Saturday, 6 June 2020

दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 351 to 400


दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 351 |  Section 351 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 351 in Hindi ] –

धारा 344,345, 349 और 350 के अधीन दोषसिद्धियों से अपीलें-

(1) उच्च न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय द्वारा धारा 344, धारा 345, धारा 349 या धारा 350 के अधीन दंडादिष्ट कोई व्यक्ति, इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी, उस न्यायालय में अपील कर सकता है जिसमें ऐसे न्यायालय द्वारा दी गई डिक्रियों या आदेशों की अपील मामूली तौर पर होती है।
(2) अध्याय 29 के उपबंध, जहां तक वे लागू हो सकते हैं. इस धारा के अधीन अपीलों को लागू होंगे, और अपील न्यायालय निष्कर्ष को परिवर्तित कर सकता है या उलट सकता है या उस दंड को, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, कम कर सकता है या उलट सकता है।
(3) लघुवाद न्यायालय द्वारा की गई ऐसी दोषसिद्धि की अपील उस सेशन खंड के सेशन न्यायालय में होगी जिस खंड में वह न्यायालय स्थित है।
(4) धारा 347 के अधीन जारी किए गए निदेश के आधार पर सिविल न्यायालय समझे गए किसी रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार द्वारा की गई ऐसी दोषसिद्धि से अपील उस सेशन खंड के सेशन न्यायालय में होगी जिस खंड में ऐसे रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार का कार्यालय स्थित है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 352 |  Section 352 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 352 in Hindi ] –

कुछ न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों के समक्ष किए गए अपराधों का उनके द्वारा विचारण न किया जाना

धारा 344,345,349 और 350 में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से भिन्न) दंड न्यायालय का कोई भी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट धारा 195 में निर्दिष्ट किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति का विचारण उस दशा में नहीं करेगा, जब वह अपराध उसके समक्ष या उसके प्राधिकार का अवमान करके किया गया है अथवा किसी न्यायिक कार्यवाही के दौरान ऐसे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट की हैसियत में उसके ध्यान में लाया गया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 353 |  Section 353 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 353 in Hindi ] –

निर्णय

(1) आरंभिक अधिकारिता के दंड न्यायालय में होने वाले प्रत्येक विचारण में निर्णय पीठासीन अधिकारी द्वारा खुले न्यायालय में या तो विचारण के खत्म होने के पश्चात् तुरन्त या बाद में किसी समय, जिसकी सूचना पक्षकारों या उनके प्लीडरों को दी जाएगी,
(क) संपूर्ण निर्णय देकर सुनाया जाएगा; या (ख) संपूर्ण निर्णय पढ़कर सुनाया जाएगा ; या
(ग) अभियुक्त या उसके प्लीडर द्वारा समझी जाने वाली भाषा में निर्णय का प्रवर्तनशील भाग पढ़कर और निर्णय का सार समझाकर सुनाया जाएगा।
(2) जहाँ उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन निर्णय दिया जाता है, वहां पीठासीन अधिकारी उसे आशुलिपि में लिखवाएगा और जैसे ही अनुलिपि तैयार हो जाती है वैसे ही खुले न्यायालय में उस पर और उसके प्रत्येक पृष्ठ पर हस्ताक्षर करेगा, और उस पर निर्णय दिए जाने की तारीख डालेगा।
(3) जहां निर्णय या उसका प्रवर्तनशील भाग, यथास्थिति, उपधारा (1) के खंड (ख) या खंड (ग) के अधीन पढ़कर सुनाया जाता है,
वहां पीठासीन अधिकारी द्वारा खुले न्यायालय में उस पर तारीख डाली जाएगी और हस्ताक्षर किए जाएंगे और यदि वह उसके द्वारा स्वयं अपने हाथ से नहीं लिखा गया है तो निर्णय के प्रत्येक पृष्ठ पर उसके द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे।
(4) जहां निर्णय उपधारा (1) के खंड (ग) में विनिर्दिष्ट रीति से सुनाया जाता है, वहां संपूर्ण निर्णय या उसकी एक प्रतिलिपि पक्षकारों या उनके प्लीडरों के परिशीलन के लिए तुरंत निःशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी।
(5) यदि अभियुक्त अभिरक्षा में है तो निर्णय सुनने के लिए उसे लाया जाएगा।
(6) यदि अभियुक्त अभिरक्षा में नहीं है तो उससे न्यायालय द्वारा सुनाए जाने वाले निर्णय को सुनने के लिए हाजिर होने की अपेक्षा की जाएगी, किन्तु उस दशा में नहीं की जाएगी जिसमें विचारण के दौरान उसकी वैयक्तिक हाजिरी से उसे अभिमुक्ति दे दी गई है और दंडादेश केवल जुर्माने का है या उसे दोषमुक्त किया गया है :
परन्तु जहां एक से अधिक अभियुक्त हैं और उनमें से एक या एक से अधिक उस तारीख को न्यायालय में हाजिर नहीं हैं जिसको निर्णय सुनाया जाने वाला है तो पीठासीन अधिकारी उस मामले को निपटाने में अनुचित विलंब से बचने के लिए उनकी अनुपस्थिति में भी निर्णय सुना सकता है।
(7) किसी भी दंड न्यायालय द्वारा सुनाया गया कोई निर्णय केवल इस कारण बिधित: अमान्य न समझा जाएगा कि उसके सुनाए जाने के लिए सूचित दिन को या स्थान में कोई पक्षकार या उसका प्लीडर अनुपस्थित था या पक्षकारों पर या उनके प्लीडरों पर या उनमें से किसी पर ऐसे दिन और स्थान की सूचना की तामील करने में कोई लोप या त्रुटि हुई थी।
(8) इस धारा की किसी बात का अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह धारा 465 के उपबंधों के विस्तार को किसी प्रकार से परिसीमित करती है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354 |  Section 354 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 354 in Hindi ] –

निर्णय की भाषा और अन्तर्वस्तु

(1) इस संहिता द्वारा अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबंधित के सिवाय, धारा 353 में निर्दिष्ट प्रत्येक निर्णय
(क) न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा; (ख) अवधारण के लिए प्रश्न, उस प्रश्न या उन प्रश्नों पर विनिश्चय और विनिश्चय के कारण अन्तर्विष्ट करेगा;
(ग) वह अपराध (यदि कोई हो) जिसके लिए और भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) या अन्य विधि की वह धारा, जिसके अधीन अभियुक्त दोषसिद्ध किया गया है, और वह दंड जिसके लिए वह दंडादिष्ट है, विनिर्दिष्ट करेगा;
(च) यदि निर्णय दोषमुक्ति का है तो, उस अपराध का कथन करेगा जिससे अभियुक्त दोषमुक्त किया गया है और निदेश देगा कि वह स्वतंत्र कर दिया जाए।
(2) जब दोषसिद्धि भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) के अधीन है और यह संदेह है कि अपराध उस संहिता की दो धाराओं में से किसके अधीन या एक ही धारा के दो भागों में से किसके अधीन आता है तो न्यायालय इस बात को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करेगा और अनुकल्पतः निर्णय देगा।
(3) जब दोषसिद्धि, मृत्यु से अथवा अनुकल्पत: आजीवन काराबास से या कई वर्षों की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए है, तब निर्णय में, दिए गए दंडादेश के कारणों का और मृत्यु के दंडादेश की दशा में ऐसे दंडादेश के लिए विशेष कारणों का, कथन होगा।
(4) जब दोषसिद्धि एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध के लिए है किन्तु न्यायालय तीन मास से कम अवधि के कारावास का दंड अधिरोपित करता है, तब वह ऐसा दंड देने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा उस दशा के सिवाय जब वह दंडादेश न्यायालय के उठने तक के लिए कारावास का नहीं है या वह मामला इस संहिता के उपबंधों के अधीन संक्षेपतः विचारित नहीं किया गया है।
(5) जब किसी व्यक्ति को मृत्यु का दंडादेश दिया जाता है तो वह दंडादेश यह निदेश देगा कि उसे गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए।
(6) धारा 117 के अधीन या धारा 138 की उपधारा (2) के अधीन प्रत्येक आदेश में और धारा 125, धारा 145 या धारा 147 के अधीन किए गए प्रत्येक अंतिम आदेश में, अवधारण के लिए प्रश्न, उस प्रश्न या उन प्रश्नों पर विनिश्चय और विनिश्चय के कारण अन्तर्विष्ट होंगे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 355 |  Section 355 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 355 in Hindi ] –

निर्णय की भाषा और अन्तर्वस्तु

महानगर मजिस्ट्रेट निर्णय को इसमें इसके पूर्व उपबंधित रीति से अभिलिबित करने के बजाय निम्नलिखित विशिष्टियों को अभिलिखित करेगा, अर्थात् :
(क) मामले का क्रम संख्यांक ;
(ख) अपराध किए जाने की तारीख ;
(ग) यदि कोई परिवादी है तो उसका नाम ;
(घ) अभियुक्त व्यक्ति का नाम और उसके माता-पिता का नाम और उसका निवास स्थान ;
(ङ) अपराध जिसका परिवाद किया गया है या जो साबित हुआ है ;
(च) अभियुक्त का अभिवाक् और उसकी परीक्षा (यदि कोई हो);
(छ) अंतिम आदेश;
(ज) ऐसे आदेश की तारीख
(झ) उन सब मामलों में, जिनमें धारा 373 के अधीन या धारा 374 की उपधारा (3) के अधीन अंतिम आदेश के विरुद्ध अपील होती है, निर्णय के कारणों का संक्षिप्त कथन ।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 356 |  Section 356 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 356 in Hindi ] –

पूर्वतन सिद्धदोष अपराधी को अपने पते की सूचना देने का आदेश-

(1) जब कोई व्यक्ति, जिसे भारत में किसी न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 215, धारा 489, धारा 489, धारा 489ग या धारा 489 या धारा 506 (जहां तक वह आपराधिक अभिनास से संबंधित है जो ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडनीय हो)] के अधीन दंडनीय अपराध के लिए या उसी संहिता के अध्याय 12 [या अध्याय 16] या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया है, किसी अपराध के लिए, जो उन धाराओं में से किसी के अधीन दंडनीय है या उन अध्यायों में से किसी के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय है, द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट के न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय द्वारा पुनः दोषसिद्ध किया जाता है तब, यदि ऐसा न्यायालय ठीक समझे तो वह उस व्यक्ति को कारावास का दंडादेश देते समय यह आदेश भी कर सकता है कि छोड़े जाने के पश्चात् उसके निवास स्थान की और ऐसे निवास स्थान की किसी तब्दीली की या उससे उसकी अनुपस्थिति की इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से सूचना ऐसे दंडादेश की समाप्ति की तारीख से पांच वर्ष से अनधिक अवधि तक दी जाएगी।
(2) उपधारा (1) के उपबंध, जहां तक वे उसमें उल्लिखित अपराधों के संबंध में हैं, उन अपराधों को करने के आपराधिक षडयंत्र और उन अपराधों के दुप्रेरण तथा उन्हें करने के प्रयत्नों को भी लागू होते हैं।
(3) यदि ऐसी दोषसिद्धि अपील में या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो ऐसा आदेश शून्य हो जाएगा।
(4) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय द्वारा, या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी जब वह अपनी पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा है, किया जा सकता है।
(5) राज्य सरकार, छोड़े गए सिद्धदोषों के निवास स्थान की या निवास-स्थान की तब्दीली की या उससे उनकी अनुपस्थिति की सूचना से संबंधित इस धारा के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए नियम अधिसूचना द्वारा बना सकती है।
(6) ऐसे नियम उनके भंग किए जाने के लिए दंड का उपबंध कर सकते हैं और जिस व्यक्ति पर ऐसे किसी नियम को भंग करने का आरोप है उसका विचारण उस जिले में सक्षम अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है जिसमें उस व्यक्ति द्वारा अपने निवासस्थान के रूप में अन्त में सूचित स्थान है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 |  Section 357 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 357 in Hindi ] –

प्रतिकर देने का आदेश

 (1) जब कोई न्यायालय जुर्माने का दंडादेश देता है या कोई ऐसा दंडादेश (जिसके अन्तर्गत मृत्यु दंडादेश भी है) देता है जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वसूल किए गए सब जुर्माने या उसके किसी भाग का उपयोजन
(क) अभियोजन में उचित रूप से उपगत व्ययों को चुकाने में किया जाए;
(ख) किसी व्यक्ति को उस अपराध द्वारा हुई किसी हानि या क्षति का प्रतिकर देने में किया जाए, यदि न्यायालय की राय में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिकर सिविल न्यायालय में वसूल किया जा सकता है।
(ग) उस दशा में, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के, या ऐसे अपराध के किए जाने का दुप्रेरण करने के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, उन व्यक्तियों को, जो ऐसी मृत्यु से अपने को हुई हानि के लिए दंडादिष्ट व्यक्ति से नुकसानी वसूल करने के लिए घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 (1855 का 13) के अधीन हकदार है, प्रतिकर देने में किया जाए;
(घ ) जब कोई व्यक्ति, किसी अपराध के लिए, जिसके अन्तर्गत चोरी, आपराधिक दुर्विनियोग, आपराधिक न्यासभंग या छल भी है, या चुराई हुई संपत्ति को उस दशा में जब वह यह जानता है या उसको यह विश्वास करने का कारण है कि वह चुराई हुई है बेईमानी से प्राप्त करने या रखे रखने के लिए या उसके व्ययन में स्वेच्छया या सहायता करने के लिए, दोषसिद्ध किया जाए, तब ऐसी संपत्ति के सद्भावपूर्ण क्रेता को, ऐसी संपत्ति उसके हकदार व्यक्ति के कब्जे में लौटा दी जाने की दशा में उसकी हानि के लिएप्रतिकर देने में किया जाए।
(2) यदि जुर्माना ऐसे मामले में किया जाता है जो अपीलनीय है तो ऐसा कोई संदाय, अपील उपस्थित करने के लिए अनुज्ञात अवधि के बीत जाने से पहले या यदि अपील उपस्थित की जाती है तो उसके विनिश्चय के पूर्व, नहीं किया जाएगा।
(3) जब न्यायालय ऐसा दंड अधिरोपित करता है जिसका भाग जुर्माना नहीं है तब न्यायालय निर्णय पारित करते समय, अभियुक्त व्यक्ति को यह आदेश दे सकता है कि उस कार्य के कारण जिसके लिए उसे ऐसा दंडादेश दिया गया है, जिस व्यक्ति को कोई हानि या क्षति उठानी पड़ी है, उसे वह प्रतिकर के रूप में इतनी रकम दे जितनी आदेश में विनिर्दिष्ट है।
(4) इस धारा के अधीन आदेश, अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब वह अपनी पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो।
(5) उसी मामले से संबंधित किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में प्रतिकर अधिनिर्णीत करते समय न्यायालय ऐसी किसी राशि को, जो इस धारा के अधीन प्रतिकर के रूप में दी गई है या वसूल की गई है, हिसाब में लेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 358 |  Section 358 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 358 in Hindi ] –

निराधार गिरफ्तार करवाए गए व्यक्तियों को प्रतिकर-

(1) जब कभी कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को पुलिस अधिकारी से गिरफ्तार कराता है, तब यदि उस मजिस्ट्रेट को, जिसके द्वारा वह मामला सुना जाता है यह प्रतीत होता है कि ऐसी गिरफ्तारी कराने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं था तो, वह मजिस्ट्रेट अधिनिर्णय दे सकता है कि ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को इस संबंध में उसके समय की हानि और व्यय के लिए एक हजार रुपए] से अनधिक इतना प्रतिकर जितना मजिस्ट्रेट ठीक समझे, गिरफ्तार कराने वाले व्यक्ति द्वारा दिया जाएगा।
(2) ऐसे मामलों में यदि एक से अधिक व्यक्ति गिरफ्तार किए जाते हैं तो मजिस्ट्रेट उनमें से प्रत्येक के लिए उसी रीति से एक हजार रुपए] से अनधिक उतना प्रतिकर अधिनिर्णीत कर सकेगा, जितना ऐसा मजिस्ट्रेट ठीक समझे।
(3) इस धारा के अधीन अधिनिर्णीत समस्त प्रतिकर ऐसे वसूल किया जा सकता है मानो वह जुर्माना है और यदि वह ऐसे वसूल नहीं किया जा सकता तो उस व्यक्ति को, जिसके द्वारा वह संदेय है, तीस दिन से अनधिक की इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट निर्दिष्ट करे, सादे कारावास का दंडादेश दिया जाएगा जब तक कि ऐसी राशि उससे पहले न दे दी जाए।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 359 |  Section 359 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 359 in Hindi ] –

असंज्ञेय मामलों में खर्चा देने के लिए आदेश-

(1) जब कभी किसी असंज्ञेय अपराध का कोई परिवाद न्यायालय में किया जाता है तब, यदि न्यायालय अभियुक्त को दोषसिद्ध कर देता है तो, वह अभियुक्त पर अधिरोपित शास्ति के अतिरिक्त उसे यह आदेश दे सकता है कि वह परिवादी को अभियोजन में उसके द्वारा किए गए खर्चे पूर्णतः या अंशतः दे और यह अतिरिक्त आदेश दे सकता है कि उसे देने में व्यतिक्रम करने पर अभियुक्त तीस दिन से अनधिक की अवधि के लिए सादा कारावास भोगेगा और ऐसे खर्चों के अन्तर्गत आदेशिका फीस, साक्षियों और प्लीडरों की फीस की बाबत किए गए कोई व्यय भी हो सकेंगे जिन्हें न्यायालय उचित समझे।
(2) इस धारा के अधीन आदेश किसी अपील न्यायालय द्वारा, या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब वह अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 360 |  Section 360 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 360 in Hindi ] –

सदाचरण की परिवीक्षा पर या भर्त्सना के पश्चात् छोड़ देने का आदेश-

(1) जब कोई व्यक्ति जो इक्कीस वर्ष से कम आयु का नहीं है केवल जुर्माने से या सात वर्ष या उससे कम अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है अथवा जब कोई व्यक्ति जो इक्कीस वर्ष से कम आयु का है या कोई स्त्री ऐसे अपराध के लिए, जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय नहीं है, दोषसिद्ध की जाती है और अपराधी के विरुद्ध कोई पूर्व दोषसिद्धि साबित नहीं की गई है तब, यदि उस न्यायालय को, जिसके समक्ष उसे दोषसिद्ध किया गया है, अपराधी की आयु, शील या पूर्ववृत्त को और उन परिस्थितियों को, जिनमें अपराध किया गया, ध्यान में रखते हुए यह प्रतीत होता है कि अपराधी को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ देना समीचीन है तो न्यायालय उसे तुरन्त कोई दंडादेश देने के बजाय निदेश दे सकता है कि उसे प्रतिभुओं सहित या रहित उसके द्वारा यह बंधपत्र लिख देने पर छोड़ दिया जाए कि वह (तीन वर्ष से अनधिक) इतनी अवधि के दौरान, जितनी न्यायालय निर्दिष्ट करे. बुलाए जाने पर हाजिर होगा और दंडादेश पाएगा और इस बीच परिशांति कायम रखेगा और सदाचारी बना रहेगा:
परन्तु जहाँ कोई प्रथम अपराधी किसी द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा, जो उच्च न्यायालय द्वारा विशेषतया सशक्त नहीं किया गया है, दोषसिद्ध किया जाता है और मजिस्ट्रेट की यह राय है कि इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिए वहाँ वह उस भाव की अपनी राय अभिलिखित करेगा और प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को वह कार्यवाही निवेदित करेगा और उस अभियुक्त को उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा अथवा उसकी उस मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिरी के लिए जमानत लेगा और वह मजिस्ट्रेट उस मामले का निपटारा उपधारा (2) द्वारा उपबंधित रीति से करेगा।
(2) जहाँ कोई कार्यवाही प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को उपधारा (1) द्वारा उपबंधित रूप में निवेदित की गई है, वहाँ ऐसा मजिस्ट्रेट उस पर ऐसा दंडादेश या आदेश दे सकता है जैसा यदि मामला मूलत: उसके द्वारा सुना गया होता तो वह् दे सकता और यदि वह किसी प्रश्न पर अतिरिक्त जांच या अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक समझता है तो वह स्वयं ऐसी जांच कर सकता है या ऐसा साक्ष्य ले सकता है अथवा ऐसी जांच किए जाने या ऐसा साक्ष्य लिए जाने का निदेश दे सकता है।
(3) किसी ऐसी दशा में, जिसमें कोई व्यक्ति चोरी, किसी भवन में चोरी, बेईमानी से दुर्विनियोग, छल या भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दो वर्ष से अनधिक के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए या केवल जुर्माने से दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है और उसके विरुद्ध कोई पूर्व दोषसिद्धि साबित नहीं की गई है, यदि वह न्यायालय, जिसके समक्ष वह ऐसे दोषसिद्ध किया गया है, ठीक समझे, तो वह अपराधी की आयु, शील, पूर्ववृत्त या शारीरिक या मानसिक दशा को और अपराध की तुच्छ प्रकृति को, या किन्हीं परिशमनकारी परिस्थितियों को, जिनमें अपराध किया गया था, ध्यान में रखते हुए उसे कोई दंडादेश देने के बजाय सम्यक् भर्त्सना के पश्चात् छोड़ सकता है।
(4) इस धारा के अधीन आदेश किसी अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब वह अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो।
(5) जब किसी अपराधी के बारे में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है तब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, उस दशा में जब उस न्यायालय में अपील करने का अधिकार है, अपील किए जाने पर, या अपनी पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करते हुए, ऐसे आदेश को अपास्त कर सकता है और ऐसे अपराधी को उसके बदले में निधि के अनुसार दंडादेश दे सकता है :
परन्तु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय इस उपधारा के अधीन उस दंड से अधिक दंड न देगा जो उस न्यायालय द्वारा दिया जा सकता था जिसके द्वारा अपराधी दोषसिद्ध किया गया था।
(6) धारा 121, 124 और 373 के उपबंध इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में पेश किए गए प्रतिभुओं के बारे में जहाँ तक हो सके, लागू होंगे।
(7) किसी अपराधी के उपधारा (1) के अधीन छोड़े जाने का निदेश देने के पूर्व न्यायालय अपना समाधान कर लेगा कि उस अपराधी का, या उसके प्रतिभू का (यदि कोई हो) कोई नियत वास स्थान या नियमित उपजीविका उस स्थान में है जिसके संबंध में वह न्यायालय कार्य करता है या जिसमें अपराधी के उस अवधि के दौरान रहने की सम्भाव्यता है, जो शर्तों के पालन के लिए उल्लिखित की गई है।
(8) यदि उस न्यायालय का, जिसने अपराधी को दोषसिद्ध किया है, या उस न्यायालय का, जो अपराधी के संबंध में उसके मूल अपराध के बारे में कार्यवाही कर सकता था, समाधान हो जाता है कि अपराधी अपने मुचलके की शर्तों में से किसी का पालन करने में असफल रहा है तो उसके पकड़े जाने के लिए वारण्ट जारी करा सकता है।
(9) जब कोई अपराधी ऐसे किसी वारण्ट पर पकड़ा जाता है तब वह वारण्ट जारी करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष तत्काल लाया जाएगा और वह न्यायालय या तो तब तक के लिए उसे अभिरक्षा में रखे जाने के लिए प्रतिप्रेषित कर सकता है जब तक मामले में सुनवाई न हो, या इस शर्त पर कि वह दंडादेश के लिए हाजिर होगा, पर्याप्त प्रतिभूति लेकर जमानत मंजूर कर सकता है और ऐसा न्यायालय मामले की सुनवाई के पश्चात् दंडादेश दे सकता है।

(10) इस धारा की कोई बात, अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) या बालक अधिनियम, 1960 (1960 का 60) या किशोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण या सुधार से संबंधित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों पर प्रभाव न डालेगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 361 |  Section 361 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 361 in Hindi ] –

कुछ मामलों में विशेष कारणों का अभिलिखित किया जाना

जहां किसी मामले में न्यायालय,–
(क) किसी अभियुक्त व्यक्ति के संबंध में कार्रवाई धारा 360 के अधीन या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के उपबंधों के अधीन कर सकता था ; या
(ख) किसी किशोर अपराधी के संबंध में कार्रवाई, बालक अधिनियम, 1960 (1960 का 60) के अधीन या किशोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण या सुधार से संबंधित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन कर सकता था,
किन्तु उसने ऐसा नहीं किया है वहां वह ऐसा न करने के विशेष कारण अपने निर्णय में अभिलिखित करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 362 |  Section 362 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 362 in Hindi ] –

न्यायालय का अपने निर्णय में परिवर्तन न करना

इस संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा जैसा उपबंधित है उसके सिवाय कोई न्यायालय जब उसने किसी मामले को निपटाने के लिए अपने निर्णय या अंतिम आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं तब लिपिकीय या गणितीय भूल को ठीक करने के सिवाय उसमें कोई परिवर्तन नहीं करेगा या उसका पुनर्विलोकन नहीं करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 363 |  Section 363 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 363 in Hindi ] –

अभियक्त और अन्य व्यक्तियों को निर्णय की प्रति का दिया जाना

(1) जब अभियुक्त को कारावास का दंडादेश दिया जाता है तब निर्णय के सुनाए जाने के पश्चात् निर्णय की एक प्रति उसे निःशुल्क तुरन्त दी जाएगी।
(2) अभियुक्त के आवेदन पर, निर्णय की एक प्रमाणित प्रति या जब वह चाहे तब, यदि संभव है तो उसकी भाषा में या न्यायालय की भाषा में उसका अनुवाद, अविलंब उसे दिया जाएगा और जहां निर्णय की अभियुक्त द्वारा अपील हो सकती है वहां प्रत्येक दशा में ऐसी प्रति निःशुल्क दी जाएगी:
परन्तु जहां मृत्यु का दंडादेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित या पुष्ट किया जाता है वहां निर्णय की प्रमाणित प्रति अभियुक्त को तुरन्त निःशुल्क दी जाएगी चाहे वह उसके लिए आवेदन करे या न करे।
(3) उपधारा (2) के उपबंध धारा 117 के अधीन आदेश के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उस निर्णय के संबंध में लागू होते हैं जिसकी अभियुक्त अपील कर सकता है।
(4) जब अभियुक्त को किसी न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश दिया जाता है और ऐसे निर्णय से साधिकार अपील होती है तो न्यायालय उसे उस अवधि की जानकारी देगा जिसके भीतर यदि वह चाहे तो अपील कर सकता है।
(5) उपधारा (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय किसी दांडिक न्यायालय द्वारा पारित निर्णय या आदेश द्वारा प्रभावित व्यक्ति को, इस निमित्त आवेदन करने पर और विहित प्रभार देने पर ऐसे निर्णय या आदेश की या किसी अभिसाक्ष्य की या अभिलेख के अन्य भाग की प्रति दी जाएगी:
परन्तु यदि न्यायालय किन्हीं विशेष कारणों से ठीक समझता है तो उसे वह निःशुल्क भी दे सकता है।
(6) उच्च न्यायालय नियमों द्वारा उपबंध कर सकता है कि किसी दांडिक न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश की प्रतियां ऐसे व्यक्ति को, जो निर्णय या आदेश द्वारा प्रभावित न हो उस व्यक्ति द्वारा ऐसी फीस दिए जाने पर और ऐसी शर्तों के अधीन दे दी जाए जो उच्च न्यायालय ऐसे नियमों द्वारा उपबंधित करे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 364 |  Section 364 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 364 in Hindi ] –

निर्णय का अनुवाद कब किया जाएगा

मूल निर्णय कार्यवाही के अभिलेख में फाइल किया जाएगा और जहां मूल निर्णय ऐसी भाषा में अभिलिखित किया गया है जो न्यायालय की भाषा से भिन्न है और अभियुक्त अपेक्षा करता है तो न्यायालय की भाषा में उसका अनुवाद अभिलेख में जोड़ दिया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 365 |  Section 365 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 365 in Hindi ] –

सेशन न्यायालय द्वारा निष्कर्ष और दंडादेश की प्रति जिला मजिस्ट्रेट को भेजना

ऐसे मामलों में, जिनका बिचारण सेशन न्यायालय या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया गया है, यथास्थिति, न्यायालय या मजिस्ट्रेट अपने निष्कर्ष और दंडादेश की (यदि कोई हो) एक प्रति उस जिला मजिस्ट्रेट को भेजेगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर विचारण किया गया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 366 |  Section 366 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 366 in Hindi ] –

सेशन न्यायालय द्वारा मृत्यु दंडादेश का पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया जाना

(1) जब सेशन न्यायालय मृत्यु दंडादेश देता है तब कार्यवाही उच्च न्यायालय को प्रस्तुत की जाएगी और दंडादेश तब तक निष्पादित न किया जाएगा जब तक वह उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट न कर दिया जाए।
(2) दंडोदश पारित करने वाला न्यायालय वारंट के अधीन दोषसिद्ध व्यक्ति को जेल की अभिरक्षा के लिए सुपुर्द करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 367 |  Section 367 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 367 in Hindi ] –

अतिरिक्त जांच किए जाने के लिए या अतिरिक्त साक्ष्य लिए जाने के लिए निदेश देने की शक्ति-

(1) यदि ऐसी कार्यवाही के प्रस्तुत किए जाने पर उच्च न्यायालय यह ठीक समझता है कि दोषसिद्ध व्यक्ति को दोषी या निर्दोष होने से संबंधित किसी प्रश्न पर अतिरिक्त जांच की जाए या अतिरिक्त साक्ष्य लिया जाए तो वह स्वयं ऐसी जांच कर सकता है या ऐसा साक्ष्य ले सकता है या सेशन न्यायालय द्वारा उसके किए जाने या लिए जाने का निदेश दे सकता है।
(2) जब तक उच्च न्यायालय अन्यथा निदेश न दे, दोषसिद्ध व्यक्ति को, जांच किए जाने या साक्ष्य लिए जाने के समय उपस्थित होने से, अभिमुक्ति दी जा सकती है।
(3) जब जांच या साक्ष्य (यदि कोई हो) उच्च न्यायालय द्वारा नहीं की गई है या नहीं लिया गया है तब ऐसी जांच या साक्ष्य का परिणाम प्रमाणित करके उस न्यायालय को भेजा जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 368 |  Section 368 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 368 in Hindi ] –

दंडादेश को पुष्ट करने या दोषसिद्धि को बातिल करने की उच्च न्यायालय की शक्ति

उच्च न्यायालय धारा 366 के अधीन प्रस्तुत किसी मामले में-
(क) दंडादेश की पुष्टि कर सकता है या विधि द्वारा समर्थित कोई अन्य दंडादेश दे सकता है ; अथवा
(ख) दोषसिद्धि को बातिल कर सकता है और अभियुक्त को किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध कर सकता है जिसके लिए सेशन न्यायालय उसे दोषसिद्ध कर सकता था, या उसी या संशोधित आरोप पर नए विचारण का आदेश दे सकता है ; अथवा
(ग) अभियुक्त व्यक्ति को दोषमुक्त कर सकता है : परन्तु पुष्टि का कोई आदेश इस धारा के अधीन तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक अपील करने के लिए अनुज्ञात अवधि समाप्त न हो गई हो या यदि ऐसी अवधि के अन्दर अपील पेश कर दी गई है तो जब तक उस अपील का निपटारा न हो गया हो।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 369 |  Section 369 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 369 in Hindi ] –

नए दंडादेश की पुष्टि का दो न्यायाधीशों द्वारा हस्ताक्षरित किया जाना

इस प्रकार प्रस्तुत प्रत्येक मामले में उच्च न्यायालय द्वारा दंडादेश का पुष्टिकरण या उसके द्वारा पारित कोई नया दंडादेश, या आदेश, यदि ऐसे न्यायालय में दो या अधिक न्यायाधीश हों तो, उनमें से कम से कम दो न्यायाधीशों द्वारा किया, पारित किया और हस्ताक्षरित किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 370 |  Section 370 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 370 in Hindi ] –

मतभेद की दशा में प्रक्रिया-

जहां कोई ऐसा मामला न्यायाधीशों के न्यायपीठ के समक्ष सुना जाता है और ऐसे न्यायाधीश राय के बारे में समान रूप से विभाजित हैं वहां मामला धारा 392 द्वारा उपबंधित रीति से विनिश्चित किया जाएगा

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 371 |  Section 371 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 371 in Hindi ] –

उच्च न्यायालय की पुष्टि के लिए प्रस्तुत मामलों में प्रक्रिया-

मृत्यु दंडादेश की पुष्टि के लिए उच्च न्यायालय को सेशन न्यायालय द्वारा प्रस्तुत मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि के आदेश या अन्य आदेश के दिए जाने के पश्चात् उच्च न्यायालय का समुचित अधिकारी विलंब के बिना, आदेश की प्रतिलिपि उच्च न्यायालय की मुद्रा लगाकर और अपने पदीय हस्ताक्षरों से अनुप्रमाणित करके सेशन न्यायालय को भेजेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 372 |  Section 372 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 372 in Hindi ] –

जब तक अन्यथा उपबंधित न हो किसी अपील का न होना-

दंड न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश से कोई अपील इस संहिता द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा जैसा उपबंधित हो उसके सिवाय न होगी: परंतु पीड़ित को न्यायालय द्वारा पारित अभियुक्त को दोषमुक्त करने वाले या कम अपराध के लिए दोषसिद्ध करने वाले या अपर्याप्त प्रतिकर अधिरोपित करने वाले आदेश के विरुद्ध अपील करने का अधिकार होगा और ऐसी अपील उस न्यायालय में होगी जिसमें ऐसे न्यायालय की दोषसिद्धि के आदेश के विरुद्ध मामूली तौर पर अपील होती है।]

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 373 |  Section 373 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 373 in Hindi ] –

परिशान्ति कायम रखने या सदाचार के लिए प्रतिभूति अपेक्षित करने वाले या प्रतिभूति स्वीकार करने से इनकार करने वाले या अस्वीकार करने वाले आदेश से अपील-

कोई व्यक्ति,
(i) जिसे परिशान्ति कायम रखने या सदाचार के लिए प्रतिभूति देने के लिए धारा 117 के अधीन आदेश दिया गया है, अथवा
(ii) जो धारा 121 के अधीन प्रतिभू स्वीकार करने से इनकार करने या उसे अस्वीकार करने वाले किसी आदेश से व्यथित है,
सेशन न्यायालय में ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील कर सकता है :
परन्तु इस धारा की कोई बात उन व्यक्तियों को लागू नहीं होगी जिनके विरुद्ध कार्यवाही सेशन न्यायाधीश के समक्ष धारा 122 की उपधारा (2) या उपधारा (4) के उपबंधों के अनुसार रखी गई है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374 |  Section 374 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 374 in Hindi ] –

दोषसिद्धि से अपील-

(1) कोई व्यक्ति जो उच्च न्यायालय द्वारा असाधारण आरंभिक दांडिक अधिकारिता के प्रयोग में किए गए विचारण में दोषसिद्ध किया गया है, उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है।
(2) कोई व्यक्ति जो सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश द्वारा किए गए विचारण में या किसी अन्य न्यायालय द्वारा किए गए विचारण में दोषसिद्ध किया गया है, जिसमें सात वर्ष से अधिक के कारावास का दंडादेश उसके विरुद्ध या उसी विचारण में दोषसिद्ध किए गए किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध दिया गया है। उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
(3) उपधारा (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, कोई व्यक्ति,
(क) जो महानगर मजिस्ट्रेट या सहायक सेशन न्यायाधीश या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए विचारण में दोषसिद्ध किया गया है, अथवा
(ख) जो धारा 325 के अधीन दंडादिष्ट किया गया है, अथवा
(ग) जिसके बारे में किसी मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 360 के अधीन आदेश दिया गया है या दंडादेश पारित किया गया है, सेशन न्यायालय में अपील कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 375 |  Section 375 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 375 in Hindi ] –

कुछ मामलों में जब अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करे, अपील न होना-

धारा 374 में किसी बात के होते हुए भी, जहां अभियुक्त व्यक्ति ने दोषी होने का अभिवचन किया है, और ऐसे अभिवचन पर वह दोषसिद्ध किया गया है वहाँ,
(क) यदि दोषसिद्धि उच्च न्यायालय द्वारा की गई है. तो कोई अपील नहीं होगी, अथवा
(ख) यदि दोषसिद्धि सेशन न्यायालय, महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट या द्वितीय मजिस्ट्रेट द्वारा की गई है तो अपील, दंड के परिणाम या उसकी वैधता के बारे में ही हो सकेगी, अन्यथा नहीं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 376 |  Section 376 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 376 in Hindi ] –

छोटे मामलों में अपील न होना-

धारा 374 में किसी बात के होते हुए भी, दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा कोई अपील निम्नलिखित में से किसी मामले में न होगी, अर्थात् :
(क) जहाँ उच्च न्यायालय केवल छह मास से अनधिक की अवधि के कारावास का या एक हजार रुपए से अनधिक जुर्माने का अथवा ऐसे कारावास और जुर्माने दोनों का, दंडादेश पारित करता है;
(ख) जहां सेशन न्यायालय या महानगर मजिस्ट्रेट केवल तीन मास से अनधिक की अवधि के कारावास का या दो सौ रुपए से अनधिक जुर्माने का अथवा ऐसे कारावास और जुर्माने दोनों का, दंडादेश पारित करता है;
(ग) जहां प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट केवल एक सौ रुपए से अनधिक जुर्माने का दंडादेश पारित करता है ; अथवा
(घ ) जहाँ संक्षेपतः विचारित किसी मामले में, धारा 260 के अधीन कार्य करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट केवल दो सौ रुपए से अनधिक जुर्माने का दंडादेश पारित करता है :
परन्तु यदि ऐसे किसी दंडादेश के साथ कोई अन्य दंड मिला दिया गया है तो ऐसे दंडादेश के विरुद्ध अपील की जा सकती है किन्तु वह केवल इस आधार पर अपीलनीय न हो जाएगा कि
(i) दोषसिद्ध व्यक्ति को परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने का आदेश दिया गया है : अथवा
(ii) जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास के निदेश को दंडादेश में सम्मिलित किया गया है ; अथवा
(iii) उस मामले में जुर्माने का एक से अधिक दंडादेश पारित किया गया है, यदि अधिरोपित जुर्माने की कुल रकम उस मामले की बाबत इसमें इसके पूर्व विनिर्दिष्ट रकम से अधिक नहीं है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 377 |  Section 377 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 377 in Hindi ] –

राज्य सरकार द्वारा दंडादेश के विरुद्ध अपील

(1) उपधारा (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय द्वारा किए गए विचारण में दोषसिद्धि के किसी मामले में लोक अभियोजक को दंडादेश की ‘[अपर्याप्तता के आधार पर उसके विरुद्ध
(क) सेशन न्यायालय में, यदि दंडादेश किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया जाता है और
(ख) उच्च न्यायालय में, यदि दंडादेश किसी अन्य न्यायालय द्वारा पारित किया जाता है, अपील प्रस्तुत करने का निदेश दे सकती है।
(2) यदि ऐसी दोषसिद्धि किसी ऐसे मामले में है जिसमें अपराध का अन्वेषण दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन गठित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा या इस संहिता से भिन्न किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन अपराध का अन्वेषण करने के लिए सशक्त किसी अन्य अभिकरण द्वारा किया गया है तो केन्द्रीय सरकार भी] लोक अभियोजक को दंडादेश की ‘[अपर्याप्तता के आधार पर उसके विरुद्ध
(क) सेशन न्यायालय में, यदि दंडादेश किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया जाता है ; और
(ख) उच्च न्यायालय में, यदि दंडादेश किसी अन्य न्यायालय द्वारा पारित किया जाता है, अपील प्रस्तुत करने का निदेश दे सकती है।
(3) जब दंडादेश के विरुद्ध अपर्याप्तता के आधार पर अपील की गई है तब यथास्थिति, सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय] उस दंडादेश में वृद्धि तब तक नहीं करेगा जब तक कि अभियुक्त को ऐसी वृद्धि के विरुद्ध कारण दर्शित करने का युक्तियुक्त अवसर नहीं दे दिया गया है और कारण दर्शित करते समय अभियुक्त अपनी दोषमुक्ति के लिए या दंडादेश में कमी करने के लिए अभिवचन कर सकता

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 378 |  Section 378 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 378 in Hindi ] –

दोषमुक्ति की दशा में अपील-

(1) उपधारा (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय और उपधारा (3) और उपधारा (5) के उपबंधों के अधीन रहते हुए.
(क) जिला मजिस्ट्रेट, किसी मामले में, लोक अभियोजक को किसी संज्ञेय और अजमानतीय अपराध की बाबत किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पारित दोषमुक्ति के आदेश से सेशन न्यायालय में अपील प्रस्तुत करने का निदेश दे सकेगा;
(ख) राज्य सरकार, किसी मामले में लोक अभियोजक को उच्च न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय द्वारा पारित दोषमुक्ति के मूल या अपीली आदेश से [जो खंड (क) के अधीन आदेश नहीं है| या पुनरीक्षण में सेशन न्यायालय द्वारा पारित दोषमुक्ति के आदेश से उच्च न्यायालय में, अपील प्रस्तुत करने का निदेश दे सकेगी।]
(2) यदि ऐसा दोषमुक्ति का आदेश किसी ऐसे मामले में पारित किया जाता है जिसमें अपराध का अन्वेषण दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन गठित दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन द्वारा या इस संहिता से भिन्न किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन अपराध का अन्वेषण करने के लिए सशक्त किसी अन्य अभिकरण द्वारा किया गया है तो केन्द्रीय सरकार उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक अभियोजक को
(क) दोषमुक्ति के ऐसे आदेश से, जो संज्ञेय और अजमानतीय अपराध की बाबत किसी मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया गया है सेशन न्यायालय में;
(ख) दोषमुक्ति के ऐसे मूल या अपीली आदेश से, जो किसी उच्च न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय द्वारा पारित किया गया है [जो खंड (क) के अधीन आदेश नहीं है] या दोषमुक्ति के ऐसे आदेश से, जो पुनरीक्षण में सेशन न्यायालय द्वारा पारित किया गया है, उच्च न्यायालय में, अपील प्रस्तुत करने का निदेश दे सकती है।]
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन उच्च न्यायालय को कोई अपील] उच्च न्यायालय की इजाजत के बिना ग्रहण नहीं की जाएगी।
(4) यदि दोषमुक्ति का ऐसा आदेश परिवाद पर संस्थित किसी मामले में पारित किया गया है और उच्च न्यायालय, परिवादी द्वारा उससे इस निमित्त आवेदन किए जाने पर, दोषमुक्ति के आदेश की अपील करने की विशेष इजाजत देता है तो परिवादी ऐसी अपील उच्च न्यायालय में उपस्थित कर सकता है।
(5) दोषमुक्ति के आदेश से अपील करने की विशेष इजाजत दिए जाने के लिए उपधारा (4) के अधीन कोई आवेदन उच्च न्यायालय द्वारा, उस दशा में जिसमें परिवादी लोक सेवक है उस दोषमुक्ति के आदेश की तारीख से संगणित, छह मास की समाप्ति के पश्चात् और प्रत्येक अन्य दशा में ऐसे संगणित साठ दिन की समाप्ति के पश्चात् ग्रहण नहीं किया जाएगा।
(6) यदि किसी मामले में दोषमुक्ति के आदेश से अपील करने की विशेष इजाजत दिए जाने के लिए उपधारा (4) के अधीन कोई आवेदन नामंजूर किया जाता है तो उस दोषमुक्ति के आदेश से उपधारा (1) के अधीन या उपधारा (2) के अधीन कोई अपील नहीं होगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 379 |  Section 379 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 379 in Hindi ] –

कुछ मामलों में उच्च न्यायालय द्वारा दोषसिद्ध किए जाने के विरुद्ध अपील-

यदि उच्च न्यायालय ने अभियुक्त व्यक्ति को दोषमुक्ति के आदेश को अपील में उलट दिया है और उसे दोषसिद्ध किया है तथा उसे मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष अथवा अधिक की अवधि के कारावास का दंड दिया है तो वह उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 380 |  Section 380 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 380 in Hindi ] –

कुछ मामलों में अपील करने का विशेष अधिकार-

इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, जब एक से अधिक व्यक्ति एक ही विचारण में दोषसिद्ध किए जाते हैं, और ऐसे व्यक्तियों में से किसी के बारे में अपीलनीय निर्णय या आदेश पारित किया गया है तब ऐसे विचारण में दोषसिद्ध किए गए सब व्यक्तियों को या उनमें से किसी को भी अपील का अधिकार होगा

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 381 |  Section 381 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 381 in Hindi ] –

सेशन न्यायालय में की गई अपीलें कैसे सुनी जाएंगी

(1) उपधारा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सेशन न्यायालय में या सेशन न्यायाधीश को की गई अपील सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश द्वारा सुनी जाएगी :
परन्तु द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए विचारण में दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील सहायक सेशन न्यायाधीश या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सुनी जा सकेगी और निपटायी जा सकेगी।
(2) अपर सेशन न्यायाधीश, सहायक सेशन न्यायाधीश या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट केवल ऐसी अपीलें सुनेगा जिन्हें खंड का सेशन न्यायाधीश, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, उसके हवाले करे या जिन्हें सुनने के लिए उच्च न्यायालय, विशेष आदेश द्वारा, उसे निदेश दे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 382 |  Section 382 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 382 in Hindi ] –

अपील की अर्जी

प्रत्येक अपील अपीलार्थी या उसके प्लीडर द्वारा उपस्थित की गई लिखित अर्जी के रूप में की जाएगी, और प्रत्येक ऐसी अर्जी के साथ (जब तक वह न्यायालय जिसमें वह उपस्थित की जाए अन्यथा निदेश न दे) उस निर्णय या आदेश की प्रतिलिपि होगी जिसके विरुद्ध अपील की जा रही है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 383 |  Section 383 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 383 in Hindi ] –

जब अपीलार्थी जेल में है तब प्रक्रिया-

यदि अपीलार्थी जेल में है तो वह अपनी अपील की अर्जी और उसके साथ वाली प्रतिलिपियों को जेल के भारसाधक अधिकारी को दे सकता है, जो तब ऐसी अर्जी और प्रतिलिपियां समुचित अपील न्यायालय को भेजेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 384 |  Section 384 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 384 in Hindi ] –

अपील का संक्षेपत: खारिज किया जाना

(1) यदि धारा 382 या धारा 383 के अधीन प्राप्त अपील की अर्जी और निर्णय की प्रतिलिपि की परीक्षा करने पर अपील न्यायालय का यह विचार है कि हस्तक्षेप करने का कोई पर्याप्त आधार नहीं है तो वह अपील को संक्षेपतः खारिज कर सकता है। परन्तु
(क) धारा 382 के अधीन उपस्थित की गई कोई अपील तब तक खारिज न की जाएगी जब तक अपीलार्थी या उसके प्लीडर को उसके समर्थन में सुने जाने का उचित अवसर न मिल चुका हो;
(ख) धारा 383 के अधीन कोई अपील उसके समर्थन में अपीलार्थी को सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना खारिज नहीं की जाएगी, जब तक अपील न्यायालय का यह विचार न हो कि अपील तुच्छ है या न्यायालय के समक्ष अभियुक्त को अभिरक्षा में पेश करने से मामले की परिस्थितियों के अनुपात में कहीं अधिक असुविधा होगी;
(ग) धारा 383 के अधीन उपस्थित की गई कोई अपील तब तक संक्षेपतः खारिज न की जाएगी जब तक ऐसी अपील करने के लिए अनुज्ञात अवधि का अवसान न हो चुका हो। (2) किसी अपील को इस धारा के अधीन खारिज करने के पूर्व न्यायालय मामले के अभिलेख मंगा सकता है।
(3) जहां इस धारा के अधीन अपील खारिज करने वाला अपील न्यायालय, सेशन न्यायालय या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय है वहां वह ऐसा करने के अपने कारण अभिलिखित करेगा।
(4) जहां धारा 383 के अधीन उपस्थित की गई कोई अपील इस धारा के अधीन संक्षेपतः खारिज कर दी जाती है और अपील न्यायालय का यह निष्कर्ष है कि उसी अपीलार्थी की ओर से धारा 382 के अधीन सम्यक् रूप से उपस्थित की गई अपील की अन्य अर्जी पर उसके द्वारा विचार नहीं किया गया है वहां, धारा 393 में किसी बात के होते हुए भी, यदि उस न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के हित में आवश्यक है तो वह ऐसी अपील विधि के अनुसार सुन सकता है और उसका निपटारा कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 385 |  Section 385 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 385 in Hindi ] –

संक्षेपत: खारिज न की गई अपीलों की सुनवाई के लिए प्रक्रिया

(1) यदि अपील न्यायालय अपील को संक्षेपतः खारिज नहीं करता है तो वह उस समय और स्थान की, जब और जहां ऐसी अपील सुनी जाएगी, सूचना
(1) अपीलार्थी या उसके प्लीडर को; (ii) ऐसे अधिकारी को, जिसे राज्य सरकार इस निमित्त नियुक्त करे: (iii) यदि परिवाद पर संस्थित मामले में दोषसिद्ध के निर्णय के विरुद्ध अपील की गई है, तो परिवादी को;
(iv) यदि अपील धारा 377 या धारा 378 के अधीन की गई है तो अभियुक्त को, दिलवाएगा और ऐसे अधिकारी, परिवादी और अभियुक्त को अपील के आधारों की प्रतिलिपि भी देगा।
(2) यदि अपील न्यायालय में मामले का अभिलेख, पहले से ही उपलभ्य नहीं है तो वह न्यायालय ऐसा अभिलेख मंगाएगा और पक्षकारों को सुनेगा :
परन्तु यदि अपील केवल दंड के परिमाण या उसकी वैधता के बारे में है तो न्यायालय अभिलेख मंगाए बिना ही अपील का निपटारा कर सकता है।
(3) जहां दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील का आधार केवल दंडादेश की अभिकथित कठोरता है वहां अपीलार्थी न्यायालय की इजाजत के बिना अन्य किसी आधार के समर्थन में न तो कहेगा और न उसे उसके समर्थन में सुना ही जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 386 |  Section 386 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 386 in Hindi ] –

अपील न्यायालय की शक्तियां

ऐसे अभिलेख के परिशीलन और यदि अपीलार्थी या उसका प्लीडर हाजिर है तो उसे तथा यदि लोक अभियोजक हाजिर है तो उसे और धारा 377 या धारा 378 के अधीन अपील की दशा में यदि अभियुक्त हाजिर है तो उसे सुनने के पश्चात्, अपील न्यायालय उस दशा में जिसमें उसका यह विचार है कि हस्तक्षेप करने का पर्याप्त आधार नहीं है अपील को खारिज कर सकता है, अथवा,
(क) दोषमुक्ति के आदेश से अपील में ऐसे आदेश को उलट सकता है और निदेश दे सकता है कि अतिरिक्त जांच की जाए अथवा अभियुक्त, यथास्थिति, पुनः विचारित किया जाए या विचारार्थ सुपुर्द किया जाए, अथवा उसे दोषी ठहरा सकता है और उसे विधि के अनुसार दंडादेश दे सकता है;
(ख) दोषसिद्धि से अपील में,
(i) निष्कर्ष और दंडादेश को उलट सकता है और अभियुक्त को दोषमुक्त या उन्मोचित कर सकता है या ऐसे अपील न्यायालय के अधीनस्थ सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा उसके पुनः विचारित किए जाने का या विचारणार्थ सुपुर्द किए जाने का आदेश दे सकता है, अथवा
(ii) दंडादेश को कायम रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकता है, अथवा
(iii) निष्कर्ष में परिवर्तन करके या किए बिना दंड के स्वरूप या परिमाण में अथवा स्वरूप और परिमाण में परिवर्तन कर सकता है, किन्तु इस प्रकार नहीं कि उससे दंड में वृद्धि हो जाए।
(ग) दंडादेश की वृद्धि के लिए अपील में,
(i) निष्कर्ष और दंडादेश को उलट सकता है और अभियुक्त को दोषमुक्त या उन्मोचित कर सकता है या ऐसे अपराध का विचारण करने के लिए सक्षम न्यायालय द्वारा उसका पुनर्विचारण करने का आदेश दे सकता है, या
(ii) दंडादेश को कायम रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकता है, या
(iii) निष्कर्ष में परिवर्तन करके या किए बिना, दंड के स्वरूप या परिमाण में अथवा स्वरूप और परिमाण में परिवर्तन कर सकता है जिससे उसमें वृद्धि या कमी हो जाए;
(घ) किसी अन्य आदेश से अपील में ऐसे आदेश को परिवर्तित कर सकता है या उलट सकता है;
(ङ) कोई संशोधन या कोई पारिणामिक या आनुषंगिक आदेश, जो न्यायसंगत या उचित हो, कर सकता है : परन्तु दंड में तब तक वृद्धि नहीं की जाएगी जब तक अभियुक्त को ऐसी वृद्धि के विरुद्ध कारण दर्शित करने का अवसर न मिल चुका हो:
परन्तु यह और कि अपील न्यायालय उस अपराध के लिए, जिसे उसकी राय में अभियुक्त ने किया है उससे अधिक दंड नहीं देगा, जो अपीलाधीन आदेश या दंडादेश पारित करने वाले न्यायालय द्वारा ऐसे अपराध के लिए दिया जा सकता था।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 387 |  Section 387 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 387 in Hindi ] –

अधीनस्थ अपील न्यायालय के निर्णय

आरंभिक अधिकारिता वाले दंड न्यायालय के निर्णय के बारे में अध्याय 27 में अन्तर्विष्ट नियम, जहां तक साध्य हो, सेशन न्यायालय या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय के अपील में दिए गए निर्णय को लागू होंगे:
परन्तु निर्णय दिया जाना सुनने के लिए अभियुक्त न तो लाया जाएगा और न उससे हाजिर होने की अपेक्षा की जाएगी जब तक कि अपील न्यायालय अन्यथा निदेश न दे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 388 |  Section 388 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 388 in Hindi ] –

अपील में उच्च न्यायालय के आदेश का प्रमाणित करके निचले न्यायालय को भेजा जाना

(1) जब कभी अपील में कोई मामला उच्च न्यायालय द्वारा इस अध्याय के अधीन विनिश्चित किया जाता है तब वह अपना निर्णय या आदेश प्रमाणित करके उस न्यायालय को भेजेगा जिसके द्वारा वह निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश, जिसके विरुद्ध अपील की गई थी अभिलिखित किया गया या पारित किया गया था और यदि ऐसा न्यायालय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से भिन्न न्यायिक मजिस्ट्रेट का है तो उच्च न्यायालय का निर्णय या आदेश मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की मार्फत भेजा जाएगा ; और यदि ऐसा न्यायालय कार्यपालक मजिस्ट्रेट का है तो उच्च न्यायालय का निर्णय या आदेश जिला मजिस्ट्रेट की मार्फत भेजा जाएगा।
(2) तब वह न्यायालय, जिसे उच्च न्यायालय अपना निर्णय या आदेश प्रमाणित करके भेजे ऐसे आदेश करेगा जो उच्च न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुरूप हों; और यदि आवश्यक हो तो अभिलेख में तद्नुसार संशोधन कर दिया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 |  Section 389 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 389 in Hindi ] –

अपील में उच्च न्यायालय के आदेश का प्रमाणित करके निचले न्यायालय को भेजा जाना

(1) अपील न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो उसके द्वारा अभिलिखित किए जाएंगे, आदेश दे सकता है कि उस दंडादेश या आदेश का निष्पादन, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा की गई अपील के लंबित रहने तक निलंबित किया जाए और यदि वह व्यक्ति परिरोध में है तो यह भी आदेश दे सकता है कि उसे जमानत पर या उसके अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया जाए :
परन्तु अपील न्यायालय ऐसे दोषसिद्ध व्यक्ति को, जो मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अन्यून अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जमानत पर या उसके अपने बंधपत्र पर छोड़ने से पूर्व, लोक अभियोजक को ऐसे छोड़ने के विरुद्ध लिखित में कारण दर्शाने का अवसर देगा:
परन्तु यह और कि ऐसे मामलों में, जहां किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को जमानत पर छोड़ा जाता है वहां लोक अभियोजक जमानत रद्द किए जाने के लिए आवेदन फाइल कर सकेगा।]
(2) अपील न्यायालय को इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उच्च न्यायालय भी किसी ऐसी अपील के मामले में कर सकता है जो किसी दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा उसके अधीनस्थ न्यायालय में की गई है।
(3) जहां दोषसिद्ध व्यक्ति ऐसे न्यायालय का जिसके द्वारा वह दोषसिद्ध किया गया है यह समाधान कर देता है कि वह अपील प्रस्तुत करना चाहता है वहां वह न्यायालय,
(i) उस दशा में जब ऐसा व्यक्ति, जमानत पर होते हुए, तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडादिष्ट किया गया है, या
(ii) उस दशा में जब वह अपराध, जिसके लिए ऐसा व्यक्ति दोषसिद्ध किया गया है, जमानतीय है और वह जमानत पर है, यह आदेश देगा कि दोषसिद्ध व्यक्ति को इतनी अवधि के लिए जितनी से अपील प्रस्तुत करने और उपधारा (1) के अधीन अपील न्यायालय के आदेश प्राप्त करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा जमानत पर छोड़ दिया जाए जब तक कि जमानत से इनकार करने के विशेष कारण न हों और जब तक वह ऐसे जमानत पर छूटा रहता है तब तक कारावास का दंडादेश निलम्बित समझा जाएगा।
(4) जब अंततोगत्वा अपीलार्थी को किसी अवधि के कारावास या आजीवन कारावास का दंडादेश दिया जाता है, तब वह समय, जिसके दौरान वह ऐसे छुटा रहता है, उस अवधि की संगणना करने में, जिसके लिए उसे ऐसा दंडादेश दिया गया है, हिसाब में नहीं लिया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 390 |  Section 390 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 390 in Hindi ] –

दोषमुक्ति से अपील में अभियुक्त की गिरफ्तारी-

जब धारा 378 के अधीन अपील उपस्थित की जाती है तब उच्च न्यायालय वारण्ट जारी कर सकता है जिसमें यह निदेश होगा कि अभियुक्त गिरफ्तार किया जाए और उसके या किसी अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष लाया जाए, और वह न्यायालय जिसके समक्ष अभियुक्त लाया जाता है. अपील का निपटारा होने तक उसे कारागार को सुपुर्द कर सकता है या उसकी जमानत ले सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 391 |  Section 391 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 391 in Hindi ] –

अपील न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य ले सकेगा या उसके लिए जाने का निदेश दे सकेगा

(1) इस अध्याय के अधीन किसी अपील पर विचार करने में यदि अपील न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक समझता है तो वह अपने कारणों को अभिलिखित करेगा और ऐसा साक्ष्य या तो स्वयं ले सकता है या मजिस्ट्रेट द्वारा, या जब अपील न्यायालय उच्च न्यायालय है तब सेशन न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा, लिए जाने का निदेश दे सकता है।
(2) जब अतिरिक्त साक्ष्य सेशन न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा ले लिया जाता है तब वह ऐसा साक्ष्य प्रमाणित करके अपील न्यायालय को भेजेगा और तब ऐसा न्यायालय अपील निपटाने के लिए अग्रसर होगा।
(3) अभियुक्त या उसके प्लीडर को उस समय उपस्थित होने का अधिकार होगा जब अतिरिक्त साक्ष्य लिया जाता है ।
(4) इस धारा के अधीन साक्ष्य का लिया जाना अध्याय 23 के उपबंधों के अधीन होगा मानो वह कोई जांच हो

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 392 |  Section 392 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 392 in Hindi ] –

जहां अपील न्यायालय के न्यायाधीश राय के बारे में समान रूप में विभाजित हों, वहां प्रक्रिया

जब इस अध्याय के अधीन अपील उच्च न्यायालय द्वारा उसके न्यायाधीशों के न्यायपीठ के समक्ष सुनी जाती है और वे राय में समान रूप से विभाजित हैं तब अपील उनकी रायों के सहित उसी न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के समक्ष रखी जाएगी और ऐसा न्यायाधीश, ऐसी सुनवाई के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझे, अपनी राय देगा और निर्णय या आदेश ऐसी राय के अनुसार होगा:
परन्तु यदि न्यायपीठ गठित करने वाले न्यायाधीशों में से कोई एक न्यायाधीश या जहाँ अपील इस धारा के अधीन किसी अन्य न्यायाधीश के समक्ष रखी जाती है वहां वह न्यायाधीश अपेक्षा करे तो अपील, न्यायाधीशों के बृहत्तर न्यायपीठ द्वारा पुनः सुनी जाएगी और विनिश्चित की जाएगी

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 393 |  Section 393 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 393 in Hindi ] –

अपील पर आदेशों और निर्णयों का अंतिम होना-

अपील में अपील न्यायालय द्वारा पारित निर्णय या आदेश धारा 377, धारा 378, धारा 384 की उपधारा (4) या अध्याय 30 में उपबंधित दशाओं के सिवाय अंतिम होंगे :
परन्तु किसी मामले में दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील का अंतिम निपटारा हो जाने पर भी, अपील न्यायालय-
(क) धारा 378 के अधीन दोषमुक्ति के विरुद्ध उसी मामले से पैदा होने वाली अपील को ; अथवा
(ख) धारा 377 के अधीन दंडादेश में वृद्धि के लिए उसी मामले से पैदा होने वाली अपील को, सुन सकता है और गुणागुण के आधार पर उसका निपटारा कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 394 |  Section 394 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 394 in Hindi ] –

अपीलों का उपशमन

(1) धारा 377 या धारा 378 के अधीन प्रत्येक अन्य अपील का अभियुक्त की मृत्यु पर अंतिम रूप से उपशमन हो जाएगा।
(2) इस अध्याय के अधीन (जुर्माने के दंडादेश की अपील के सिवाय) प्रत्येक अन्य अपील का अपीलार्थी की मृत्यु पर अंतिम रूप से उपशमन हो जाएगा:
परन्तु जहाँ अपील, दोषसिद्धि और मृत्यु के या कारावास के दंडादेश के विरुद्ध है और अपील के लंबित रहने के दौरान अपीलार्थी की मृत्यु हो जाती है वहां उसका कोई भी निकट नातेदार, अपीलार्थी की मृत्यु के तीस दिन के अन्दर अपील जारी रखने की इजाजत के लिए अपील न्यायालय में आवेदन कर सकता है ; और यदि इजाजत दे दी जाती है तो अपील का उपशमन न होगा।
स्पष्टीकरणइस धारा में निकट नातेदार से माता-पिता, पति या पत्नी, पारंपरिक वंशज, भाई या बहन अभिप्रेत है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 395 |  Section 395 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 395 in Hindi ] –

उच्च न्यायालय को निर्देश-

(1) जहां किसी न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उसके समक्ष लंबित मामले में किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम की अथवा किसी अधिनियम, अध्यादेश या विनियम में अन्तर्विष्ट किसी उपबंध की विधिमान्यता के बारे में ऐसा प्रश्न अन्तर्गस्त है, जिसका अवधारण उस मामले को निपटाने के लिए आवश्यक है, और उसकी यह राय है कि ऐसा अधिनियम, अध्यादेश, विनियम या उपबंध अविधिमान्य या अप्रवर्तनशील है किन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है, या उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित नहीं किया गया है वहां न्यायालय अपनी राय और उसके कारणों को उल्लिखित करते हुए मामले का कथन तैयार करेगा और उसे उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित करेगा।
स्पष्टीकरण-इस धारा में विनियमसे साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) में या किसी राज्य के साधारण खंड अधिनियम में यथापरिभाषित कोई विनियम अभिप्रेत है।
(2) यदि सेशन न्यायालय या महानगर मजिस्ट्रेट अपने समक्ष लंबित किसी मामले में, जिसे उपधारा (1) के उपबंध लागू नहीं होते हैं, ठीक समझता है तो वह, ऐसे मामले की सुनवाई में उठने वाले किसी विधि-प्रश्न को उच्च न्यायालय के विनिश्चय के लिए निर्देशित कर सकता है।
(3) कोई न्यायालय, जो उच्च न्यायालय को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन निर्देश करता है, उस पर उच्च न्यायालय का विनिश्चय होने तक, अभियुक्त को जेल को सुपुर्द कर सकता है या अपेक्षा किए जाने पर हाजिर होने के लिए जमानत पर छोड़ सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 396 |  Section 396 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 396 in Hindi ] –

 उच्च न्यायालय के विनिश्चय के अनुसार मामले का निपटारा

(1) जब कोई प्रश्न ऐसे निर्देशित किया जाता है तब उच्च न्यायालय उस पर ऐसा आदेश पारित करेगा जैसा वह ठीक समझे और उस आदेश की प्रतिलिपि उस न्यायालय को भिजवाएगा जिसके द्वारा वह निर्देश किया गया था और वह न्यायालय उस मामले को उक्त आदेश के अनुरूप निपटाएगा।
(2) उच्च न्यायालय निदेश दे सकता है कि ऐसे निदेश का खर्चा कौन देगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 397 |  Section 397 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 397 in Hindi ] –

पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अभिलेख मंगाना

(1) उच्च न्यायालय या कोई सेशन न्यायाधीश अपनी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर स्थित किसी अवर दंड न्यायालय के समक्ष की किसी कार्यवाही के अभिलेख को, किसी अभिलिखित या पारित किए गए निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश की शुद्धता, वैधता या औचित्य के बारे में और ऐसे अवर न्यायालय की किन्हीं कार्यवाहियों की नियमितता के बारे में अपना समाधान करने के प्रयोजन से, मंगा सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है और ऐसा अभिलेख मंगाते समय निदेश दे सकता है कि अभिलेख की परीक्षा लंबित रहने तक किसी दंडादेश का निष्पादन निलंबित किया जाए और यदि अभियुक्त परिरोध में है तो उसे जमानत पर या उसके अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया जाए।
स्पष्टीकरण-सभी मजिस्ट्रेट, चाहे वे कार्यपालक हों या न्यायिक और चाहे वे आरंभिक अधिकारिता का प्रयोग कर रहे हों, या अपीली अधिकारिता का, इस उपधारा के और धारा 398 के प्रयोजनों के लिए सेशन न्यायाधीश से अबर समझे जाएंगे।
(2) उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग किसी अपील, जांच विचारण या अन्य कार्यवाही में पारित किसी अंतर्वर्ती आदेश की बाबत नहीं किया जाएगा।
(3) यदि किसी व्यक्ति द्वारा इस धारा के अधीन आवेदन या तो उच्च न्यायालय को या सेशन न्यायाधीश को किया गया है तो उसी व्यक्ति द्वारा कोई और आवेदन उनमें से दूसरे के द्वारा ग्रहण नहीं किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 398 |  Section 398 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 398 in Hindi ] –

जांच करने का आदेश देने की शक्ति

किसी अभिलेख की धारा 397 के अधीन परीक्षा करने पर या अन्यथा उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निदेश दे सकता है कि वह, ऐसे किसी परिवाद की, जो धारा 203 या धारा 204 की उपधारा (4) के अधीन खारिज कर दिया गया है, या किसी अपराध के अभियुक्त ऐसे व्यक्ति के मामले की, जो उन्मोचित कर दिया गया हैअतिरिक्त जांच स्वयं करे या अपने अधीनस्थ मजिस्ट्रेटों में से किसी के द्वारा कराए तथा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसी अतिरिक्त जांच स्वयं कर सकता है या उसे करने के लिए अपने किसी अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को निदेश दे सकता है :
परन्तु कोई न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति के मामले में, जो उन्मोचित कर दिया गया है, इस धारा के अधीन जांच करने का कोई निदेश तभी देगा जब इस बात का कारण दर्शित करने के लिए कि ऐसा निदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिए. ऐसे व्यक्ति को अवसर मिल चुका हो।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 399 |  Section 399 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 399 in Hindi ] –

सेशन न्यायाधीश की पुनरीक्षण की शक्तियां-

(1) ऐसी किसी कार्यवाही के मामले में जिसका अभिलेख सेशन न्यायाधीश ने स्वयं मंगवाया है, वह उन सभी या किन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जिनका प्रयोग धारा 401 की उपधारा (1) के अधीन उच्च न्यायालय कर सकता है।
(2) जहां सेशन न्यायाधीश के समक्ष पुनरीक्षण के रूप में कोई कार्यवाही उपधारा (1) के अधीन प्रारंभ की गई है वहां धारा 401 की उपधारा (2), (3), (4) और (5) के उपबंध, जहाँ तक हो सके, ऐसी कार्यवाही को लागू होंगे और उक्त उपधाराओं में उच्च न्यायालय के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे सेशन न्यायाधीश के प्रति निर्देश हैं।
(3) जहां किसी व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से पुनरीक्षण के लिए आवेदन सेशन न्यायाधीश के समक्ष किया जाता है वहां ऐसे व्यक्ति के संबंध में उस बाबत सेशन न्यायाधीश का विनिश्चय अन्तिम होगा और ऐसे व्यक्ति की प्रेरणा पर पुनरीक्षण के रूप में और कार्यवाही उच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय द्वारा ग्रहण नहीं की जाएगी।

दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 400 |  Section 400 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 400 in Hindi ] –

अपर सेशन न्यायाधीश की शक्ति

अपर सेशन न्यायाधीश को किसी ऐसे मामले के बारे में, जो सेशन न्यायाधीश के किसी साधारण या विशेष आदेश के द्वारा या अधीन उसे अंतरित किया जाता है, सेशन न्यायाधीश की इस अध्याय के अधीन सब शक्तियां प्राप्त होंगी और वह उनका प्रयोग कर सकता है।

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