Saturday, 6 June 2020

दंड प्रक्रिया संहिता 221 to 250


दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 221 |  Section 221 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 221 in Hindi ] –

जहां इस बारे में संदेह है कि कौन-सा अपराध किया गया है

(1) यदि कोई एक कार्य या कार्यों का क्रम इस प्रकार का है कि यह संदेह है कि उन तथ्यों से, जो सिद्ध किए जा सकते हैं, कई अपराधों में से कौन सा अपराध बनेगा तो अभियुक्त पर ऐसे सब अपराध या उनमें से कोई करने का आरोप लगाया जा सकेगा और ऐसे आरोपों में से कितनों ही का एक साथ विचारण किया जा सकेगा; या उस पर उक्त अपराधों में से किसी एक को करने का अनुकल्पतः आरोप लगाया जा सकेगा।
(2) यदि ऐसे मामले में अभियुक्त पर एक अपराध का आरोप लगाया गया है और साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि उसने भिन्न अपराध किया है, जिसके लिए उस पर उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन आरोप लगाया जा सकता था, तो वह उस अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा जिसका उसके द्वारा किया जाना दर्शित है, यद्यपि उसके लिए उस पर आरोप नहीं लगाया गया था।
दृष्टांत
(क) क पर ऐसे कार्य का अभियोग है जो चोरी की, या चुराई गई संपत्ति प्राप्त करने की, या आपराधिक न्यासभंग की, या छल की कोटि में आ सकता है। उस पर चोरी करने, चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने, आपराधिक न्यासभंग करने और छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा अथवा उस पर चोरी करने का या चोरी की संपत्ति प्राप्त करने का या आपराधिक न्यासभंग करने का या छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा।
(ख) ऊपर वर्णित मामले में क पर केवल चोरी का आरोप है। यह प्रतीत होता है कि उसने आपराधिक न्यासभंग का यह चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने का अपराध किया है । वह (यथास्थिति) आपराधिक न्यासभंग या चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा, यद्यपि उस पर उस अपराध का आरोप नहीं लगाया गया था।
(ग) क मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ पर कहता है कि उसने देखा कि ख ने ग को लाठी मारी । सेशन न्यायालय के समक्ष क शपथ पर कहता है कि ख ने ग को कभी नहीं मारा। यद्यपि यह साबित नहीं किया जा सकता कि इन दो परस्पर विरुद्ध कथनों में से कौन सा मिथ्या है तथापि क पर साशय मिथ्या देने के लिए अनुकल्पतः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 222 |  Section 222 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 222 in Hindi ] –

जब वह अपराध, जो साबित हुआ है, आरोपित अपराध के अंतर्गत है

(1) जब किसी व्यक्ति पर ऐसे अपराध का आरोप है जिसमें कई विशिष्टियां हैं, जिनमें से केवल कुछ के संयोग से एक पूरा छोटा अपराध बनता है और ऐसा संयोग साबित हो जाता है किन्तु शेष विशिष्टियां साबित नहीं होती हैं तब वह उस छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(2) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है और ऐसे तथ्य साबित कर दिए जाते हैं जो उसे घटाकर छोटा अपराध कर देते हैं तब वह छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था।
(3) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप है तब वह उस अपराध को करने के प्रयत्न के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि प्रयत्न के लिए पृथक् आरोप न लगाया गया हो।
(4) इस धारा की कोई बात किसी छोटे अपराध के लिए उस दशा में दोषसिद्ध प्राधिकृत करने वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसे छोटे अपराध के बारे में कार्यवाही शुरू करने के लिए अपेक्षित शर्ते पूरी नहीं हुई हैं।
दृष्टांत
(क) क पर उस संपत्ति के बारे में, जो वाहक के नाते उसके पास न्यस्त है, आपराधिक न्यासभंग के लिए भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 407 के अधीन आरोप लगाया गया है। यह प्रतीत होता है कि उस संपत्ति के बारे में धारा 406 के अधीन उसने आपराधिक न्यायभंग तो किया है किन्तु वह उसे वाह्क के रूप में न्यस्त नहीं की गई थी। वह धारा 406 के अधीन आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा।
(ख) क पर घोर उपहति कारित करने के लिए भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 325 के अधीन आरोप है। वह साबित कर देता है कि उसने घोर और आकस्मिक प्रकोपन पर कार्य किया था। वह उस संहिता की धारा 335 के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 223 |  Section 223 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 223 in Hindi ] –

किन व्यक्तियों पर संयुक्त रूप से आरोप लगाया जा सकेगा

निम्नलिखित व्यक्तियों पर एक साथ आरोप लगाया जा सकेगा और उनका एक साथ विचारण किया जा सकेगा, अर्थात् :
(क) वे व्यक्ति जिन पर एक ही संव्यवहार के अनुक्रम में किए गए एक ही अपराध का अभियोग है;
(ख) वे व्यक्ति जिन पर किसी अपराध का अभियोग है और वे व्यक्ति जिन पर ऐसे अपराध का दुप्रेरण या प्रयत्न करने का अभियोग है।
(ग) वे व्यक्ति जिन पर बारह मास की अवधि के अन्दर संयुक्त रूप में उनके द्वारा किए गए धारा 219 के अर्थ में एक ही किस्म के एक से अधिक अपराधों का अभियोग है।
(घ) वे व्यक्ति जिन पर एक ही संव्यवहार के अनुक्रम में दिए गए भिन्न अपराधों का अभियोग है;
(ङ) वे व्यक्ति जिन पर ऐसे अपराध का, जिसके अन्तर्गत चोरी, उद्दापन, छल या आपराधिक दुर्विनियोग भी है, अभियोग है और वे व्यक्ति, जिन पर ऐसी संपत्ति को, जिसका कब्जा प्रथम नामित व्यक्तियों द्वारा किए गए किसी ऐसे अपराध द्वारा अन्तरित किया जाना अभिकथित है, प्राप्त करने या रखे रखने या उसके ब्ययन या छिपाने में सहायता करने का या किसी ऐसे अंतिम नामित अपराध का दुप्रेरण या प्रयत्न करने का अभियोग है।
(च) वे व्यक्ति जिन पर ऐसी चुराई हई संपत्ति के बारे में, जिसका कब्जा एक ही अपराध द्वारा अंतरित किया गया है, भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 411 और धारा 414 के, या उन धाराओं में से किसी के अधीन अपराधों का अभियोग है;
(छ) वे व्यक्ति जिन पर भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 12 के अधीन कूटकृत सिक्के के संबंध में किसी अपराध का अभियोग है और वे व्यक्ति जिन पर उसी सिक्के के संबंध में उक्त अध्याय के अधीन किसी भी अन्य अपराध का या किसी ऐसे अपराध का दुप्रेरण या प्रयत्न करने का अभियोग है ; और इस अध्याय के पूर्ववर्ती भाग के उपबंध सब ऐसे आरोपों को यथाशक्य लागू होंगे:
परन्तु जहां अनेक व्यक्तियों पर पृथक् अपराधों का आरोप लगाया जाता है और वे व्यक्ति इस धारा में विनिर्दिष्ट कोटियों में से किसी में नहीं आते हैं वहां [मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय] ऐसे सब व्यक्तियों का विचारण एक साथ कर सकता है यदि ऐसे व्यक्ति लिखित आवेदन द्वारा ऐसा चाहते हैं और मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय] का समाधान हो जाता है कि उससे ऐसे व्यक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा और ऐसा करना समीचीन है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 224 |  Section 224 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 224 in Hindi ] –

कई आरोपों में से एक के लिए दोषसिद्धि पर शेष आरोपों को वापस लेना-

जब एक ही व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा आरोप विरचित किया जाता है जिसमें एक से अधिक शीर्ष हैं और जब उनमें से एक या अधिक के लिए, दोषसिद्धि कर दी जाती है तब परिवादी या अभियोजन का संचालन करने वाला अधिकारी न्यायालय की सम्मति से शेष आरोप या आरोपों को वापस ले सकता है अथवा न्यायालय ऐसे आरोप या आरोपों की जांच या विचारण स्वप्रेरणा से रोक सकता है और ऐसे वापस लेने का प्रभाव ऐसे आरोप या आरोपों से दोषमुक्ति होगा; किन्तु यदि दोषसिद्धि अपास्त कर दी जाती है तो उक्त न्यायालय (दोषसिद्धि अपास्त करने वाले न्यायालय के आदेश के अधीन रहते हुए) ऐसे वापस लिए गए आरोप या आरोपों की जांच या विचारण में आगे कार्यवाही कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 225 |  Section 225 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 225 in Hindi ] –

विचारण का संचालन लोक अभियोजक द्वारा किया जाना

सेशन न्यायालय के समक्ष प्रत्येक विचारण में, अभियोजन का संचालन लोक अभियोजक द्वारा किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 226 |  Section 226 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 226 in Hindi ] –

अभियोजन के मामले के कथन का आरंभ-

जब अभियुक्त धारा 209 के अधीन मामले की सुपुर्दगी के अनुसरण में न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब अभियोजक अपने मामले का कथन, अभियुक्त के विरुद्ध लगाए गए आरोप का वर्णन करते हुए और यह बताते हुए आरंभ करेगा कि वह अभियुक्त के दोष को किस साक्ष्य से साबित करने की प्रस्थापना करता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 |  Section 227 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 227 in Hindi ] –

 उन्मोचन-

यदि मामले के अभिलेख और उसके साथ दी गई दस्तावेजों पर विचार कर लेने पर, और इस निमित्त अभियुक्त और अभियोजन के निवेदन की सुनवाई कर लेने के पश्चात् न्यायाधीश यह समझता है कि अभियुक्त के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा और ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 228 |  Section 228 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 228 in Hindi ] –

आरोप विरचित करना

(1) यदि पूर्वोक्त रूप से विचार, और सुनवाई के पश्चात् न्यायाधीश की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है जो
(क) अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप विरचित कर सकता है और आदेश द्वारा, मामले की विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को अन्तरित कर सकता है या कोई अन्य प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट, ऐसी तारीख को जो वह ठीक समझे, अभियुक्त को, यथास्थिति, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने का निदेश दे सकेगा, और तब ऐसा मजिस्ट्रेट उस मामले का विचारण पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारंट मामलों के विचारण के लिए प्रक्रिया के अनुसार करेगा;
(ख) अनन्यत: उस न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।
(2) जहां न्यायाधीश उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन कोई आरोप विरचित करता है वहां वह आरोप अभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा और अभियुक्त से यह पूछा जाएगा कि क्या वह उस अपराध का, जिसका आरोप लगाया गया है, दोषी होने का अभिवचन करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 229 |  Section 229 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 229 in Hindi ] –

दोषी होने के अभिवचन

यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो न्यायाधीश उस अभिवाक् को लेखबद्ध करेगा और उसके आधार पर उसे, स्वविवेकानुसार, दोषसिद्ध कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 230 |  Section 230 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 230 in Hindi ] –

अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख-

यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इनकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या धारा 229 के अधीन सिद्धदोष नहीं किया जाता है तो न्यायाधीश साक्षियों की परीक्षा करने के लिए तारीख नियत करेगा और अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 231 |  Section 231 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 231 in Hindi ] –

अभियोजन के लिए साक्ष्य

(1) ऐसे नियत तारीख पर न्यायाधीश ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाए।
(2) न्यायाधीश, स्वविवेकानुसार, किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा तब तक के लिए, जब तक किसी अन्य साक्षी या साक्षियों की परीक्षा न कर ली जाए, आस्थगित करने की अनुज्ञा दे सकता है या किसी साक्षी को अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा के लिए पुनः बुला सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 232 |  Section 232 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 232 in Hindi ] –

दोषमुक्ति-

यदि सम्बद्ध विषय के बारे में अभियोजन का साक्ष्य लेने, अभियुक्त की परीक्षा करने और अभियोजन और प्रतिरक्षा को सुनने के पश्चात् न्यायाधीश का यह विचार है कि इस बात का साक्ष्य नहीं है कि अभियुक्त ने अपराध किया है तो न्यायाधीश दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 233 |  Section 233 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 233 in Hindi ] –

प्रतिरक्षा आरंभ करना

(1) जहाँ अभियुक्त धारा 232 के अधीन दोषमुक्त नहीं किया जाता है वहां उससे अपेक्षा की जाएगी कि अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करे और कोई भी साक्ष्य जो उसके समर्थन में उसके पास हो पेश करे।
(2) यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो न्यायाधीश उसे अभिलेख में फाइल करेगा।
(3) यदि अभियुक्त किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या चीज पेश करने को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी करने के लिए आवेदन करता है तो न्यायाधीश ऐसी आदेशिका जारी करेगा जब तक उसका ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह विचार न हो कि आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर दिया जाना चाहिए कि वह तंग करने या विलंब करने या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के प्रयोजन से किया गया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 234 |  Section 234 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 234 in Hindi ] –

बहस-

जब प्रतिरक्षा के साक्षियों की (यदि कोई हों) परीक्षा समाप्त हो जाती है तो अभियोजक अपने मामले का उपसंहार करेगा और अभियुक्त या उसका प्लीडर उत्तर देने का हकदार होगा:
परन्तु जहाँ अभियुक्त या उसका प्लीडर कोई विधि-प्रश्न उठाता है वहाँ अभियोजन न्यायाधीश की अनुज्ञा से, ऐसे विधि-प्रश्नों पर अपना निवेदन कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 235 |  Section 235 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 235 in Hindi ] –

दोषमुक्ति या दोषसिद्धि का निर्णय-

(1) बहस और विधि-प्रश्न (यदि कोई हो) सुनने के पश्चात् न्यायाधीश मामले में निर्णय देगा।
(2) यदि अभियुक्त दोषसिद्ध किया जाता है तो न्यायाधीश, उस दशा के सिवाय जिसमें वह धारा 360 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करता है दंड के प्रश्न पर अभियुक्त को सुनेगा और तब विधि के अनुसार उसके बारे में दंडादेश देगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 236 |  Section 236 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 236 in Hindi ] –

 पूर्व दोषसिद्धि

ऐसे मामले में, जिसमें धारा 211 की उपधारा (1) के उपबंधों के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया है और अभियुक्त यह स्वीकार नहीं करता है कि आरोप में किए गए अभिकथन के अनुसार उसे पहले दोषसिद्ध किया गया था, न्यायाधीश उक्त अभियुक्त को धारा 229 या धारा 235 के अधीन दोषसिद्ध करने के पश्चात अभिकथित पूर्व दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य ले सकेगा और उस पर निष्कर्ष अभिलिखित करेगा :
परन्तु जब तक अभियुक्त धारा 229 या धारा 235 के अधीन दोषसिद्ध नहीं कर दिया जाता है तब तक न तो ऐसा आरोप न्यायाधीश द्वारा पढ़कर सुनाया जाएगा, न अभियुक्त से उस पर अभिवचन करने को कहा जाएगा और न पूर्व दोषसिद्धि का निर्देश अभियोजन द्वारा, या उसके द्वारा दिए गए किसी साक्ष्य में, किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 237 |  Section 237 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 237 in Hindi ] –

धारा 199(2) के अधीन संस्थित मामलों में प्रक्रिया

(1) धारा 199 की उपधारा (2) के अधीन अपराध का संज्ञान करने वाला सेशन न्यायालय मामले का विचारण, मजिस्ट्रेट के न्यायालय के समक्ष पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित किए गए वारंट मामलों के विचारण की प्रक्रिया के अनुसार करेगा:
परन्तु जब तक सेशन न्यायालय उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, अन्यथा निदेश नहीं देता है उस व्यक्ति की, जिसके विरुद्ध अपराध का किया जाना अभिकथित है अभियोजन के साक्षी के रूप में परीक्षा की जाएगी।
(2) यदि विचारण के दोनों पक्षकारों में से कोई ऐसी बांछा करता है या यदि न्यायालय ऐसा करना ठीक समझता है तो इस धारा के अधीन प्रत्येक विचारण बंद कमरे में किया जाएगा।
(3) यदि ऐसे किसी मामले में न्यायालय सब अभियुक्तों को या उनमें से किसी को उन्मोचित या दोषमुक्त करता है और उसकी यह राय है कि उनके या उनमें से किसी के विरुद्ध अभियोग लगाने का उचित कारण नहीं था तो वह उन्मोचन या दोषमुक्ति के अपने आदेश द्वारा (राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या किसी संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक से भिन्न) उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध अपराध का किया जाना अभिकथित किया गया था यह निदेश दे सकेगा कि वह कारण दर्शित करे कि वह उस अभियुक्त को या जब ऐसे अभियुक्त एक से अधिक हैं तब उनमें से प्रत्येक को या किसी को प्रतिकर क्यों न दे।
(4) न्यायालय इस प्रकार निदिष्ट व्यक्ति द्वारा दर्शित किसी कारण को लेखबद्ध करेगा और उस पर विचार करेगा और यदि उसका समाधान हो जाता है कि अभियोग लगाने का कोई उचित कारण नहीं था, तो वह एक हजार रुपए से अनधिक इतनी रकम का, जितनी वह अवधारित करे, प्रतिकर उस व्यक्ति द्वारा अभियुक्त को या, उनमें से प्रत्येक को या किसी को, दिए जाने का आदेश, उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, दे सकेगा।
(5) उपधारा (4) के अधीन अधिनिर्णीत प्रतिकर ऐसे वसूल किया जाएगा मानो वह मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित किया गया जुर्माना हो।
(6) उपधारा (4) के अधीन प्रतिकर देने के लिए जिस व्यक्ति को आदेश दिया जाता है उसे ऐसे आदेश के कारण इस धारा के अधीन किए गए परिवाद के बारे में किसी सिविल या दांडिक दायित्व से छूट नहीं दी जाएगी:
परन्तु अभियुक्त व्यक्ति को इस धारा के अधीन दी गई कोई रकम, उसी मामले से संबंधित किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में उस व्यक्ति के लिए प्रतिकर अधिनिर्णीत करते समय हिसाब में ली जाएगी।
(7) उपधारा (4) के अधीन प्रतिकर देने के लिए जिस व्यक्ति को आदेश दिया जाता है वह उस आदेश की अपील, जहां तक वह प्रतिकर के संदाय के संबंध में है, उच्च न्यायालय में कर सकता है।
(8) जब किसी अभियुक्त व्यक्ति को प्रतिकर दिए जाने का आदेश किया जाता है, तब उसे ऐसा प्रतिकर, अपील पेश करने के लिए अनुज्ञात अवधि के बीत जाने के पूर्व, या यदि अपील पेश कर दी गई है तो अपील के विनिश्चित कर दिए जाने के पूर्व, नहीं दिया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 238 |  Section 238 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 238 in Hindi ] –

धारा 207 का अनुपालन-

जब पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित किसी वारण्ट-मामले में अभियुक्त विचारण के प्रारंभ में मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट अपना यह समाधान कर लेगा कि उसने धारा 207 के उपबंधों का अनुपालन कर लिया है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 239 |  Section 239 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 239 in Hindi ] –

अभियुक्त को कब उन्मोचित किया जाएगा

यदि धारा 173 के अधीन पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ भेजी गई दस्तावेजों पर विचार कर लेने पर और अभियुक्त की ऐसी परीक्षा, यदि कोई हो, जैसी मजिस्ट्रेट आवश्यक समझे, कर लेने पर और अभियोजन और अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् मजिस्ट्रेट अभियुक्त के विरुद्ध आरोप को निराधार समझता है तो वह उसे उन्मोचित कर देगा और ऐसा करने के अपने कारण लेखबद्ध करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 240 |  Section 240 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 240 in Hindi ] –

आरोप विरचित करना

(1) यदि ऐसे विचार, परीक्षा, यदि कोई हो, और सुनवाई कर लेने पर मजिस्ट्रेट की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन विचारणीय ऐसा अपराध किया है जिसका विचारण करने के लिए, वह मजिस्ट्रेट सक्षम है और जो उसकी राय में उसके द्वारा पर्याप्त रूप से दंडित किया जा सकता है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।
(2) तब वह आरोप अभियुक्त को पढ़ कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे यह पूछा जाएगा कि क्या वह उस अपराध का, जिसका आरोप लगाया गया है दोषी होने का अभिवाक् करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है।

ड प्रक्रिया संहिता की धारा 244 |  Section 244 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 244 in Hindi ] –

अभियोजन का साक्ष्य-

(1) जब पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित किसी वारण्ट-मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट अभियोजन को सुनने के लिए और ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाए।
(2) मजिस्ट्रेट, अभियोजन के आवेदन पर, उसके साक्षियों में से किसी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है।

दोषी होने के अभिवाक् पर दोषसिद्धि

यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट उस अभिवाक् को लेखबद्ध करेगा और उसके आधार पर उसे, स्वविवेकानुसार, दोषसिद्ध कर सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 242 |  Section 242 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 242 in Hindi ] –

अभियोजन के लिए साक्ष्य-

(1) यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इनकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 241 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है तो वह मजिस्ट्रेट साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा।
[परंतु मजिस्ट्रेट अभियुक्त को पुलिस द्वारा अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किए गए साक्षियों के कथन अग्रिम रूप से प्रदाय करेगा।]
(2) मजिस्ट्रेट अभियोजन के आवेदन पर उसके साक्षियों में से किसी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है।
(3) ऐसी नियत तारीख पर मजिस्ट्रेट ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाता है :
परन्तु मजिस्ट्रेट किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा तब तक के लिए, जब तक किसी अन्य साक्षी या साक्षियों की परीक्षा नहीं कर ली जाती है, आस्थगित करने की अनुज्ञा दे सकेगा या किसी साक्षी को अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा के लिए पुनः बुला सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 243 |  Section 243 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 243 in Hindi ] –

प्रतिरक्षा का साक्ष्य

(1) तब अभियुक्त से अपेक्षा की जाएगी कि वह अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करे और अपना साक्ष्य पेश करें; और यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो मजिस्ट्रेट उसे अभिलेख में फाइल करेगा।
(2) यदि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट से आवेदन करता है कि वह परीक्षा या प्रतिपरीक्षा के, या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के प्रयोजन से हाजिर होने के लिए किसी साक्षी को विवश करने के लिए कोई आदेशिका जारी करे तो, मजिस्ट्रेट ऐसी आदेशिका जारी करेगा जब तक उसका यह विचार न हो कि ऐसा आवेदन इस आधार पर नामंजूर कर दिया जाना चाहिए कि वह तंग करने के या विलंब करने के या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने के प्रयोजन से किया गया है, और ऐसा कारण उसके द्वारा लेखबद्ध किया जाएगा:
परन्तु जब अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करने के पूर्व अभियुक्त ने किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल चुका है तब ऐसे साक्षी को हाजिर होने के लिए इस धारा के अधीन तब तक विवश नहीं किया जाएगा जब तक मजिस्ट्रेट का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के प्रयोजनों के लिए आवश्यक है।
(3) मजिस्ट्रेट उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने के पूर्व यह अपेक्षा कर सकता है कि विचारण के प्रयोजन के लिए हाजिर होने में उस साक्षी द्वारा किए जाने वाले उचित व्यय न्यायालय में जमा कर दिए जाएं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 244 |  Section 244 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 244 in Hindi ] –

अभियोजन का साक्ष्य-

(1) जब पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित किसी वारण्ट-मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट अभियोजन को सुनने के लिए और ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाए।
(2) मजिस्ट्रेट, अभियोजन के आवेदन पर, उसके साक्षियों में से किसी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 245 |  Section 245 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 245 in Hindi ] –

अभियुक्त को कब उन्मोचित किया जाएगा

(1) यदि धारा 244 में निर्दिष्ट सब साक्ष्य लेने पर मजिस्ट्रेट का, उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह विचार है कि अभियुक्त के विरुद्ध ऐसा कोई मामला सिद्ध नहीं हुआ है जो अखंडित रहने पर उसकी दोषसिद्धि के लिए समुचित आधार हो तो मजिस्ट्रेट उसको उन्मोचित कर देगा।
(2) इस धारा की कोई बात मजिस्ट्रेट को मामले के किसी पूर्वतन प्रक्रम में अभियुक्त को उस दशा में उन्मोचित करने से निवारित करने वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह विचार करता है कि आरोप निराधार है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 246 |  Section 246 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 246 in Hindi ] –

प्रक्रिया, जहां अभियुक्त उन्मोचित नहीं किया जाता

(1) यदि ऐसा साक्ष्य ले लिए जाने पर या मामले के किसी पूर्वतन प्रक्रम में मजिस्ट्रेट की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन विचारणीय ऐसा अपराध किया है जिसका विचारण करने के लिए वह मजिस्ट्रेट सक्षम है और जो उसकी राय में उसके द्वारा पर्याप्त रूप से दंडित किया जा सकता है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।
(2) तब वह आरोप अभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवाक् करता है अथवा प्रतिरक्षा करना चाहता है।
(3) यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट उस अभिवाक को लेखबद्ध करेगा और उसके आधार पर उसे, स्वविवेकानुसार, दोषसिद्ध कर सकेगा।
(4) यदि अभियुक्त अभिवचन करने से इन्कार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या यदि अभियुक्त को उपधारा (3) के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जाता है तो उससे अपेक्षा की जाएगी कि वह मामले की अगली सुनवाई के प्रारंभ में, या, यदि मजिस्ट्रेट उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, ऐसा ठीक समझता है तो, तत्काल बताए कि क्या वह् अभियोजन के उन साक्षियों में से, जिनका साक्ष्य लिया जा चुका है, किसी की प्रतिपरीक्षा करना चाहता है और यदि करना चाहता है तो किस की।
(5) यदि वह कहता है कि वह ऐसा चाहता है तो उसके द्वारा नामित साक्षियों को पुनः बुलाया जाएगा और प्रतिपरीक्षा के और पुनःपरीक्षा (यदि कोई हो) के पश्चात् वे उन्मोचित कर दिए जाएंगे।
(6) फिर अभियोजन के किन्हीं शेष साक्षियों का साक्ष्य लिया जाएगा और प्रतिपरीक्षा के और पुनःपरीक्षा (यदि कोई हो) के पश्चात् वे भी उन्मोचित कर दिए जाएंगे।

ड प्रक्रिया संहिता की धारा 247 |  Section 247 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 247 in Hindi ] –

प्रतिरक्षा का साक्ष्य-

तब अभियुक्त से अपेक्षा की जाएगी कि वह अपनी प्रतिरक्षा आरंभ करे और अपना साक्ष्य पेश करे और मामले को धारा 243 के उपबंध लागू होंगे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 248 |  Section 248 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 248 in Hindi ] –

दोषमुक्ति या दोषसिद्धि

(1) यदि इस अध्याय के अधीन किसी मामले में, जिसमें आरोप विरचित किया गया है. मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो वह दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।
(2) जहां इस अध्याय के अधीन किसी मामले में मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी है किन्तु वह धारा 325 या धारा 360 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही नहीं करता है वहाँ वह दंड के प्रश्न पर अभियुक्त को सुनने के पश्चात् विधि के अनुसार उसके बारे में दंडादेश दे सकता है।
(3) जहाँ इस अध्याय के अधीन किसी मामले में धारा 211 की उपधारा (7) के उपबंधों के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया है और अभियुक्त यह स्वीकार नहीं करता है कि आरोप में किए गए अभिकथन के अनुसार उसे पहले दोषसिद्ध किया गया था वहां मजिस्ट्रेट उक्त अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के पश्चात् अभिकथित पूर्व दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य ले सकेगा और उस पर निष्कर्ष अभिलिखित करेगा:
परन्तु जब तक अभियुक्त उपधारा (2) के अधीन दोषसिद्ध नहीं कर दिया जाता है तब तक न तो ऐसा आरोप मजिस्ट्रेट द्वारा पढ़कर सुनाया जाएगा, न अभियुक्त से उस पर अभिवचन करने को कहा जाएगा, और न पूर्व दोषसिद्धि का निर्देश अभियोजन द्वारा, या उसके द्वारा दिए गए किसी साक्ष्य में, किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 249 |  Section 249 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 249 in Hindi ] –

दोषमुक्ति या दोषसिद्धि

जब कार्यवाही परिवाद पर संस्थित की जाती है और मामले की सुनवाई के लिए नियत किसी दिन परिवादी अनुपस्थित है और अपराध का विधिपूर्वक शमन किया जा सकता है या वह संज्ञेय अपराध नहीं है तब मजिस्ट्रेट, इसमें इसके पूर्व किसी बात के होते हुए भी, आरोप के विरचित किए जाने के पूर्व किसी भी समय अभियुक्त को, स्वविवेकानुसार, उन्मोचित कर सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 250 |  Section 250 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 250 in Hindi ] –

उचित कारण के बिना अभियोग के लिए प्रतिकर-

(1) यदि परिवाद पर या पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गई इत्तिला पर संस्थित किसी मामले में मजिस्ट्रेट के समक्ष एक या अधिक व्यक्तियों पर मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी अपराध का अभियोग है और वह मजिस्ट्रेट जिसके द्वारा मामले की सुनवाई होती है, तब अभियुक्तों को या उनमें से किसी को उन्मोचित या दोषमुक्त कर देता है और उसकी यह राय है कि उनके या उनमें से किसी के विरुद्ध अभियोग लगाने का कोई उचित कारण नहीं था तो वह् मजिस्ट्रेट उन्मोचन या दोषमुक्ति के अपने आदेश द्वारा, यदि वह व्यक्ति जिसके परिवाद या इत्तिला पर अभियोग लगाया गया था उपस्थित है तो उससे अपेक्षा कर सकेगा कि वह तत्काल कारण दर्शित करे कि वह उस अभियुक्त को, या जब ऐसे अभियुक्त एक से अधिक हैं तो उनमें से प्रत्येक को या किसी को प्रतिकर क्यों न दे अथवा यदि ऐसा व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो हाजिर होने और उपर्युक्त रूप से कारण दर्शित करने के लिए उसके नाम समन जारी किए जाने का निदेश दे सकेगा।
(2) मजिस्ट्रेट ऐसा कोई कारण, जो ऐसा परिवादी या इत्तिला देने वाला दर्शित करता है, अभिलिखित करेगा और उस पर विचार करेगा और यदि उसका समाधान हो जाता है कि अभियोग लगाने का कोई उचित कारण नहीं था तो जितनी रकम का जुर्माना करने के लिए वह सशक्त है, उससे अनधिक इतनी रकम का, जितनी वह अवधारित करे, प्रतिकर ऐसे परिवादी या इत्तिला देने वाले द्वारा अभियुक्त को या उनमें से प्रत्येक को या किसी को दिए जाने का आदेश, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, दे सकेगा।
(3) मजिस्ट्रेट उपधारा (2) के अधीन प्रतिकर दिए जाने का निदेश देने वाले आदेश द्वारा यह अतिरिक्त आदेश दे सकेगा कि वह व्यक्ति, जो ऐसा प्रतिकर देने के लिए आदिष्ट किया गया है, संदाय में व्यतिक्रम होने पर तीस दिन से अनधिक की अवधि के लिए सादा कारावास भोगेगा।
(4) जब किसी व्यक्ति को उपधारा (3) के अधीन कारावास दिया जाता है, तब भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 68 और 69 के उपबंध, जहां तक हो सके, लागू होंगे।
(5) इस धारा के अधीन प्रतिकर देने के लिए जिस व्यक्ति को आदेश दिया जाता है, ऐसे आदेश के कारण उसे अपने द्वारा किए गए किसी परिवाद या दी गई किसी इत्तिला के बारे में किसी सिविल या दांडिक दायित्व से छूट नहीं दी जाएगी :
परन्तु अभियुक्त व्यक्ति को इस धारा के अधीन दी गई कोई रकम उसी मामले से संबंधित किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में उस व्यक्ति के लिए प्रतिकर अधिनिर्णीत करते समय हिसाब में ली जाएगी।
(6) कोई परिवादी या इत्तिला देने वाला, जो द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा उपधारा (2) के अधीन एक सौ रुपए से अधिक प्रतिकर देने के लिए आदिष्ट किया गया है, उस आदेश की अपील ऐसे कर सकेगा मानो वह परिवादी या इत्तिला देने वाला ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए विचारण में दोषसिद्ध किया गया है।
(7) जब किसी अभियुक्त व्यक्ति को ऐसे मामले में, जो उपधारा (6) के अधीन अपीलनीय है, प्रतिकर दिए जाने का आदेश किया जाता है तब उसे ऐसा प्रतिकर, अपील पेश करने के लिए अनुज्ञात अवधि के बीत जाने के पूर्व या यदि अपील पेश कर दी गई है तो अपील के विनिश्चित कर दिए जाने के पूर्व न दिया जाएगा और जहां ऐसा आदेश ऐसे मामले में हुआ है, जो ऐसे अपीलनीय नहीं है, वहां ऐसा प्रतिकर आदेश की तारीख से एक मास की समाप्ति के पूर्व नहीं दिया जाएगा।

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