है, किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अभियोजन
किसी दंड न्यायालय में
(क) जहां ऐसा व्यक्ति सशस्त्र बल का कोई अधिकारी या सदस्य है, वहां केंद्रीय सरकार की मंजूरी के
बिना संस्थित नहीं किया जाएगा;
(ख) किसी अन्य मामले में राज्य सरकार की मंजूरी के बिना संस्थित
नहीं किया जाएगा।
(2) (क) उक्त धाराओं में से किसी के अधीन सद्भावपूर्वक कार्य करने
वाले किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी के बारे में:
(ख) धारा 129 या
धारा 130 के अधीन अपेक्षा के अनुपालन में
सद्भावपूर्वक कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के बारे में ;
(ग) धारा 131 के
अधीन सद्भावपूर्वक कार्य करने वाले सशस्त्र बल के किसी अधिकारी के बारे में ;
(घ) सशस्त्र बल का कोई सदस्य जिस आदेश का पालन करने के लिए आबद्ध हो
उसके पालन में किए गए किसी कार्य के लिए उस सदस्य के बारे में, यह न समझा जाएगा कि उसने उसके द्वारा
कोई अपराध किया है। (3) इस
धारा में और इस अध्याय की पूर्ववर्ती धाराओं में
(क) “सशस्त्र
बल” पद से भूमि बल के रूप में क्रियाशील
सेना, नौसेना और वायुसेना अभिप्रेत है और
इसके अंतर्गत इस प्रकार क्रियाशील संघ के अन्य सशस्त्र बल भी हैं :
(ख) सशस्त्र बल के संबंध में “अधिकारी से सशस्त्र बल के आफिसर के रूप में आयुक्त, राजपत्रित या वेतनभोगी व्यक्ति
अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत कनिष्ठ आयुक्त आफिसर, वारंट आफिसर, पेटी आफिसर, अनायुक्त आफिसर तथा अराजपत्रित आफिसर
भी हैं:
(ग) सशस्त्र बल के संबंध में “सदस्य” से
सशस्त्र बल के अधिकारी से भिन्न उसका कोई सदस्य अभिप्रेत है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 133 | Section
133 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 133 in Hindi ] –
न्यूसेन्स हटाने के लिए सशर्त आदेश–
(1) जब किसी जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट का या राज्य
सरकार द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट का किसी
पुलिस अधिकारी से रिपोर्ट या अन्य इत्तिला प्राप्त होने पर और ऐसा साक्ष्य (यदि
कोई हो) लेने पर, जैसा वह
ठीक समझे,
यह विचार है कि
(क) किसी लोक स्थान या किसी मार्ग, नदी या जलसरणी से, जो जनता द्वारा विधिपूर्वक उपयोग में
लाई जाती है या लाई जा सकती है, कोई
विधिविरुद्ध बाधा या न्यूसेन्स हटाया जाना चाहिए; अथवा
(ख) किसी व्यापार या उपजीविका को चलाना या किसी माल या पण्य वस्तु
को रखना समाज के स्वास्थ्य या शारीरिक सुख के लिए हानिकर है और परिणामतः ऐसा
व्यापार या उपजीविका प्रतिषिद्ध या विनियमित की जानी चाहिए या ऐसा माल या पण्य
वस्तु हटा दी जानी चाहिए या उसको रखना विनियमित किया जाना चाहिए ; अथवा
(ग) किसी भवन का निर्माण या किसी पदार्थ का व्ययन, जिससे सम्भाव्य है कि अग्निकांड या
विस्फोट हो जाए, रोक दिया
या बंद कर दिया जाना चाहिए; अथवा
(घ) कोई भवन, तंबू, संरचना या कोई वृक्ष ऐसी दशा में है
कि संभाव्य है कि वह गिर जाए और पड़ोस में रहने या कारवार करने वाले या पास से
निकलने वाले व्यक्तियों को उससे हानि हो, और परिणामतः ऐसे भवन, तम्बू या संरचना को हटाना, या उसकी मरम्मत करना या उसमें आलंब लगाना, या ऐसे वृक्ष को हटाना या उसमें आलांब
लगाना आवश्यक है।
(ङ) ऐसे किसी मार्ग या लोक स्थान के पार्श्वस्थ किसी तालाब, कुएं या उत्खात को इस प्रकार से बाड़
लगा दी जानी चाहिए कि जनता को होने वाले खतरे का निवारण हो सके ; अथवा
(च) किसी भयानक जीवजंतु को नष्ट, परिरुद्ध या उसका अन्यथा व्ययन किया जाना चाहिए,
तब ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसी बाधा या न्यूसेंस पैदा करने वाले या ऐसा
व्यापार या उपजीविका चलाने वाले या किसी ऐसे माल या पण्य बस्तु को रखने वाले या
ऐसे भवन, तंबू, संरचना, पदार्थ, तालाब, कुएं या उत्खात का स्वामित्व या कब्जा
या नियंत्रण रखने वाले या ऐसे जीवजंतु या वृक्ष का स्वामित्व या कब्जा रखने वाले
व्यक्ति से यह अपेक्षा करते हुए सशर्त आदेश दे सकता है कि उतने समय के अंदर, जितना उस आदेश में नियत किया जाएगा, वह
(i) ऐसी बाधा या न्यूसेन्स को हटा दे ; अथवा
(ii) ऐसा व्यापार या उपजीविका चलाना छोड़ दे या उसे ऐसीरीति से
बंद कर दे या विनियमित करे, जैसी
निदिष्ट की जाए अथवा ऐसे मामले या पण्य वस्तु को हटाए या उसको रखना ऐसी रीति से
विनियमित करे जैसी निदिष्ट की जाए ; अथवा
(iii) ऐसे भवन का निर्माण रोके या बंद करे, या ऐसे पदार्थ के व्ययन में परिवर्तन
करे : अथवा
(iv) ऐसे भवन, तंबू
या संरचना को हटाए, उसकी
मरम्मत कराए या उसमें आलम्ब लगाए अथवा ऐसे वृक्षों को हटाए या उनमें आलंब लगाए ; अथवा
(v) ऐसे तालाब, कुएं
या उत्खात को बाढ लगाए ; अथवा
(vi) ऐसे भयानक जीवजंतु को उस रीति से नष्ट करे, परिरुद्ध करे या उसका व्ययन करे, जो उस आदेश में उपबंधित है. अथवा यदि
वह ऐसा करने में आपत्ति करता है तो वह स्वयं उसके समक्ष या उसके अधीनस्थ किसी अन्य
कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष उस समय और स्थान पर, जो उस आदेश द्वारा नियत किया जाएगा, हाजिर हो और इसमें इसके पश्चात्
उपबंधित प्रकार से कारण दर्शित करे कि उस आदेश को अंतिम क्यों न कर दिया जाए।
(2) मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के अधीन सम्यक् रूप से दिए गए
किसी भी आदेश को किसी सिविल न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।
स्पष्टीकरण-“लोक स्थान के अंतर्गत राज्य की
संपत्ति, पड़ाव के मैदान और स्वच्छता या
आमोद-प्रमोद के प्रयोजन के लिए खाली छोड़े गए मैदान भी हैं।।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 134 | Section
134 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 134 in Hindi ] –
आदेश की
तामील या अधिसूचना-
(1) आदेश की तामील उस व्यक्ति पर, जिसके विरुद्ध वह किया गया है. यदि
साध्य हो तो उस रीति से की जाएगी जो समन की तामील के लिए इसमें उपबंधित है।
(2) यदि ऐसे आदेश की तामील इस प्रकार नहीं की जा सकती है तो उसकी
अधिसूचना ऐसी रीति से प्रकाशित उद्घोषणा द्वारा की जाएगी जैसी राज्य सरकार नियम
द्वारा निदिष्ट करे और उसकी एक प्रति ऐसे स्थान या स्थानों पर चिपका दी जाएगी जो
उस व्यक्ति को इत्तिला पहुंचाने के लिए सबसे अधिक उपयुक्त हैं
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 135 | Section
135 in The Code Of Criminal Procedure
[ CrPC
Sec. 135 in Hindi ] –
जिस व्यक्ति
को आदेश संबोधित है बह उसका पालन करेगा या कारण दर्शित करेगा-
वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध ऐसा आदेश दिया गया है
(क) उस आदेश द्वारा निदिष्ट कार्य उस समय के अंदर और उस रीति से
करेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट है. अथवा
(ख) उस आदेश के अनुसार हाजिर होगा और उसके विरुद्ध कारण दर्शित
करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 136 | Section 136 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 136 in
Hindi ] –
उसके ऐसा करने में
असफल रहने का परिणाम–
यदि ऐसा व्यक्ति ऐसे कार्य को नहीं करता है या हाजिर होकर
कारण दर्शित नहीं करता है, तो वह
भारतीय दंड संहिता (1860 का
45) की धारा 188 में उस निमित्त विहित शास्ति का दायी
होगा और आदेश अंतिम कर दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 137 | Section 137 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 137 in
Hindi ] –
जहां लोक अधिकार
के अस्तित्व से इनकार किया जाता है वहां प्रक्रिया–
(1) जहां किसी मार्ग, नदी, जलसरणी
या स्थान के उपयोग में जनता को होने वाली बाधा, न्यूसेन्स या खतरे का निवारण करने के प्रयोजन के लिए कोई आदेश धारा
133 के अधीन किया जाता है वहां मजिस्ट्रेट
उस व्यक्ति के जिसके विरुद्ध वह आदेश किया गया है अपने समक्ष हाजिर होने पर, उससे प्रश्न करेगा कि क्या वह उस
मार्ग, नदी, जलसरणी या स्थान के बारे में किसी लोक अधिकार के अस्तित्व से
इनकार करता है और यदि वह ऐसा करता है तो मजिस्ट्रेट धारा 138 के अधीन कार्यवाही करने के पहले उस
बात की जांच करेगा।
(2) यदि ऐसी जांच में मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि
ऐसे इनकार के समर्थन में कोई विश्वसनीय साक्ष्य है तो वह कार्यवाही को तब तक के
लिए रोक देगा जब तक ऐसे अधिकार के अस्तित्व का मामला सक्षम न्यायालय द्वारा
विनिश्चित नहीं कर दिया जाता है ; और
यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है तो वह धारा 138 के अनुसार कार्यवाही करेगा।
(3) मजिस्ट्रेट द्वारा उपधारा (1) के अधीन प्रश्न किए जाने पर, जो व्यक्ति उसमें निर्दिष्ट प्रकार के
लोक अधिकार के अस्तित्व से इनकार नहीं करता है या ऐसा इनकार करने पर उसके समर्थन
में विश्वसनीय साक्ष्य देने में असफल रहता है उसे पश्चात्वर्ती कार्यवाहियों में
ऐसा कोई इन्कार नहीं करने दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 138 | Section 138 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 138 in
Hindi ] –
जहां वह कारण
दर्शित करने के लिए हाजिर है वहां प्रक्रिया–
(1) यदि वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध धारा 133 के अधीन आदेश दिया गया है. हाजिर है और आदेश के विरुद्ध कारण
दर्शित करता है तो मजिस्ट्रेट उस मामले में उस प्रकार साक्ष्य लेगा जैसे समन मामले
मे लिया जाता है।
(2) यदि मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो जाता है कि आदेश या तो जैसा
मूलतः किया गया था उस रूप में या ऐसे परिवर्तन के साथ, जिसे वह आवश्यक समझे, युक्तियुक्त और उचित है तो वह आदेश, यथास्थिति, परिवर्तन के बिना या ऐसे परिवर्तन के
सहित अंतिम कर दिया जाएगा।
(3) यदि मजिस्ट्रेट का ऐसा समाधान नहीं होता है तो उस मामले में
आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 139 | Section 139 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 139 in
Hindi ] –
स्थानीय अन्वेषण
के लिए निदेश देने और विशेषज्ञ की परीक्षा करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति–
मजिस्ट्रेट धारा 137 या धारा 138 के अधीन किसी जांच के प्रयोजनों के लिए,
(क) ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे वह ठीक समझे, स्थानीय
अन्वेषण किए जाने के लिए निदेश दे सकता है, अथवा
(ख) किसी विशेषज्ञ को समन कर सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 140 | Section 140 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 140 in
Hindi ] –
मजिस्ट्रेट की
लिखित अनुदेश आदि देने की शक्ति–
(1) जहाँ मजिस्ट्रेट धारा 139 के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा स्थानीय अन्वेषण किए जाने के
लिए निदेश देता है वहाँ मजिस्ट्रेट
(क) उस व्यक्ति को ऐसे लिखित अनुदेश दे सकता है जो उसके मार्गदर्शन
के लिए आवश्यक प्रतीत हो,
(ख) यह घोषित कर सकता है कि स्थानीय अन्वेषण का सब आवश्यक व्यय, या उसका कोई भाग, किसके द्वारा दिया जाएगा।
(2) ऐसे व्यक्ति की रिपोर्ट को मामले में साक्ष्य के रूप में
पढ़ा जा सकता है।
(3) जहां मजिस्ट्रेट धारा 139 के अधीन किसी विशेषज्ञ को समन करता है और उसकी परीक्षा करता
है वहां मजिस्ट्रेट निदेश दे सकता है कि ऐसे समन करने और परीक्षा करने के खर्चे
किसके द्वारा दिए जाएंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 141 | Section 141 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 141 in
Hindi ] –
आदेश अंतिम कर दिए
जाने पर प्रक्रिया और उसकी अवज्ञा के परिणाम–
(1) जब धारा 136 या धारा 138 के
अधीन आदेश अंतिम कर दिया जाता है तब मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध वह आदेश दिया गया है, उसकी सूचना देगा और उससे यह भी
अपेक्षा करेगा कि वह उस आदेश द्वारा निदिष्ट कार्य इतने समय के अंदर करे, जितना सूचना में नियत किया जाएगा और
उसे इत्तिला देगा कि अवज्ञा करने पर वह भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 188 द्वारा उपबंधित शास्ति का भागी होगा।
(2) यदि ऐसा कार्य नियत समय के अंदर नहीं किया जाता है तो
मजिस्ट्रेट उसे करा सकता है और उसके किए जाने में हुए खर्चों को किसी भवन, माल या अन्य संपत्ति के, जो उसके आदेश द्वारा हटाई गई है, विक्रय द्वारा अथवा ऐसे मजिस्ट्रेट की
स्थानीय अधिकारिता के अंदर या बाहर स्थित उस व्यक्ति की अन्य जंगम संपत्ति के
करस्थम् और विक्रय द्वारा वसूल कर सकता है और यदि ऐसी अन्य संपत्ति ऐसी अधिकारिता
के बाहर है तो उस आदेश से ऐसी कुर्की और विक्रय तब प्राधिकृत होगा जब वह उस
मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित कर दिया जाता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर
कुर्क की जाने वाली संपत्ति पाई जाती है।
(3) इस धारा के अधीन सद्भावपूर्वक की गई किसी बात के बारे में
कोई वाद न होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 142 | Section 142 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 142 in
Hindi ] –
जांच के लंबित
रहने तक व्यादेश-
(1) यदि धारा 133 के अधीन आदेश देने वाला मजिस्ट्रेट यह समझता है कि जनता को आसन्न
खतरे या गंभीर किस्म की हानि का निवारण करने के लिए तुरंत उपाय किए जाने चाहिए तो
वह, उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध आदेश दिया गया था, ऐसा व्यादेश देगा जैसा उस खतरे या
हानि को, मामले का अवधारण होने तक, दूर या निवारित करने के लिए अपेक्षित
है।
(2) यदि ऐसे व्यादेश के तत्काल पालन में उस व्यक्ति द्वारा
व्यतिक्रम किया जाता है तो मजिस्ट्रेट स्वयं ऐसे साधनों का उपयोग कर सकता है या
करवा सकता है जो वह उस खतरे को दूर करने या हानि का निवारण करने के लिए ठीक समझे।
(3) मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के अधीन सद्भावपूर्वक की गई किसी
बात के बारे में कोई वाद न होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 143 | Section 143 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 143 in
Hindi ] –
मजिस्ट्रेट लोक
नयूसेंस की पुनरावृत्ति या उसे चालू रखने का प्रतिषेध कर सकता है –
कोई जिला मजिस्ट्रेट अथवा उपखंड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार
या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई अन्य कार्यपालक
मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को आदेश दे सकता है कि वह भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) में या किसी अन्य विशेष या स्थानीय
विधि में यथापरिभाषित लोक न्यूसेंस की न तो पुनरावृत्ति करे और न उसे चालू रखे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 | Section 144 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 144 in
Hindi ] –
न्यूसेंस या
आशंकित खतरे के अर्जेंट मामलों में आदेश जारी करने की शक्ति–
(1) उन मामलों में, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट अथवा राज्य सरकार
द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किए गए किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट की राय
में इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है और तुरंत निवारण या
शीघ्र उपचार करना वांछनीय है, वह
मजिस्ट्रेट ऐसे लिखित आदेश द्वारा जिसमें मामले के तात्त्विक तथ्यों का कथन होगा
और जिसकी तामील धारा 134 द्वारा
उपबंधित रीति से कराई जाएगी, किसी व्यक्ति को कार्य-विशेष न करने
या अपने कब्जे की या अपने प्रबंधाधीन किसी विशिष्ट संपत्ति की कोई विशिष्ट
व्यवस्था करने का निदेश उस दशा में दे सकता है जिसमें ऐसा मजिस्ट्रेट समझता है कि
ऐसे निदेश से यह संभाव्य है, या ऐसे
निदेश की यह प्रवृत्ति है कि विधिपूर्वक नियोजित किसी व्यक्ति को बाधा, क्षोभ या क्षति का, या मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का, या लोक प्रशांति विक्षुब्ध होने का, या बलवे या दंगे का निवारण हो जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन आदेश, आपात की दशाओं में या उन दशाओं में जब परिस्थितियां ऐसी हैं कि उस
व्यक्ति पर,
जिसके विरुद्ध वह आदेश निदिष्ट
है, सूचना की तामील सम्यक् समय में करने
की गुंजाइश न हो, एक
पक्षीय रूप में पारित किया जा सकता है।
(3) इस धारा के अधीन आदेश किसी विशिष्ट व्यक्ति को, या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में
निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में जाते रहते हैं या
जाएं, निदिष्ट किया जा सकता है।
(4) इस धारा के अधीन कोई आदेश उस आदेश के दिए जाने की तारीख से
दो मास से आगे प्रवृत्त न रहेगा :
परंतु यदि राज्य सरकार मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का निवारण
करने के लिए अथवा बलवे या किसी दंगे का निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझती
है तो वह अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के
अधीन किया गया कोई आदेश उतनी अतिरिक्त अवधि के लिए, जितनी वह उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे, प्रवृत्त रहेगा; किंतु वह अतिरिक्त अवधि उस तारीख से
छह मास से अधिक की न होगी जिसको मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश ऐसे निदेश के
अभाव में समाप्त हो गया होता।
(5) कोई मजिस्ट्रेट या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति
के आवेदन पर किसी ऐसे आदेश को विखंडित या परिवर्तित कर सकता है जो स्वयं उसने या
उसके अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट ने या उसके पद-पूर्ववर्ती ने इस धारा के अधीन दिया
है।
(6) राज्य सरकार उपधारा (4) के परंतुक के अधीन अपने द्वारा दिए गए किसी आदेश को या तो
स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर विखंडित या परिवर्तित कर सकती
है।
(7) जहां उपधारा (5) या उपधारा (6) के अधीन
आवेदन प्राप्त होता है वहाँ, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक को
या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा उसके समक्ष हाजिर होने और आदेश के विरुद्ध कारण
दर्शित करने का शीन्न अवसर देगी ; और
यदि, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदन को
पूर्णतः या अंशत: नामंजूर कर दे तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 | Section 145 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 145 in
Hindi ] –
जहां भूमि या जल
से संबद्ध विवादों से परिशांति भंग होना संभाव्य है वहां प्रक्रिया–
(1) जब कभी किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट का, पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से या अन्य
इत्तिला पर समाधान हो जाता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल
या उसकी सीमाओं से संबद्ध ऐसा विवाद विद्यमान है, जिससे परिशांति भंग होना संभाव्य है, तब वह अपना ऐसा समाधान होने के आधारों
का कथन करते हुए और ऐसे विवाद से संबद्ध पक्षकारों से यह अपेक्षा करते हुए लिखित
आदेश देगा कि वे विनिर्दिष्ट तारीख और समय पर स्वयं या प्लीडर द्वारा उसके
न्यायालय में हाजिर हों और विवाद की विषयवस्तु पर वास्तविक कब्जे के तथ्य के बारे
में अपने-अपने दावों का लिखित कथन पेश करें।
(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए “भूमि या जल” पद
के अंतर्गत भवन,
बाजार, मीनक्षेत्र, फसलें, भूमि की अन्य उपज और ऐसी किसी संपत्ति के भाटक या लाभ भी
हैं।
(3) इस आदेश की एक प्रति की तामील इस संहिता द्वारा समनों की
तामील के लिए उपबंधित रीति से ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों पर की जाएगी, जिन्हें मजिस्ट्रेट निदिष्ट करे और कम
से कम एक प्रति विवाद की विषयवस्तु पर या उसके निकट किसी सह्जदृश्य स्थान पर लगाकर
प्रकाशित की जाएगी।
(4) मजिस्ट्रेट तब विवाद की विषयवस्तु को पक्षकारों में से किसी
के भी कब्जे में रखने के अधिकार के गुणागुण या दाबे के प्रति निर्देश किए बिना उन
कथनों का, जो ऐसे पेश किए गए हैं, परिशीलन करेगा, पक्षकारों को सुनेगा और ऐसा सभी
साक्ष्य लेगा जो उनके द्वारा प्रस्तुत किया जाए, ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य, यदि कोई हो ; लेगा
जैसा वह आवश्यक समझे और यदि संभव हो तो यह विनिश्चित करेगा कि क्या उन पक्षकारों
में से कोई उपधारा (1) के अधीन
उसके द्वारा दिए गए आदेश की तारीख पर विवाद की विषयवस्तु पर कब्जा रखता था और यदि
रखता था तो वह कौन सा पक्षकार था :
परंतु यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि कोई पक्षकार
उस तारीख के,
जिसको पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट
या अन्य इत्तिला मजिस्ट्रेट
को प्राप्त हुई,
ठीक पूर्व दो मास के अंदर या उस
तारीख के पश्चात् और उपधारा (1) के
अधीन उसके आदेश की तारीख के पूर्व बलात् और सदोष रूप से बेकब्जा किया गया है तो वह
यह मान सकेगा कि उस प्रकार बेकब्जा किया गया पक्षकार उपधारा (1) के अधीन उसके आदेश की तारीख को कब्जा
रखता था।
(5) इस धारा की कोई बात, हाजिर होने के लिए ऐसे अपेक्षित किसी पक्षकार को या किसी अन्य
हितबद्ध व्यक्ति को यह दर्शित करने से नहीं रोकेगी कि कोई पूर्वोक्त प्रकार का
विवाद वर्तमान नहीं है या नहीं रहा है और ऐसी दशा में मजिस्ट्रेट अपने उक्त आदेश को
रद्द कर देगा और उस पर आगे की सब कार्यवाहियां रोक दी जाएंगी किंतु उपधारा (1) के अधीन मजिस्ट्रेट का आदेश ऐसे
रद्दकरण के अधीन रहते हुए अंतिम होगा।
(6) (क) यदि मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि पक्षकारों में से
एक का उक्त विषयवस्तु पर ऐसा कब्जा था या उपधारा (4) के परंतुक के अधीन ऐसा कब्जा माना
जाना चाहिए,
तो वह यह घोषणा करने वाला कि
ऐसा पक्षकार उस पर तब तक कब्जा रखने का हकदार है जब तक उसे विधि के सम्यक् अनुक्रम
में बेदखल न कर दिया जाए और या निषेध करने वाला कि जब तक ऐसी बेदखली न कर दी जाए
तब तक ऐसे कब्जे में कोई विघ्न न डाला जाए, आदेश जारी करेगा; और
जब वह उपधारा (4)
के परंतुक के अधीन कार्यवाही
करता है तब उस पक्षकार को, जो बलात्
और सदोष बेकब्जा किया गया है. कब्जा लौटा सकता है।
(ख) इस उपधारा के अधीन दिया गया आदेश उपधारा (3) में अधिकथित रीति से तामील और
प्रकाशित किया जाएगा।
(7) जब किसी ऐसी कार्यवाही के पक्षकार की मृत्यु हो जाती है तब
मजिस्ट्रेट मृत पक्षकार के विधिक प्रतिनिधि को कार्यवाही का पक्षकार बनवा सकेगा और
फिर जांच चालू रखेगा और यदि इस बारे में कोई प्रश्न उत्पन्न होता है कि मृत
पक्षकार का ऐसी कार्यवाही के प्रयोजन के लिए विधिक प्रतिनिधि कौन है तो मृत
पक्षकार का प्रतिनिधि होने का दावा करने वाले सब व्यक्तियों को उस कार्यवाही का
पक्षकार बना लिया जाएगा।
(8) यदि मजिस्ट्रेट की यह राय है कि उस संपत्ति की, जो इस धारा के अधीन उसके समक्ष लंबित
कार्यवाही में विवाद की विषयवस्तु है, कोई फसल या अन्य उपज शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है तो वह ऐसी
संपत्ति की उचित अभिरक्षा या विक्रय के लिए आदेश दे सकता है और जांच के समाप्त
होने पर ऐसी संपत्ति के या उसके विक्रय के आगमों के व्ययन के लिए ऐसा आदेश दे सकता
है जो वह ठीक समझे।
(9) यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझे तो वह इस धारा के अधीन कार्यवाहियों
के किसी प्रक्रम में पक्षकारों में से किसी के आवेदन पर किसी साक्षी के नाम समन यह
निदेश देते हुए जारी कर सकता है कि वह हाजिर हो या कोई दस्तावेज या चीज पेश करे।
(10) इस धारा की कोई बात धारा 107 के अधीन कार्यवाही करने की मजिस्ट्रेट
की शक्तियों का अल्पीकरण करने वाली नहीं समझी जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 146 | Section 146 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 146 in
Hindi ] –
विवाद की
विषयवस्तु की कुर्क करने की और रिसीवर नियुक्त करने की शक्ति–
(1) यदि धारा 145 की उपधारा (1) के अधीन
आदेश करने के पश्चात् किसी समय मजिस्ट्रेट मामले को आपातिक समझता है अथवा यदि वह
विनिश्चय करता है कि पक्षकारों में से किसी का धारा 145 में यथानिर्दिष्ट कब्जा उस समय नहीं
था, अथवा यदि वह अपना समाधान नहीं कर पाता
है कि उस समय उनमें से किसका ऐसा कब्जा विवाद की विषयवस्तु पर था तो वह विवाद की
विषयवस्तु को तब तक के लिए कुर्क कर सकता है जब तक कोई सक्षम न्यायालय उसके कब्जे
का हकदार व्यक्ति होने के बारे में उसके पक्षकारों के अधिकारों का अवधारण नहीं कर
देता है:
परंतु यदि ऐसे मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि विवाद की
विषयवस्तु के बारे में परिशांति भंग होने की कोई संभाब्यता नहीं रही तो वह किसी
समय भी कुर्की वापस ले सकता है।
(2) जब मजिस्ट्रेट विवाद की विषयवस्तु को कुर्क करता है तब यदि
ऐसी विवाद की विषयवस्तु के संबंध में कोई रिसीवर किसी सिविल न्यायालय द्वारा
नियुक्त नहीं किया गया है तो, वह
उसके लिए ऐसा इंतजाम कर सकता है जो वह उस संपत्ति की देखभाल के लिए उचित समझता है
अथवा यदि वह ठीक समझता है तो, उसके
लिए रिसीवर नियुक्त कर सकता है जिसको मजिस्ट्रेट के नियंत्रण के अधीन रहते हुए वे
सब शक्तियां प्राप्त होगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन रिसीवर की होती हैं :
परंतु यदि विवाद की विषयवस्तु के संबंध में कोई रिसीवर किसी
सिविल न्यायालय द्वारा बाद में नियुक्त कर दिया जाता है तो मजिस्ट्रेट
(क) अपने द्वारा नियुक्त रिसीवर को आदेश देगा कि वह विवाद की विषयवस्तु
का कब्जा सिबिल न्यायालय द्वारा नियुक्त रिसीवर को दे दे और तत्पश्चात् वह अपने
द्वारा नियुक्त रिसीवर को उन्मोचित कर देगा,
(ख) ऐसे अन्य आनुषंगिक या पारिणामिक आदेश कर सकेगा जो न्यायसंगत
हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 147 | Section 147 in The Code Of Criminal
Procedure
[ CrPC Sec. 147 in
Hindi ] –
भूमि या जल के
उपयोग के अधिकार से संबद्ध विवाद–
(1) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट का, पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से या अन्य
इत्तिला पर,
समाधान हो जाता है कि उसकी
स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल के उपयोग के किसी अभिकथित अधिकार के
बारे में, चाहे ऐसे अधिकार का दावा सुखाचार के
रूप में किया गया हो या अन्यथा, विवाद
वर्तमान है जिससे परिशांति भंग होनी संभाव्य है, तब वह अपना ऐसा समाधान होने के आधारों का कथन करते हुए और
विवाद से संबद्ध पक्षकारों से यह अपेक्षा करते हुए लिखित आदेश दे सकता है कि वे
विनिर्दिष्ट तारीख और समय पर स्वयं या प्लीडर द्वारा उसके न्यायालय में हाजिर हों
और अपने-अपने दावों का लिखित कथन पेश करें।
स्पष्टीकरण- भूमि या जल” पद का वही अर्थ होगा जो धारा 145 की उपधारा (2) में
दिया गया है।
(2) मजिस्ट्रेट तब इस प्रकार पेश किए गए कथनों का परिशीलन करेगा, पक्षकारों को सुनेगा, ऐसा सब साक्ष्य लेगा जो उनके द्वारा
पेश किया जाए,
ऐसे साक्ष्य के प्रभाव पर विचार
करेगा, ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य, यदि कोई हो, लेगा जो वह आवश्यक समझे और यदि संभव
हो तो विनिश्चय करेगा कि क्या ऐसा अधिकार वर्तमान है; और ऐसी जांच के मामले में धारा 145 के उपबंध यावतशक्य लागू होंगे।
(3) यदि उस मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि ऐसे अधिकार
वर्तमान हैं तो वह ऐसे अधिकार के प्रयोग में किसी भी हस्तक्षेप का प्रतिषेध करने
का और यथोचित मामले में ऐसे किसी अधिकार के प्रयोग में किसी बाधा को हटाने का भी
आदेश दे सकता है:
परंतु जहाँ ऐसे अधिकार का प्रयोग वर्ष में हर समय किया जा
सकता है वहां जब तक ऐसे अधिकार का प्रयोग उपधारा (1) के अधीन पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या
अन्य इत्तिला की, जिसके
परिणामस्वरूप जांच संस्थित की गई है. प्राप्ति के ठीक पहले तीन मास के अंदर नहीं
किया गया है अथवा जहां ऐसे अधिकार का प्रयोग विशिष्ट मौसमों में हो या विशिष्ट
अवसरों पर ही किया जा सकता है वहां जब तक ऐसे अधिकार का प्रयोग ऐसी प्राप्ति के
पूर्व के ऐसे मौसमों में से अंतिम मौसम के दौरान या ऐसे अवसरों में से अंतिम अवसर
पर नहीं किया गया है, ऐसा कोई
आदेश नहीं दिया जाएगा।
(4) जब धारा 145 की उपधारा (1) के अधीन
प्रारंभ की गई किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह मालूम पड़ता है कि विवाद भूमि
या जल के उपयोग के किसी अभिकथित अधिकार के बारे में है, तो वह अपने कारण अभिलिखित करने के
पश्चात् कार्यवाही को ऐसे चालू रख सकता है, मानो वह उपधारा (1) के
अधीन प्रारंभ की गई हो;
और जब उपधारा (1) के अधीन प्रारंभ की गई किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह मालूम
पड़ता है कि विवाद के संबंध में धारा 145 के अधीन कार्यवाही की जानी चाहिए तो वह अपने कारण अभिलिखित
करने के पश्चात् कार्यवाही को ऐसे चालू रख सकता है, मानो वह धारा 145 की उपधारा (1) के
अधीन प्रारंभ की गई हो
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 148 | Section 148 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 148 in
Hindi ] –
स्थानीय जांच-
(1) जब कभी धारा 145 या धारा 146 या धारा 147 के
प्रयोजनों के लिए स्थानीय जांच आवश्यक हो तब कोई जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड
मजिस्ट्रेट अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को जांच करने के लिए प्रतिनियुक्त कर
सकता है और उसे ऐसे लिखित अनुदेश दे सकता है जो उसके मार्गदर्शन के लिए आवश्यक
प्रतीत हो और घोषित कर सकता है कि जांच का सब आवश्यक व्यय या उसका कोई भाग, किसके द्वारा दिया जाएगा।
(2) ऐसे प्रतिनियुक्त व्यक्ति की रिपोर्ट को मामले में साक्ष्य
के रूप में पढ़ा जा सकता है।
(3) जब धारा 145, धारा 146 या
धारा 147 के अधीन कार्यवाही के किसी पक्षकार
द्वारा कोई बचें किए गए हैं तब विनिश्चय करने वाला मजिस्ट्रेट यह निदेश दे सकता है
कि ऐसे खर्चे किसके द्वारा दिए जाएंगे, ऐसे पक्षकार द्वारा दिए जाएंगे या कार्यवाही के किसी अन्य पक्षकार
द्वारा और पूरे के पूरे दिए जाएंगे अथवा भाग या अनुपात में ; और ऐसे खर्चों के अंतर्गत साक्षियों
के और प्लीडरों की फीस के बारे में वे व्यय भी हो सकते है, जिन्हें न्यायालय उचित समझे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 149 | Section 149 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 149 in
Hindi ] –
पुलिस का संज्ञेय
अपराधों का निवारण करना-
प्रत्येक पुलिस अधिकारी किसी संज्ञेय अपराध के किए जाने का
निवारण करने के प्रयोजन से हस्तक्षेप कर सकेगा और अपनी पूरी सामर्थ्य से उसे
निवारित करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 150 | Section 150 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 150 in
Hindi ] –
संज्ञेय अपराधों
के किए जाने की परिकल्पना की इत्तिला–
प्रत्येक पुलिस अधिकारी. जिसे किसी संज्ञेय अपराध को करने की
परिकल्पना की इत्तिला प्राप्त होती है, ऐसी इत्तिला की संसूचना उस पुलिस अधिकारी को, जिसके वह अधीनस्थ है, और किसी अन्य अधिकारी को देगा जिसका
कर्तव्य किसी ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण या संज्ञान करना है।
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