दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 301 | Section 301 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 301 in
Hindi ] –
लोक अभियोजकों
द्वारा हाजिरी-
(1) किसी मामले का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक
किसी न्यायालय में, जिसमें
वह मामला जांच,
विवरण या अपील के अधीन है, किसी लिखित प्राधिकार के बिना हाजिर
हो सकता है और अभिवचन कर सकता है।
(2) किसी ऐसे मामले में यदि कोई प्राइवेट व्यक्ति किसी न्यायालय
में किसी व्यक्ति को अभियोजित करने के लिए किसी प्लीडर को अनुदेश देता है तो मामले
का भारसाधक लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक अभियोजन का संचालन करेगा और ऐसे
अनुदिष्ट प्लीडर उसमें लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक के निदेश के अधीन कार्य
करेगा और न्यायालय की अनुज्ञा से उस मामले में साक्ष्य की समाप्ति पर लिखित रूप
में तर्क पेश कर सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 302 | Section 302 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 302 in
Hindi ] –
अभियोजन का संचालन
करने की अनुज्ञा–
(1) किसी मामले की जांच या विचारण करने वाला कोई मजिस्ट्रेट
निरीक्षक की पंक्ति से नीचे के पुलिस अधिकारी से भिन्न किसी भी व्यक्ति द्वारा
अभियोजन के संचालित किए जाने की अनुज्ञा दे सकता है किन्तु महाधिववक्ता या सरकारी
अधिववक्ता या लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक से भिन्न कोई व्यक्ति ऐसी अनुज्ञा
के बिना ऐसा करने का हकदार न होगा:
परन्तु यदि पुलिस के किसी अधिकारी ने उस अपराध के अन्वेषण
में, जिसके बारे में अभियुक्त का अभियोजन
किया जा रहा है,
भाग लिया है तो अभियोजन का
संचालन करने की उसे अनुज्ञा न दी जाएगी।
(2) अभियोजन का संचालन करने वाला कोई व्यक्ति स्वयं या प्लीडर
द्वारा ऐसा कर सकता
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 303 | Section 303 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 303 in
Hindi ] –
जिस व्यक्ति के
विरुद्ध कार्यवाही संस्थित की गई है उसका प्रतिरक्षा कराने का अधिकार-
जो व्यक्ति दंड न्यायालय के समक्ष अपराध के लिए अभियुक्त है
या जिसके विरुद्ध इस संहिता के अधीन कार्यवाही संस्थित की गई है, उसका यह अधिकार होगा कि उसकी पसंद के
प्लीडर द्वारा उसकी प्रतिरक्षा की जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 304 | Section 304 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 304 in
Hindi ] –
कुछ मामलों में
अभियुक्त को राज्य के व्यय पर विधिक सहायता–
(1) जहां सेशन न्यायालय के समक्ष किसी विचारण में, अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किसी प्लीडर
द्वारा नहीं किया जाता है और जहां न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त के
पास किसी प्लीडर को नियुक्त करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है, वहां न्यायालय उसकी प्रतिरक्षा के लिए
राज्य के व्यय पर प्लीडर उपलब्ध करेगा।
(2) राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से उच्च न्यायालय—
(क) उपधारा (1) के अधीन
प्रतिरक्षा के लिए प्लीडरों के चयन के ढंग का,
(ख) ऐसे प्लीडरों को न्यायालयों द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का.
(ग) ऐसे प्लीडरों को सरकार द्वारा संदेय फीसों का और साधारणतः
उपधारा (1)
के प्रयोजनों को कार्यान्वित
करने के लिए,
उपबंध करने वाले नियम बना सकता
है।
(3) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकती है कि उस
तारीख से, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, उपधारा (1) और (2) के उपबंध राज्य के अन्य न्यायालयों के
समक्ष किसी वर्ग के विचारणों के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे सेशन
न्यायालय के समक्ष विचारणों के संबंध में लागू होते हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 305 | Section 305 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 305 in
Hindi ] –
प्रक्रिया, जब निगम या रजिस्ट्रीकृत सोसाइटी
अभियुक्त है—
(1) इस धारा में “निगम से कोई निगमित कम्पनी या अन्य निगमित निकाय अभिप्रेत है, और इसके अंतर्गत सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण
अधिनियम,
1860 (1860 का 21) के अधीन रजिस्ट्रीकृत सोसाइटी भी है।
(2) जहां कोई निगम किसी जांच या विचारण में अभियुक्त व्यक्ति या
अभियुक्त व्यक्तियों में से एक है वहां वह ऐसी जांच या विचारण के प्रयोजनार्थ एक
प्रतिनिधि नियुक्त कर सकता है और ऐसी नियुक्ति निगम की मुद्रा के अधीन करना आवश्यक
नहीं होगा।
(3) जहां निगम का कोई प्रतिनिधि हाजिर होता है, वहां इस संहिता की इस अपेक्षा का कि
कोई बात अभियुक्त की हाजिरी में की जाएगी या अभियुक्त को पढ़कर सुनाई जाएगी या
बताई जाएगी या समझाई जाएगी, इस
अपेक्षा के रूप में अर्थ लगाया जाएगा कि वह बात प्रतिनिधि की हाजिरी में की जाएगी, प्रतिनिधि को पढ़कर सुनाई जाएगी या
बताई जाएगी या समझाई जाएगी और किसी ऐसी अपेक्षा का कि अभियुक्त की परीक्षा की
जाएगी, इस अपेक्षा के रूप में अर्थ लगाया
जाएगा कि प्रतिनिधि की परीक्षा की जाएगी।
(4) जहां निगम का कोई प्रतिनिधि हाजिर नहीं होता है, वहां कोई ऐसी अपेक्षा, जो उपधारा (3) में निर्दिष्ट है. लागू नहीं होगी।
(5) जहाँ निगम के प्रबंध निदेशक द्वारा या किसी ऐसे व्यक्ति
द्वारा (वह चाहे जिस नाम से पुकारा जाता हो) जो निगम के कार्यकलाप का प्रबंध करता
है या प्रबंध करने वाले व्यक्तियों में से एक है, हस्ताक्षर किया गया तात्पर्यित इस भाव का लिखित कथन फाइल
किया जाता है कि कथन में नामित व्यक्ति को इस धारा के प्रयोजनों के लिए निगम के
प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया है, वहां न्यायालय, जब
तक इसके प्रतिकूल साबित नहीं किया जाता है, यह उपधारणा करेगा कि ऐसा व्यक्ति इस प्रकार नियुक्त किया गया है।
(6) यदि यह प्रश्न उठता है कि न्यायालय के समक्ष किसी जांच या
विचारण में निगम के प्रतिनिधि के रूप में हाजिर होने वाला कोई व्यक्ति ऐसा
प्रतिनिधि है या नहीं, तो उस
प्रश्न का अवधारण न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 | Section 306 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 306 in
Hindi ] –
सह-अपराधी को
क्षमा-दान–
(1) किसी ऐसे अपराध से, जिसे यह धारा लागू होती है, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में संबद्ध या संसर्गित समझे जाने वाले
किसी व्यक्ति का साक्ष्य अभिप्राप्त करने की दृष्टि से, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर
मजिस्ट्रेट अपराध के अन्वेषण या जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में, और अपराध की जांच या विचारण करने वाला
प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में उस व्यक्ति को इस शर्त
पर क्षमा-दान कर सकता है कि वह अपराध के संबंध में और उसके किए जाने में चाहे कर्ता
या दुप्रेरक के रूप में संबद्ध प्रत्येक अन्य व्यक्ति के संबंध में सब
परिस्थितियों का, जिनकी
उसे जानकारी हो,
पूर्ण और सत्य प्रकटन कर दे।
(2) यह धारा निम्नलिखित को लागू होती है :
(क) अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा या दंड विधि संशोधन अधिनियम, 1952 (1952 का 46) के अधीन नियुक्त विशेष न्यायाधीश के
न्यायालय द्वारा विचारणीय कोई अपराध ;
(ख) ऐसे कारावास से, जिसकी
अवधि सात वर्ष तक की हो या अधिक कठोर दंड से दंडनीय कोई अपराध ।
(3) प्रत्येक मजिस्ट्रेट, जो उपधारा (1) के अधीन
क्षमा-दान करता है,
(क) ऐसा करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा;
(ख) यह अभिलिखित करेगा कि क्षमा-दान उस व्यक्ति द्वारा, जिसको कि वह किया गया था स्वीकार कर
लिया गया था या नहीं, और
अभियुक्त द्वारा आवेदन किए जाने पर उसे ऐसे अभिलेख की प्रतिलिपि निःशुल्क देगा।
(4) उपधारा (1) के
अधीन क्षमा-दान स्वीकार करने वाले
(क) प्रत्येक व्यक्ति की अपराध का संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट के
न्यायालय में और पश्चात्वर्ती विचारण में यदि कोई हो, साक्षी के रूप में परीक्षा की जाएगी।
(ख) प्रत्येक व्यक्ति को, जब तक कि वह पहले से ही जमानत पर न हो, विचारण खत्म होने तक अभिरक्षा में निरुद्ध
रखा जाएगा।
(5) जहां किसी व्यक्ति ने उपधारा (1) के अधीन किया गया क्षमा-दान स्वीकार
कर लिया है और उसकी उपधारा (4) के
अधीन परीक्षा की जा चुकी है, वहां
अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट, मामले में कोई अतिरिक्त जांच किए बिना,
(क) मामले को
(i) यदि अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है या यदि
संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट है तो, उस न्यायालय को सुपुर्द कर देगा;
(ii) यदि अपराध अनन्यत: दंड विधि संशोधन अधिनियम, 1952 (1952 का 46) के अधीन नियुक्त विशेष न्यायाधीशों के
न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो उस न्यायालय को सुपुर्द कर देगा;
(ख) किसी अन्य दशा में, मामला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के हवाले करेगा जो उसका विचारण
स्वयं करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 307 | Section 307 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 307 in
Hindi ] –
क्षमा-दान का
निदेश देने की शक्ति –
मामले की सुपुर्दगी के पश्चात् किसी समय किन्तु निर्णय दिए
जाने के पूर्व वह न्यायालय जिसे मामला सुपुर्द किया जाता है किसी ऐसे अपराध से
प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सम्बद्ध या संसर्गित समझे जाने वाले किसी व्यक्ति का
साक्ष्य विचारण में अभिप्राप्त करने की दृष्टि से उस व्यक्ति को उसी शर्त पर
क्षमा-दान कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 308 | Section 308 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 308 in
Hindi ] –
क्षमा की शर्तों
का पालन न करने वाले व्यक्ति का विचारण–
(1) जहां ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसने धारा 306 या धारा 307 के अधीन क्षमा-दान स्वीकार कर लिया है, लोक अभियोजक प्रमाणित करता है कि उसकी
राय में ऐसे व्यक्ति ने या तो किसी अत्यावश्यक बात को जानबूझकर छिपा कर या मिथ्या
साक्ष्य देकर उस शर्त का पालन नहीं किया है जिस पर क्षमा-दान किया गया था वहां ऐसे
व्यक्ति का विचारण उस अपराध के लिए, जिसके बारे में ऐसे क्षमा-दान किया गया था या किसी अन्य अपराध के
लिए, जिसका वह उस विषय के संबंध में दोषी
प्रतीत होता है,
और मिथ्या साक्ष्य देने के लिए
भी अपराध के लिए भी विचारण किया जा सकता है:
परन्तु ऐसे व्यक्ति का विचारण अन्य अभियुक्तों में से किसी
के साथ संयुक्तत: नहीं किया जाएगा:
परन्तु यह और कि मिथ्या साक्ष्य देने के अपराध के लिए ऐसे
व्यक्ति का विचारण उच्च न्यायालय की मंजूरी के बिना नहीं किया जाएगा और धारा 195 या धारा 340 की कोई बात उस अपराध को लागू न होगी।
(2) क्षमा-दान स्वीकार करने वाले ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया और
धारा 164 के अधीन किसी मजिस्ट्रेट द्वारा या
धारा 306 की उपधारा (4) के अधीन किसी न्यायालय द्वारा
अभिलिखित कोई कथन ऐसे विचारण में उसके विरुद्ध साक्ष्य में दिया जा सकता है।
(3) ऐसे विचारण में अभियुक्त यह अभिवचन करने का हकदार होगा कि
उसने उन शतों का पालन कर दिया है जिन पर उसे क्षमादान दिया गया था, और तब यह साबित करना अभियोजन का काम
होगा कि ऐसी शर्तों का पालन नहीं किया गया है।
(4) ऐसे विचारण के समय न्यायालय
(क) यदि वह सेशन न्यायालय है तो आरोप अभियुक्त को पढ़कर सुनाए जाने
और समझाए जाने के पूर्व ;
(ख) यदि वह मजिस्ट्रेट का न्यायालय है तो अभियोजन के साक्षियों का
साक्ष्य लिए जाने के पूर्व, अभियुक्त
से पूछेगा कि क्या वह यह अभिवचन करता है कि उसने उन शर्तों का पालन किया है जिन पर
उसे क्षमा-दान दिया गया था।
(5) यदि अभियुक्त ऐसा अभिवचन करता है तो न्यायालय उस अभिवाक् को
अभिलिखित करेगा और विचारण के लिए अग्रसर होगा और वह मामले में निर्णय देने के
पूर्व इस विषय में निष्कर्ष निकालेगा कि अभियुक्त ने क्षमा की शर्तों का पालन किया
है या नहीं;
और यदि यह निष्कर्ष निकलता है कि उसने ऐसा पालन किया है तो
वह इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी, दोषमुक्ति का निर्णय देगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 309 | Section 309 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 309 in
Hindi ] –
कार्यवाही को
मुल्तवी या स्थगित करने की शक्ति-
(1) प्रत्येक जांच या विचारण में, कार्यवाहियां सभी हाजिर साक्षियों की परीक्षा हो जाने तक
दिन-प्रतिदन जारी रखी जाएंगी, जब
तक कि ऐसे कारणों से, जो
लेखबद्ध किए जाएंगे, न्यायालय
उन्हें अगले दिन से परे स्थगित करना आवश्यक न समझे:
परन्तु जब जांच या विचारण भारतीय दंड संहिता की धारा 376, धारा 376क, धारा 376ख, धारा 376ग या धारा 376 के अधीन किसी अपराध से संबंधित है, तब जांच या विचारण, यथासंभव आरोप पत्र फाइल किए जाने की
तारीख से दो मास की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा।]
(2) यदि न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान करने या विचारण के
प्रारंभ होने के पश्चात् यह आवश्यक या उचित समझता है कि किसी जांच या विचारण का
प्रारंभ करना मुल्तवी कर दिया जाए या उसे स्थगित कर दिया जाए तो वह समय-समय पर ऐसे
कारणों से,
जो लेखबद्ध किए जाएंगे, ऐसे निबन्धनों पर, जैसे वह ठीक समझे, उतने समय के लिए जितना वह उचित समझे
उसे मुल्तबी या स्थगित कर सकता है और यदि अभियुक्त अभिरक्षा में है तो उसे वारण्ट
द्वारा प्रतिप्रेषित कर सकता है:
परन्तु कोई मजिस्ट्रेट किसी अभियुक्त को इस धारा के अधीन एक
समय में पन्द्रह दिन से अधिक की अवधि के लिए अभिरक्षा में प्रतिप्रेषित न करेगा:
परन्तु यह और कि जब साक्षी हाजिर हों तब उनकी परीक्षा किए
बिना स्थगन या मुल्तवी करने की मंजूरी विशेष कारणों के बिना, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, नहीं दी जाएगी:
परन्तु यह भी कि कोई स्थगन केवल इस प्रयोजन के लिए नहीं
मंजूर किया जाएगा कि वह अभियुक्त व्यक्ति को उस पर अधिरोपित किए जाने के लिए
प्रस्थापित दंडादेश के विरुद्ध हेतुक दर्शित करने में समर्थ बनाए।]
[परंतु यह भी कि
(क) कोई भी स्थगन किसी पक्षकार के अनुरोध पर तभी मंजूर किया जाएगा, जब परिस्थितियां उस पक्षकार के
नियंत्रण से परे हों;
(ख) यह तथ्य कि पक्षकार का प्लीडर किसी अन्य न्यायालय में व्यस्त
है. स्थगन के लिए आधार नहीं होगा;
(ग) जहां साक्षी न्यायालय में हाजिर है किंतु पक्षकार या उसका
प्लीडर हाजिर नहीं है या पक्षकार या उसका प्लीडर न्यायालय में हाजिर तो है, किंतु साक्षी की परीक्षा या प्रतिपरीक्षा
करने के लिए तैयार नहीं है वहां यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह साक्षी का कथन
अभिलिखित कर सकेगा और ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जो, यथास्थिति, साक्षी की मुख्य परीक्षा या
प्रतिपरीक्षा से छूट देने के लिए ठीक समझे।]
स्पष्टीकरण 1 – यदि यह संदेह करने के लिए पर्याप्त
साक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है कि हो सकता है कि अभियुक्त ने अपराध किया है और यह
संभाव्य प्रतीत होता है कि प्रतिप्रेषण करने पर अतिरिक्त साक्ष्य प्राप्त किया जा
सकता है तो यह प्रतिप्रेषण के लिए एक उचित कारण होगा।
स्पष्टीकरण 2- जिन निबंधनों पर कोई स्थगन या मुल्तवी
करना मंजूर किया जा सकता है, उनके
अन्तर्गत समुचित मामलों में अभियोजन या अभियुक्त द्वारा खर्चों का दिया जाना भी
है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 310 | Section 310 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 310 in
Hindi ] –
स्थानीय निरीक्षण–
(1) कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के किसी
प्रक्रम में,
पक्षकारों को सम्यक् सूचना देने
के पश्चात् किसी स्थान में, जिसमें
अपराध का किया जाना अभिकथित है, या
किसी अन्य स्थान में जा सकता है और उसका निरीक्षण कर सकता है, जिसके बारे में उसकी राय है कि उसका
अवलोकन ऐसी जांच या विचारण में दिए गए साक्ष्य का उचित विवेचन करने के प्रयोजन से
आवश्यक है और ऐसे निरीक्षण में देखे गए किन्हीं सुसंगत तथ्यों का ज्ञापन, अनावश्यक विलम्ब के बिना, लेखबद्ध करेगा।
(2) ऐसा ज्ञापन मामले के अभिलेख का भाग होगा और यदि अभियोजक, परिवादी या अभियुक्त या मामले का अन्य
कोई पक्षकार ऐसा चाहे तो उसे ज्ञापन की प्रतिलिपि निःशुल्क दी जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 311 | Section 311 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 311 in
Hindi ] –
आवश्यक साक्षी को
समन करने या उपस्थित व्यक्ति की परीक्षा करने की शक्ति-
कोई न्यायालय इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के किसी
प्रक्रम में किसी व्यक्ति को साक्षी के तौर पर समन कर सकता है या किसी ऐसे व्यक्ति
की, जो हाजिर हो, यद्यपि वह साक्षी के रूप में समन न किया
गया हो, परीक्षा कर सकता है, किसी व्यक्ति को, जिसकी पहले परीक्षा की जा चुकी है
पुनः बुला सकता है और उसकी पुनः परीक्षा कर सकता है; और यदि न्यायालय को मामले के न्यायसंगत विनिश्चय के लिए किसी
ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य आवश्यक प्रतीत होता है तो वह ऐसे व्यक्ति को समन करेगा और
उसकी परीक्षा करेगा या उसे पुनः बुलाएगा और उसकी पुनः परीक्षा करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 312 | Section 312 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 312 in
Hindi ] –
परिवादियों और
साक्षियों के व्यय-
राज्य सरकार द्वारा बनाए गए किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, यदि कोई दंड न्यायालय ठीक समझता है तो
वह ऐसे न्यायालय के समक्ष इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही के प्रयोजन
से हाजिर होने वाले किसी परिवादी या साक्षी के उचित व्ययों के राज्य सरकार द्वारा
दिए जाने के लिए आदेश दे सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 | Section 313 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 313 in
Hindi ] –
अभियुक्त की
परीक्षा करने की शक्ति–
(1) प्रत्येक जांच या विचारण में, इस प्रयोजन से कि अभियुक्त अपने विरुद्ध साक्ष्य में प्रकट
होने वाली किन्हीं परिस्थितियों का स्वयं स्पष्टीकरण कर सके, न्यायालय
(क) किसी प्रक्रम में, अभियुक्त को पहले से चेतावनी दिए बिना, उससे ऐसे प्रश्न कर सकता है जो
न्यायालय आवश्यक समझे
(ख) अभियोजन के साक्षियों की परीक्षा किए जाने के पश्चात् और
अभियुक्त से अपनी प्रतिरक्षा करने की अपेक्षा किए जाने के पूर्व उस मामले के बारे
में उससे साधारणतया प्रश्न करेगा:
परन्तु किसी समन-मामले में, जहां न्यायालय ने अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति
दे दी है, वहां वह खंड (ख) के अधीन उसकी परीक्षा
से भी अभिमुक्ति दे सकता है।
(2) जब अभियुक्त की उपधारा (1) के अधीन परीक्षा की जाती है तब उसे कोई शपथ न दिलाई जाएगी।
(3) अभियुक्त ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने से इनकार करने से या
उसके मिथ्या उत्तर देने से दंडनीय न हो जाएगा।
(4) अभियुक्त द्वारा दिए गए उत्तरों पर उस जांच या विचारण में
विचार किया जा सकता है और किसी अन्य ऐसे अपराध की. जिसका उसके द्वारा किया जाना
दर्शाने की उन उत्तरों की प्रवृत्ति हो, किसी अन्य जांच या विचारण में ऐसे उत्तरों को उसके पक्ष में या
उसके विरुद्ध साक्ष्य के तौर पर रखा जा सकता है।
(5 ) उन सुसंगत प्रश्नो को जिसे अभियुक्त से किया जाना है तैयार
करने में न्यायलय अभियोजक तथा प्रतिरक्षा पक्ष के अधिवक्ता की सहायता से कर सकेगा और न्यायालय इस धारा के
पर्याप्त अनुपालन के रूप में अभियुक्त द्वारा लिखित कथन फाइल किए जाने की अनुज्ञा
दे सकेगा।]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 314 | Section 314 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 314 in
Hindi ] –
मौखिक बहस और बहस
का ज्ञापन-
(1) कार्यवाही का कोई पक्षकार, अपने साक्ष्य की समाप्ति के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र संक्षिप्त
मौखिक बहस कर सकता है और अपनी मौखिक बहस, यदि कोई हो, पूरी
करने के पूर्व,
न्यायालय को एक ज्ञापन दे सकता
है जिसमें उसके पक्ष के समर्थन में तर्क संक्षेप में और सुभिन्न शीर्षकों में दिए
जाएंगे, और ऐसा प्रत्येक ज्ञापन अभिलेख का भाग
होगा।
(2) ऐसे प्रत्येक ज्ञापन की एक प्रतिलिपि उसी समय विरोधी पक्षकार
को दी जाएगी।
(3) कार्यवाही का कोई स्थगन लिखित बहस फाइल करने के प्रयोजन के
लिए तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक न्यायालय ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, ऐसा स्थगन मंजूर करना आवश्यक न समझे।
(4) यदि न्यायालय की यह राय है कि मौखिक बहस संक्षिप्त या सुसंगत
नहीं है तो वह ऐसी बसों को विनियमित कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 315 | Section 315 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 315 in
Hindi ] –
अभियुक्त व्यक्ति
का सक्षम साक्षी होना—
(1) कोई व्यक्ति, जो
किसी अपराध के लिए किसी दंड न्यायालय के समक्ष अभियुक्त है, प्रतिरक्षा के लिए सक्षम साक्षी होगा
और अपने विरुद्ध या उसी विचारण में उसके साथ आरोपित किसी व्यक्ति के विरुद्ध लगाए
गए आरोपों को नासाबित करने के लिए शपथ पर साक्ष्य दे सकता है :
परन्तु—
(क) वह स्वयं अपनी लिखित प्रार्थना के बिना साक्षी के रूप में न
बुलाया जाएगा,
(ख) उसका स्वयं साक्ष्य न देना पक्षकारों में से किसी के द्वारा या
न्यायालय द्वारा किसी टीका-टिप्पणी का विषय न बनाया जाएगा और न उसे उसके, या उसी विचारण में उसके साथ आरोपित
किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई उपधारणा ही की जाएगी।
(2) कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध किसी दंड न्यायालय में धारा 98 या धारा 107 या धारा 108 या धारा 109 या धारा 110 के अधीन या अध्याय 9 के अधीन या अध्याय 10 के भाग ख, भाग ग या भाग घ के अधीन कार्यवाही
संस्थित की जाती, ऐसी
कार्यवाही में अपने आपको साक्षी के रूप में पेश कर सकता है :
परन्तु धारा 108, धारा 109 या
धारा 110 के अधीन कार्यवाही में ऐसे व्यक्ति
द्वारा साक्ष्य न देना पक्षकारों में से किसी के द्वारा या न्यायालय के द्वारा
किसी टीका-टिप्पणी का विषय नहीं बनाया जाएगा और न उसे उसके या किसी अन्य व्यक्ति
के विरुद्ध जिसके विरुद्ध उसी जांच में ऐसे व्यक्ति के साथ कार्यवाही की गई है, कोई उपधारणा ही की जाएगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 316 | Section 316 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 316 in
Hindi ] –
प्रकटन उप्रेरित
करने के लिए किसी असर का काम में न लाया जाना—
धारा 306 और
307 में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, किसी वचन या धमकी द्वारा या अन्यथा
कोई असर अभियुक्त व्यक्ति पर इस उद्देश्य से नहीं डाला जाएगा कि उसे अपनी जानकारी
की किसी बात को प्रकट करने या न करने के लिए उप्रेरित किया जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 317 | Section 317 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 317 in
Hindi ] –
कुछ मामलों में
अभियुक्त की अनुपस्थिति में जांच और विचारण किए जाने के लिए उपबंध–
(1) इस संहिता के अधीन जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में यदि
न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट का उन कारणों से, जो अभिलिखित किए जाएंगे, समाधान हो जाता है कि न्यायालय के समक्ष अभियुक्त की वैयक्तिक
हाजिरी न्याय के हित में आवश्यक नहीं है या अभियुक्त न्यायालय की कार्यवाही में
बार-बार विघ्न डालता है तो, ऐसे
अभियुक्त का प्रतिनिधित्व प्लीडर द्वारा किए जाने की दशा में, वह न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट उसकी
हाजिरी से उसे अभिमुक्ति दे सकता है और उसकी अनुपस्थिति में ऐसी जांच या विचारण
करने के लिए अग्रसर हो सकता है और कार्यवाही के किसी पश्चात्वर्ती प्रक्रम में ऐसे
अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी का निदेश दे सकता है।
(2) यदि ऐसे किसी मामले में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व प्लीडर
द्वारा नहीं किया जा रहा है अथवा यदि न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट का यह विचार है कि
अभियुक्त की वैयक्तिक हाजिरी आवश्यक है तो, यदि वह ठीक समझे तो, उन कारणों से, जो
उसके द्वारा लेखबद्ध किए जाएंगे, वह
या तो ऐसी जांच या विचारण स्थगित कर सकता है या आदेश दे सकता है कि ऐसे अभियुक्त
का मामला अलग से लिया जाए या विचारित किया जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 318 | Section 318 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 318 in
Hindi ] –
प्रक्रियां जहां
अभियुक्त कार्यवाही नहीं समझता है-
यदि अभियुक्त विकृत-चित्त न होने पर भी ऐसा है कि उसे
कार्यवाही समझाई नहीं जा सकती तो न्यायालय जांच या विचारण में अग्रसर हो सकता है ; और उच्च न्यायालय से भिन्न न्यायालय
की दशा में,
यदि ऐसी कार्यवाही का परिणाम
दोषसिद्धि है,
तो कार्यवाही को मामले की
परिस्थितियों की रिपोर्ट के साथ उच्च न्यायालय भेज दिया जाएगा और उच्च न्यायालय उस
पर ऐसा आदेश देगा जैसा वह ठीक समझे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 319 | Section 319 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 319 in
Hindi ] –
अपराध के दोषी
प्रतीत होने वाले अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की शक्ति–
(1) जहाँ किसी अपराध की जांच या विचारण के दौरान साक्ष्य से यह
प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति ने, जो अभियुक्त नहीं है, कोई ऐसा अपराध किया है जिसके लिए ऐसे व्यक्ति का अभियुक्त के साथ
विचारण किया जा सकता है, वहाँ
न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध उस अपराध के लिए जिसका उसके द्वारा किया जाना
प्रतीत होता है,
कार्यवाही कर सकता है।
(2) जहाँ ऐसा व्यक्ति न्यायालय में हाजिर नहीं है वहां पूर्वोक्त
प्रयोजन के लिए उसे मामले की परिस्थितियों की अपेक्षानुसार, गिरफ्तार या समन किया जा सकता है।
(3) कोई व्यक्ति जो गिरफ्तार या समन न किए जाने पर भी न्यायालय
में हाजिर है,
ऐसे न्यायालय द्वारा उस अपराध
के लिए, जिसका उसके द्वारा किया जाना प्रतीत
होता है, जांच या विचारण के प्रयोजन के लिए
निरुद्ध किया जा सकता है। (4) जहाँ
न्यायालय किसी व्यक्ति के विरुद्ध उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करता है, वहां
(क) उस व्यक्ति के बारे में कार्यवाही फिर से प्रारंभ की जाएगी और
साक्षियों को फिर से सुना जाएगा;
(ख) खंड (क) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, मामले में ऐसे कार्यवाही की जा सकती
है, मानो वह व्यक्ति उस समय अभियुक्त
व्यक्ति था जब न्यायालय ने उस अपराध का संज्ञान किया था जिस पर जांच या विचारण
प्रारंभ किया गया था।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 | Section 320 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 320 in
Hindi ] –
अपराधों का शमन–
(1) नीचे दी गई सारणी के प्रथम दो स्तम्भों में विनिर्दिष्ट
भारतीय दंड संहिता, (1860 का
45) की धाराओं के अधीन दंडनीय अपराधों का
शमन उस सारणी के तृतीय स्तम्भ में उल्लिखित व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है:-
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 | Section 321 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 321 in
Hindi ] –
अभियोजन वापस लेना-
किसी मामले का भारसाधक कोई लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक
निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी समय किसी व्यक्ति के अभियोजन को या तो साधारणतः
या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के बारे में, जिनके लिए उस व्यक्ति का विचारण किया जा रहा है, न्यायालय की सम्मति से वापस ले सकता
है और ऐसे वापस लिए जाने पर
(क) यदि वह आरोप विरचित किए जाने के पहले किया जाता है तो अभियुक्त
ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में उन्मोचित कर दिया जाएगा;
(ख) यदि वह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात् या जब इस संहिता द्वारा
कोई आरोप अपेक्षित नहीं है. तब किया जाता है तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के बारे
में दोषमुक्त कर दिया जाएगा;
परन्तु जहां-
(i) ऐसा अपराध किसी ऐसी बात से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध है
जिस पर संघ को कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, अथवा
(ii) ऐसे अपराध का अन्वेषण दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस द्वारा
किया गया है,
अथवा
(iii) ऐसे अपराध में केन्द्रीय सरकार को किसी सम्पत्ति का
दुर्विनियोग,
नाश या नुकसान अन्तर्गस्त है, अथवा
(iv) ऐसा अपराध केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा
किया गया है,
जब वह अपने पदीय कर्तव्यों के
निर्वहन में कार्य कर रहा है या कार्य करना तात्पर्यित है, और मामले का भारसाधक अभियोजक
केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह जब तक केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे ऐसा करने की अनुज्ञा
नहीं दी जाती है, अभियोजन
को वापस लेने के लिए न्यायालय से उसकी सम्मति के लिए निवेदन नहीं करेगा तथा
न्यायालय अपनी सम्मति देने के पूर्व, अभियोजक को यह निदेश देगा कि वह अभियोजन को वापस लेने के लिए
केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुज्ञा उसके समक्ष पेश करे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 322 | Section 322 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 322 in
Hindi ] –
जिन मामलों का
निपटारा मजिस्ट्रेट नहीं कर सकता, उनमें प्रक्रिया–
(1) यदि किसी जिले में किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष अपराध की किसी
जांच या विचारण के दौरान उसे साक्ष्य ऐसा प्रतीत होता है कि उसके आधार पर यह
उपधारणा की जा सकती है कि
(क) उसे मामले का विचारण करने या विचारणार्थ सुपुर्द करने की
अधिकारिता नहीं है, अथवा
(ख) मामला ऐसा है जो जिले के किसी अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा विचारित
या विचारणार्थ सुपुर्द किया जाना चाहिए. अथवा
(ग) मामले का विचारण मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाना
चाहिए, तो वह कार्यवाही को रोक देगा और मामले
की ऐसी संक्षिप्त रिपोर्ट सहित, जिसमें
मामले का स्वरूप स्पष्ट किया गया है. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को या अधिकारिता
वाले अन्य ऐसे मजिस्ट्रेट को, जिसे
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट निर्दिष्ट करे, भेज देगा।
(2) यदि वह मजिस्ट्रेट, जिसे मामला भेजा गया है, ऐसा करने के लिए सशक्त है, तो वह उस मामले का विचारण स्वयं कर सकता है या उसे अपने अधीनस्थ
अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट को निर्देशित कर सकता है या अभियुक्त को विचारणार्थ
सुपुर्द कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 323 | Section 323 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 323 in
Hindi ] –
प्रक्रिया जब जांच
या विचारण के प्रारंभ के पश्चात् मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि मामला सुपुर्द किया
जाना चाहिए-
यदि किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष अपराध की किसी जांच या विचारण
में निर्णय पर हस्ताक्षर करने के पूर्व कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उसे यह
प्रतीत होता है कि मामला ऐसा है, जिसका
विचारण सेशन न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए, तो वह उसे इसमें इसके पूर्व अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन उस
न्यायालय को सुपुर्द कर देगा और तब अध्याय 18 के उपबंध ऐसी सुपुर्दगी को लागू होंगे
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 324 | Section 324 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 324 in
Hindi ] –
सिक्के, स्टाम्प विधि या सम्पत्ति के विरुद्ध
अपराधों के लिए तत्पूर्व दोषसिद्ध व्यक्तियों का विचारण–
(1) जहाँ कोई व्यक्ति भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन तीन वर्ष या अधिक की अवधि के
लिए कारावास से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध किए जा चुकने पर उन अध्यायों में से
किसी के अधीन तीन वर्ष या अधिक की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय किसी अपराध के
लिए पुनः अभियुक्त है, और उस
मजिस्ट्रेट का,
जिसके समक्ष मामला लंबित है, समाधान हो जाता है कि यह उपधारणा करने
के लिए आधार है कि ऐसे व्यक्ति ने अपराध किया है तो वह उस दशा के सिवाय विचारण के
लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा या सेशन न्यायालय के सुपुर्द किया
जाएगा, जब मजिस्ट्रेट मामले का विचारण करने
के लिए सक्षम है और उसकी यह राय है कि यदि अभियुक्त दोषसिद्ध किया गया तो वह स्वयं
उसे पर्याप्त दंड का आदेश दे सकता है।
(2) जब उपधारा (1) के
अधीन कोई व्यक्ति विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजा जाता है या सेशन
न्यायालय को सुपुर्द किया जाता है तब कोई अन्य व्यक्ति, जो उसी जांच या विचारण में उसके साथ
संयुक्ततः अभियुक्त है, वैसे ही
भेजा जाएगा या सुपुर्द किया जाएगा जब तक ऐसे अन्य व्यक्ति को मजिस्ट्रेट, यथास्थिति, धारा 239 या धारा 245 के अधीन उन्मोचित न कर दे।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 325 | Section 325 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 325 in
Hindi ] –
प्रक्रिया जब
मजिस्ट्रेट पर्याप्त कठोर दंड का आदेश नहीं दे सकता–
(1) जब कभी अभियोजन और अभियुक्त का साक्ष्य सुनने के पश्चात्
मजिस्ट्रेट की यह राय है कि अभियुक्त दोषी है और उसे उस प्रकार के दंड से भिन्न
प्रकार का दंड या उस दंड से अधिक कठोर दंड, जो वह मजिस्ट्रेट देने के लिए सशक्त है, दिया जाना चाहिए अथवा द्वितीय वर्ग
मजिस्ट्रेट होते हुए उसकी यह राय है कि अभियुक्त से धारा 106 के अधीन बंधपत्र निष्पादित करने की
अपेक्षा की जानी चाहिए तब वह अपनी राय अभिलिखित कर सकता है और कार्यवाही तथा
अभियुक्त को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को, जिसके वह अधीनस्थ हो, भेज सकता है।
(2) जब एक से अधिक अभियुक्तों का विचारण एक साथ किया जा रहा है
और मजिस्ट्रेट ऐसे अभियुक्तों में से किसी के बारे में उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करना आवश्यक समझता
है तब वह उन सभी अभियुक्तों को, जो
उसकी राय में दोषी हैं. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेज देगा।
(3) यदि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसके पास कार्यवाही भेजी जाती है, ठीक समझता है तो पक्षकारों की परीक्षा
कर सकता है और किसी साक्षी को, जो
पहले ही मामले में साक्ष्य दे चुका है, पुनः बुला सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है और कोई अतिरिक्त
साक्ष्य मांग सकता है और ले सकता है और मामले में ऐसा निर्णय, दंडादेश या आदेश देगा, जो बह ठीक समझता है और जो विधि के
अनुसार है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 326 | Section 326 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 326 in
Hindi ] –
भागत: एक
न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा और भागत: दूसरे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा
अभिलिखित साक्ष्य पर दोषसिद्धि या सुपुर्दी–
(1) जब कभी किसी जांच या विचारण में साक्ष्य को पूर्णतः या भागतः
सुनने और अभिलिखित करने के पश्चात् कोई अन्यायाधीश या मजिस्ट्रेट] उसमें अधिकारिता
का प्रयोग नहीं कर सकता है और कोई अन्य न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट], जिसे ऐसी अधिकारिता है और जो उसका
प्रयोग करता है,
उसका उत्तरवर्ती हो जाता है, तो ऐसा उत्तरवर्ती न्यायाधीश या
मजिस्ट्रेट] अपने पूर्ववर्ती द्वारा ऐसे अभिलिखित या भागतः अपने पूर्ववर्ती द्वारा
अभिलिखित और भागतः अपने द्वारा अभिलिखित साक्ष्य पर कार्य कर सकता है:
परन्तु यदि उत्तरवर्ती न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट] की यह राय
है कि साक्षियों में से किसी की जिसका साक्ष्य पहले ही अभिलिखित किया जा चुका है, अतिरिक्त परीक्षा करना न्याय के हित
में आवश्यक है तो वह किसी भी ऐसे साक्षी को पुनः समन कर सकता है और ऐसी अतिरिक्त
परीक्षा, प्रतिपरीक्षा और पुनःपरीक्षा के, यदि कोई हो, जैसी वह अनुज्ञात करे, पश्चात् वह साक्षी उन्मोचित कर दिया
जाएगा।
(2) जब कोई मामला एक न्यायाधीश से दूसरे न्यायाधीश को या एक
मजिस्ट्रेट से दूसरे मजिस्ट्रेट को] इस संहिता के उपबंधों के अधीन अंतरित किया
जाता है तब उपधारा (1) के अर्थ
में पूर्वकथित मजिस्ट्रेट के बारे में समझा जाएगा कि वह उसमें अधिकारिता का प्रयोग
नहीं कर सकता है और पश्चात्कथित मजिस्ट्रेट उसका उत्तरवर्ती हो गया है।
(3) इस धारा की कोई बात संक्षिप्त विचारणों को या उन मामलों को
लागू नहीं होती हैं जिनमें कार्यवाहियां धारा 322 के अधीन रोक दी गई है या जिसमें कार्यवाहियां वरिष्ठ
मजिस्ट्रेट को धारा 325 के
अधीन भेज दी गई हैं।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 327 | Section 327 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 327 in
Hindi ] –
न्यायालयों का
खुला होना-
(1)] वह स्थान, जिसमें
कोई दंड न्यायालय किसी अपराध की जांच या विचारण के प्रयोजन से बैठता है, खुला न्यायालय समझा जाएगा, जिसमें जनता साधारणतः प्रवेश कर सकेगी
जहां तक कि सुविधापूर्वक वे उसमें समा सके :
परन्तु यदि पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट ठीक समझता है तो
वह किसी विशिष्ट मामले की जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में आदेश दे सकता है कि
जनसाधारण या कोई विशेष व्यक्ति उस कमरे में या भवन में, जो न्यायालय द्वारा उपयोग में लाया जा
रहा है, न तो प्रवेश करेगा, न होगा और न रहेगा।
(2) उपधारा (1) में
किसी बात के होते हुए भी, भारतीय
दंड संहिता,
(1860 का 45) की धारा 376, धारा 376क, धारा 376ब, [धारा 376ग, धारा 376ष या
धारा 3768]
के अधीन बलात्संग या किसी अपराध
की जांच या उसका विचारण बंद कमरे में किया जाएगा:
परन्तु पीठासीन न्यायाधीश, यदि वह ठीक समझता है तो, या दोनों में से किसी पक्षकार द्वारा आवेदन किए जाने पर, किसी विशिष्ट व्यक्ति को, उस कमरे में या भवन में, जो न्यायालय द्वारा उपयोग में लाया जा
रहा है, प्रवेश करने, होने या रहने की अनुज्ञा दे सकता है :
‘[परंतु यह और कि बंद कमरे में विचारण यथासाध्य किसी महिला न्यायाधीश
या मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा।]
(3) जहाँ उपधारा (2) के अधीन कोई कार्यवाही की जाती है वहां किसी व्यक्ति के लिए किसी
ऐसी कार्यवाही के संबंध में किसी बात को न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना, मुद्रित या प्रकाशित करना विधिपूर्ण
नहीं होगा :]
परंतु बलात्संग के अपराध के संबंध में विचारण की
कार्यवाहियों के मुद्रण या प्रकाशन पर पाबंदी, पक्षकारों के नाम और पते की गोपनीयता को बनाए रखने के अध्यधीन हटाई
जा सकेगी।]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 328 | Section 328 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 328 in
Hindi ] –
अभियुक्त के पागल
होने की दशा में प्रक्रिया–
(1) जब जांच करने वाले मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण है
कि वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध जांच की जा रही है विकृतचित्त है और परिणामतः अपनी
प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तब मजिस्ट्रेट ऐसी चित्तविकृति के तथ्य की जांच
करेगा और ऐसे व्यक्ति की परीक्षा उस जिले के सिविल सर्जन या अन्य ऐसे चिकित्सक
अधिकारी द्वारा कराएगा, जिसे
राज्य सरकार निर्दिष्ट करे, और फिर
ऐसे सिविल सर्जन या अन्य अधिकारी की साक्षी के रूप में परीक्षा करेगा और उस
परीक्षा को लेखबद्ध करेगा।
(1क) यदि सिविल सर्जन इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त
विकृतचित्त है तो वह ऐसे व्यक्ति को देखभाल, उपचार और अवस्था के पूर्वानुमान के लिए मनश्चिकित्सक या रोग विषयक
मनोविज्ञानी को निर्दिष्ट करेगा और, यथास्थिति, मनश्चिकित्सक
या रोग विषयक मनोविज्ञानी मजिस्ट्रेट को सूचित करेगा कि अभियुक्त चित्तविकृति या
मानसिक मंदता से ग्रस्त है अथवा नहीं:
परंतु यदि अभियुक्त, यथास्थिति, मनश्चिकित्सक
या रोग विषयक मनोविज्ञानी द्वारा मजिस्ट्रेट को दी गई सूचना से व्यथित है तो वह
चिकित्सा बोर्ड के समक्ष, अपील कर
सकेगा जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगा,
(क) निकटतम सरकारी अस्पताल में मनश्चिकित्सा एकक प्रमुख ; और
(ख) निकटतम चिकित्सा महाविद्यालय में मनश्चिकित्सा संकाय का सदस्य
।] (2) ऐसी परीक्षा और जांच लंबित रहने तक
मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति के बारे में धारा 330 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही कर सकता है।
(3) यदि ऐसे मजिस्ट्रेट को यह सूचना दी जाती है कि उपधारा (1क) में निर्दिष्ट व्यक्ति विकृतचित्त
का ब्यक्ति है तो मजिस्ट्रेट आगे यह अवधारित करेगा कि क्या चित्त विकृति अभियुक्त को प्रतिरक्षा
करने में असमर्थ बनाती है और यदि अभियुक्त इस प्रकार असमर्थ पाया जाता है तो
मजिस्ट्रेट उस आशय का निष्कर्ष अभिलिखित करेगा और अभियोजन द्वारा पेश किए गए
साक्ष्य के अभिलेख की परीक्षा करेगा तथा अभियुक्त के अधिववक्ता को सुनने के
पश्चात् किंतु अभियुक्त से प्रश्न किए बिना, यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त के विरुद्ध
प्रथमदृष्टय़ा मामला नहीं बनता है तो वह जांच की मुल्तवी करने की बजाए अभियुक्त को
उन्मोचित कर देगा और उसके संबंध में धारा 330 के अधीन उपबंधित रीति में कार्यवाही करेगा:
परंतु यदि मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि उस
अभियुक्त के विरुद्ध प्रथमदृष्टया मामला बनता है जिसके संबंध में विकृतचित्त होने
का निष्कर्ष निकाला गया है तो वह कार्यवाही को ऐसी अवधि के लिए मुल्तवी कर देगा जो
मनश्चिकित्सक या रोग विषयक मनोविज्ञानी की राय में अभियुक्त के उपचार के लिए
अपेक्षित है और यह आदेश देगा कि अभियुक्त के संबंध में धारा 330 के अधीन उपबंधित रूप में कार्यवाही की
जाए।
(4) यदि ऐसे मजिस्ट्रेट को यह सूचना दी जाती है कि उपधारा (1क) में निर्दिष्ट व्यक्ति मानसिक
मंदता से ग्रस्त व्यक्ति है तो मजिस्ट्रेट आगे इस बारे में अवधारित करेगा कि
मानसिक मंदता के कारण अभियुक्त व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है और यदि
अभियुक्त इस प्रकार असमर्थ पाया जाता है, तो मजिस्ट्रेट जांच बंद करने का आदेश देगा और अभियुक्त के संबंध
में धारा 330
के अधीन उपबंधित रीति में
कार्यवाही करेगा।]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 329 | Section 329 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 329 in
Hindi ] –
न्यायालय के समक्ष
विचारित व्यक्ति के विकृतचित्त होने की दशा में प्रक्रिया–
(1) यदि किसी मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय के समक्ष किसी व्यक्ति
के विचारण के समय उस मजिस्ट्रेट या न्यायालय को वह व्यक्ति विकृतचित्त और
परिणामस्वरूप अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ प्रतीत होता है, तो वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय, प्रथमतः ऐसी चित्त-विकृति और असमर्थता
के तथ्य का विचारण करेगा और यदि उस मजिस्ट्रेट या न्यायालय का ऐसे चिकित्सीय या
अन्य साक्ष्य पर, जो उसके
समक्ष पेश किया जाता है, विचार
करने के पश्चात् उस तथ्य के बारे में समाधान हो जाता है तो वह उस भाव का निष्कर्ष
अभिलिखित करेगा और मामले में आगे की कार्यवाही मुल्तवी कर देगा।
(1क) यदि मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय विचारण के दौरान इस निष्कर्ष
पर पहुंचता है कि अभियुक्त विकृतचित्त है तो वह ऐसे व्यक्ति को देखभाल और उपचार के
लिए मनश्चिकित्सक या रोग विषयक मनोविज्ञानी को निर्देशित करेगा और, यथास्थिति, मनश्चिकित्सक या रोग विषयक
मनोविज्ञानी मजिस्ट्रेट या न्यायालय को रिपोर्ट करेगा कि अभियुक्त चित्तविकृति से
ग्रस्त है या नहीं:
परंतु यदि अभियुक्त. यथास्थिति, मनश्चिकित्सक या रोग विषयक
मनोविज्ञानी द्वारा मजिस्ट्रेट को दी गई सूचना से व्यथित है तो वह चिकित्सा बोर्ड
के समक्ष अपील कर सकेगा, जो
निम्नलिखित से मिलकर बनेगा,
(क) निकटतम सरकारी अस्पताल में मनश्चिकित्सा एकक प्रमुख ; और
(ख) निकटतम चिकित्सा महाविद्यालय में मनश्चिकित्सा संकाय का सदस्य।]
(2) यदि ऐसे मजिस्ट्रेट या न्यायालय को सूचना दी जाती है कि
उपधारा (1क) में निर्दिष्ट व्यक्ति विकृतचित्त
का व्यक्ति है,
तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय आगे
अवधारित करेगा कि चित्त विकृति के कारण अभियुक्त व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा करने में
असमर्थ है और यदि अभियुक्त इस प्रकार असमर्थ पाया जाता है तो मजिस्ट्रेट या
न्यायालय उस आशय का निष्कर्ष अभिलिखित करेगा और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य
के अभिलेख की परीक्षा करेगा और अभियुक्त के अधिववक्ता को सुनने के पश्चात् किंतु
अभियुक्त से प्रश्न पूछे बिना, यदि
मजिस्ट्रेट या न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त के विरुद्ध कोई
प्रथमदृष्टय़ा मामला नहीं बनता है, तो
वह विचारण को स्थगित करने की बजाए अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा और उसके संबंध में
धारा 330 के अधीन उपबंधित रीति में कार्यवाही
करेगा:
परंतु यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है
कि उस अभियुक्त के विरुद्ध प्रथमदृष्टय़ा मामला बनता है जिसके संबंध में
विकृतचित्त होने का निष्कर्ष निकाला गया है तो वह विचारण को ऐसी अवधि के लिए
मुल्तवी कर देगा जो मनश्चिकित्सक या रोग विषयक मनोविज्ञानी की राय में अभियुक्त के
उपचार के लिए अपेक्षित है।
(3) यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि
अभियुक्त के विरुद्ध प्रथमदृष्टय़ा मामला बनता है और वह मानसिक मंदत्ता के कारण
अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय विचारण नहीं करेगा
और यह आदेश देगा कि अभियुक्त के संबंध में धारा 330 के अनुसार कार्यवाही की जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 330 | Section 330 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 330 in
Hindi ] –
अन्वेषण या विचारण
के लंबित रहने तक विकृतचित्त व्यक्ति का छोड़ा जाना—
(1) जब कभी कोई व्यक्ति धारा 328 या धारा 329 के अधीन चित्तविकृति या मानसिक मंदता
के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ पाया जाता है तब, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय, चाहे मामला ऐसा हो जिसमें जमानत ली जा
सकती है या ऐसा न हो, ऐसे
व्यक्ति को जमानत पर छोड़े जाने का आदेश देगा:
परंतु अभियुक्त ऐसी चित्तविकृति या मानसिक मंदता से ग्रस्त
है जो अंतरंग रोगी उपचार के लिए समादेशित नहीं करती हो और
कोई मित्र या नातेदार किसी निकटतम चिकित्सा सुविधा से नियमित
बाह्य रोगी मनि चिकित्सा उपचार कराने और उसे अपने आपको या किसी अन्य व्यक्ति को
क्षति पहुंचाने से निवारित रखने का वचन देता है।
(2) यदि मामला ऐसा है जिसमें, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट
या न्यायालय की राय में, जमानत
नहीं दी जा सकतीया यदि कोई समुचित वचनबंध नहीं दिया गया है तो वह अभियुक्त को ऐसे
स्थान में रखे जाने का आदेश देगा, जहां
नियमित मनि चिकित्सा उपचार कराया जा सकता है और की गई कार्रवाई की रिपोर्ट राज्य
सरकार को देगा :
परंतु पागलखाने में अभियुक्त को निरुद्ध किए जाने के लिए कोई
आदेश राज्य सरकार द्वारा मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 (1987 का 14) के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार ही
किया जाएगा,
अन्यथा नहीं।
(3) जब कभी कोई व्यक्ति धारा 328 या धारा 329 के अधीन चित्त विकृति या मानसिक मंदता
के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ पाया जाता है तब, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय कारित किए गए
कार्य की प्रकृति और चित्तविकृति या मानसिक मंदता की सीमा को ध्यान में रखते हुए
आगे यह अवधारित करेगा कि क्या अभियुक्त को छोड़ने का आदेश दिया जा सकता है: परंतु
(क) यदि चिकत्सा राय या किसी विशेषज्ञ की राय के आधार पर, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय धारा 328 या धारा 329 के अधीन उपबंधित रीति में अभियुक्त के
उन्मोचन का आदेश करने का विनिश्चय करता है तो ऐसे छोड़े जाने का आदेश किया जा
सकेगा, यदि पर्याप्त प्रतिभूति दी जाती है कि
अभियुक्त को अपने आपको या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचाने से निवारित किया
जाएगा:
(ख) यदि, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय की यह राय है कि
अभियुक्त के उन्मोचन का आदेश नहीं दिया जा सकता है तो अभियुक्त को चित्त विकृति या
मानसिक मंदता के व्यक्तियों के लिए आवासीय सुविधा में अंतरित करने का आदेश दिया जा
सकता है जहां अभियुक्त की देखभाल की जा सके और समुचित शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जा
सके।]
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 331 | Section 331 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 331 in
Hindi ] –
जांच या विचारण को
पुन: चालू करना—
(1) जब कभी जांच या विचारण को धारा 328 या धारा 329 के अधीन मुल्तवी किया गया है, तब, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट
या न्यायालय जांच या विचारण को संबद्ध व्यक्ति के विकृतचित्त न रहने पर किसी भी
समय पुनः चालू कर सकता है और ऐसे मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष अभियुक्त के
हाजिर होने या लाए जाने की अपेक्षा कर सकता है।
(2) जब अभियुक्त धारा 330 के अधीन छोड़ दिया गया है और उसकी हाजिरी के लिए प्रतिभ उसे
उस अधिकारी के समक्ष पेश करते हैं, जिसे
मजिस्ट्रेट या न्यायालय ने इस निमित्त नियुक्त किया है. तब ऐसे अधिकारी का यह
प्रमाणपत्र कि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है साक्ष्य में लिए जाने
योग्य होगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 332 | Section 332 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 332 in
Hindi ] –
मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष
अभियुक्त के हाजिर होने पर प्रक्रिया–
(1) जब अभियुक्त, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष
हाजिर होता है या पुनः लाया जाता है, तब यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय का यह विचार है कि वह अपनी
प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो, जांच
या विचारण आगे चलेगा।
(2) यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय का यह विचार है कि अभियुक्त अभी
अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय, यथास्थिति, धारा 328 या धारा 329 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा
और यदि अभियुक्त विकृतचित्त और परिणामस्वरूप अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ पाया
जाता है तो ऐसे अभियुक्त के बारे में वह धारा 330 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 333 | Section 333 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 333 in
Hindi ] –
जब यह प्रतीत हो
कि अभियुक्त स्वस्थचित्त रहा है-
जब अभियुक्त जांच या विचारण के समय स्वस्थचित्त प्रतीत होता
है और मजिस्ट्रेट का अपने समक्ष दिए गए साक्ष्य से समाधान हो जाता है कि यह
विश्वास करने का कारण है कि अभियुक्त ने ऐसा कार्य किया है, जो यदि वह स्वस्थचित्त होता तो अपराध
होता और यह कि वह उस समय जब बह कार्य किया गया था चित्त-विकृति के कारण उस कार्य
का स्वरूप या यह जानने में असमर्थ था, कि यह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है. तब मजिस्ट्रेट मामले में
आगे कार्यवाही करेगा और यदि अभियुक्त का विचारण सेशन न्यायालय द्वारा किया जाना
चाहिए तो उसे सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए सुपुर्द करेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 334 | Section 334 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 334 in
Hindi ] –
चित्त-विकृति के
आधार पर दोष-मुक्ति का निर्णय-
जब कभी कोई व्यक्ति इस आधार पर दोषमुक्त किया जाता है कि उस
समय जबकि यह अभिकथित है कि उसने अपराध किया वह चित्त-विकृति के कारण उस कार्य का
स्वरूप, जिसका अपराध होना अभिकथित है, या यह कि वह दोषपूर्ण या विधि के
प्रतिकूल है जानने में असमर्थ था, तब
निष्कर्ष में यह विनिर्दिष्टतः कथित होगा कि उसने वह् कार्य किया या नहीं किया।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 335 | Section 335 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 335 in
Hindi ] –
ऐसे आधार पर
दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का सुरक्षित अभिरक्षा में निरुद्ध किया जाना—
(1) जब कभी निष्कर्ष में यह कथित है कि अभियुक्त व्यक्ति ने
अभिकथित कार्य किया है तब वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय, जिसके समक्ष विचारण किया गया है, उस दशा में जब ऐसा कार्य उस असमर्थता
के न होने पर,
जो पाई गई, अपराध होता,
(क) उस व्यक्ति को ऐसे स्थान में और ऐसी रीति से, जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट या न्यायालय ठीक
समझे, सुरक्षित अभिरक्षा में निरुद्ध करने
का आदेश देगा ;
अथवा
(ख) उस व्यक्ति को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौंपने का आदेश
देगा। (2) पागलखाने में अभियुक्त को निरुद्ध
करने का उपधारा (1) के खंड
(क) के अधीन कोई आदेश राज्य सरकार द्वारा भारतीय पागलपन अधिनियम, 1912 (1912 का 4) के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार ही
किया जाएगा अन्यथा नहीं।
(3) अभियुक्त को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौंपने का उपधारा
(1) के खंड (ख) के अधीन कोई आदेश उसके ऐसे
नातेदार या मित्र के आवेदन पर और उसके द्वारा निम्नलिखित बातों की बाबत मजिस्ट्रेट
या न्यायालय के समाधाप्रद प्रतिभूति देने पर ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं
(क) सौंपे गए व्यक्ति की समुचित देख-रेख की जाएगी और वह अपने आपको
या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचाने से निवारित रखा जाएगा:
(ख) सौंपा गया व्यक्ति ऐसे अधिकारी के समक्ष और ऐसे समय और स्थानों
पर, जो राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किए
जाएं. निरीक्षण के लिए पेश किया जाएगा।
(4) मजिस्ट्रेट या न्यायालय उपधारा (1) के अधीन की गई कार्रवाई की रिपोर्ट
राज्य सरकार को देगा
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 336 | Section 336 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 336 in
Hindi ] –
भारसाधक अधिकारी
को कत्यों का निर्वहन करने के लिए सशक्त करने की राज्य सरकार की शक्ति-
राज्य सरकार उस जेल के भारसाधक अधिकारी को, जिसमें कोई व्यक्ति धारा 330 या धारा 335 के उपबंधों के अधीन परिरुद्ध है, धारा 337 या धारा 338 के अधीन कारागारों के महानिरीक्षक के
सब कृत्यों का या उनमें से किसी का निर्वहन करने के लिए सशक्त कर सकती है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 337 | Section 337 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 337 in
Hindi ] –
जहां यह रिपोर्ट
की जाती है कि पागल बंदी अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है वहां प्रक्रिया–
यदि ऐसा व्यक्ति धारा 330 की उपधारा (2) के
उपबंधों के अधीन निरुद्ध किया जाता है और, जेल में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में कारागारों का महानिरीक्षक या
पागलखाने में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में उस पागलखाने की परिदर्शक या उनमें से कोई
दो प्रमाणित करें, कि उसकी
या उनकी राय में वह व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो वह्, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष उस
समय, जिसे वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय नियत
करे, लाया जाएगा और वह मजिस्ट्रेट या
न्यायालय उस व्यक्ति के बारे में धारा 332 के उपबंधों के अधीन कार्यवाही करेगा, और पूर्वोक्त महानिरीक्षक या
परिदर्शकों का प्रमाणपत्र साक्ष्य के तौर पर ग्रहण किया जा सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 338 | Section 338 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 338 in
Hindi ] –
जहां निरुद्ध पागल
छोड़े जाने के योग्य घोषित कर दिया जाता है वहां प्रक्रिया–
(1) यदि ऐसा व्यक्ति धारा 330 की उपधारा (2) या
धारा 335 के उपबंधों के अधीन निरुद्ध है और ऐसा
महानिरीक्षक या ऐसे परिदर्शक प्रमाणित करते हैं कि उसके या उनके विचार में वह अपने
को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचाने के खतरे के बिना छोड़ा जा सकता है तो
राज्य सरकार तब उसके छोड़े जाने का या अभिरक्षा में निरुद्ध रखे जाने का या, यदि वह पहले ही लोक पागलखाने नहीं भेज
दिया गया है तो ऐसे पागलखाने को अन्तरित किए जाने का आदेश दे सकती है और यदि वह
उसे पागलखाने को अन्तरित करने का आदेश देती है तो वह एक न्यायिक और दो चिकित्सक
अधिकारियों का एक आयोग नियुक्त कर सकती है।
(2) ऐसा आयोग ऐसा साक्ष्य लेकर, जो आवश्यक हो, ऐसे व्यक्ति के चित्त की दशा की यथारीति जांच करेगा और राज्य सरकार
को रिपोर्ट देगा, जो उसके
छोड़े जाने या निरुद्ध रखे जाने का जैसा वह ठीक समझे, आदेश दे सकती है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 339 | Section 339 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 339 in Hindi
] –
नातेदार या मित्र
की देख-रेख के लिए पागल का सौंपा जाना—
(1) जब कभी धारा 330 या धारा 335 के उपबंधों के अधीन निरुद्ध किसी व्यक्ति का कोई नातेदार या मित्र
यह चाहता है कि वह व्यक्ति उसकी देख-रेख और अभिरक्षा में रखे जाने के लिए सौंप
दिया जाए जब राज्य सरकार उस नातेदार या मित्र के आवेदन पर और उसके द्वारा ऐसी
राज्य सरकार को समाधानप्रद प्रतिभूति इस बाबत दिए जाने पर कि
(क) सौंपे गए व्यक्ति की समुचित देख-रेख की जाएगी और वह अपने आपको
या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुंचाने से निवारित रखा जाएगा:
(ख) सौंपा गया व्यक्ति ऐसे अधिकारी के समक्ष और ऐसे समय और स्थानों
पर, जो राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किए
जाएं निरीक्षण के लिए पेश किया जाएगा;
(ग) सौंपा गया व्यक्ति, उस दशा में जिसमें वह धारा 330 की उपधारा (2) के
अधीन निरुद्ध व्यक्ति है, अपेक्षा
किए जाने पर ऐसे मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा, ऐसे व्यक्ति को ऐसे नातेदार या मित्र
को सौंपने का आदेश दे सकेगी।
(2) यदि ऐसे सौंपा गया व्यक्ति किसी ऐसे अपराध के लिए अभियुक्त
है, जिसका विचारण उसके विकृतचित्त होने और
अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ होने के कारण मुल्तवी किया गया है और उपधारा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट निरीक्षण
अधिकारी किसी समय मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष यह प्रमाणित करता है कि ऐसा
व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो ऐसा मजिस्ट्रेट या न्यायालय उस
नातेदार या मित्र से, जिसे ऐसा
अभियुक्त सौंपा गया है, अपेक्षा
करेगा कि वह उसे उस मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष पेश करे और ऐसे पेश किए जाने
पर वह मजिस्ट्रेट या न्यायालय धारा 332 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा और निरीक्षण अधिकारी
का प्रमाणपत्र साक्ष्य के तौर पर ग्रहण किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 | Section 340 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 340 in
Hindi ] –
धारा 195 में वर्णित मामलों में प्रक्रिया–
(1) जब किसी न्यायालय की, उससे इस निमित्त किए गए आवेदन पर या अन्यथा. यह राय है कि न्याय के
हित में यह समीचीन है कि धारा 195 की उपधारा (1) के बंड
(ख) में निर्दिष्ट किसी अपराध की, जो
उसे, यथास्थिति, उस न्यायालय की कार्यवाही में या उसके
संबंध में अथवा उस न्यायालय की कार्यवाही में पेश की गई या साक्ष्य में दी गई
दस्तावेज के बारे में किया हुआ प्रतीत होता है, जांच की जानी चाहिए तब ऐसा न्यायालय ऐसी प्रारंभिक जांच के पश्चात्
यदि कोई हो,
जैसी वह आवश्यक समझे,
(क) उस भाव का निष्कर्ष अभिलिखित कर सकता है;
(ख) उसका लिखित परिवाद कर सकता है;
(ग) उसे अधिकारिता रखने वाले प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को भेज सकता है ;
(घ ) ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त के हाजिर होने के लिए
पर्याप्त प्रतिभूति ले सकता है अथवा यदि अभिकथित अपराध अजमानतीय है और न्यायालय
ऐसा करना आवश्यक समझता है तो, अभियुक्त
को ऐसे मजिस्ट्रेट के पास अभिरक्षा में भेज सकता है; और
(ङ) ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने और साक्ष्य देने के लिए
किसी व्यक्ति को आबद्ध कर सकता है।
(2) किसी अपराध के बारे में न्यायालय को उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग, ऐसे मामले में जिसमें उस न्यायालय ने
उपधारा (1)
के अधीन उस अपराध के बारे में न
तो परिवाद किया है और न ऐसे परिवाद के किए जाने के लिए आवेदन को नामंजूर किया है, उस न्यायालय द्वारा किया जा सकता है
जिसके ऐसा पूर्वकथित न्यायालय धारा 195 की उपधारा (4) के
अर्थ में अधीनस्थ है।
(3) इस धारा के अधीन किए गए परिवाद पर हस्ताक्षर,
(क) जहां परिवाद करने वाला न्यायालय उच्च न्यायालय है वहां उस
न्यायालय के ऐसे अधिकारी द्वारा किए जाएंगे, जिसे वह न्यायालय नियुक्त करे;
(ख) किसी अन्य मामले में, न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा या न्यायालय के ऐसे अधिकारी
द्वारा, जिसे न्यायालय इस निमित्त लिखित में
प्राधिकृत करे,
किए जाएंगे।]
(4) इस धारा में “न्यायालय का वही अर्थ है जो धारा 195 में है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 341 | Section 341 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 341 in
Hindi ] –
अपील–
(1) कोई व्यक्ति, जिसके
आवेदन पर उच्च न्यायालय से भिन्न किसी न्यायालय ने धारा 340 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन परिवाद करने से इनकार कर दिया
है या जिसके विरुद्ध ऐसा परिवाद ऐसे न्यायालय द्वारा किया गया है, उस न्यायालय में अपील कर सकता है, जिसके ऐसा पूर्वकथित न्यायालय धारा 195 की उपधारा (4) के अर्थ में अधीनस्थ है और तब वरिष्ठ
न्यायालय संबद्ध पक्षकारों को सूचना देने के पश्चात्, यथास्थिति, उस परिवाद को वापस लेने का या वह
परिवाद करने का जिसे ऐसा पूर्वकथित न्यायालय धारा 340 के अधीन कर सकता था, निदेश दे सकेगा और यदि वह ऐसा परिवाद
करता है तो उस धारा के उपबंध तद्नुसार लागू होंगे।
(2) इस धारा के अधीन आदेश, और ऐसे आदेश के अधीन रहते हुए धारा 340 के अधीन आदेश, अंतिम होगा और उसका पुनरीक्षण नहीं
किया जा सकेगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 342 | Section 342 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 342 in
Hindi ] –
खर्चे का आदेश
देने की शक्ति-
धारा 340 के
अधीन परिवाद फाइल करने के लिए किए गए किसी आवेदन या धारा 341 के अधीन अपील के संबंध में कार्यवाही
करने वाले किसी भी न्यायालय को खर्चे के बारे में ऐसा आदेश देने की शक्ति होगी, जो न्यायसंगत हो।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 343 | Section 343 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 343 in
Hindi ] –
जहां मजिस्ट्रेट
संज्ञान करे वहां प्रक्रिया–
(1) वह मजिस्ट्रेट, जिससे कोई परिवाद धारा 340 या धारा 341 के अधीन किया जाता है, अध्याय 15 में किसी
बात के होते हुए भी, जहाँ तक
हो सके मामले में इस प्रकार कार्यवाही करने के लिए अग्रसर होगा, मानो वह पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित है।
(2) जहाँ ऐसे मजिस्ट्रेट के या किसी अन्य मजिस्ट्रेट के, जिसे मामला अंतरित किया गया है, ध्यान में यह बात लाई जाती है कि उस
न्यायिक कार्यवाही में, जिससे वह
मामला उत्पन्न हुआ है, किए गए
विनिश्चय के विरुद्ध अपील लंबित है वहाँ बह, यदि ठीक समझता है तो, मामले की सुनवाई को किसी भी प्रक्रम पर तब तक के लिए स्थगित कर
सकता है जब तक ऐसी अपील विनिश्चित न हो जाए।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 344 | Section 344 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 344 in
Hindi ] –
मिथ्या साक्ष्य
देने पर विचारण के लिए संक्षिप्त प्रक्रिया–
(1) यदि किसी न्यायिक कार्यवाही को निपटाते हुए निर्णय या अंतिम आदेश देते समय कोई सेशन
न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट यह राय व्यक्त करता है कि ऐसी कार्यवाही में
उपस्थित होने वाले किसी साक्षी ने जानते हुए या जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य दिया है
या इस आशय से मिथ्या साक्ष्य गड़ा है कि ऐसा साक्ष्य ऐसी कार्यवाही में प्रयुक्त
किया जाए तो यदि उसका समाधान हो जाता है कि न्याय के हित में यह आवश्यक और समीचीन
है कि साक्षी का, यथास्थिति, मिथ्या साक्ष्य देने या गड़ने के लिए
संक्षेपतः विचारण किया जाना चाहिए तो वह ऐसे अपराध का संज्ञान कर सकेगा और अपराधी
को ऐसा कारण दर्शित करने का कि क्यों न उसे ऐसे अपराध के लिए दंडित किया जाए, उचित अवसर देने के पश्चात्, ऐसे अपराधों का संक्षेपतः विचारण कर
सकेगा और उसे कारावास से जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो
पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से, दंडित कर सकेगा।
(2) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय संक्षिप्त विचारणों के लिए
विहित प्रक्रिया का यथासाध्य अनुसरण करेगा।
(3) जहां न्यायालय इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिए अग्रसर
नहीं होता है वहां इस धारा की कोई बात, अपराध के लिए धारा 340 के अधीन परिवाद करने की उस न्यायालय की शक्ति पर प्रभाव नहीं
डालेगी।
(4) जहां, उपधारा (1) के अधीन किसी कार्यवाही के प्रारंभ
किए जाने के पश्चात सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत कराया
जाता है कि उस निर्णय या आदेश के विरुद्ध जिसमें उस उपधारा में निर्दिष्ट राय
अभिव्यक्त की गई है अपील या पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया गया है वहां वह, यथास्थिति, अपील या पुनरीक्षण के आवेदन के निपटाए
जाने तक आगे विचारण की कार्यवाहियों को रोक देगा और तब आगे विचारण की कार्यवाहियां
अपील या पुनरीक्षण के आवेदन के परिणामों के अनुसार होंगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 345 | Section 345 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 345 in
Hindi ] –
अवमान के कुछ
मामलों में प्रक्रिया–
(1) जब कोई ऐसा अपराध, जैसा भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की
धारा 175, धारा 178, धारा 179, धारा 180 या धारा 228 में वर्णित है, किसी सिविल, दंड या राजस्व न्यायालय की
दृष्टिगोचरता या उपस्थिति में किया जाता है तब न्यायालय अभियुक्त को अभिरक्षा में
निरुद्ध करा सकता है और उसी दिन न्यायालय के उठने के पूर्व किसी समय, अपराध का संज्ञान कर सकता है और
अपराधी को ऐसा कारण दर्शित करने का, कि क्यों न उसे इस धारा के अधीन दंडित किया जाए. उचित अवसर देने के
पश्चात् अपराधी को दो सौ रुपए से अनधिक जुर्माने का और जुर्माना देने में
व्यतिक्रम होने पर एक मास तक की अवधि के लिए, जब तक कि ऐसा जुर्माना उससे पूर्वतर न दे दिया जाए. सादा कारावास
का दंडादेश दे सकता है।
(2) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय वे तथ्य जिनसे अपराध बनता
है, अपराधी द्वारा किए गए कथन के (यदि कोई
हो) सहित, तथा निष्कर्ष और दंडादेश भी अभिलिखित
करेगा।
(3) यदि अपराध भारतीय दंड संहिता, (1860 का 45) की धारा 228 के अधीन है तो अभिलेख में यह दर्शित
होगा कि जिस न्यायालय के कार्य में विघ्न डाला गया था या जिसका अपमान किया गया था, उसकी बैठक किस प्रकार की न्यायिक
कार्यवाही के संबंध में और उसके किस प्रक्रम पर हो रही थी और किस प्रकार का विघ्न
डाला गया या अपमान किया गया था।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 346 | Section 346 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 346 in
Hindi ] –
जहां न्यायालय का
विचार है कि मामले में धारा 345 के अधीन कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए वहां प्रक्रिया–
(1) यदि किसी मामले में न्यायालय का यह विचार है कि धारा 345 में निर्दिष्ट और उसकी दृष्टिगोचरता
या उपस्थिति में किए गए अपराधों में से किसी के लिए अभियुक्त व्यक्ति जुर्माना
देने में व्यतिक्रम करने से अन्यथा कारावासित किया जाना चाहिए या उस पर दो सौ रुपए
से अधिक जुर्माना अधिरोपित किया जाना चाहिए या किसी अन्य कारण से उस न्यायालय की
यह राय है कि मामला धारा 345 के
अधीन नहीं निपटाया जाना चाहिए तो वह न्यायालय उन तथ्यों को जिनसे अपराध बनता है और
अभियुक्त के कथन को इसमें इसके पूर्व उपबंधित प्रकार से अभिलिखित करने के पश्चात्, मामला उसका विचारण करने की अधिकारिता
रखने वाले मजिस्ट्रेट को भेज सकेगा और ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसे व्यक्ति की
हाजिरी के लिए प्रतिभूति दी जाने की अपेक्षा कर सकेगा, अथवा यदि पर्याप्त प्रतिभूति न दी जाए
तो ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा में ऐसे मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा।
(2) वह मजिस्ट्रेट, जिसे कोई मामला इस धारा के अधीन भेजा जाता है, जहाँ तक हो सके इस प्रकार कार्यवाही
करने के लिए अग्रसर होगा मानो वह मामला पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 347 | Section 347 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 347 in
Hindi ] –
रजिस्ट्रार या
उप-रजिस्ट्रार कब सिविल न्यायालय समझा जाएगा–
जब राज्य सरकार ऐसा निदेश दे तब कोई भी रजिस्ट्रार या कोई भी
उप-रजिस्ट्रार,
जो *** रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (1908 का 16) के अधीन नियुक्त है, धारा 345 और 346 के अर्थ में सिविल न्यायालय समझा
जाएगा।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 348 | Section 348 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 348 in
Hindi ] –
माफी मांगने पर अपराधी का उन्मोचन-
जब किसी न्यायालय ने किसी अपराधी को कोई बात, जिसे करने की उससे विधिपूर्वक अपेक्षा
की गई थी, करने से इनकार करने या उसे न करने के
लिए या साशय कोई अपमान करने या विघ्न डालने के लिए धारा 345 के अधीन दंडित किए जाने के लिए
न्यायनिर्णीत किया है या धारा 346 के अधीन विचारण के लिए मजिस्ट्रेट के पास भेजा है, तब वह न्यायालय अपने आदेश या अपेक्षा
के उसके द्वारा मान लिए जाने पर या उसके द्वारा ऐसे माफी मांगे जाने पर, जिससे न्यायालय का समाधान हो जाए, स्वविवेकानुसार अभियुक्त को उन्मोचित
कर सकता है या दंड का परिहार कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 349 | Section 349 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 349 in
Hindi ] –
उत्तर देने या
दस्तावेज पेश करने से इनकार करने वाले व्यक्ति को कारावास या उसकी सुपुर्दगी-
यदि दंड न्यायालय के समक्ष कोई साक्षी या कोई व्यक्ति, जो किसी दस्तावेज या चीज को पेश करने
के लिए बुलाया गया है, उन
प्रश्नों का,
जो उससे किए जाएं. उत्तर देने
से या अपने कब्जे या शक्ति में की किसी दस्तावेज या चीज को, जिसे पेश करने की न्यायालय उससे
अपेक्षा करे,
पेश करने से इनकार करता है और
ऐसे इनकार के लिए कोई उचित कारण पेश करने के लिए युक्तियुक्त अवसर दिए जाने पर ऐसा
नहीं करता है तो ऐसा न्यायालय उन कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, उसे सात दिन से अनधिक की किसी अवधि के लिए सादा कारावास का दंडादेश
दे सकेगा अथवा पीठासीन मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित वारण्ट द्वारा
न्यायालय के किसी अधिकारी की अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकेगा, जब तक कि उस बीच ऐसा व्यक्ति अपनी
परीक्षा की जाने और उत्तर देने के लिए या दस्तावेज या चीज पेश करने के लिए सहमत
नहीं हो जाता है और उसके इनकार पर डटे रहने की दशा में उसके बारे में धारा 345 या धारा 346 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही की जा
सकेगी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 350 | Section 350 in The Code Of
Criminal Procedure
[ CrPC Sec. 350 in
Hindi ] –
समन के पालन में
साक्षी के हाजिर न होने पर उसे दंडित करने के लिए संक्षिप्त प्रक्रिया–
(1) यदि किसी दंड न्यायालय के समक्ष हाजिर होने के लिए समन किए
जाने पर कोई साक्षी समन के पालन में किसी निश्चित स्थान और समय पर हाजिर होने के
लिए वैध रूप से आबद्ध है और न्यायसंगत कारण के बिना, उस स्थान या समय पर हाजिर होने में उपेक्षा या हाजिर होने से
इनकार करता है अथवा उस स्थान से, जहां
उसे हाजिर होना है, उस समय
से पहले चला जाता है जिस समय चला जाना उसके लिए विधिपूर्ण है और जिस न्यायालय के
समक्ष उस साक्षी को हाजिर होना है उसका समाधान हो जाता है कि न्याय के हित में यह
समीचीन है कि ऐसे साक्षी का संक्षेपतः विचारण किया जाए तो वह न्यायालय उस अपराध का
संज्ञान कर सकता है और अपराधी को इस बात का कारण दर्शित करने का कि क्यों न उसे इस
धारा के अधीन दंडित किया जाए अवसर देने के पश्चात् उसे एक सौ रुपए से अनधिक
जुर्माने का दंडादेश दे सकता है।
(2) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय उस प्रक्रिया का यथासाध्य
अनुसरण करेगा जो संक्षिप्त विचारणों के लिए विहित है।
No comments:
Post a Comment