Saturday, 6 June 2020

दण्‍ड प्रक्रिया संहिता 276 to 300


दण्‍ड प्रक्रिया संहिता की धारा 276 |  Section 276 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 276 in Hindi ] –

सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण में अभिलेख

(1) सेशन न्यायालय के समक्ष सब विचारणों में प्रत्येक साक्षी का साक्ष्य, जैसे-जैसे उसकी परीक्षा होती जाती है, वैसे-वैसे या तो स्वयं पीठासीन न्यायाधीश द्वारा लिखा जाएगा या खुले न्यायालय में उसके द्वारा बोलकर लिखवाया जाएगा या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त न्यायालय के किसी अधिकारी द्वारा उसके निदेशन और अधीक्षण में लिखा जाएगा।
[(2) ऐसा साक्ष्य मामूली तौर पर वृत्तांत के रूप में लिखा जाएगा किन्तु पीठासीन न्यायाधीश स्वविवेकानुसार ऐसे साक्ष्य के किसी भाग को प्रश्नोत्तर के रूप में लिख सकता है या लिखवा सकता है।]
(3) ऐसे लिखे गए साक्ष्य पर पीठासीन न्यायाधीश हस्ताक्षर करेगा और वह अभिलेख का भाग होगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 277 |  Section 277 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 277 in Hindi ] –

साक्ष्य के अभिलेख की भाषा

प्रत्येक मामले में जहां साक्ष्य धारा 275 या धारा 276 के अधीन लिखा जाता है वहां
(क) यदि साक्षी न्यायालय की भाषा में साक्ष्य देता है तो उसे उसी भाषा में लिखा जाएगा;
(ख) यदि वह किसी अन्य भाषा में साक्ष्य देता है तो उसे, यदि साक्ष्य हो तो, उसी भाषा में लिखा जा सकेगा और यदि ऐसा करना साध्य न हो तो जैसे-जैसे साक्षी की परीक्षा होती जाती है, वैसे-वैसे साक्ष्य का न्यायालय की भाषा में सही अनुवाद तैयार किया जाएगा, उस पर मजिस्ट्रेट या पीठासीन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे और वह अभिलेख का भाग होगा;
(ग) उस दशा में जिसमें साक्ष्य खंड (ख) के अधीन न्यायालय की भाषा से भिन्न किसी भाषा में लिखा जाए, न्यायालय की भाषा में उसका सही अनुवाद यथासाध्य शीन तैयार किया जाएगा, उस पर मजिस्ट्रेट या पीठासीन न्यायाधीश हस्ताक्षर करेगा और वह अभिलेख का भाग होगा :
परन्तु जब खंड (ख) के अधीन साक्ष्य अंग्रेजी में लिखा जाता है और न्यायालय की भाषा में उसके अनुवाद की किसी पक्षकार द्वारा अपेक्षा नहीं की जाती है तो न्यायालय ऐसे अनुवाद से अभिमुक्ति दे सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 278 |  Section 278 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 278 in Hindi ] –

जब ऐसा साक्ष्य पूरा हो जाता है तब उसके संबंध में प्रक्रिया

(1) जैसे-जैसे प्रत्येक साक्षी का साक्ष्य जो धारा 275 या धारा 276 के अधीन लिया जाए, पूरा होता जाता है, वैसे-वैसे वह, यदि अभियुक्त हाजिर हो तो उसकी, या यदि वह प्लीडर द्वारा हाजिर हो तो उसके प्लीडर की उपस्थिति में साक्षी को पढ़कर सुनाया जाएगा और यदि आवश्यक हो तो शुद्ध किया जाएगा।
(2) यदि साक्षी साक्ष्य के किसी भाग की शुद्धता से उस समय इनकार करता है जब वह उसे पड़कर सुनाया जाता है तो मजिस्ट्रेट या पीठासीन न्यायाधीश साक्ष्य को शुद्ध करने के बजाय उस पर साक्षी द्वारा उस बाबत की गई आपत्ति का ज्ञापन लिख सकता है और उसमें ऐसी टिप्पणियां जोड़ देगा जैसी वह आवश्यक समझे।
(3) यदि साक्ष्य का अभिलेख उस भाषा से भिन्न भाषा में है जिसमें वह दिया गया है और साक्षी उस भाषा को नहीं समझता है तो, उसे ऐसे अभिलेख का भाषान्तर उस भाषा में जिसमें वह दिया गया था अथवा उस भाषा में जिसे वह समझता हो, सुनाया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 279 |  Section 279 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 279 in Hindi ] –

अभियुक्त या उसके प्लीडर को साक्ष्य का भाषान्तर सुनाया जाना

(1) जब कभी कोई साक्ष्य ऐसी भाषा में दिया जाए जिसे अभियुक्त नहीं समझता है और वह न्यायालय में स्वयं उपस्थित है तब खुले न्यायालय में उसे उस भाषा में उसका भाषान्तर सुनाया जाएगा जिसे वह समझता है।
(2) यदि वह प्लीडर द्वारा हाजिर हो और साक्ष्य न्यायालय की भाषा से भिन्न और प्लीडर द्वारा न समझी जाने वाली भाषा में दिया जाता है तो उसका भाषान्तर ऐसे प्लीडर को न्यायालय की भाषा में सुनाया जाएगा।
(3) जब दस्तावेजें यथा रीति सबूत के प्रयोजन के लिए पेश की जाती हैं तब यह न्यायालय के स्वविवेक पर निर्भर करेगा कि वह उनमें से उतने का भाषान्तर सुनाए जितना आवश्यक प्रतीत हो

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 280 |  Section 280 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 280 in Hindi ] –

साक्षी की भावभंगी के बारे में टिप्पणिया-

जब पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट साक्षी का साक्ष्य अभिलिखित कर लेता है तब वह उस साक्षी की परीक्षा किए जाते समय उसकी भावभंगी के बारे में ऐसी टिप्पणियां भी अभिलिखित करेगा (यदि कोई हों), जो वह तात्त्विक समझता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 281 |  Section 281 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 281 in Hindi ] –

अभियुक्त की परीक्षा का अभिलेख

(1) जब कभी अभियुक्त की परीक्षा किसी महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है तो वह मजिस्ट्रेट अभियुक्त की परीक्षा के सारांश का ज्ञापन न्यायालय की भाषा में तैयार करेगा और ऐसे ज्ञापन पर मजिस्ट्रेट हस्ताक्षर करेगा और वह अभिलेख का भाग होगा।
(2) जब कभी अभियुक्त की परीक्षा महानगर मजिस्ट्रेट से भिन्न किसी मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय द्वारा की जाती है तब उससे पूछे गए प्रत्येक प्रश्न और उसके द्वारा दिए गए प्रत्येक उत्तर हित ऐसी सब परीक्षा स्वयं पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा या जहां वह किसी शारीरिक या अन्य असमर्थता के कारण ऐसा करने में असमर्थ है, वहां उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त न्यायालय के किसी अधिकारी द्वारा उसके निदेशन और अधीक्षण में पूरे तौर पर अभिलिखित की जाएंगी।
(3) अभिलेख, यदि साध्य हो तो, उस भाषा में होगा जिसमें अभियुक्त की परीक्षा की जाती है या यदि यह साध्य न हो तो न्यायालय की भाषा में होगा।
(4) अभिलेख अभियुक्त को दिखा दिया जाएगा या उसे पढ़ कर सुना दिया जाएगा या यदि वह भाषा को नहीं समझता है जिसमें वह लिखा गया है तो उसका भाषान्तर उसे उस भाषा में, जिसे वह समझता है. सुनाया जाएगा और वह अपने उत्तरों का स्पष्टीकरण करने या उनमें कोई बात जोड़ने के लिए स्वतंत्र होगा।
(5) तब उस पर अभियुक्त और मजिस्ट्रेट या पीठासीन न्यायाधीश हस्ताक्षर करेंगे और मजिस्ट्रेट या पीठासीन न्यायाधीश अपने हस्ताक्षर से प्रमाणित करेगा कि परीक्षा उसकी उपस्थिति में की गई थी और उसने उसे सुना था और अभिलेख में अभियुक्त द्वारा किए गए कथन का पूर्ण और सही वर्णन है।
(6) इस धारा की कोई बात संक्षिप्त विचारण के अनुक्रम में अभियुक्त की परीक्षा को लागू होने वाली न समझी जाएगी।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 282 |  Section 282 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 282 in Hindi ] –

दुभाषिया ठीक-ठीक भाषान्तर करने के लिए आबद्ध होगा

जब किसी साक्ष्य या कथन के भाषान्तर के लिए दुभाषिए की सेवा की किसी दंड न्यायालय द्वारा अपेक्षा की जाती है तब वह दुभाषिया ऐसे साक्ष्य या कथन का ठीक भाषान्तर करने के लिए आबद्ध होगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 283 |  Section 283 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 283 in Hindi ] –

उच्च न्यायालय में अभिलेख-

प्रत्येक उच्च न्यायालय, साधारण नियम द्वारा ऐसी रीति विहित कर सकता है जिससे उन मामलों में साक्षियों के साक्ष्य को और अभियुक्त की परीक्षा को लिखा जाएगा जो उसके समक्ष आते हैं, और ऐसे साक्ष्य और परीक्षा को ऐसे नियम के अनुसार लिखा जाएगा

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 284 |  Section 284 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 284 in Hindi ] –

कब साक्षियों को हाजिर होने से अभिमुक्ति दी जाए और कमीशन जारी किया जाएगा

(1) जब कभी इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के अनुक्रम में, न्यायालय या मजिस्ट्रेट को प्रतीत होता है कि न्याय के उद्देश्यों के लिए यह आवश्यक है कि किसी साक्षी की परीक्षा की जाए और ऐसे साक्षी की हाजिरी इतने विलम्ब, व्यय या असुविधा के बिना, जितनी मामले की परिस्थितियों में अनुचित होगी, नहीं कराई जा सकती है तब न्यायालय या मजिस्ट्रेट ऐसी हाजिरी से अभिमुक्ति दे सकता है और साक्षी की परीक्षा की जाने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार कमीशन जारी कर सकता है :
परन्तु जहां न्याय के उद्देश्यों के लिए भारत के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल या किसी संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक की साक्षी के रूप में परीक्षा करना आवश्यक है वहां ऐसे साक्षी की परीक्षा करने के लिए कमीशन जारी किया जाएगा।
(2) न्यायालय अभियोजन के किसी साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करते समय यह निदेश दे सकता है कि प्लीडर की फीस सहित ऐसी रकम जो न्यायालय अभियुक्त के व्ययों की पूर्ति के उचित समझे, अभियोजन द्वारा दी जाए।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 285 |  Section 285 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 285 in Hindi ] –

कमीशन किसको जारी किया जाएगा

(1) यदि साक्षी उन राज्यक्षेत्रों के अन्दर है, जिन पर इस संहिता का विस्तार है, तो कमीशन, यथास्थिति, उस महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्दिष्ट होगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर ऐसा साक्षी मिल सकता है।
(2) यदि साक्षी भारत में है किन्तु ऐसे राज्य या ऐसे किसी क्षेत्र में है जिस पर इस संहिता का विस्तार नहीं है तो कमीशन ऐसे न्यायालय या अधिकारी को निर्दिष्ट होगा जिसे केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
(3) यदि साक्षी भारत से बाहर के देश या स्थान में है और ऐसे देश या स्थान की सरकार से केन्द्रीय सरकार ने आपराधिक मामलों के संबंध में साक्षियों का साक्ष्य लेने के लिए ठहराव कर रखे है तो कमीशन ऐसे प्ररूप में जारी किया जाएगा, ऐसे न्यायालय या अधिकारी को निर्दिष्ट होगा और पारेषित किए जाने के लिए ऐसे प्राधिकारी को भेजा जाएगा जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विहित करे।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 286 |  Section 286 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 286 in Hindi ] –

कमीशनों का निष्पादन

कमीशन प्राप्त होने पर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अथवा ऐसा महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट जिसे वह इस निमित्त नियुक्त करे, साक्षी को अपने समक्ष आने के लिए समन करेगा अथवा उस स्थान को जाएगा जहां साक्षी है और उसका साक्ष्य उसी रीति से लिखेगा और इस प्रयोजन के लिए उन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो इस संहिता के अधीन वारंट-मामलों के विचारण के लिए हैं।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 287 |  Section 287 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 287 in Hindi ] –

पक्षकार साक्षियों की परीक्षा कर सकेंगे

(1) इस संहिता के अधीन किसी ऐसी कार्यवाही के पक्षकार, जिसमें कमीशन जारी किया गया है, अपने-अपने ऐसे लिखित परिप्रश्न भेज सकते हैं जिन्हें कमीशन का निदेश देने वाला न्यायालय या मजिस्ट्रेट विवाद्यक से सुसंगत समझता है और उस मजिस्ट्रेट, न्यायालय या अधिकारी के लिए, जिसे कमीशन निर्दिष्ट किया जाता है या जिसे उसके निष्पादन का कर्तव्य प्रत्यायोजित किया जाता है. यह विधिपूर्ण होगा कि वह ऐसे परिप्रश्नों के आधार पर साक्षी की परीक्षा करे।
(2) कोई ऐसा पक्षकार ऐसे मजिस्ट्रेट, न्यायालय या अधिकारी के समक्ष प्लीडर द्वारा, या यदि अभिरक्षा में नहीं है तो स्वयं हाजिर हो सकता है और उक्त साक्षी की (यथास्थिति) परीक्षा, प्रति-परीक्षा और पुनः परीक्षा कर सकता है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 288 |  Section 288 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 288 in Hindi ] –

कमीशन का लौटाया जाना

(1) धारा 284 के अधीन जारी किए गए किसी कमीशन के सम्यक रूप से निष्पादित किए जाने के पश्चात् वह उसके अधीन परीक्षित साक्षियों के अभिसाक्ष्य सहित उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को, जिसने कमीशन जारी किया था, लौटाया जाएगा; और वह कमीशन, उससे संबद्ध विवरणी और अभिसाक्ष्य सब उचित समयों पर पक्षकारों के निरीक्षण के लिए प्राय होंगे, और सब न्यायसंगत अपवादों के अधीन रहते हुए, किसी पक्षकार द्वारा मामले में साक्ष्य पड़े जा सकेंगे और अभिलेख का भाग होंगे।
(2) यदि ऐसे लिया गया कोई अभिसाक्ष्य, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 33 द्वारा विहित शर्तों को पूरा करता है, तो वह किसी अन्य न्यायालय के समक्ष भी मामले के किसी पश्चात्वर्ती प्रक्रम में साक्ष्य में लिया जा सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 289 |  Section 289 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 289 in Hindi ] –

कार्यवाही का स्थगन

प्रत्येक मामले में, जिसमें धारा 284 के अधीन कमीशन जारी किया गया है, जांच विचारण या अन्य कार्यवाही ऐसे विनिर्दिष्ट समय तक के लिए, जो कमीशन के निष्पादन और लौटाए जाने के लिए उचित रूप से पर्याप्त है, स्थगित की जा सकती है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 290 |  Section 290 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 290 in Hindi ] –

कार्यवाही का स्थगन

(1) धारा 286 के उपबंध और धारा 287 और धारा 288 के उतने भाग के उपबंध, जितना कमीशन का निष्पादन किए जाने और उसके लौटाए जाने से संबंधित है, इसमें इसके पश्चात् वर्णित किन्हीं न्यायालयों, न्यायाधीशों या मजिस्ट्रेटों द्वारा जारी किए गए कमीशनों के बारे में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे धारा 284 के अधीन जारी किए गए कमीशनों को लागू होते है। (2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट न्यायालय, न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट निम्नलिखित हैं
(क) भारत के ऐसे क्षेत्र के अन्दर, जिस पर इस संहिता का विस्तार नहीं है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला ऐसा न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे;
(ख) भारत से बाहर के किसी ऐसे देश या स्थान में, जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला और उस देश या स्थान में प्रवृत्त विधि के अधीन आपराधिक मामलों के संबंध में साक्षियों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने का प्राधिकार रखने वाला न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट।

ड प्रक्रिया संहिता की धारा 291 |  Section 291 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 291 in Hindi ] –

चिकित्सीय साक्षी का अभिसाक्ष्य

(1) अभियुक्त की उपस्थिति में मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया और अनुप्रमाणित किया गया या इस अध्याय के अधीन कमीशन पर लिया गया, सिविल सर्जन या अन्य चिकित्सीय साक्षी का अभिसाक्ष्य इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य में दिया जा सकेगा, यद्यपि अभिसाक्षी को साक्षी के तौर पर नहीं बुलाया गया है।
(2) यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे किसी अभिसाक्षी को समन कर सकता है और उसके अभिसाक्ष्य की विषयवस्तु के बारे में उसकी परीक्षा कर सकता है और अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पर वैसा करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 292 |  Section 292 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 292 in Hindi ] –

टकसाल के अधिकारियों का साक्ष्य

(1) कोई दस्तावेज, जो, यथास्थिति, किसी टकसाल या नोट छपाई मुद्राणालय के या सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस के (जिसके अन्तर्गत स्टांप और लेखन सामग्री नियंत्रक का कार्यालय भी है) या न्याय संबंधी विभाग या न्यायालयिक प्रयोगशाला प्रभाग के ऐसे अधिकारी की या प्रश्नगत दस्तावेजों के सरकारी परीक्षक या प्रश्नगत दस्तावेजों के राज्य परीक्षक की] जिसे केन्द्रीय सरकार अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, इस संहिता के अधीन किसी कार्यवाही के दौरान परीक्षा और रिपोर्ट के लिए सम्यक्त रूप से उसे भेजी गई किसी सामग्री या चीज के बारे में स्वहस्ताक्षरित रिपोर्ट होनी तात्पर्यित है. इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के तौर पर उपयोग में लाई जा सकेगी, यद्यपि ऐसे अधिकारी को साक्षी के तौर पर नहीं बुलाया गया है।
(2) यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे अधिकारी को समन कर सकता है और उसकी रिपोर्ट की विषयवस्तु के बारे में उसकी परीक्षा कर सकता है :
परन्तु ऐसा कोई अधिकारी किन्हीं ऐसे अभिलेखों को पेश करने के लिए समन नहीं किया जाएगा जिन पर रिपोर्ट आधारित है।
(3) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 123 और 124 के उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि ऐसा कोई अधिकारी [यथास्थिति, किसी टकसाल या नोट छपाई मुद्राणालय या सिक्योरिटी प्रिंटिंग प्रेस या न्याय संबंधी विभाग के महाप्रबंधक या किसी अन्य भारसाधक अधिकारी या न्यायालयिक प्रयोगशाला के भारसाधक किसी अधिकारी या प्रश्नगत दस्तावेज संगठन के सरकारी परीक्षक या प्रश्नगत दस्तावेज संगठन के राज्य परीक्षक की] अनुज्ञा के बिना,
(क) ऐसे अप्रकाशित शासकीय अभिलेखों से, जिन पर रिपोर्ट आधारित है, प्राप्त कोई साक्ष्य देने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जाएगा; अथवा
(ख) किसी सामग्री या चीज की परीक्षा के दौरान उसके द्वारा किए गए परीक्षण के स्वरूप या विशिष्टियों को प्रकट करने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जाएगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 293 |  Section 293 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 293 in Hindi ] –

कतिपय सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट

(1) कोई दस्तावेज, जो किसी सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञ की, जिसे यह धारा लागू होती है, इस संहिता के अधीन किसी कार्यवाही के दौरान परीक्षा या विश्लेषण और रिपोर्ट के लिए सम्यक् रूप से उसे भेजी गई किसी सामग्री या चीज के बारे में स्वहस्ताक्षरित रिपोर्ट होनी तात्पर्यित है, इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के तौर पर उपयोग में लाई जा सकेगी।
(2) यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह ऐसे विशेषज्ञ को समन कर सकता है और उसकी रिपोर्ट की विषयवस्तु के बारे में उसकी परीक्षा कर सकेगा।
(3) जहाँ ऐसे किसी विशेषज्ञ को न्यायालय द्वारा समन किया जाता है और वह स्वयं हाजिर होने में असमर्थ है वहां, उस दशा के सिवाय जिससे न्यायालय ने उसे स्वयं हाजिर होने के लिए स्पष्ट रूप से निदेश दिया है, वह अपने साथ काम करने वाले किसी जिम्मेदार अधिकारी को न्यायालय में हाजिर होने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकता है यदि वह अधिकारी मामले के तथ्यों से अवगत है तथा न्यायालय में उसकी ओर से समाधानप्रद रूप में अभिसाक्ष्य दे सकता है।
(4) यह धारा निम्नलिखित सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञों को लागू होती है अर्थात् :
(क) सरकार का कोई रासायनिक परीक्षक या सहायक रासायनिक परीक्षक ;
(ख) मुख्य विस्फोटक नियंत्रक];
(ग) अंगुली-छाप कार्यालय निदेशक ;
(घ) निदेशक, हाफकीन संस्थान, मुम्बई :
(ङ) किसी केन्द्रीय न्याय संबंधी विज्ञान प्रयोगशाला या किसी राज्य न्याय संबंधी विज्ञान प्रयोगशाला का निदेशक [उप-(निदेशक या सहायक निदेशक] ;
(च) सरकारी सीरम विज्ञानी।
*(छ) कोई अन्य सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञ, जो इस प्रयोजन के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किया गया हो।]

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 294 |  Section 294 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 294 in Hindi ] –

कुछ दस्तावेजों का औपचारिक सबूत आवश्यक न होना

(1) जहां अभियोजन या अभियुक्त द्वारा किसी न्यायालय के समक्ष कोई दस्तावेज फाइल की गई है वहाँ ऐसी प्रत्येक दस्तावेज की विशिष्टियां एक सूची में सम्मिलित की जाएंगी और, यथास्थिति, अभियोजन या अभियुक्त अथवा अभियोजन या अभियुक्त के प्लीडर से, यदि कोई हों, ऐसी प्रत्येक दस्तावेज का असली होना स्वीकार या इनकार करने की अपेक्षा की जाएगी।
(2) दस्तावेजों की सूची ऐसे प्ररूप में होगी जो राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाए।
(3) जहां किसी दस्तावेज का असली होना विवादग्रस्त नहीं है वहाँ ऐसी दस्तावेज उस व्यक्ति के जिसके द्वारा हस्ताक्षरित होना तात्पर्यित है, हस्ताक्षर के सबूत के बिना इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य में पड़ी जा सकेगी:
परन्तु न्यायालय, स्वविवेकानुसार, यह अपेक्षा कर सकता है कि ऐसे हस्ताक्षर साबित किए जाएं

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 295 |  Section 295 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 295 in Hindi ] –

लोक सेवकों के आचरण के सबूत के बारे में शपथपत्र-

जब किसी न्यायालय में इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के दौरान कोई आवेदन किया जाता है और उसमें किसी लोक सेवक के बारे में अभिकथन किए जाते हैं तब आवेदक आवेदन में अभिकथित तथ्यों का शपथपत्र द्वारा साक्ष्य दे सकता है और यदि न्यायालय ठीक समझे तो वह आदेश दे सकता है कि ऐसे तथ्यों से संबंधित साक्ष्य इस प्रकार दिया जाए।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 296 |  Section 296 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 296 in Hindi ] –

शपथपत्र पर औपचारिक साक्ष्य-

(1) किसी भी व्यक्ति का ऐसा साक्ष्य जो औपचारिक है शपथपत्र द्वारा दिया जा सकता है और, सब न्यायसंगत अपवादों के अधीन रहते हुए इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य में पड़ा जा सकता है।
(2) यदि न्यायालय ठीक समझे तो वह किसी व्यक्ति को समन कर सकता है और उसके शपथपत्र में अन्तर्विष्ट तथ्यों के बारे में उसकी परीक्षा कर सकता है किन्तु अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पर ऐसा करेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 297 |  Section 297 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 297 in Hindi ] –

 प्राधिकारी जिनके समक्ष शपथपत्रों पर शपथ ग्रहण किया जा सकेगा

(1) इस संहिता के अधीन किसी न्यायालय के समक्ष उपयोग में लाए जाने वाले शपथपत्रों पर शपथ ग्रह्ण या प्रतिज्ञान निम्नलिखित के समक्ष किया जा सकता है
‘[(क) कोई न्यायाधीश या कोई न्यायिक या कार्यपालक मजिस्ट्रेट ; अथवा];
(ख) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा नियुक्त कोई शपथ कमिश्नर ; अथवा
(ग) नोटरी अधिनियम, 1952 (1952 का 53) के अधीन नियुक्त कोई नोटरी।
(2) शपथपत्र ऐसे तथ्यों तक, जिन्हें अभिसाक्षी स्वयं अपनी जानकारी से साबित करने के लिए समर्थ है और ऐसे तथ्यों तक जिनके सत्य होने का विश्वास करने के लिए उसके पास उचित आधार है. सीमित होंगे और उसमें उनका कथन अलग-अलग होगा तथा विश्वास के आधारों की दशा में अभिसाक्षी ऐसे विश्वास के आधारों का स्पष्ट कथन करेगा।
(3) न्यायालय शपथपत्र में किसी कलंकात्मक और विसंगत बात के काटे जाने या संशोधित किए जाने का आदेश दे सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 298 |  Section 298 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 298 in Hindi ] –

पूर्व दोषसिद्धि या दोषमुक्ति कैसे साबित की जाए-

पूर्व दोषसिद्धि या दोषमुक्ति को, इस संहिता के अधीन किसी, जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में, किसी अन्य ऐसे ढंग के अतिरिक्त, जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा उपबंधित है,
(क) ऐसे उद्धरण द्वारा, जिसका उस न्यायालय के, जिसमें ऐसी दोषसिद्धि या दोषमुक्ति हई. अभिलेखों को अभिरक्षा में रखने वाले अधिकारी के हस्ताक्षर द्वारा प्रमाणित उस दंडादेश या आदेश की प्रतिलिपि होना है ; अथवा
(ख) दोषसिद्धि की दशा में, या तो ऐसे प्रमाणपत्र द्वारा, जो उस जेल के भारसाधक अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित है जिसमें दंड या उसका कोई भाग भोगा गया या सुपुर्दगी के उस वारंट को पेश करके, जिनके अधीन दंड भोगा गया था,
और इन दशाओं में से प्रत्येक में इस बात के साक्ष्य के साथ कि अभियुक्त व्यक्ति वही व्यक्ति है जो ऐसे दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया गया, साबित किया जा सकेगा।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 299 |  Section 299 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 299 in Hindi ] –

पूर्व दोषसिद्धि या दोषमुक्ति कैसे साबित की जाए-

(1) यदि यह साबित कर दिया जाता है कि अभियुक्त व्यक्ति फरार हो गया है और उसके तुरन्त गिरफ्तार किए जाने की कोई सम्भावना नहीं है तो उस अपराध के लिए, जिसका परिवाद किया गया है, उस व्यक्ति का विचारण करने के लिए या विचारण के लिए सुपुर्द करने के लिए सक्षम] न्यायालय अभियोजन की ओर से पेश किए गए साक्षियों की (यदि कोई हो), उसकी अनुपस्थिति में परीक्षा कर सकता है और उनका अभिसाक्ष्य अभिलिखित कर सकता है और ऐसा कोई अभिसाक्ष्य उस व्यक्ति के गिरफ्तार होने पर, उस अपराध की जांच या विचारण में, जिसका उस पर आरोप है, उसके विरुद्ध साक्ष्य में दिया जा सकता है यदि अभिसाक्षी मर गया है, या साक्ष्य देने के लिए असमर्थ है, या मिल नहीं सकता है या उसकी हाजिरी इतने बिलम्ब, व्यय या असुविधा के बिना, जितनी कि मामले की परिस्थितियों में अनुचित होगी, नहीं कराई जा सकती है।
(2) यदि यह प्रतीत होता है कि मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय कोई अपराध किसी अज्ञात व्यक्ति या किन्हीं अज्ञात व्यक्तियों द्वारा किया गया है तो उच्च न्यायालय या सेशन न्यायाधीश निदेश दे सकता है कि कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जांच करे और किन्हीं साक्षियों की जो अपराध के बारे में साक्ष्य दे सकते हों, परीक्षा करे और ऐसे लिया गया कोई अभिसाक्ष्य, किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जिस पर अपराध का तत्पश्चात् अभियोग लगाया जाता है, साक्ष्य में दिया जा सकता है यदि अभिसाक्षी मर जाता है या साक्ष्य देने के लिए असमर्थ हो जाता है या भारत की सीमाओं से परे है।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 300 |  Section 300 in The Code Of Criminal Procedure

[ CrPC Sec. 300 in Hindi ] –

 एक बार दोषसिद्ध या दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का उसी अपराध के लिए विचारण न किया जाना

(1) जिस व्यक्ति का किसी अपराध के लिए सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा एक बार विचारण किया जा चुका है और जो ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया जा चुका है, वह जब तक ऐसी दोषसिद्धि या दोषमुक्ति प्रवृत्त रहती है तब तक न तो उसी अपराध के लिए विचारण का भागी होगा और न उन्हीं तथ्यों पर किसी ऐसे अन्य अपराध के लिए विचारण का भागी होगा जिसके लिए उसके विरुद्ध लगाए गए आरोप से भिन्न आरोप धारा 221 की उपधारा (1) के अधीन लगाया जा सकता था या जिसके लिए वह उसकी उपधारा (2) के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकता था।
(2) किसी अपराध के लिए दोषमुक्त या दोषसिद्ध किए गए किसी व्यक्ति का विचारण, तत्पश्चात् राज्य सरकार की सम्मति से किसी ऐसे भिन्न अपराध के लिए किया जा सकता है जिसके लिए पूर्वगामी विचारण में उसके विरुद्ध धारा 220 की उपधारा (1) के अधीन पृथक् आरोप लगाया जा सकता था।
(3) जो व्यक्ति किसी ऐसे कार्य से बनने वाली किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जो ऐसे परिणाम पैदा करता है जो उस कार्य से मिलकर उस अपराध से, जिसके लिए वह दोषसिद्ध हुआ, भिन्न कोई अपराध बनाते हैं, उसका ऐसे अन्तिम वर्णित अपराध के लिए तत्पश्चात् विचारण किया जा सकता है, यदि उस समय जब वह दोषसिद्ध किया गया था वे परिणाम हुए नहीं थे या उनका होना न्यायालय को ज्ञात नहीं था।
(4) जो व्यक्ति किन्हीं कार्यों से बनने वाले किसी अपराध के लिए दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया गया है, उस पर ऐसी दोषमुक्ति या दोषसिद्धि के होने पर भी, उन्हीं कार्यों से बनने वाले और उसके द्वारा किए गए किसी अन्य अपराध के लिए तत्पश्चात् आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है. यदि वह न्यायालय, जिसके द्वारा पहले उसका विचारण किया गया था, उस अपराध के विचारण के लिए सक्षम नहीं था जिसके लिए बाद में उस पर आरोप लगाया जाता है।
(5) धारा 258 के अधीन उन्मोचित किए गए व्यक्ति का उसी अपराध के लिए पुनः विचारण उस न्यायालय की, जिसके द्वारा वह उन्मोचित किया गया था, अन्य किसी ऐसे न्यायालय की, जिसके प्रथम वर्णित न्यायालय अधीनस्थ है. सम्मति के बिना नहीं किया जाएगा।
(6) इस धारा की कोई बात साधारण खंड अधिनियम, 1897 (1897 का 10) की धारा 26 के या इस संहिता की धारा 188 के उपबंधों पर प्रभाव न डालेगी।
स्पष्टीकरणपरिवाद का खारिज किया जाना या अभियुक्त का उन्मोचन इस धारा के प्रयोजन के लिए दोषमुक्ति नहीं है।
दृष्टांत
(क) क का विचारण सेवक की हैसियत में चोरी करने के आरोप पर किया जाता है और वह दोषमुक्त कर दिया जाता है। जब तक दोषमुक्ति प्रवृत्त रहे, उस पर सेवक के रूप में चोरी के लिए या उन्हीं तथ्यों पर केवल चोरी के लिए या आपराधिक न्यासभंग के लिए बाद में आरोप नहीं लगाया जा सकता है।
(ख) घोर उपहति कारित करने के लिए क का विचारण किया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है। क्षत व्यक्ति तत्पश्चात् मर जाता है। आपराधिक मानववध के लिए क का पुनः विचारण किया जा सकेगा।
(ग) ख के आपराधिक मानववध के लिए क पर सेशन न्यायालय के समक्ष आरोप लगाया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । ख की हत्या के लिए क का उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् विचारण नहीं किया जा सकेगा।
(घ ) ख को स्वेच्छा से उपहति कारित करने के लिए क पर प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप लगाया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । ख को स्वेच्छा से घोर उपहति कारित करने के लिए क का उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् विचारण नहीं किया जा सकेगा जब तक कि मामला इस धारा की उपधारा (3) के अन्दर न आए।
(ङ) ख के शरीर से सम्पत्ति की चोरी करने के लिए क पर द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप लगाया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् क पर लूट का आरोप लगाया जा सकेगा और उसका विचारण किया जा सकेगा।
(च) घ को लूटने के लिए क, ख और ग पर प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप लगाया जाता है और वे दोषसिद्ध किए जाते हैं। डकैती के लिए उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् क, ख और ग पर आरोप लगाया जा सकेगा और उनका विचारण किया जा सकेगा।

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