Wednesday, 3 June 2020

दंड प्रक्रिया संहिता 151 से 200


दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 151 |  Section 151 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 151 in Hindi ] –

संज्ञेय अपराधों का किया जाना रोकने के लिए गिरफ्तारी

(1) कोई पुलिस अधिकारी जिसे किसी संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना का पता है, ऐसी परिकल्पना करने वाले व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेशों के बिना और वारंट के बिना उस दशा में गिरफ्तार कर सकता है जिसमें ऐसे अधिकारी को प्रतीत होता है कि उस अपराध का किया जाना अन्यथा नहीं रोका जा सकता।
(2) उपधारा (1) के अधीन गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के समय से चौबीस घंटे की अवधि से अधिक के लिए अभिरक्षा में उस दशा के सिवाय निरुद्ध नहीं रखा जाएगा जिसमें उसका और आगे निरुद्ध रखा जाना इस संहिता के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के किन्हीं अन्य उपबंधों के अधीन अपेक्षित या प्राधिकृत है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 152 |  Section 152 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 152 in Hindi ] –

लोक संपत्ति की हानि का निवारण-

किसी पुलिस अधिकारी की दृष्टिगोचरता में किसी भी जंगम या स्थावर लोक संपत्ति को हानि पहुंचाने का प्रयत्न किए जाने पर वह उसका, या किसी लोक भूमि-चिह्न या बोया या नौपरिवहन के लिए प्रयुक्त अन्य चिह्न के हटाए जाने या उसे हानि पहुंचाए जाने का, निवारण करने के लिए अपने ही प्राधिकार से अंतःक्षेप कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 153 |  Section 153 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 153 in Hindi ] –

बाटों और मापों का निरीक्षण

(1) कोई पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उस थाने की सीमाओं के अंदर किसी स्थान में, जब कभी उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे स्थान में कोई बाट, माप या तोलने के उपकरण हैं जो खोटे हैं, वहां प्रयुक्त या रखे हुए किन्हीं बाटों या मापों या तोलने के उपकरणों के निरीक्षण या तलाशी के प्रयोजन के लिए वारंट के बिना प्रवेश कर सकता है।
(2) यदि वह उस स्थान में कोई ऐसे बाट, माप या तोलने के उपकरण पाता है जो खोटे हैं तो वह उन्हें अभिगृहीत कर सकता है और ऐसे अभिग्रहण की इत्तिला अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट को तत्काल देगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 |  Section 154 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 154 in Hindi ] –

संज्ञेय मामलों में इत्तिला

(1) संज्ञेय अपराध के किए जाने से संबंधित प्रत्येक इत्तिला, यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक दी गई है तो उसके द्वारा या उसके निदेशाधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी इत्तिला पर, चाहे वह लिखित रूप में दी गई हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गई हो, उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक में, जो उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जाएगी जिसे राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे, प्रविष्ट किया जाएगा:
(2) उपधारा (1) के अधीन अभिलिखित इत्तिला की प्रतिलिपि, इत्तिला देने वाले को तत्काल निःशुल्क दी जाएगी।
(3) कोई व्यक्ति जो किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के उपधारा (1) में निर्दिष्ट इत्तिला को अभिलिखित करने से इनकार करने से व्यथित है, ऐसी इत्तिला का सार लिखित रूप में और डाक द्वारा संबद्ध पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है जो, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसी इत्तिला से किसी संज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट होता है तो, या तो स्वयं मामले का अन्वेषण करेगा या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी द्वारा इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति में अन्वेषण किए जाने का निदेश देगा और उस अधिकारी को उस अपराध के संबंध में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां होंगी

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 |  Section 155 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 155 in Hindi ] –

असंज्ञेय मामलों के बारे में इत्तिला और ऐसे मामलों का अन्वेषण

(1) जब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को उस थाने की सीमाओं के अंदर असंज्ञेय अपराध के किए जाने की इत्तिला दी जाती है तब वह ऐसी इत्तिला का सार, ऐसी पुस्तक में, जो ऐसे अधिकारी द्वारा ऐसे प्ररूप में रखी जाएगी जो राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे, प्रविष्ट करेगा या प्रविष्ट कराएगा और इत्तिला देने वाले को मजिस्ट्रेट के पास जाने को निर्देशित करेगा।
(2) कोई पुलिस अधिकारी किसी असंज्ञेय मामले का अन्वेषण ऐसे मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना नहीं करेगा जिसे ऐसे मामले का विचारण करने की या मामले को विचारणार्थ सुपुर्द करने की शक्ति है।
(3) कोई पुलिस अधिकारी ऐसा आदेश मिलने पर (वारंट के बिना गिरफ्तारी करने की शक्ति के सिवाय) अन्वेषण के बारे में वैसी ही शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जैसी पुलिस थाने का भारसाधक संज्ञेय मामले में कर सकता है।
(4) जहां मामले का संबंध ऐसे दो या अधिक अपराधों से है, जिनमें से कम से कम एक संज्ञेय है, वहां इस बात के होते हुए भी कि अन्य अपराध असंज्ञेय हैं, यह मामला संज्ञेय मामला समझा जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 |  Section 156 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 156 in Hindi ] –

संज्ञेय मामलों का अन्वेषण करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति

(1) कोई पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी ऐसे संज्ञेय मामले का अन्वेषण कर सकता है, जिसकी जांच या विचारण करने की शक्ति उस थाने की सीमाओं के अंदर के स्थानीय क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अध्याय 13 के उपबंधों के अधीन है।
(2) ऐसे किसी मामले में पुलिस अधिकारी की किसी कार्यवाही को किसी भी प्रक्रम में इस आधार पर प्रश्नगत न किया जाएगा कि वह मामला ऐसा था जिसमें ऐसा अधिकारी इस धारा के अधीन अन्वेषण करने के लिए सशक्त न था।
(3) धारा 190 के अधीन सशक्त किया गया कोई मजिस्ट्रेट पूर्वोक्त प्रकार के अन्वेषण का आदेश कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 157 |  Section 157 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 157 in Hindi ] –

अन्वेषण के लिए प्रक्रिया

(1) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को, इत्तिला प्राप्त होने पर या अन्यथा, यह संदेह करने का कारण है कि ऐसा अपराध किया गया है जिसका अन्वेषण करने के लिए धारा 156 के अधीन वह् सशक्त है तो वह उस अपराध की रिपोर्ट उस मजिस्ट्रेट को तत्काल भेजेगा जो ऐसे अपराध का पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान करने के लिए सशक्त है और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों का अन्वेषण करने के लिए, और यदि आवश्यक हो तो अपराधी का पता चलाने और उसकी गिरफ्तारी के उपाय करने के लिए, उस स्थान पर या तो स्वयं जाएगा या अपने अधीनस्थ अधिकारियों में से एक को भेजेगा जो ऐसी पंक्ति से निम्नतर पंक्ति का न होगा जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित करे:
परंतु
(क) जब ऐसे अपराध के किए जाने की कोई इत्तिला किसी व्यक्ति के विरुद्ध उसका नाम देकर की गई है और मामला गंभीर प्रकार का नहीं है तब यह आवश्यक न होगा कि पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उस स्थान पर अन्वेषण करने के लिए स्वयं जाए या अधीनस्थ अधिकारी को भेजे;
(ख) यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि अन्वेषण करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो वह उस मामले का अन्वेषण न करेगा।
परंतु यह और कि बलात्संग के अपराध के संबंध में, पीड़ित का कथन, पीड़ित के निवास पर या उसकी पसंद के स्थान पर और यथासाध्य, किसी महिला पुलिस अधिकारी द्वारा उसके माता-पिता या संरक्षक या नजदीकी नातेदार या परिक्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता की उपस्थिति में अभिलिखित किया जाएगा।]
(2) उपधारा (1) के परंतुक के खंड (क) और (ख) में वर्णित दशाओं में से प्रत्येक दशा में पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी अपनी रिपोर्ट में उस उपधारा की अपेक्षाओं का पूर्णतया अनुपालन न करने के अपने कारणों का कथन करेगा और उक्त परंतुक के खंड (ब) में वर्णित दशा में ऐसा अधिकारी इत्तिला देने वाले को, यदि कोई हो, ऐसी रीति से, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए तत्काल इस बात की सूचना दे देगा कि वह उस मामले में अन्वेषण न तो करेगा और न कराएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 158 |  Section 158 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 158 in Hindi ] –

रिपोर्ट कैसे दी जाएंगी-

(1) धारा 157 के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी जाने वाली प्रत्येक रिपोर्ट, यदि राज्य सरकार ऐसा निदेश देती है, तो पुलिस के ऐसे वरिष्ठ अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी, जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त नियत करे।
(2) ऐसा वरिष्ठ अधिकारी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को ऐसे अनुदेश दे सकता है जो वह ठीक समझे और उस रिपोर्ट पर उन अनुदेशों को अभिलिखित करने के पश्चात उसे अविलंब मजिस्ट्रेट के पास भेज देगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 159 |  Section 159 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 159 in Hindi ] –

अन्वेषण या प्रारंभिक जांच करने की शक्ति-

ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसी रिपोर्ट प्राप्त होने पर अन्वेषण के लिए आदेश दे सकता है, या यदि वह ठीक समझे तो वह इस संहिता में उपबंधित रीति से मामले की प्रारंभिक जांच करने के लिए या उसको अन्यथा निपटाने के लिए तुरंत कार्यवाही कर सकता है, या अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को कार्यवाही करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 |  Section 160 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 160 in Hindi ] –

साक्षियों की हाजिरी की अपेक्षा करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति

(1) कोई पुलिस अधिकारी, जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है, अपने थाने की या किसी पास के थाने की सीमाओं के अंदर विद्यमान किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसकी दी गई इत्तिला से या अन्यथा उस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित होना प्रतीत होता है, अपने समक्ष हाजिर होने की अपेक्षा लिखित आदेश द्वारा कर सकता है और वह व्यक्ति अपेक्षानुसार हाजिर होगा
परंतु किसी पुरुष से [जो पंद्रह वर्ष से कम आयु का या पैंसठ वर्ष से अधिक आयु का है या किसी स्त्री से या किसी मानसिक या शारीरिक रूप से निःशक्त व्यक्ति से] ऐसे स्थान से जिसमें ऐसा पुरुष या स्त्री निवास करती है, भिन्न किसी स्थान पर हाजिर होने की अपेक्षा नहीं की जाएगी।
(2) अपने निवास स्थान से भिन्न किसी स्थान पर उपधारा (1) के अधीन हाजिर होने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के उचित खों का पुलिस अधिकारी द्वारा संदाय कराने के लिए राज्य सरकार इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा उपबंध कर सकती है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 |  Section 161 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 161 in Hindi ] –

पुलिस द्वारा साक्षियों की परीक्षा-

(1) कोई पुलिस अधिकारी, जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है या ऐसे अधिकारी की अपेक्षा पर कार्य करने वाला पुलिस अधिकारी, जो ऐसी पंक्ति से निम्नतर पंक्ति का नहीं है जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त विहित करे, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित समझे जाने वाले किसी व्यक्ति की मौखिक परीक्षा कर सकता है।
(2) ऐसा व्यक्ति उन प्रश्नों के सिवाय, जिनके उत्तरों की प्रवृत्ति उसे आपराधिक आरोप या शास्ति या समपहरण की आशंका में डालने की है, ऐसे मामले से संबंधित उन सब प्रश्नों का सही-सही उत्तर देने के लिए आबद्ध होगा जो ऐसा अधिकारी उससे पूछता है।
(3) पुलिस अधिकारी इस धारा के अधीन परीक्षा के दौरान उसके समक्ष किए गए किसी भी कथन को लेखबद्ध कर सकता है और यदि वह ऐसा करता है, तो वह प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के कथन का पृथक् और सही अभिलेख बनाएगा, जिसका कथन वह अभिलिखित करता है।
[परंतु इस उपधारा के अधीन किया गया कथन श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों द्वारा भी अभिलिखित किया जा सकेगा।]
परंतु यह और कि किसी ऐसी स्त्री का कथन, जिसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 376, धारा 376, धारा 376, धारा 376ग धारा 376, धारा 376ङ या धारा 509, के अधीन किसी अपराध के किए जाने या किए जाने का प्रयत्न किए जाने का अधिकथन किया गया है, किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा अभिलिखित किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 162 |  Section 162 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 162 in Hindi ] –

पुलिस से किए गए कथनों का हस्ताक्षरित न किया जाना ; कथनों का साक्ष्य में उपयोग

(1) किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस अधिकारी से इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान किया गया कोई कथन, यदि लेखबद्ध किया जाता है तो कथन करने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं किया जाएगा, और न ऐसा कोई कथन या उसका कोई अभिलेख चाहे वह पुलिस, डायरी में हो या न हो, और न ऐसे कथन या अभिलेख का कोई भाग ऐसे किसी अपराध की, जो ऐसा कथन किए जाने के समय अन्वेषणाधीन था, किसी जांच या विचारण में, इसमें इसके पश्चात् यथाउपबंधित के सिवाय, किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाएगा:
परंतु जब कोई ऐसा साक्षी, जिसका कथन उपर्युक्त रूप में लेखबद्ध कर लिया गया है, ऐसी जांच या विचारण में अभियोजन की ओर से बुलाया जाता है तब यदि उसके कथन का कोई भाग, सम्यक् रूप से साबित कर दिया गया है तो, अभियुक्त द्वारा और न्यायालय की अनुज्ञा से अभियोजन द्वारा उसका उपयोग ऐसे साक्षी का खंडन करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 145 द्वारा उपबंधित रीति से किया जा सकता है और जब ऐसे कथन का कोई भाग इस प्रकार उपयोग में लाया जाता है तब उसका कोई भाग ऐसे साक्षी की पुनःपरीक्षा में भी, किंतु उसकी प्रतिपरीक्षा में निर्दिष्ट किसी बात का स्पष्टीकरण करने के प्रयोजन से ही, उपयोग में लाया जा सकता है।
(2) इस धारा की किसी बात के बारे में यह न समझा जाएगा कि वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 32 के खंड (1) के उपबंधों के अंदर आने वाले किसी कथन को लागू होती है या उस अधिनियम की धारा 27 के उपबंधों पर प्रभाव डालती है।
स्पष्टीकरण-उपधारा (1) में निर्दिष्ट कथन में किसी तथ्य या परिस्थिति के कथन का लोप या खंडन हो सकता है यदि वह उस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए, जिसमें ऐसा लोप किया गया है महत्वपूर्ण और अन्यथा संगत प्रतीत होता है और कोई लोप किसी विशिष्ट संदर्भ में खंडन है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न होगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 163 |  Section 163 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 163 in Hindi ] –

कोई उत्प्रेरणा न दिया जाना

(1) कोई पुलिस अधिकारी या प्राधिकार वाला अन्य व्यक्ति भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 24 में यथावर्णित कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन न तो देगा और न करेगा तथा न दिलवाएगा और न करवाएगा।
(2) किंतु कोई पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति इस अध्याय के अधीन किसी अन्वेषण के दौरान किसी व्यक्ति को कोई कथन करने से, जो वह अपनी स्वतंत्र इच्छा से करना चाहे, किसी चेतावनी द्वारा या अन्यथा निवारित न करेगा:
परंतु इस धारा की कोई बात धारा 164 की उपधारा (4) के उपबंधों पर प्रभाव न डालेगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 |  Section 164 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 164 in Hindi ] –

संस्वीकृतियों और कथनों को अभिलिखित करना

(1) कोई महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट, चाहे उसे मामले में अधिकारिता हो या न हो, इस अध्याय के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन किसी अन्वेषण के दौरान या तत्पश्चात् जांच या विचारण प्रारंभ होने के पूर्व किसी समय अपने से की गई किसी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित कर सकता है:
परंतु इस उपधारा के अधीन की गई कोई संस्वीकृति या कथन अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के अधिवक्ता की उपस्थिति में श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों द्वारा भी अभिलिखित किया जा सकेगा:
परंतु यह और कि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा, जिसे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन मजिस्ट्रेट की कोई शक्ति प्रदत्त की गई है, कोई संस्वीकृति अभिलिखित नहीं की जाएगी।]
(2) मजिस्ट्रेट किसी ऐसी संस्वीकृति को अभिलिखित करने के पूर्व उस व्यक्ति को, जो संस्वीकृति कर रहा है, यह समझाएगा कि वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं है और यदि वह उसे करेगा तो वह उसके विरुद्ध साक्ष्य में उपयोग में लाई जा सकती है; और मजिस्ट्रेट कोई ऐसी संस्वीकृति तब तक अभिलिखित न करेगा जब तक उसे करने वाले व्यक्ति से प्रश्न करने पर उसको यह विश्वास करने का कारण न हो कि वह स्वेच्छा से की जा रही है।
(3) संस्वीकृति अभिलिखित किए जाने से पूर्व यदि मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने वाला व्यक्ति यह कथन करता है कि वह संस्वीकृति करने के लिए इच्छुक नहीं है तो मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति के पुलिस की अभिरक्षा में निरोध को प्राधिकृत नहीं करेगा।
(4) ऐसी संस्वीकृति किसी अभियुक्त व्यक्ति की परीक्षा को अभिलिखित करने के लिए धारा 281 में उपबंधित रीति से अभिलिखित की जाएगी और संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति द्वारा उस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे; और मजिस्ट्रेट ऐसे अभिलेख के नीचे निम्नलिखित भाव का एक ज्ञापन लिखेगा:
 “मैंने–(नाम)को यह समझा दिया है कि वह संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं है और यदि वह ऐसा करता है तो कोई संस्वीकृति, जो वह करेगा, उसके विरुद्ध साक्ष्य भी उपयोग में लाई जा सकती है और मुझे विश्वास है कि यह संस्वीकृति स्वेच्छा से की गई है। यह मेरी उपस्थिति में और मेरे सुनते हुए लिखी गई है और जिस व्यक्ति ने यह संस्वीकृति की है उसे यह पड़कर सुना दी गई है और उसने उसका सही होना स्वीकार किया है और उसके द्वारा किए गए कथन का पूरा और सही वृत्तांत इसमें है।
                                                                                                                                              (हस्ताक्षर क. ख मजिस्ट्रेट)
(5) उपधारा (1) के अधीन किया गया (संस्वीकृति से भिन्न) कोई कथन साक्ष्य अभिलिखित करने के लिए इसमें इसके पश्चात उपबंधित ऐसी रीति से अभिलिखित किया जाएगा जो मजिस्ट्रेट की राय में, मामले की परिस्थितियों में सर्वाधिक उपयुक्त हो; तथा मजिस्ट्रेट को उस व्यक्ति को शपथ दिलाने की शक्ति होगी जिसका कथन इस प्रकार अभिलिखित किया जाता है।
(5क) (क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 376 की उपधारा (1) या उपधारा (2), धारा 376, धारा 3760, धारा 376, धारा 376, धारा 3766 या धारा 509 के अधीन दंडनीय मामलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति का, जिसके विरुद्ध उपधारा (5) में विहित रीति में ऐसा अपराध किया गया है. कथन जैसे ही अपराध का किया जाना पुलिस की जानकारी में लाया जाता है, अभिलिखित करेगा:
परन्तु यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानिसक या शारीरिक रूप से नि:शक्त है, तो मजिस्ट्रेट कथन अभिलिखित करने में किसी द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता लेगा :
परन्तु यह है और कि यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त है तो किसी द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता से उस व्यक्ति द्वारा किए गए कथन की वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी;
(ख) ऐसे किसी व्यक्ति के, जो अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त है, खंड (क) के अधीन अभिलिखित कथन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 137 में यथाविनिर्दिष्ट मुख्य परीक्षा के स्थान पर एक कथन समझा जाएगा और ऐसा कथन करने वालों की, विचारण के समय उसको अभिलिखित करने की आवश्यकता के बिना, ऐसे कथन पर प्रतिपरीक्षा की जा सकेगी।]
(6) इस धारा के अधीन किसी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित करने वाला मजिस्ट्रेट, उसे उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जिसके द्वारा मामले की जांच या विचारण किया जाना है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 165 |  Section 165 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 165 in Hindi ] –

पुलिस अधिकारी द्वारा तलाशी-

(1) जब कभी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के पास यह विश्वास करने के उचित आधार हैं कि किसी ऐसे अपराध के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए, जिसका अन्वेषण करने के लिए वह प्राधिकृत है, आवश्यक कोई चीज उस पुलिस थाने की, जिसका वह् भारसाधक है या जिससे वह संलग्न है. सीमाओं के अंदर किसी स्थान में पाई जा सकती है और उसकी राय में ऐसी चीज अनुचित विलंब के बिना तलाशी से अन्यथा अभिप्राप्त नहीं की जा सकती, तब ऐसा अधिकारी अपने विश्वास के आधारों को लेखबद्ध करने, और यथासंभव उस चीज को, जिसके लिए तलाशी ली जानी है, ऐसे लेख में विनिर्दिष्ट करने के पश्चात् उस थाने की सीमाओं के अंदर किसी स्थान में ऐसी चीज के लिए तलाशी ले सकता है या तलाशी लिवा सकता है।
(2) उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि साध्य है तो, तलाशी स्वयं लेगा।
(3) यदि वह तलाशी स्वयं लेने में असमर्थ है और कोई अन्य ऐसा व्यक्ति, जो तलाशी लेने के लिए सक्षम है. उस समय उपस्थित नहीं है तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करने के पश्चात्, अपने अधीनस्थ किसी अधिकारी से अपेक्षा कर सकता है कि वह तलाशी ले और ऐसे अधीनस्थ अधिकारी को ऐसा लिखित आदेश देगा जिसमें उस स्थान को जिसकी तलाशी ली जानी है, और यथासंभव उस चीज को, जिसके लिए तलाशी ली जानी है, विनिर्दिष्ट किया जाएगा और तब ऐसा अधीनस्थ अधिकारी उस चीज के लिए तलाशी उस स्थान में ले सकेगा।
(4) तलाशी-वारंटों के बारे में इस संहिता के उपबंध और तलाशियों के बारे में धारा 100 के साधारण उपबंध इस धारा के अधीन ली जाने वाली तलाशी को, जहाँ तक हो सके, लागू होंगे।
(5) उपधारा (1) या उपधारा (3) के अधीन बनाए गए किसी भी अभिलेख की प्रतियां तत्काल ऐसे निकटतम मजिस्ट्रेट के पास भेज दी जाएंगी जो उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त है और जिस स्थान की तलाशी ली गई है, उसके स्वामी या अधिभोगी को, उसके आवेदन पर, उसकी एक प्रतिलिपि मजिस्ट्रेट द्वारा नि:शुल्क दी जाएगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 166 |  Section 166 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 166 in Hindi ] –

पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी कब किसी अन्य अधिकारी से तलाशी-वारंट जारी करने की अपेक्षा कर सकता है

(1) पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या उपनिरीक्षक से अनिम्न पंक्ति का पुलिस अधिकारी, जो अन्वेषण कर रहा है, किसी दूसरे पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से, चाहे वह उस जिले में हो या दूसरे जिले में हो, किसी स्थान में ऐसे मामले में तलाशी लिवाने की अपेक्षा कर सकता है जिसमें पूर्वकथित अधिकारी स्वयं अपने थाने की सीमाओं के अंदर ऐसी तलाशी लिवा सकता है।
(2) ऐसा अधिकारी ऐसी अपेक्षा किए जाने पर धारा 165 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा और यदि कोई चीज मिले तो उसे उस अधिकारी के पास भेजेगा जिसकी अपेक्षा पर तलाशी ली गई है।
(3) जब कभी यह विश्वास करने का कारण है कि दूसरे पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से उपधारा (1) के अधीन तलाशी लिवाने की अपेक्षा करने में जो विलंब होगा उसका परिणाम यह हो सकता है कि अपराध किए जाने का साक्ष्य छिपा दिया जाए या नष्ट कर दिया जाए, तब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के लिए या उस अधिकारी के लिए जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण कर रहा है, यह विधिपूर्ण होगा कि वह दूसरे पुलिस थाने की स्थानीय सीमाओं के अंदर किसी स्थान की धारा 165 के उपबंधों के अनुसार ऐसी तलाशी ले या लिवाए मानों ऐसा स्थान उसके अपने थाने की सीमाओं के अंदर हो।
(4) कोई अधिकारी, जो उपधारा (3) के अधीन तलाशी संचालित कर रहा है. पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को, जिसकी सीमाओं के अंदर ऐसा स्थान है, तलाशी की सूचना तत्काल भेजेगा और ऐसी सूचना के साथ धारा 100 के अधीन तैयार की गई सूची की (यदि कोई हो) प्रतिलिपि भी भेजेगा और उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त निकटतम मजिस्ट्रेट को धारा 165 की उपधारा (1) और (3) में निर्दिष्ट अभिलेखों की प्रतिलिपियां भी भेजेगा।
(5) जिस स्थान की तलाशी ली गई है, उसके स्वामी या अधिभोगी को, आवेदन करने पर उस अभिलेख की, जो मजिस्ट्रेट को उपधारा (4) के अधीन भेजा जाए, प्रतिलिपि निःशुल्क दी जाएगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 166a |  Section 166a in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 166a in Hindi ] –

भारत के बाहर किसी देश या स्थान में अन्वेषण के लिए सक्षम प्राधिकारी को अनुरोध-पत्र

(1) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी, यदि किसी अपराध के अन्वेषण के अनुक्रम में अन्वेषण अधिकारी या अन्वेषण अधिकारी की पंक्ति से वरिष्ठ कोई अधिकारी यह आवेदन करता है कि भारत के बाहर किसी देश या स्थान में साक्ष्य उपलभ्य हो सकता है तो कोई दांडिक न्यायालय अनुरोध-पत्र भेजकर उस देश या स्थान के ऐसे न्यायालय या प्राधिकारी से, जो ऐसे अनुरोध-पत्र पर कार्रवाई करने के लिए सक्षम है. यह अनुरोध कर सकेगा कि वह किसी ऐसे व्यक्ति की मौखिक परीक्षा करे, जिसके बारे में यह अनुमान है कि वह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से अवगत है, और ऐसी परीक्षा के अनुक्रम में किए गए उसके कथन को अभिलिखित करे और ऐसे व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति से उस मामले से संबंधित ऐसे दस्तावेज या चीज को पेश करने की अपेक्षा करे जो उसके कब्जे में है और इस प्रकार लिए गए या संगृहीत सभी साक्ष्य या उसकी अधिप्रमाणित प्रतिलिपि या इस प्रकार संगृहीत चीज को ऐसा पत्र भेजने वाले न्यायालय को अग्रेषित करे।
(2) अनुरोध-पत्र ऐसी रीति में पारेषित किया जाएगा जो केंद्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अभिलिखित प्रत्येक कथन या प्राप्त प्रत्येक दस्तावेज या चीज इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान संगृहीत साक्ष्य समझा जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 166b |  Section 166b in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 166b in Hindi ] –

भारत के बाहर के किसी देश या स्थान से भारत में अन्वेषण के लिए किसी न्यायालय या प्राधिकारी को अनुरोध-पत्र-

(1) भारत के बाहर के किसी देश या स्थान के ऐसे न्यायालय या प्राधिकारी से, जो उस देश या स्थान में अन्वेषणाधीन किसी अपराध के संबंध में किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए या किसी दस्तावेज या चीज को पेश कराने के लिए उस देश या स्थान में ऐसा पत्र भेजने के लिए सक्षम है, अनुरोध-पत्र की प्राप्ति पर, केंद्रीय सरकार यदि वह उचित समझे तो,
(i) उसे मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या ऐसे महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट को, जिसे वह इस निमित्त नियुक्त करे, अग्रेषित कर सकेगी जो तब उस व्यक्ति को अपने समक्ष समन करेगा तथा उसके कथन को अभिलिखित करेगा या दस्तावेज या चीज को पेश करवाएगा ; या
(ii) उस पत्र को अन्वेषण के लिए किसी पुलिस अधिकारी को भेज सकेगा जो तब उसी रीति में अपराध का अन्वेषण करेगा, मानो वह अपराध भारत के भीतर किया गया हो।
(2) उपधारा (1) के अधीन लिए गए या संगृहीत सभी साक्ष्य, उसकी अधिप्रमाणित प्रतिलिपियां या इस प्रकार संग्रहीत चीज, यथास्थिति-मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी द्वारा उस न्यायालय या प्राधिकारी को, जिसने अनुरोध-पत्र भेजा था, पारेषित करने के लिए केंद्रीय सरकार को ऐसी रीति में, जिसे केंद्रीय सरकार उचित समझे, अग्रेषित करेगा।]

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 |  Section 167 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 167 in Hindi ] –

जब चौबीस घंटे के अंदर अन्वेषण पूरा न किया जा सके तब प्रक्रिया

(1) जब कभी कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध है और यह प्रतीत हो कि अन्वेषण धारा 57 द्वारा नियत चौबीस घंटे की अवधि के अंदर पूरा नहीं किया जा सकता और यह विश्वास करने के लिए आधार है कि अभियोग या इत्तिला दृढ़ आधार पर है तब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या यदि अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी उपनिरीक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है तो वह, निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले में संबंधित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपि भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
(2) वह मजिस्ट्रेट, जिसके पास अभियुक्त व्यक्ति इस धारा के अधीन भेजा जाता है, चाहे उस मामले के विचारण की उसे अधिकारिता हो या न हो, अभियुक्त का ऐसी अभिरक्षा में, जैसी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे इतनी अवधि के लिए, जो कुल मिलाकर पंद्रह दिन से अधिक न होगी, निरुद्ध किया जाना समय-समय पर प्राधिकृत कर सकता है तथा यदि उसे मामले के विचारण की या विचारण के लिए सुपुर्द करने की अधिकारिता नहीं है और अधिक निरुद्ध रखना उसके विचार में अनावश्यक है तो वह अभियुक्त को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास, जिसे ऐसी अधिकारिता है, भिजवाने के लिए आदेश दे सकता है :
परंतु-
(क) मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का पुलिस अभिरक्षा से अन्यथा निरोध पंद्रह दिन की अवधि से आगे के लिए उस दशा में प्राधिकृत कर सकता है जिसमें उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त आधार है, किंतु कोई भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का इस पैरा के अधीन अभिरक्षा में निरोध,
(i) कुल मिलाकर नब्बे दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहां अन्वेषण ऐसे अपराध के संबंध में है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वर्ष से अन्यून की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय है;
(ii) कुल मिलाकर साठ दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहां अन्वेषण किसी अन्य अपराध के संबंध में है.
और, यथास्थिति, नब्बे दिन या साठ दिन की उक्त अवधि की समाप्ति पर यदि अभियुक्त व्यक्ति जमानत देने के लिए तैयार है और दे देता है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा और यह समझा जाएगा कि इस उपधारा के अधीन जमानत पर छोड़ा गया प्रत्येक व्यक्ति अध्याय 33 के प्रयोजनों के लिए उस अध्याय के उपबंधों के अधीन छोड़ा गया है :]
(ख) कोई मजिस्ट्रेट इस धारा के अधीन किसी अभियुक्त का पुलिस अभिरक्षा में निरोध तब तक प्राधिकृत नहीं करेगा जब तक कि अभियुक्त उसके समक्ष पहली बार और तत्पश्चात् हर बार, जब तक अभियुक्त पुलिस की अभिरक्षा में रहता है, व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं किया जाता है किंतु मजिस्ट्रेट अभियुक्त के या तो व्यक्तिगत रूप से या इलैक्ट्रानिक दृश्य संपर्क के माध्यम से पेश किए जाने पर न्यायिक अभिरक्षा में निरोध को और बढ़ा सकेगा।]
(ग) कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट, जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त नहीं किया गया है. पुलिस की अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत न करेगा।
स्पष्टीकरण 1 -शंकाएं दूर करने के लिए इसके द्वारा यह घोषित किया जाता है कि पैरा (क) में विनिर्दिष्ट अवधि समाप्त हो जाने पर भी अभियुक्त-व्यक्ति तब तक अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाएगा जब तक कि वह जमानत नहीं दे देता है।]
स्पष्टीकरण 2–यदि यह प्रश्न यह उठता है कि क्या कोई अभियुक्त व्यक्ति मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था, जैसाकि पैरा (ख) के अधीन अपेक्षित है, तो अभियुक्त व्यक्ति की पेशी को, यथास्थिति, निरोध प्राधिकृत करने वाले आदेश पर उसके हस्ताक्षर से या मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त व्यक्ति की इलैक्ट्रानिक दृश्य संपर्क के माध्यम से पेशी के बारे में प्रमाणित आदेश द्वारा साबित किया जा सकता
परंतु यह और कि अठारह वर्ष से कम आयु की स्त्री की दशा में, किसी प्रतिप्रेषण गृह या मान्यताप्राप्त सामाजिक संस्था की अभिरक्षा में निरोध किए जाने को प्राधिकृत किया जाएगा।]
*(2क) उपधारा (1) या उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि उपनिरीक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है तो, जहाँ न्यायिक मजिस्ट्रेट न मिल सकता हो, वहाँ कार्यपालक मजिस्ट्रेट को जिसको न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्रदान की गई हैं, इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले से संबंधित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपि भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा और तब ऐसा कार्यपालक मजिस्ट्रेट लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से किसी अभियुक्त-व्यक्ति का ऐसी अभिरक्षा में निरोध, जैसा वह ठीक समझे, ऐसी अवधि के लिए प्राधिकृत कर सकता है जो कुल मिलाकर सात दिन से अधिक नहीं हो और ऐसे प्राधिकृत निरोध की अवधि की समाप्ति पर उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा, किंतु उस दशा में नहीं जिसमें अभियुक्त व्यक्ति के आगे और निरोध के लिए आदेश ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा किया गया है जो ऐसा आदेश करने के लिए सक्षम है और जहां ऐसे आगे और निरोध के लिए आदेश किया जाता है वहां वह अवधि, जिसके दौरान अभियुक्त-व्यक्ति इस उपधारा के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेशों के अधीन अभिरक्षा में निरुद्ध किया गया था, उपधारा (2) के परंतुक के पैरा (क) में विनिर्दिष्ट अवधि की संगणना करने में हिसाब में ली जाएगी:
परंतु उक्त अवधि की समाप्ति के पूर्व कार्यपालक मजिस्ट्रेट, मामले के अभिलेख, मामले से संबंधित डायरी की प्रविष्टियों के सहित जो, यथास्थिति, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले अधिकारी द्वारा उसे भेजी गई थी, निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा।]
(3) इस धारा के अधीन पुलिस अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत करने वाला मजिस्ट्रेट ऐसा करने के अपने कारण अभिलिखित करेगा।
(4) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से भिन्न कोई मजिस्ट्रेट जो ऐसा आदेश दे अपने आदेश की एक प्रतिलिपि आदेश देने के अपने कारणों के सहित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
(5) यदि समन मामले के रूप में मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में अन्वेषण, अभियुक्त के गिरफ्तार किए जाने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर समाप्त नहीं होता है तो मजिस्ट्रेट अपराध में आगे और अन्वेषण को रोकने के लिए आदेश करेगा जब तक अन्वेषण करने वाला अधिकारी मजिस्ट्रेट का समाधान नहीं कर देता है कि विशेष कारणों से और न्याय के हित में छह मास की अवधि के आगे अन्वेषण जारी रखना आवश्यक है।
(6) जहां उपधारा (5) के अधीन किसी अपराध का आगे और अन्वेषण रोकने के लिए आदेश दिया गया है वहां यदि सेशन न्यायाधीश का उसे आवेदन दिए जाने पर या अन्यथा, समाधान हो जाता है कि उस अपराध का आगे और अन्वेषण किया जाना चाहिए तो वह उपधारा (5) के अधीन किए गए आदेश को रद्द कर सकता है और यह निदेश दे सकता है कि जमानत और अन्य मामलों के बारे में ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए जो वह विनिर्दिष्ट करे, अपराध का आगे और अन्वेषण किया जाए।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 168 |  Section 168 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 168 in Hindi ] –

अधनीस्थ पुलिस अधिकारी द्वारा अन्वेषण की रिपोर्ट-

जब कोई अधीनस्थ पुलिस अधिकारी इस अध्याय के अधीन कोई अन्वेषण करता है तब वह उस अन्वेषण के परिणाम की रिपोर्ट पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 169 |  Section 169 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 169 in Hindi ] –

जब साध्य अपर्याप्त हो तब अभियुक्त का छोड़ा जाना

यदि इस अध्याय के अधीन अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि ऐसा पर्याप्त साक्ष्य या संदेह का उचित आधार नहीं है जिससे अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के पास भेजना न्यायानुमत है तो ऐसा अधिकारी उस दशा में जिसमें वह व्यक्ति अभिरक्षा में है उसके द्वारा प्रतिभुओं के सहित या रहित, जैसा ऐसा अधिकारी निर्दिष्ट करे, यह बंधपत्र निष्पादित करने पर उसे छोड़ देगा कि यदि और जब अपेक्षा की जाए तो और तब वह ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होगा जो पुलिस रिपोर्ट पर ऐसे अपराध का संज्ञान करने के लिए, और अभियुक्त का विचारण करने या उसे विचारणार्थ सुपुर्द करने के लिए सशक्त है

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 170 |  Section 170 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 170 in Hindi ] –

जब साक्ष्य पर्याप्त है तब मामलों का मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जाना

(1) यदि इस अध्याय के अधीन अन्वेषण करने पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि यथापूर्वोक्त पर्याप्त साक्ष्य या उचित आधार है, तो वह अधिकारी पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिए और अभियुक्त का विचारण करने या उसे विचारणार्थ सुपुर्द करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट के पास अभियुक्त को अभिरक्षा में भेजेगा अथवा यदि अपराध जमानतीय है और अभियुक्त प्रतिभूति देने के लिए समर्थ है तो ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष नियत दिन उसके हाजिर होने के लिए और ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष, जब तक अन्यथा निदेश न दिया जाए तब तक, दिन-प्रतिदिन उसकी हाजिरी के लिए प्रतिभूति लेगा।
(2) जब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी अभियुक्त के इस धारा के अधीन मजिस्ट्रेट के पास भेजता है या ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उसके हाजिर होने के लिए प्रतिभूति लेता है तब उस मजिस्ट्रेट के पास वह ऐसा कोई आयुध या अन्य वस्तु जो उसके समक्ष पेश करना आवश्यक हो, भेजेगा और यदि कोई परिवादी हो, तो उससे और ऐसे अधिकारी को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले उतने व्यक्तियों से, जितने वह आवश्यक समझे मजिस्ट्रेट के समक्ष निर्दिष्ट प्रकार से हाजिर होने के लिए और (यथास्थिति) अभियोजन करने के लिए या अभियुक्त के विरुद्ध आरोप के विषय में साक्ष्य देने के लिए बंधपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा करेगा।
(3) यदि बंधपत्र में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय उल्लिखित है तो उस न्यायालय के अंतर्गत कोई ऐसा न्यायालय भी समझा जाएगा जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट मामले की जांच या विचारण के लिए निर्देशित करता है, परंतु यह तब जब ऐसे निर्देश की उचित सूचना उस परिवादी या उन व्यक्तियों को दे दी गई है।

(4) वह अधिकारी, जिसकी उपस्थिति में बंधपत्र निष्पादित किया जाता है, उस बंधपत्र की एक प्रतिलिपि उन व्यक्तियों में से एक को परिदत्त करेगा जो उसे निष्पादित करता है और तब मूल बंधपत्र को अपनी रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 171 |  Section 171 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 171 in Hindi ] –

परिवादी और साक्षियों से पुलिस अधिकारी के साथ जाने की अपेक्षा न किया जाना और उनका अबरुद्ध न किया जाना

किसी परिवादी या साक्षी से, जो किसी न्यायालय में जा रहा है. पुलिस अधिकारी के साथ जाने की अपेक्षा न की जाएगी, और न तो उसे अनावश्यक रूप से अवरुद्ध किया जाएगा या असुविधा पहुंचाई जाएगी और न उससे अपनी हाजिरी के लिए उसके अपने बंधपत्र से भिन्न कोई प्रतिभूति देने की अपेक्षा की जाएगी:
परंतु यदि कोई परिवादी या साक्षी हाजिर होने से, या धारा 170 में निर्दिष्ट प्रकार का बंधपत्र निष्पादित करने से, इनकार करता है तो पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उसे मजिस्ट्रेट के पास अभिरक्षा में भेज सकता है, जो उसे तब तक अभिरक्षा में निरुद्ध रख सकता है जब तक वह ऐसा बंधपत्र निष्पादित नहीं कर देता है या जब तक मामले की सुनवाई समाप्त नहीं हो जाती है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 172 |  Section 172 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 172 in Hindi ] –

अन्वेषण में कार्यवाहियों की डायरी

(1) प्रत्येक पुलिस अधिकारी, जो इस अध्याय के अधीन अन्वेषण करता है, अन्वेषण में की गई अपनी कार्यवाही को दिन-प्रतिदिन एक डायरी में लिखेगा, जिसमें वह समय जब उसे इत्तिला मिली, वह समय जब उसने अन्वेषण आरंभ किया और जब समाप्त किया, वह स्थान या वे स्थान जहाँ वह गया और अन्वेषण द्वारा अभिनिश्चित परिस्थितियों का विवरण होगा।
(1क) धारा 161 के अधीन अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किए गए साक्षियों के कथन केस डायरी में अंतः स्थापित किए जाएंगे।
(1ख) उपधारा (1) में निर्दिष्ट डायरी जिल्द रूप में होगी और उसके पृष्ठ सम्यक रूप से संख्यांकित होंगे।
(2) कोई दंड न्यायालय ऐसे न्यायालय में जांच या विचारण के अधीन मामले की पुलिस डायरियों को मंगा सकता है और ऐसी डायरियों को मामले में साक्ष्य के रूप में तो नहीं किंतु ऐसी जांच या विचारण में अपनी सहायता के लिए उपयोग में ला सकता है।
(3) न तो अभियुक्त और न उसके अभिकर्ता ऐसी डायरियों को मंगाने के हकदार होंगे और न वह या वे केवल इस कारण उन्हें देखने के हकदार होंगे कि वे न्यायालय द्वारा देखी गई हैं, किंतु यदि वे उस पुलिस अधिकारी द्वारा, जिसने उन्हें लिखा है, अपनी स्मृति को ताजा करने के लिए उपयोग में लाई जाती है, या यदि न्यायालय उन्हें ऐसे पुलिस अधिकारी की बातों का खंडन करने के प्रयोजन के लिए उपयोग में लाता है तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की, यथास्थिति, धारा 161 या धारा 145 के उपबंध लागू होंगे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 |  Section 173 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 173 in Hindi ] –

अन्वेषण के समाप्त हो जाने पर पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट-

 (1) इस अध्याय के अधीन किया जाने वाला प्रत्येक अन्वेषण अनावश्यक विलंब के बिना पूरा किया जाएगा।
(1क) बालिका के साथ बलात्संग के संबंध में अन्वेषण उस तारीख से, जिसको पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा इत्तिला अभिलिखित की गई थी, तीन मास के भीतर पूरा किया जा सकेगा।]
(2) (i) जैसे ही वह पूरा होता है, वैसे ही पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी, पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट को राज्य सरकार द्वारा विहित प्ररूप में एक रिपोर्ट भेजेगा, जिसमें निम्नलिखित बातें कथित होंगी:
(क) पक्षकारों के नाम
(ख) इत्तिला का स्वरूप
(ग) मामले की परिस्थितियों से परिचित प्रतीत होने वाले व्यक्तियों के नाम ;
(घ) क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है और यदि किया गया प्रतीत होता है, तो किसके द्वारा ;
(ङ) क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है ;
(च) क्या वह अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है और यदि छोड़ दिया गया है तो वह बंधपत्र प्रतिभुओं सहित है या प्रतिभुओं रहित;
(छ) क्या वह धारा 170 के अधीन अभिरक्षा में भेजा जा चुका है।
(ज) जहां अन्वेषण भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 376,376, धारा 376, धारा 376, धारा 3761 या धारा 3766] के अधीन किसी अपराध के संबंध में है, वहां क्या स्त्री की चिकित्सा परीक्षा की रिपोर्ट संलग्न की गई है।
(ii) वह अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्यवाही की संसूचना, उस व्यक्ति को, यदि कोई हो, जिसने अपराध किए जाने के संबंध में सर्वप्रथम इत्तिला दी उस रीति से देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित की जाए।
(3) जहां धारा 158 के अधीन कोई वरिष्ठ पलिस अधिकारी नियुक्त किया गया है वहां ऐसे किसी मामले में, जिसमें राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा ऐसा निदेश देती है, वह रिपोर्ट उस अधिकारी के माध्यम से दी जाएगी और वह, मजिस्ट्रेट का आदेश होने तक के लिए, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह निदेश दे सकता है कि वह आगे और अन्वेषण करे।
(4) जब कभी इस धारा के अधीन भेजी गई रिपोर्ट से यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त को उसके बंधपत्र पर छोड़ दिया गया है तब मजिस्ट्रेट उस बंधपत्र के उन्मोचन के लिए या अन्यथा ऐसा आदेश करेगा जैसा वह ठीक समझे।
(5) जब ऐसी रिपोर्ट का संबंध ऐसे मामले से है जिसको धारा 170 लागू होती है, तब पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट के साथ-साथ निम्नलिखित भी भेजेगा:
(क) वे सब दस्तावेज या उनके सुसंगत उद्धरण, जिन पर निर्भर करने का अभियोजन का विचार है और जो उनसे भिन्न हैं जिन्हें अन्वेषण के दौरान मजिस्ट्रेट को पहले ही भेज दिया गया है।
(ख) उन सब व्यक्तियों के, जिनकी साक्षियों के रूप में परीक्षा करने का अभियोजन का विचार है, धारा 161 के अधीन अभिलिखित कथन।
(6) यदि पुलिस अधिकारी की यह राय है कि ऐसे किसी कथन का कोई भाग कार्यवाही की विषयवस्तु से सुसंगत नहीं है या उसे अभियुक्त को प्रकट करना न्याय के हित में आवश्यक नहीं है और लोकहित के लिए असमीचीन है तो वह कथन के उस भाग को उपदर्शित करेगा और अभियुक्त को दी जाने वाली प्रतिलिपि में से उस भाग को निकाल देने के लिए निवेदन करते हुए और ऐसा निवेदन करने के अपने कारणों का कथन करते हुए एक नोट मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
(7) जहां मामले का अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी ऐसा करना सुविधापूर्ण समझता है वहां वह उपधारा (5) में निर्दिष्ट सभी या किन्हीं दस्तावेजों की प्रतियां अभियुक्त को दे सकता है।
(8) इस धारा की कोई बात किसी अपराध के बारे में उपधारा (2) के अधीन मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट भेज दी जाने के पश्चात् आगे और अन्वेषण को प्रवरित करने वाली नहीं समझी जाएगी तथा जहां ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को कोई अतिरिक्त मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य मिले वहां वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को विहित प्ररूप में भेजेगा, और उपधारा (2) से (6) तक के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के बारे में, जहां तक हो सके, ऐसे लागू होंगे, जैसे वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 174 |  Section 174 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 174 in Hindi ] –

आत्महत्या, आदि पर पुलिस का जांच करना और रिपोर्ट देना

(1) जब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी, या राज्य सरकार द्वारा उस निमित्त विशेषतया सशक्त किए गए किसी अन्य पुलिस अधिकारी को यह इत्तिला मिलती है कि किसी व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली है अथवा कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या जीव-जंतु द्वारा या किसी यंत्र द्वारा या दुर्घटना द्वारा मारा गया है, अथवा कोई व्यक्ति ऐसी परिस्थितियों में मरा है जिनसे उचित रूप से यह संदेह होता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने कोई अपराध किया है तो वह मृत्यु समीक्षाएं करने के लिए सशक्त निकटतम कार्यपालक मजिस्ट्रेट को तुरंत उसकी सूचना देगा और जब तक राज्य सरकार द्वारा विहित किसी नियम द्वारा या जिला या उपखंड मजिस्ट्रेट के किसी साधारण या विशेष आदेश द्वारा अन्यथा निदिष्ट न हो वह उस स्थान को जाएगा जहाँ ऐसे मृत व्यक्ति का शरीर है और वहां पड़ोस के दो या अधिक प्रतिष्ठित निवासियों की उपस्थिति में अन्वेषण करेगा और मृत्यु के दृश्यमान कारण की रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें ऐसे घावों, अस्थिभंगों, नीलों और क्षति के अन्य चिह्नों का जो शरीर पर पाए जाएं, वर्णन होगा और यह कथन होगा कि ऐसे चिह्न किस प्रकार से और किस आयुध या उपकरण द्वारा (यदि कोई हो) किए गए प्रतीत होते हैं।
(2) उस रिपोर्ट पर ऐसे पुलिस अधिकारी और अन्य व्यक्तियों द्वारा, या उनमें से इतनों द्वारा जो उससे सहमत हैं, हस्ताक्षर किए जाएंगे और वह जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट को तत्काल भेज दी जाएगी। (3) ‘[जब
(i) मामले में किसी स्त्री द्वारा उसके विवाह की तारीख से सात वर्ष के भीतर आत्महत्या अंतर्वलित है ; या
(ii) मामला किसी स्त्री की उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर ऐसी परिस्थितियों में मृत्यु से संबंधित है जो यह युक्तियुक्त संदेह उत्पन्न करती है कि किसी अन्य व्यक्ति ने ऐसी स्त्री के संबंध में कोई अपराध किया है ; या
(ii) मामला किसी स्त्री की उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर मृत्यु से संबंधित है और उस स्त्री के किसी नातेदार ने उस निमित्त निवेदन किया है ; या
(iv) मृत्यु के कारण की बाबत कोई संदेह है ; या
(v) किसी अन्य कारण पुलिस अधिकारी ऐसा करना समीचीन समझता है, तब] ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विहित किए जाएं, वह अधिकारी यदि मौसम ऐसा है और दूरी इतनी है कि रास्ते में शरीर के ऐसे सड़ने की जोखिम के बिना, जिससे उसकी परीक्षा व्यर्थ हो जाए, उसे भिजवाया जा सकता है तो शरीर को उसकी परीक्षा की दृष्टि से, निकटतम सिविल सर्जन के पास या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त अन्य अर्हित चिकित्सक के पास भेजेगा।
(4) निम्नलिखित मजिस्ट्रेट मृत्यु-समीक्षा करने के लिए सशक्त हैं, अर्थात् कोई जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट और राज्य सरकार द्वारा या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किया गया कोई अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 175 |  Section 175 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 175 in Hindi ] –

व्यक्तियों को समन करने की शक्ति

(1) धारा 174 के अधीन कार्यवाही करने वाला पुलिस अधिकारी यथापूर्वोक्त दो या अधिक व्यक्तियों को उक्त अन्वेषण के प्रयोजन से और किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को, जो मामले के तथ्यों से परिचित प्रतीत होता है, लिखित आदेश द्वारा समन कर सकता है तथा ऐसे समन किया गया प्रत्येक व्यक्ति हाजिर होने के लिए और उन प्रश्नों के सिवाय, जिनके उत्तरों की प्रवृत्ति उसे आपराधिक आरोप या शास्ति या समपहरण की आशंका में डालने की है. सब प्रश्नों का सही-सही उत्तर देने के लिए आबद्ध होगा।
(2) यदि तथ्यों से ऐसा कोई संज्ञेय अपराध, जिसे धारा 170 लागू है, प्रकट नहीं होता है तो पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति से मजिस्ट्रेट के न्यायालय में हाजिर होने की अपेक्षा न करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 176 |  Section 176 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 176 in Hindi ] –

मृत्यु के कारण की मजिस्ट्रेट द्वारा जांच

(1)***** जब मामला धारा 174 की उपधारा (3) के खंड (i) या खंड (11) में निर्दिष्ट प्रकृति का है] तब मृत्यु के कारण की जांच, पुलिस अधिकारी द्वारा किए जाने वाले अन्वेषण के बजाय या उसके अतिरिक्त, वह निकटतम मजिस्ट्रेट करेगा जो मृत्यु-समीक्षा करने के लिए सशक्त है और धारा 174 की उपधारा (1) में वर्णित किसी अन्य दशा में इस प्रकार सशक्त किया गया कोई भी मजिस्ट्रेट कर सकेगा; और यदि वह ऐसा करता है तो उसे ऐसी जांच करने में वे सब शक्तियां होंगी जो उसे किसी अपराध की जांच करने में होती।
[(1क) जहाँ,
(क) कोई व्यक्ति मर जाता है या गायब हो जाता है, या
(ख) किसी स्त्री के साथ बलात्संग किया गया अभिकथित है, तो उस दशा में जब कि ऐसा व्यक्ति या स्त्री पुलिस अभिरक्षा या इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य अभिरक्षा में है, वहां पुलिस द्वारा की गई जांच या किए गए अन्वेषण के अतिरिक्त, यथास्थिति, ऐसे न्यायायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर अपराध किया गया है, जांच की जाएगी।]
(2) ऐसी जांच करने वाला मजिस्ट्रेट उसके संबंध में लिए गए साक्ष्य को इसमें इसके पश्चात् विहित किसी प्रकार से, मामले की परिस्थितियों के अनुसार अभिलिखित करेगा।
(3) जब कभी ऐसे मजिस्ट्रेट के विचार में यह समीचीन है कि किसी व्यक्ति के, जो पहले ही गाड़ दिया गया है. मृत शरीर की इसलिए परीक्षा की जाए कि उसकी मृत्यु के कारण का पता चले तब मजिस्ट्रेट उस शरीर को निकलवा सकता है और उसकी परीक्षा करा सकता है।
(4) जहां कोई जांच इस धारा के अधीन की जानी है, वहां मजिस्ट्रेट, जहां कहीं साध्य है, मृतक के उन नातेदारों को, जिनके नाम और पते ज्ञात हैं, इत्तिला देगा और उन्हें जांच के समय उपस्थित रहने की अनुज्ञा देगा।
(5) उपधारा (1क) के अधीन, यथास्थिति, जांच या अन्वेषण करने वाला न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट या कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी, किसी व्यक्ति की मृत्यु के चौबीस घंटे के भीतर उसकी परीक्षा किए जाने की दृष्टि से शरीर को निकटतम सिविल सर्जन या अन्य अर्हित चिकित्सा व्यक्ति को, जो इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया हो, भेजेगा जब तक कि लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से ऐसा करना संभव न हो।] स्पष्टीकरण-इस धारा में नातेदारपद से माता-पिता, संतान, भाई, बहिन और पति या पत्नी अभिप्रेत हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 177 |  Section 177 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 177 in Hindi ] –

जांच और विचारण का मामूली स्थान

प्रत्येक अपराध की जांच और विचारण मामूली तौर पर ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर वह अपराध किया गया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 178 |  Section 178 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 178 in Hindi ] –

जांच या विचारण का स्थान

(क) जहाँ यह अनिश्चित है कि कई स्थानीय क्षेत्रों में से किसमें अपराध किया गया है, अथवा (ख) जहां अपराध अंशतः एक स्थानीय क्षेत्र में और अंशतः किसी दूसरे में किया गया है, अथवा (ग) जहां अपराध चालू रहने वाला है और उसका किया जाना एक से अधिक स्थानीय क्षेत्रों में चालू रहता है, अथवा
(घ) जहाँ वह विभिन्न स्थानीय क्षेत्रों में किए गए कई कार्यों से मिलकर बनता है, वहां उसकी जांच या विचारण ऐसे स्थानीय क्षेत्रों में से किसी पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 179 |  Section 179 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 179 in Hindi ] –

अपराध वहां विचारणीय होगा जहां कार्य किया गया या जहां परिणाम निकला

जब कोई कार्य किसी की गई बात के और किसी निकले हुए परिणाम के कारण अपराध है तब ऐसे अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसी बात की गई या ऐसा परिणाम निकला।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 180 |  Section 180 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 180 in Hindi ] –

जहां कार्य अन्य अपराध से संबंधित होने के कारण अपराध है वहां विचारण का स्थान

जब कोई कार्य किसी ऐसे अन्य कार्य से संबंधित होने के कारण अपराध है, जो स्वयं भी अपराध है या अपराध होता यदि कर्ता अपराध करने के लिए समर्थ होता, तब प्रथम वर्णित अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर उन दोनों में से कोई भी कार्य किया गया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 181 |  Section 181 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 181 in Hindi ] –

कुछ अपराधों की दशा में विचारण का स्थान

(1) ठग होने के, या ठग द्वारा हत्या के, डकैती के, ह्त्या सहित डकैती के, डकैतों की टोली का होने के, या अभिरक्षा से निकल भागने के किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया है या अभियुक्त व्यक्ति मिला है।
(2) किसी व्यक्ति के व्यपहरण या अपहरण के किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर बह व्यक्ति व्यपहृत या अपहृत किया गया या ले जाया गया या छिपाया गया या निरुद्ध किया गया है।
(3) चोरी, उद्दीपन या लूट के किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसा अपराध किया गया है या चुराई हुई संपत्ति को जो कि अपराध का विषय है उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा कब्जे में रखी गई है जिसने उस संपत्ति को चुराई हुई संपत्ति जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए प्राप्त किया या रखे रखा।
(4) आपराधिक दुर्विनियोग या आपराधिक न्यासभंग के किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया है या उस संपत्ति का, जो अपराध का विषय है, कोई भाग अभियुक्त व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया गया या रखा गया है अथवा उसका लौटाया जाना या लेखा दिया जाना अपेक्षित है।
(5) किसी ऐसे अपराध की, जिसमें चुराई हुई संपत्ति का कब्जा भी है, जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसा अपराध किया गया है या चुराई हुई संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा कब्जे में रखी गई है, जिसने उसे चुराई हुई जानते हुए या विश्वास करने का कारण होते हुए प्राप्त किया या रखे रखा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 182 |  Section 182 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 182 in Hindi ] –

पत्रों, आदि द्वारा किए गए अपराध-

(1) किसी ऐसे अपराध की, जिसमें छल करना भी है, जांच या उनका विचारण. उस दशा में जिसमें ऐसी प्रवंचना पत्रों या दूरसंचार संदेशों के माध्यम से की गई है ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसे पत्र या संदेश भेजे गए हैं या प्राप्त किए गए हैं तथा छल करने और बेईमानी से संपत्ति का परिदान उप्रेरित करने वाले किसी अपराध की जांच या उनका विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर संपत्ति, प्रवंचित व्यक्ति द्वारा परिदत्त की गई है या अभियुक्त व्यक्ति द्वारा प्राप्त की गई है।
(2) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 494 या धारा 495 के अधीन दंडनीय किसी अपराध की जांच या उनका विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया है या अपराधी ने प्रथम विवाह की अपनी पत्नी या पति के साथ अंतिम बार निवास किया है या प्रथम विवाह की पत्नी अपराध के किए जाने के पश्चात् स्थायी रूप से निवास करती है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 183 |  Section 183 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 183 in Hindi ] –

यात्रा या जलयात्रा में किया गया अपराध

यदि कोई अपराध उस समय किया गया है जब वह व्यक्ति, जिसके द्वारा, या वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध. या वह चीज जिसके बारे में वह अपराध किया गया, किसी यात्रा या जलयात्रा पर है, तो उसकी जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता में होकर या उसके अंदर वह व्यक्ति या चीज उस यात्रा या जलयात्रा के दौरान गई हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 184 |  Section 184 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 184 in Hindi ] –

एक साथ विचारणीय अपराधों के लिए विचारण का स्थान

जहाँ-
(क) किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध ऐसे हैं कि प्रत्येक ऐसे अपराध के लिए धारा 219, धारा 220 या धारा 221 के उपबंधों के आधार पर एक ही विचारण में उस पर आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है, अथवा
(ख) कई व्यक्तियों द्वारा किया गया अपराध या किए गए अपराध ऐसे हैं कि उनके लिए उन पर धारा 223 के उपबंधों के आधार पर एक साथ आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है,
वहां अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जो उन अपराधों में से किसी की जांच या विचारण करने के लिए सक्षम है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 185 |  Section 185 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 185 in Hindi ] –

विभिन्न सेशन खंडों में मामलों के विचारण का आदेश देने की शक्ति-

इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार निदेश दे सकती है कि ऐसे किन्हीं मामलों का या किसी वर्ग के मामलों का विचारण, जो किसी जिले में विचारणार्थ सुपुर्द हो चुके हैं, किसी भी सेशन खंड में किया जा सकता है :
परंतु यह तब जब कि ऐसा निदेश उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के अधीन या इस संहिता के या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन पहले ही जारी किए गए किसी निदेश के विरुद्ध नहीं है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 186 |  Section 186 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 186 in Hindi ] –

संदेह की दशा में उच्च न्यायालय का बह जिला विनिश्चित करना जिसमें जांच या विचारण होगा-

जहां दो या अधिक न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान कर लेते हैं और यह प्रश्न उठता है कि उनमें से किसे उस अपराध की जांच या विचारण करना चाहिए, वहाँ वह प्रश्न
(क) यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ हैं तो उस उच्च न्यायालय द्वारा
(ख) यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीनस्थ नहीं हैं, तो उस उच्च न्यायालय द्वारा जिसकी अपीली दांडिक अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के अंदर कार्यवाही पहले प्रारंभ की गई है, विनिश्चित किया जाएगा, और तब उस अपराध के संबंध में अन्य सब कार्यवाहियां बंद कर दी जाएंगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 187 |  Section 187 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 187 in Hindi ] –

स्थानीय अधिकारिता के परे किए गए अपराध के लिए समन या वारंट जारी करने की शक्ति

(1) जब किसी प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण दिखाई देता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर के किसी व्यक्ति ने ऐसी अधिकारिता के बाहर, (चाहे भारत के अंदर या बाहर) ऐसा अपराध किया है जिसकी जांच या विचारण 177 से 185 तक की धाराओं के (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी हैं), उपबंधों के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसी अधिकारिता के अंदर नहीं किया जा सकता है किंतु जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन भारत में विचारणीय है तब ऐसा मजिस्ट्रेट उस अपराध की जांच ऐसे कर सकता है मानो वह ऐसी स्थानीय अधिकारिता के अंदर किया गया है और ऐसे व्यक्ति को अपने समक्ष हाजिर होने के लिए इसमें इसके पूर्व उपबंधित प्रकार से विवश कर सकता है और ऐसे व्यक्ति को ऐसे अपराध की जांच या विचारण करने की अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट के पास भेज सकता है या यदि ऐसा अपराध मृत्यु से या आजीवन कारावास से दंडनीय नहीं है और ऐसा व्यक्ति इस धारा के अधीन कार्रवाई करने वाले मजिस्ट्रेट को समाधानप्रद रूप में जमानत देने के लिए तैयार और इच्छुक है तो ऐसी अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी हाजिरी के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र ले सकता है।
(2) जब ऐसी अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट एक से अधिक हैं और इस धारा के अधीन कार्य करने वाला मजिस्ट्रेट अपना समाधान नहीं कर पाता है कि किस मजिस्ट्रेट के पास या समक्ष ऐसा व्यक्ति भेजा जाए या हाजिर होने के लिए आबद्ध किया जाए, तो मामले की रिपोर्ट उच्च न्यायालय के आदेश के लिए की जाएगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 188 |  Section 188 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 188 in Hindi ] –

भारत से बाहर किया गया अपराध-

जब कोई अपराध भारत से बाहर
(क) भारत के किसी नागरिक द्वारा चाहे खुले समुद्र पर या अन्यत्र ; अथवा
(ख) किसी व्यक्ति द्वारा, जो भारत का नागरिक नहीं है, भारत में रजिस्ट्रीकृत किसी पोत या विमान पर, किया जाता है तब उस अपराध के बारे में उसके विरुद्ध ऐसी कार्यवाही की जा सकती है मानो वह अपराध भारत के अंदर उस स्थान में किया गया है जहां वह पाया गया है :
परंतु इस अध्याय की पूर्ववर्ती धाराओं में से किसी बात के होते हुए भी, ऐसे किसी अपराध की भारत में जांच या उसका विचारण केंद्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 189 |  Section 189 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 189 in Hindi ] –

भारत के बाहर किए गए अपराधों के बारे में साक्ष्य लेना

जब किसी ऐसे अपराध की, जिसका भारत से बाहर किसी क्षेत्र में किया जाना अभिकथित है, जांच या विचारण धारा 188 के उपबंधों के अधीन किया जा रहा है तब, यदि केंद्रीय सरकार उचित समझे तो यह निदेश दे सकती है कि उस क्षेत्र में या उस क्षेत्र के लिए न्यायिक अधिकारी के समक्ष या उस क्षेत्र में या उस क्षेत्र के लिए भारत के राजनयिक या कौंसलीय प्रतिनिधि के समक्ष दिए गए अभिसाक्ष्यों की या पेश किए गए प्रदर्शों की प्रतियों को ऐसी जांच या विचारण करने वाले न्यायालय द्वारा किसी ऐसे मामले में साक्ष्य के रूप में लिया जाएगा जिसमें ऐसा न्यायालय ऐसी किन्हीं बातों के बारे में, जिनसे ऐसे अभिसाक्ष्य या प्रदर्श संबंधित हैं साक्ष्य लेने के लिए कमीशन जारी कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 190 |  Section 190 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 190 in Hindi ] –

मजिस्ट्रेटों द्वारा अपराधों का संज्ञान

(1) इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट और उपधारा (2) के अधीन विशेषतया सशक्त किया गया कोई द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट, किसी भी अपराध का संज्ञान निम्नलिखित दशाओं में कर सकता है :
(क) उन तथ्यों का, जिनसे ऐसा अपराध बनता है परिवाद प्राप्त होने पर; (ख) ऐसे तथ्यों के बारे में पुलिस रिपोर्ट पर;
(ग) पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति से प्राप्त इस इत्तिला पर या स्वयं अपनी इस जानकारी पर कि ऐसा अपराध किया गया है।
(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को ऐसे अपराधों का, जिनकी जांच या विचारण करना उसकी क्षमता के अंदर है, उपधारा (1) के अधीन संज्ञान करने के लिए सशक्त कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 191 |  Section 191 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 191 in Hindi ] –

अभियुक्त के आवेदन पर अंतरण-

जब मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संज्ञान धारा 190 की उपधारा (1) के खंड (ग) के अधीन करता है तब अभियुक्त को, कोई साक्ष्य लेने से पहले, इत्तिला दी जाएगी कि वह मामले की किसी अन्य मजिस्ट्रेट से जांच या विचारण कराने का हकदार है और यदि अभियुक्त, या यदि एक से अधिक अभियुक्त हैं तो उनमें से कोई, संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष आगे कार्यवाही किए जाने पर आपत्ति करता है तो मामला उस अन्य मजिस्ट्रेट को अंतरित कर दिया जाएगा जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 192 |  Section 192 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 192 in Hindi ] –

मामले मजिस्ट्रेटों के हवाले करना-

(1) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अपराध का संज्ञान करने के पश्चात् मामले को जांच या विचारण के लिए अपने अधीनस्थ किसी सक्षम मजिस्ट्रेट के हवाले कर सकता है।
(2) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त सशक्त किया गया कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, अपराध का संज्ञान करने के पश्चात्, मामले को जांच या विचारण के लिए अपने अधीनस्थ किसी ऐसे सक्षम मजिस्ट्रेट के हवाले कर सकता है जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट साधारण या विशेष आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे, और तब ऐसा मजिस्ट्रेट जांच या विचारण कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 193 |  Section 193 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 193 in Hindi ] –

अपराधों का सेशन न्यायालयों द्वारा संज्ञान-

इस संहिता द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अभिव्यक्त रूप से जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, कोई सेशन न्यायालय आरंभिक अधिकारिता वाले न्यायालय के रूप में किसी अपराध का संज्ञान तब तक नहीं करेगा जब तक मामला इस संहिता के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा उसके सुपुर्द नहीं कर दिया गया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 194 |  Section 194 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 194 in Hindi ] –

अपर और सहायक सेशन न्यायाधीशों को हवाले किए गए मामलों पर उनके द्वारा विचारण-

अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश ऐसे मामलों का विचारण करेगा जिन्हें विचारण के लिए उस खंड का सेशन न्यायाधीश साधारण या विशेष आदेश द्वारा उसके हवाले करता है या जिनका विचारण करने के लिए उच्च न्यायालय विशेष आदेश द्वारा उसे निदेश देता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 |  Section 195 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 195 in Hindi ] –

लोक न्याय के विरुद्ध अपराधों के लिए और साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों के लिए लोक सेवकों के विधिपूर्ण प्राधिकार के अवमान के लिए अभियोजन

(1) कोई न्यायालय,
(क) (i) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 172 से धारा 188 तक की धाराओं के (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी है) अधीन दंडनीय किसी अपराध का, अथवा
(ii) ऐसे अपराध के किसी दुप्रेरण या ऐसा अपराध करने के प्रयत्न का, अथवा
(iii) ऐसा अपराध करने के लिए किसी आपराधिक षडयंत्र का,
संज्ञान संबद्ध लोक सेवक के, या किसी अन्य ऐसे लोक सेवक के, जिसके वह प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है, लिखित परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं;
(ख) (i) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की निम्नलिखित धाराओं अर्थात् 193 से 196 (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी हैं), 199, 200, 205 से 211 (जिनके अंतर्गत ये दोनों धाराएं भी है और 228 में से किन्हीं के अधीन दंडनीय किसी अपराध का, जब ऐसे अपराध के बारे में यह अभिकथित है कि वह किसी न्यायालय में की कार्यवाही में या उसके संबंध में किया गया है ; अथवा
(ii) उसी संहिता की धारा 463 में वर्णित या धारा 471, धारा 475 या धारा 476 के अधीन दंडनीय अपराध का, जब ऐसे अपराध के बारे में यह अभिकथित है कि वह किसी न्यायालय में की कार्यवाही में पेश की गई साक्ष्य में दी गई किसी दस्तावेज के बारे में किया गया है ; अथवा
(iii) उपखंड (i) या उपखंड (ii) में विनिर्दिष्ट किसी अपराध को करने के लिए आपराधिक षडयंत्र या उसे करने के प्रयत्न या उसके दुप्रेरण के अपराध का,
संज्ञान ऐसे न्यायालय के, या न्यायालय के ऐसे अधिकारी के, जिसे वह न्यायालय इस निमित्त लिखित रूप में प्राधिकृत करे या किसी अन्य न्यायालय के, जिसके वह न्यायालय अधीनस्थ है लिखित परिवाद पर ही] करेगा अन्यथा नहीं।
(2) जहां किसी लोक सेवक द्वारा उपधारा (1) के खंड (क) के अधीन कोई परिवाद किया गया है वहां ऐसा कोई प्राधिकारी, जिसके वह प्रशासनिक तौर पर अधीनस्थ है, उस परिवाद को वापस लेने का आदेश दे सकता है और ऐसे आदेश की प्रति न्यायालय को भेजेगा; और न्यायालय द्वारा उसकी प्राप्ति पर उस परिवाद के संबंध में आगे कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी:
परतु ऐसे वापस लेने का कोई आदेश उस दशा में नहीं दिया जाएगा जिसमें विचारण प्रथम बार के न्यायालय में समाप्त हो चुका है।
(3) उपधारा (1) के खंड (ख) में न्यायालयशब्द से कोई सिविल, राजस्व या दंड न्यायालय अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत किसी केंद्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन गठित कोई अधिकरण भी है यदि वह उस अधिनियम द्वारा इस धारा के प्रयोजनार्थ न्यायालय घोषित किया गया है।
(4) उपधारा (1) के खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए कोई न्यायालय उस न्यायालय के जिसमें ऐसे पूर्वकथित न्यायालय की अपीलनीय डिक्रियों या दंडादेशों की साधारणतया अपील होती है, अधीनस्थ समझा जाएगा या ऐसा सिविल न्यायालय, जिसकी डिक्रियों की साधारणतया कोई अपील नहीं होती है, उस मामूली आरंभिक सिविल अधिकारिता वाले प्रधान न्यायालय के अधीनस्थ समझा जाएगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसा सिविल न्यायालय स्थित है :
परन्तु
(क) जहाँ अपीलें एक से अधिक न्यायालय में होती हैं वहां अवर अधिकारिता वाला अपील न्यायालय वह न्यायालय होगा जिसके अधीनस्थ ऐसा न्यायालय समझा जाएगा;
(ख) जहां अपीलें सिविल न्यायालय में और राजस्व न्यायालय में भी होती हैं वहां ऐसा न्यायालय उस मामले या कार्यवाही के स्वरूप के अनुसार, जिसके संबंध में उस अपराध का किया जाना अभिकथित है, सिविल या राजस्व न्यायालय के अधीनस्थ समझा जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195a |  Section 195a in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 195a in Hindi ] –

धमकी देने आदि की दशा में साक्षियों के लिए प्रक्रिया-

कोई साक्षी या कोई अन्य व्यक्ति भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 195क के अधीन अपराध के संबंध में परिवाद फाइल कर सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 |  Section 196 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 196 in Hindi ] –

राज्य के विरुद्ध अपराधों के लिए और ऐसे अपराध करने के लिए आपराधिक षडयंत्र के लिए अभियोजना-

(1) कोई न्यायालय,
(क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6 के अधीन या धारा 153, ‘[धारा 295क या धारा 505 की उपधारा (1)] के अधीन दंडनीय किसी अपराध का ; अथवा
(ख) ऐसा अपराध करने के लिए आपराधिक षडयंत्र का ; अथवा
(ग) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 108क में यथावर्णित किसी दुप्रेरण का, संज्ञान केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं।
*[(1क) कोई न्यायालय-
(क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 153 या धारा 505 की उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन दंडनीय किसी अपराध का, अथवा
(ख) ऐसा अपराध करने के लिए आपराधिक षडयंत्र का, संज्ञान केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं।]
(2) कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 120ब के अधीन दंडनीय किसी आपराधिक षडयंत्र के किसी ऐसे अपराध का, जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध] करने के आपराधिक षडयंत्र से भिन्न है, संज्ञान तब तक नहीं करेगा जब तक राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट ने कार्यवाही शुरू करने के लिए लिखित सम्मति नहीं दे दी है :
परंतु जहाँ आपराधिक षडयंत्र ऐसा है जिसे धारा 195 के उपबंध लागू हैं वहां ऐसी कोई सम्मति आवश्यक न होगी।
(3) केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार, उपधारा (1) या उपधारा (1क) के अधीन मंजूरी देने के पूर्व और जिला मजिस्ट्रेट, उपधारा (1क) के अधीन मंजूरी देने से पूर्व.] और राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट, उपधारा (2) के अधीन सम्मति देने के पूर्व, ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा जो निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं है, प्रारंभिक अन्वेषण किए जाने का आदेश दे सकता है और उस दशा में ऐसे पुलिस अधिकारी की वे शक्तियां होंगी जो धारा 155 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 |  Section 197 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 197 in Hindi ] –

न्यायाधीशों और लोक सेवकों का अभियोजन

(1) जब किसी व्यक्ति पर, जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या ऐसा लोक सेवक है या था जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से ही उसके पद से हटाया जा सकता है, अन्यथा नहीं, किसी ऐसे अपराध का अभियोग है जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, तब कोई भी न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान, जैसा [लोकपाल और लोकायुक्त]
(क) ऐसे व्यक्ति की दशा में. जो संघ के कार्यकलाप के संबंध में, यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित या केंद्रीय सरकार की;
(ख) ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में, यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था, उस राज्य सरकार की, पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं:
[परंतु जहाँ अभिकथित अपराध खंड (ख) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा उस अवधि के दौरान किया गया था जब राज्य में संविधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा प्रवृत्त थी, वहां खंड (ख) इस प्रकार लागू होगा मानो उसमें आने वाले राज्य सरकारपद के स्थान पर केंद्रीय सरकारपद रख दिया गया है।]
स्पष्टीकरण-शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि ऐसे किसी लोक सेवक की दशा में, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उसने भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 166, धारा 166, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 354, धारा 370, धारा 375, धारा 376, धारा 376, धारा 376, धारा 3764 या धारा 509 के अधीन कोई अपराध किया है, कोई पूर्व मंजूरी अपेक्षित नहीं होगी।]
(2) कोई भी न्यायालय संघ के सशस्त्र बल के किसी सदस्य द्वारा किए गए किसी अपराध का संज्ञान, जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था, जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, केंद्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं।
(3) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकती है कि उसमें यथाविनिर्दिष्ट बल के ऐसे वर्ग या प्रवर्ग के सदस्यों को जिन्हें लोक व्यवस्था बनाए रखने का कार्यभार सौंपा गया है, जहां कहीं भी वे सेवा कर रहे हों, उपधारा (2) के उपबंध लागू होंगे और तब उस उपधारा के उपबंध इस प्रकार लागू होंगे मानों उसमें आने वाले केंद्रीय सरकारपद के स्थान पर राज्य सरकारपद रख दिया गया है।
(क) उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी कोई भी न्यायालय ऐसे बलों के किसी सदस्य द्वारा, जिसे राज्य में लोक व्यवस्था बनाए रखने का कार्य-भार सौंपा गया है, किए गए किसी ऐसे अपराध का संज्ञान, जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह्, उस राज्य में संविधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा के प्रवृत्त रहने के दौरान, अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, केंद्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं।
(ख) इस संहिता में या किसी अन्य विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, यह घोषित किया जाता है कि 20 अगस्त, 1991 को प्रारंभ होने वाली और दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1991 (1991 का 43), पर राष्ट्रपति जिस तारीख को अनुमति देते हैं उस तारीख की ठीक पूर्ववर्ती तारीख को समाप्त होने वाली अवधि के दौरान ऐसे किसी अपराध के संबंध में जिसका उस अवधि के दौरान किया जाना अभिकथित है जब संविधान के अनुच्छेद 356 के खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा राज्य में प्रवृत्त थी, राज्य सरकार द्वारा दी गई कोई मंजूरी या ऐसी मंजूरी पर किसी न्यायालय द्वारा किया गया कोई संज्ञान अविधिमान्य होगा और ऐसे विषय में केंद्रीय सरकार मंजूरी प्रदान करने के लिए सक्षम होगी तथा न्यायालय उसका संज्ञान करने के लिए सक्षम होगा।]
(4) यथास्थिति. केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार उस व्यक्ति का जिसके द्वारा और उस रीति का जिससे वह अपराध या वे अपराध, जिसके या जिनके लिए ऐसे न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या लोक सेवक का अभियोजन किया जाना है, अवधारण कर सकती है और वह न्यायालय विनिर्दिष्ट कर सकती है जिसके समक्ष विचारण किया जाना है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 |  Section 198 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 198 in Hindi ] –

विवाह के विरुद्ध अपराधों के लिए अभियोजन

(1) कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 20 के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध से व्यथित किसी व्यक्ति द्वारा किए गए परिवाद पर ही करेगा, अन्यथा नहीं: परंतु
(क) जहां ऐसा व्यक्ति अठारह वर्ष से कम आयु का है अथवा जड़ या पागल है अथवा रोग या अंग-शैथिल्य के कारण परिवाद करने के लिए असमर्थ है, या ऐसी स्त्री है जो स्थानीय रुड़ियों और रीतियों के अनुसार लोगों के सामने आने के लिए विवश नहीं की जानी चाहिए वहां उसकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है ;
(ख) जहाँ ऐसा व्यक्ति पति है, और संघ के सशस्त्र बलों में से किसी में से ऐसी परिस्थितियों में सेवा कर रहा है जिनके बारे में उसके कमान आफिसर ने यह प्रमाणित किया है कि उनके कारण उसे परिवाद कर सकने के लिए अनुपस्थिति छुट्टी प्राप्त नहीं हो सकती, वहाँ उपधारा (4) के उपबंधों के अनुसार पति द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति उसकी ओर से परिवाद कर सकता है:
(ग) जहां भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 494 या धारा 495] के अधीन दंडनीय अपराध से व्यथित व्यक्ति पत्नी है वहां उसकी ओर से उसके पिता, माता, भाई, बहिन, पुत्र या पुत्री या उसके पिता या माता के भाई या बहिन द्वारा [या न्यायालय की इजाजत से, किसी ऐसे अन्य व्यक्ति द्वारा, जो उससे रक्त, विवाह या दत्तक द्वारा संबंधित है.] परिवाद किया जा सकता है।
(2) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, स्त्री के पति से भिन्न कोई व्यक्ति उक्त संहिता की धारा 497 या धारा 498 के अधीन दंडनीय अपराध से व्यथित नहीं समझा जाएगा:
परंतु पति की अनुपस्थिति में, कोई ऐसा व्यक्ति, जो उस समय जब ऐसा अपराध किया गया था ऐसी स्त्री के पति की ओर से उसकी देख-रेख कर रहा था उसकी ओर से न्यायालय की इजाजत से परिवाद कर सकता है।
(3) जब उपधारा (1) के परंतुक के खंड (क) के अधीन आने वाले किसी मामले में अठारह वर्ष से कम आयु के व्यक्ति या पागल व्यक्ति की ओर से किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा परिवाद किया जाना है, जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा अवयस्क या पागल के शरीर का संरक्षक नियुक्त या घोषित नहीं किया गया है, और न्यायालय का समाधान हो जाता है कि ऐसा कोई संरक्षक जो ऐसे नियुक्त या घोषित किया गया है तब न्यायालय इजाजत के लिए आवेदन मंजूर करने के पूर्व, ऐसे संरक्षक को सूचना दिलवाएगा और सुनवाई का उचित अवसर देगा।
(4) उपधारा (1) के परंतुक के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्राधिकार लिखित रूप में दिया जाएगा और, वह पति द्वारा हस्ताक्षरित या अन्यथा अनुप्रमाणित होगा, उसमें इस भाव का कथन होगा कि उसे उन अभिकथनों की जानकारी दे दी गई है जिनके आधार पर परिवाद किया जाना है और वह उसके कमान आफिसर द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित होगा, तथा उसके साथ उस आफिसर द्वारा हस्ताक्षरित इस भाव का प्रमाणपत्र होगा कि पति को स्वयं परिवाद करने के प्रयोजन के लिए अनुपस्थिति छुट्टी उस समय नहीं दी जा सकती है।
(5) किसी दस्तावेज के बारे में, जिसका ऐसा प्राधिकार होना तात्पर्यित है और जिससे उपधारा (4) के उपबंधों की पूर्ति होती है और किसी दस्तावेज के बारे में, जिसका उस उपधारा द्वारा अपेक्षित प्रमाणपत्र होना तात्पर्यित है, जब तक प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि वह असली है और उसे साक्ष्य में ग्रहण किया जाएगा।
(6) कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 376 के अधीन अपराध का संज्ञान, जहाँ ऐसा अपराध किसी पुरुष द्वारा [अठारह वर्ष से कम आयु की] अपनी ही पत्नी के साथ मैथुन करता है, उस दशा में न करेगा जब उस अपराध के किए जाने की तारीख से एक वर्ष से अधिक व्यतीत हो चुका है।
(7) इस धारा के उपबंध किसी अपराध के दुप्रेरण या अपराध करने के प्रयत्न को ऐसे लागू होंगे, जैसे वे अपराध को लागू होते हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198a |  Section 198a in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 198a in Hindi ] –

भारतीय दंड संहिता की धारा 498क के अधीन अपराधों का अभियोजन

कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 498क के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान ऐसे अपराध को गठित करने वाले तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट पर अथवा अपराध से व्यथित व्यक्ति द्वारा या उसके पिता, माता, भाई, बहिन द्वारा या उसके पिता अथवा माता के भाई या बहिन द्वारा किए गए परिवाद पर या रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण द्वारा उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा न्यायालय की इजाजत से किए गए परिवाद पर ही करेगा अन्यथा नहीं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 199 |  Section 199 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 199 in Hindi ] –

मानहानि के लिए अभियोजन

(1) कोई न्यायालय भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 21 के अधीन दंडन

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 200 |  Section 200 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 200 in Hindi ] –

परिवादी की परीक्षा-

परिवाद पर किसी अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट, परिवादी की और यदि कोई साक्षी उपस्थित है तो उनकी शपथ पर परीक्षा करेगा और ऐसी परीक्षा का सारांश लेखबद्ध किया जाएगा और परिवादी और साक्षियों द्वारा तथा मजिस्ट्रेट द्वारा भी हस्ताक्षरित किया जाएगा: परंतु जब परिवाद लिख कर किया जाता है तब मजिस्ट्रेट के लिए परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करना आवश्यक न होगा
(क) यदि परिवाद अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य करने वाले या कार्य करने का तात्पर्य रखने वाले लोक सेवक द्वारा या न्यायालय द्वारा किया गया है, अथवा
(ख) यदि मजिस्ट्रेट जांच या विचारण के लिए मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले कर देता है :
परंतु यह और कि यदि मजिस्ट्रेट परिवादी या साक्षियों की परीक्षा करने के पश्चात् मामले को धारा 192 के अधीन किसी अन्य मजिस्ट्रेट के हवाले करता है तो बाद वाले मजिस्ट्रेट के लिए उनकी फिर से परीक्षा करना आवश्यक न होगा।

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