दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 251 | Section 251 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 251 in
Hindi ] –
अभियोग का सारांश
बताया जाना—
जब समन-मामले में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता
है या लाया जाता है, तब उसे
उस अपराध की विशिष्टियां बताई जाएंगी जिसका उस पर अभियोग है, और उससे पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी
होने का अभिवाक् करता है अथवा प्रतिरक्षा करना चाहता है ; किन्तु यथा रीति आरोप विरचित करना
आवश्यक न होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 252 | Section 252 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 252 in
Hindi ] –
दोषी होने के
अभिवाक् पर दोषसिद्धि–
यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट
अभियुक्त का अभिवाक् यथासंभव उन्हीं शब्दों में लेखबद्ध करेगा जिनका अभियुक्त ने
प्रयोग किया है और उसके आधार पर उसे, स्वविवेकानुसार, दोषसिद्ध
कर सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 253 | Section 253 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 253 in
Hindi ] –
छोटे मामलों में
अभियुक्त की अनुपस्थिति में दोषी होने के अभिवाक् पर दोषसिद्धि–
(1) जहां धारा 206 के अधीन समन जारी किया जाता है और अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष
हाजिर हुए बिना आरोप का दोषी होने का अभिवचन करना चाहता है, वहां वह अपना अभिवाक् अन्तर्विष्ट करने वाला
एक पत्र और समन में विनिर्दिष्ट जुर्माने की रकम डाक या संदेशवाहक द्वारा
मजिस्ट्रेट को भेजेगा।
(2) तब मजिस्ट्रेट, स्वविवेकानुसार, अभियुक्त
को उसके दोषी होने के अभिवाक् के आधार पर उसकी अनुपस्थिति में दोषसिद्ध करेगा और
समन में विनिर्दिष्ट जुर्माना देने के लिए दण्डादेश देगा और अभियुक्त द्वारा भेजी
गई रकम उस जुर्माने में समायोजित की जाएगी या जहां अभियुक्त द्वारा इस निमित्त
प्राधिकृत प्लीडर अभियुक्त की ओर से उसके दोषी होने का अभिवचन करता है वहां
मजिस्ट्रेट यथासंभव प्लीडर द्वारा प्रयुक्त किए गए शब्दों में अभिवाक् को लेखबद्ध
करेगा और स्वविवेकानुसार उस अभियुक्त को ऐसे अभिवाक् पर दोषसिद्ध कर सकेगा और उसे
यथापूर्वोक्त दण्डादेश दे सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 254 | Section 254 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 254 in
Hindi ] –
प्रक्रिया जब
दोषसिद्ध न किया जाए–
(1) यदि मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 252 या धारा 253 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है तो वह
अभियोजन को सुनने के लिए और सब ऐसा साक्ष्य, जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाए, लेने के लिए और अभियुक्त को भी सुनने
के लिए और सब ऐसा साक्ष्य, जो वह
अपनी प्रतिरक्षा में पेश करे, लेने
के लिए, अग्रसर होगा।
(2) यदि मजिस्ट्रेट अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पर ठीक समझता
है, तो वह किसी साक्षी को हाजिर होने या
कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने का निदेश देने वाला समन जारी कर सकता है।
(3) मजिस्ट्रेट ऐसे आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने के पूर्व
यह अपेक्षा कर सकता है कि विचारण के प्रयोजनों के लिए हाजिर होने में किए जाने
वाले उसके उचित व्यय न्यायालय में जमा कर दिए जाएं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 255 | Section 255 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 255 in
Hindi ] –
दोषमुक्ति या
दोषसिद्धि-
(1) यदि मजिस्ट्रेट धारा 254 में निर्दिष्ट साक्ष्य और ऐसा
अतिरिक्त साक्ष्य, यदि कोई
हो. जो वह स्वप्रेरणा से पेश करवाए, लेने पर इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो वह
दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित करेगा।
(2) जहां मजिस्ट्रेट धारा 325 या धारा 360 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही नहीं करता है वहां यदि वह इस
निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी है तो वह विधि के अनुसार उसके बारे में
दंडादेश दे सकेगा।
(3) कोई मजिस्ट्रेट, धारा 252 या
धारा 255 के अधीन, किसी अभियुक्त को, चाहे परिवाद या समन किसी भी प्रकार का
रहा हो, इस अध्याय के अधीन विचारणीय किसी भी
ऐसे अपराध के लिए जो स्वीकृत या साबित तथ्यों से उसके द्वारा किया गया प्रतीत होता
है, दोषसिद्ध कर सकता है यदि मजिस्ट्रेट
का समाधान हो जाता है कि उससे अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 256 | Section 256 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 256 in
Hindi ] –
परिवादी का हाजिर
न होना या उसकी मृत्यु-
(1) यदि परिवाद पर समन जारी कर दिया गया
हो और अभियुक्त की हाजिरी के लिए नियत दिन, या उसके पश्चात्वर्ती किसी दिन, जिसके लिए सुनवाई स्थगित की जाती है. परिवादी हाजिर नहीं होता है
तो, मजिस्ट्रेट इसमें इसके पूर्व किसी बात
के होते हुए भी,
अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा
जब तक कि वह किन्हीं कारणों से किसी अन्य दिन के लिए मामले की सुनवाई स्थगित करना
ठीक न समझे :
(2) उपधारा (1) के
उपबंध, जहाँ तक हो सके, उन मामलों को भी लागू होंगे, जहां परिवादी के हाजिर न होने का कारण
उसकी मृत्यु है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 257 | Section 257 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 257 in
Hindi ] –
परिवाद को वापस
लेना–
यदि परिवादी किसी मामले में इस अध्याय के अधीन अंतिम आदेश
पारित किए जाने के पूर्व किसी समय मजिस्ट्रेट का समाधान कर देता है कि अभियुक्त के
विरुद्ध, या जहां एक से अधिक अभियुक्त हैं वहां
उन सब या उनमें से किसी के विरुद्ध उसका परिवाद वापस लेने की उसे अनुज्ञा देने के
लिए पर्याप्त आधार है तो मजिस्ट्रेट उसे परिवाद वापस लेने की अनुज्ञा दे सकेगा और
तब उस अभियुक्त को, जिसके
विरुद्ध परिवाद इस प्रकार वापस लिया जाता है, दोषमुक्त कर देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 258 | Section 258 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 258 in
Hindi ] –
कुछ मामलों में
कार्यवाही रोक देने की शक्ति-
परिवाद से भिन्न आधार पर संस्थित किसी समन-मामले में कोई
प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, अथवा
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी से कोई अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसे
कारणों से,
जो उसके द्वारा लेखबद्ध किए
जाएंगे, कार्यवाही को किसी भी प्रक्रम में कोई
निर्णय सुनाए बिना रोक सकता है और जहां मुख्य साक्षियों के साक्ष्य को अभिलिखित
किए जाने के पश्चात् इस प्रकार कार्यवाहियां रोकी जाती हैं वहाँ दोषमुक्ति का
निर्णय सुना सकता है और किसी अन्य दशा में अभियुक्त को छोड़ सकता है और ऐसे छोड़ने
का प्रभाव उन्मोचन होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 259 | Section 259 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 259 in
Hindi ] –
समन-मामलों को
वारण्ट-मामलों में संपरिवर्तित करने की न्यायालय की शक्ति–
जब किसी ऐसे अपराध से संबंधित समनमामले के विचारण के दौरान
जो छह मास से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है, मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि न्याय के हित में उस
अपराध का विचारण वारण्ट-मामलों के विचारण की प्रक्रिया के अनुसार किया जाना चाहिए
तो ऐसा मजिस्ट्रेट वारण्ट-मामलों के विचारण के लिए इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति
से उस मामले की पुनः सुनवाई कर सकता है और ऐसे साक्षियों को पुनः बुला सकता है
जिनकी परीक्षा की जा चुकी है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 260 | Section 260 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 260 in
Hindi ] –
संक्षिप्त विचारण करने की शक्ति–
(1) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी यदि,
(क) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट; (ख) कोई महानगर मजिस्ट्रेट ;
(ग) कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त
विशेषतया सशक्त किया गया है, ___ठीक
समझता है तो वह निम्नलिखित सब अपराधों का या उनमें से किसी का संक्षेपतः विचारण कर
सकता है.
(1) वे अपराध जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास से
दंडनीय नहीं है;
(ii) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 379, धारा 380 या धारा 381 के अधीन चोरी, जहां चुराई हुई संपत्ति का मूल्य [दो
हजार रुपए] से अधिक नहीं है :
(ii) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 411 के अधीन चोरी की संपत्ति को प्राप्त
करना या रखे रखा, जहां ऐसी
संपत्ति का मूल्य दो हजार रुपए] से अधिक नहीं है।
(iv) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 414 के अधीन चुराई हुई संपत्ति को छिपाने
का उसका व्ययन करने में सहायता करना, जहां ऐसी संपत्ति का मूल्य [दो हजार रुपए से अधिक नहीं है।
(v) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 454 और 456 के अधीन अपराध ;
(vi) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की
धारा 504 के अधीन लोकशांति भंग कराने को
प्रकोपित करने के आशय से अपमान और धारा 506 के अधीन [आपराधिक अभित्रास, जो ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से
दंडनीय होगा।]
(vii) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी का दुप्रेरण; (viii) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी को
करने का प्रयत्न, जब ऐसा
प्रयत्न, अपराध है;
(ix) ऐसे कार्य से होने वाला कोई अपराध, जिसकी बाबत पशु अतिचार अधिनियम, 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है।
(2) जब संक्षिप्त विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को प्रतीत होता है
कि मामला इस प्रकार का है कि उसका विचारण संक्षेपतः किया जाना अवांछनीय है तो वह
मजिस्ट्रेट किन्हीं साक्षियों को, जिनकी
परीक्षा की जा चुकी है. पुन: बुलाएगा और मामले को इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति
से पुनः सुनने के लिए अग्रसर होगा
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 261 | Section 261 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 261 in
Hindi ] –
द्वितीय वर्ग के
मजिस्ट्रेटों द्वारा संक्षिप्त विचारण-
उच्च न्यायालय किसी ऐसे मजिस्ट्रेट को, जिसमें द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट की
शक्तियां निहित हैं, किसी ऐसे
अपराध का, जो केवल जुर्माने से या जुर्माने सहित
या रहित छह मास से अनधिक के कारावास से दंडनीय है और ऐसे किसी अपराध के दुप्रेरण
या ऐसे किसी अपराध को करने के प्रयत्न का संक्षेपतः विचारण करने की शक्ति प्रदान
कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 262 | Section 262 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 262 in
Hindi ] –
संक्षिप्त विचारण
की प्रक्रिया–
(1) इस अध्याय के अधीन विचारणों में इसके पश्चात् इसमें जैसा
वर्णित है उसके सिवाय, इस
संहिता में समन-मामलों के विचारण के लिए विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण किया
जाएगा।
(2) तीन मास से अधिक की अवधि के लिए कारावास का कोई दंडादेश इस
अध्याय के अधीन किसी दोषसिद्धि के मामले में न
दिया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 263 | Section 263 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 263 in
Hindi ] –
संक्षिप्त विचारण
की प्रक्रिया–
संक्षिप्त विचारणों में अभिलेख संक्षेपत: विचारित प्रत्येक
मामले में मजिस्ट्रेट ऐसे प्ररूप में, जैसा राज्य सरकार निर्दिष्ट करे, निम्नलिखित विशिष्टियां प्रविष्ट करेगा, अर्थात् :
(क) मामले का क्रम संख्यांक ;
(ख) अपराध किए जाने की तारीख ;
(ग) रिपोर्ट या परिवाद की तारीख ;
(घ ) परिवादी का (यदि कोई हो) नाम ;
(ङ) अभियुक्त का नाम, उसके माता-पिता का नाम और उसका निवास ;
(च) वह् अपराध जिसका परिवाद किया गया है और वह अपराध जो साबित हुआ
है (यदि कोई हो), और धारा 260 की उपधारा (1) के खंड (i), खंड (11) या (iv) के अधीन आने वाले मामलों में उस
संपत्ति का मूल्य जिसके बारे में अपराध किया गया है;
(छ) अभियुक्त का अभिवाक् और उसकी परीक्षा (यदि कोई हो);
(ज) निष्कर्ष
(झ) दंडादेश या अन्य अन्तिम आदेश :
(ब) कार्यवाही समाप्त होने की तारीख ।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 264 | Section 264 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 264 in
Hindi ] –
संक्षेपत: विचारित
मामलों में निर्णय-
संक्षेपत: विचारित प्रत्येक ऐसे मामले में, जिसमें अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन
नहीं करता है,
मजिस्ट्रेट साक्ष्य का सारांश
और निष्कर्ष के कारणों का संक्षिप्त कथन देते हुए निर्णय अभिलिखित करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 265 | Section 265 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 265 in
Hindi ] –
अभिलेख और निर्णय
की भाषा-
(1) ऐसा प्रत्येक अभिलेख और निर्णय न्यायालय की भाषा में लिखा
जाएगा।
(2) उच्च न्यायालय संक्षेपतः विचारण करने के लिए सशक्त किए गए
किसी मजिस्ट्रेट को प्राधिकृत कर सकता है कि वह पूर्वोक्त अभिलेख या निर्णय या
दोनों उस अधिकारी से तैयार कराए जो मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा इस निमित्त
नियुक्त किया गया है और इस प्रकार तैयार किया गया अभिलेख या निर्णय ऐसे मजिस्ट्रेट
द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 266 | Section 266 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 266 in
Hindi ] –
परिभाषाएं-
इस अध्याय में,
(क) “निरुद्ध” के अन्तर्गत निवारक निरोध के लिए
उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन निरुद्ध भी है;
(ख) “कारागार
के अन्तर्गत निम्नलिखित भी हैं, –
(i) कोई ऐसा स्थान जिसे राज्य सरकार ने, साधारण या विशेष आदेश द्वारा अतिरिक्त
जेल घोषित किया है ;
(ii) कोई सुधारालय, बोटल-संस्था या इसी प्रकार की अन्य संस्था।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 267 | Section 267 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 267 in
Hindi ] –
बन्दियों को हाजिर
कराने की अपेक्षा करने की शक्ति–
(1) जब कभी इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के दौरान
किसी दंड न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि,
(क) कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध व्यक्ति को किसी अपराध के आरोप
का उत्तर देने के लिए या उसके विरुद्ध किन्हीं कार्यवाहियों के प्रयोजन के लिए
न्यायालय के समक्ष लाया जाना चाहिए, अथवा
(ख) न्याय के उद्देश्यों के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे व्यक्ति की
साक्षी के रूप में परीक्षा की जाए,
तब वह न्यायालय, कारागार के भारसाधक अधिकारी से यह अपेक्षा करने वाला आदेश दे सकता
है कि वह ऐसे व्यक्ति को, यथास्थिति, आरोप का उत्तर देने के लिए या ऐसी
कार्यवाहियों के प्रयोजन के लिए या साक्ष्य देने के लिए न्यायालय के समक्ष पेश
करे।
(2) जहां उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता है, वहां वह कारागार के भारसाधक अधिकारी
को तब तक भेजा नहीं जाएगा या उसके द्वारा उस पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी
जब तक वह ऐसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित न हो, जिसके अधीनस्थ वह मजिस्ट्रेट है।
(3) उपधारा (2) के
अधीन प्रतिहस्ताक्षरित के लिए पेश किए गए प्रत्येक आदेश के साथ ऐसे तथ्यों का, जिनसे मजिस्ट्रेट की राय में आदेश
आवश्यक हो गया है. एक विवरण होगा और वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष वह पेश किया गया है उस
विवरण पर विचार करने के पश्चात् आदेश पर प्रतिहस्ताक्षर करने से इनकार कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 268 | Section 268 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 268 in
Hindi ] –
धारा 267 के प्रवर्तन से कतिपय व्यक्तियों को
अपवर्जित करने की राज्य सरकार की शक्ति–
(1) राज्य सरकार, उपधारा
(2) में विनिर्दिष्ट बातों को ध्यान में
रखते हुए, किसी समय, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकती है कि किसी व्यक्ति
को या किसी वर्ग के व्यक्तियों को उस कारागार से नहीं हटाया जाएगा जिसमें उसे या
उन्हें परिरुद्ध या निरुद्ध किया गया है, और तब, जब तक
ऐसा आदेश प्रवृत्त रहे, धारा 267 के अधीन दिया गया कोई आदेश, चाहे वह राज्य सरकार के आदेश के पूर्व
किया गया हो या उसके पश्चात्, ऐसे
व्यक्ति या ऐसे वर्ग के व्यक्तियों के बारे में प्रभावी न होगा।
(2) उपधारा (1) के
अधीन कोई आदेश देने के पूर्व, राज्य
सरकार निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेगी, अर्थात् :
(क) उस अपराध का स्वरूप जिसके लिए, या वे आधार, जिन
पर, उस व्यक्ति को या उस वर्ग के
व्यक्तियों को कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध करने का आदेश दिया गया है।
(ख) यदि उस व्यक्ति को या उस वर्ग के व्यक्तियों को कारागार से
हटाने की अनुज्ञा दी जाए तो लोक-व्यवस्था में विघ्न की संभाव्यता:
(ग) लोक हित, साधारणतः।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 269 | Section 269 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 269 in
Hindi ] –
कारागार के
भारसाधक अधिकारी का कतिपय आकस्मिकताओं में आदेश को कार्यान्वित न करना-
जहां वह व्यक्ति, जिसके बारे में धारा 267 के अधीन कोई आदेश दिया गया है
(क) बीमारी या अंगशैथिल्य के कारण कारागार से हटाए जाने के योग्य
नहीं है ; अथवा
(ख) विचारण के लिए सुपुर्दगी के अधीन है या विचारण के लंबित रहने तक
के लिए या प्रारंभिक अन्वेषण तक के लिए प्रतिप्रेषणाधीन है : अथवा
(ग) इतनी अवधि के लिए अभिरक्षा में है जितनी आदेश का अनुपालन करने
के लिए और उस कारागार में जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध है, उसे वापस ले आने के लिए अपेक्षित समय
के समाप्त होने के पूर्व समाप्त होती है ; अथवा
(घ) ऐसा व्यक्ति है जिसे धारा 268 के अधीन राज्य सरकार द्वारा दिया गया कोई आदेश लागू होता है, वहां कारागार का भारसाधक अधिकारी
न्यायालय के आदेश को कार्यान्वित नहीं करेगा और ऐसा न करने के कारणों का विवरण
न्यायालय को भेजेगा:
परन्तु जहां ऐसे व्यक्ति से किसी ऐसे स्थान पर, जो कारागार से पचीस किलोमीटर से अधिक
दर नहीं है. साक्ष्य देने के लिए हाजिर होने की अपेक्षा की जाती है, वहां कारागार के भारसाधक अधिकारी के
ऐसा न करने का कारण खंड (ख) में वर्णित कारण नहीं होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 270 | Section 270 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 270 in
Hindi ] –
बन्दी का न्यायालय
में अभिरक्षा में लाया जाना—
धारा 269 के
उपबंधों के अधीन रहते हुए, कारागार
का भारसाधक अधिकारी, धारा 267 की उपधारा (1) के अधीन दिए गए और जहाँ आवश्यक है, वहां उसकी उपधारा (2) के अधीन सम्यक् रूप से
प्रतिहस्ताक्षरित आदेश के परिदान पर, आदेश में नामित्त व्यक्ति को ऐसे न्यायालय में, जिसमें उनकी हाजिरी अपेक्षित है, भिजवाएगा जिससे वह आदेश में उल्लिखित
समय पर वहाँ उपस्थित हो सके, और उसे
न्यायालय में या उसके पास अभिरक्षा में तब तक रखवाएगा जब तक उसकी परीक्षा न कर ली
जाए या जब तक न्यायालय उसे उस कारागार को, जिसमें वह परिरुद्ध या निरुद्ध था, वापस ले जाए जाने के लिए प्राधिकृत न करे
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 271 | Section 271 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 271 in
Hindi ] –
कारागार में
साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने की शक्ति–
कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध किसी व्यक्ति को साक्षी के
रूप में परीक्षा के लिए धारा 284 के अधीन कमीशन जारी करने की न्यायालय की शक्ति पर इस अध्याय के
उपबंधों का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा; और अध्याय 23 के भाग
(ख) के उपबंध कारागार में ऐसे किसी व्यक्ति की कमीशन पर परीक्षा के संबंध में वैसे
ही लागू होंगे जैसे वे किसी अन्य व्यक्ति की कमीशन पर परीक्षा के संबंध में लागू
होते हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 272 | Section 272 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 272 in
Hindi ] –
न्यायालयों की
भाषा-
राज्य सरकार यह अवधारित कर सकती है कि इस संहिता के
प्रयोजनों के लिए राज्य के अन्दर उच्च न्यायालय से भिन्न प्रत्येक न्यायालय की कौन
सी भाषा होगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 273 | Section 273 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 273 in
Hindi ] –
साक्ष्य का
अभियुक्त की उपस्थिति में लिया जाना—
अभिव्यक्त रूप से जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, विचारण या अन्य कार्यवाही के अनुक्रम
में लिया गया सब साक्ष्य अभियुक्त की उपस्थिति में या जब उसे वैयक्तिक हाजिरी से
अभिमुक्त कर दिया गया है तब उसके प्लीडर की उपस्थिति में लिया जाएगा:
परन्तु जहां अठारह वर्ष से कम आयु की स्त्री का, जिससे बलात्संग या किसी अन्य लैंगिक
अपराध के किए जाने का अभिकथन किया गया है, साक्ष्य अभिलिखित किया जाना है, वहां न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसी स्त्री का अभियुक्त से
सामना न हो और साथ ही अभियुक्त की प्रतिपरीक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करते हुए
समुचित उपाय कर सकेगा।]
स्पष्टीकरण-इस धारा में “अभियुक्त’ के अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति भी है जिसकी
बाबत अध्याय 8
के अधीन कोई कार्यवाही इस
संहिता के अधीन प्रारंभ की जा चुकी है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 274 | Section 274 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 274 in
Hindi ] –
समन-मामलों और जांचों में अभिलेख–
(1) मजिस्ट्रेट के समक्ष विचारित सब समन-मामलों में, धारा 145 से धारा 148 तक की धाराओं के अधीन (जिनके अन्तर्गत
ये दोनों धाराएं भी हैं) सब जांचों में, और विचारण के अनुक्रम की कार्यवाहियों से भिन्न धारा 446 के अधीन सब कार्यवाहियों में, मजिस्ट्रेट जैसे-जैसे प्रत्येक साक्षी
की परीक्षा होती जाती है, वैसे-वैसे
उसके साक्ष्य के सारांश का ज्ञापन न्यायालय की भाषा में तैयार करेगा:
परन्तु यदि मजिस्ट्रेट ऐसा ज्ञापन स्वयं तैयार करने में
असमर्थ है तो वह अपनी असमर्थता के कारणों को अभिलिखित करने के पश्चात् ऐसे ज्ञापन
को खुले न्यायालय में स्वयं बोलकर लिखित रूप में तैयार कराएगा।
(2) ऐसे ज्ञापन पर मजिस्ट्रेट हस्ताक्षर करेगा और वह अभिलेख का
भाग होगा
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 275 | Section 275 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 275 in
Hindi ] –
वारण्ट-मामलों में अभिलेख–
(1) मजिस्ट्रेट के समक्ष विचारित सब वारंट-मामलों में प्रत्येक
साक्षी का साक्ष्य जैसे-जैसे उसकी परीक्षा होती जाती है, वैसे-वैसे या तो स्वयं मजिस्ट्रेट
द्वारा लिखा जाएगा या खुले न्यायालय में उसके द्वारा बोलकर लिखवाया जाएगा या जहां
वह किसी शारीरिक या अन्य असमर्थता के कारण ऐसा करने में असमर्थ है, वहां उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त
न्यायालय के किसी अधिकारी द्वारा उसके निदेशन और अधीक्षण में लिखा जाएगा :
परंतु इस उपधारा के अधीन साक्षी का साक्ष्य उस अपराध के
अभियुक्त व्यक्ति के अधिवक्ता की उपस्थिति में श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों
द्वारा भी अभिलिखित किया जा सकेगा।]
(2) जहाँ मजिस्ट्रेट साक्ष्य लिखवाए वहां वह यह प्रमाणपत्र
अभिलिखित करेगा कि साक्ष्य उपधारा (1) में निर्दिष्ट कारणों से स्वयं उसके द्वारा नहीं लिखा जा सका।
(3) ऐसा साक्ष्य मामूली तौर पर वृत्तांत के रूप में अभिलिखित
किया जाएगा किन्तु मजिस्ट्रेट स्वविवेकानुसार, ऐसे साक्ष्य के किसी भाग को प्रश्नोत्तर के रूप में लिख या लिखवा
सकता है।
(4) ऐसे लिखे गए साक्ष्य पर मजिस्ट्रेट हस्ताक्षर करेगा और वह
अभिलेख का भाग होगा।
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